सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Monday, March 8, 2010

महिला दिवस

नारी को जयशंकर प्रसाद ने “नारी तुम केवल श्रद्धा हो ” कहा, मैथिली शरण गुप्त ने “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी ” बताया और महादेवी वर्मा ने “वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास; अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात!” लिखकर चित्रित किया. शास्त्रों में बताया कि “ यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता” – जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं. वही नारी नौ महीने की काल कोठरी में भ्रूण से पूर्ण होने की यात्रा में जीवन की डोर से जीव को जिलाये रखती है, सम्पूर्ण सृष्टि की जननी.

किंतु एक मिनट… ऐसा कुछ क्या सचमुच है हमारे आस पास? हो सकता है आप कहें कि नहीं…बिल्कुल नहीं. आज नारी अबला तो है ही नहीं, और वेदना तथा करुणा जैसी फालतू चीज़ों का तो नारी के साथ दूर दूर का वास्ता नहीं है. नारी घर बार से लेकर करोबार तक चला रही है, इन्नोवा से लेकर बोइंग तक और कलम से लेकर बंदूक तक. नारी गृहिणी भी है और एक बडे औद्योगिक प्रतिष्ठान की सी. ई. ओ. भी है. लब्बो लुआब ये कि कोइ भी ऐसा काम जिसे पुरुषों का काम कहा जाता था आज नारियों से अछूता नहीं है.

अगर ऐसा है तो फिर क्या आवश्यकता है “महिला दिवस” मनाए जाने की. शायद इसलिये कि हम इस दिन उन महिलाओं को याद कर लें जो पहले कहे गए नारी के किसी भी रूप में नहीं समातीं. क्योंकि एक नारी वो भी है जो घर की चारदीवारी को हीअपनी दुनिया मान लेती है, पति को परमेश्वर, और बच्चे पालने को अपने जीवन का लक्ष्य. एक नारी वो भी है जिसकी कसक गुलज़ार ने इन लफ्ज़ों में बयान की है :

आले भरवा दो मेरी आँखों के
बंद करवा के उनपे ताले लगवा दो.
जिस्म की जुम्बिशों पे पहले ही
तुमने अहकाम बाँध रखे हैं
मेरी आवाज़ रेंग कर निकलती है.
ढाँप कर जिस्म भारी पर्दों में
दर दरीचों पे पहरे रखते हो.
फिक्र रहती है रात दिन तुमको
कोई सामान चोरी ना कर ले.
एक छोटा सा काम और करो
अपनी उंगली डबो के रौग़न में
तुम मेरे जिस्म पर लिख दो
इसके जुमला हुकूक अब तुम्हारे हैं.

या फिर वो नारी जो सिर पर नौ नौ ईंटें उठाकर किसी नई बन रही ईमारत की छत तक चढती उतरती है और घर जाकर अपने शराबी पति की मार भी खाती है. उसके बच्चे को अपनी कोख में पालती है और जब पता चलता है कि वो भी नारी है तो उसकी हत्या होते हुए भी देखती है. ये नारी किसी फिल्म की हिरोइन नहीं, लेकिन फटे कपडों में अपना बदन छिपाती, किसी मोनालिसा से कम नहीं. क्या हुआ अगर ये किसी साबुन, तेल या शैम्पू का विज्ञापन करने वाली मॉडल नहीं, किसी भी मेहनतकश इंसान की रोल मॉडल अवश्य है. प्रसाद, गुप्त और महादेवी की नारी को नमन करते हुए सूर्य कांत त्रिपाठी ‘निराला’ की नारी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पण हैं, जिसके बारे में उन्होंने कहा था “तोडती पत्थर…देखा उसे मैंने इलाहाबादके पथ पर”.

कल ‘लोक सभा टीवी’ पर स्वामी अग्निवेश ऐसी ही कुछ महिलाओं से चर्चा के दौरान उनकी दुर्दशा सुनकर अपने आँसू नहीं रोक पाए और उन्होंने ब्रेक की घोषणा कर दी… ये कॉमर्शियल ब्रेक नहीं था, इमोशनल ब्रेक था. शायद टीवी के इतिहास में अपनी तरह का पहला ब्रेक. और कर्यक्रम के अंत में उन महिलाओं के पैर छुए, ये बताते हुए कि उन्होंने अपनी माता के अतिरिक्त पहली बार किसी के पैर छुए हैं.

आज संसद में महिला आरक्षण विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा. कैसी विडम्बना है कि देश की लगभग आधी आबादी वाली महिलाओं को मात्र एक तिहाई प्रतिनिधित्व के लिये भी इतने विरोध झेलने पड रहे हैं. नेपोलियन ने कहा था कि तुम मुझे एक अच्छी माँ दो, मैं तुम्हें एक अच्छा राष्ट्र दूंगा. छः दशकों से पूरा मौका दिये जाने पर तो पुरुषों ने देश का ये हाल किया है, अब बारी है नारी शक्ति को मात्र एक तिहाई मौका देने की, जो होगी महिला दिवस पर एक सच्ची पुष्पांजलि.

6 comments:

Unknown said...

बहुत खूब भाईसाहब आपने तो एक दम सचाई बयां किया है,बहुत ही अच्छा .
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

Udan Tashtari said...

अच्छा विचार...


विश्व की सभी महिलाओं को अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

तदात्मानं सृजाम्यहम् said...

आले भरवा दो मेरी आँखों के
बंद करवा के उनपे ताले लगवा दो...
सच ही तो है। ये महिला दिवस वगैरह गुमराह करने की चाल है, कि हे महिलाओं, हम तुम्हें भूले नहीं हैं। तुम्हें तुम्हारे अधिकार मिलें या न मिलें, हम उत्सव मनाए जाते हैं।

imemyself said...

Congrets !
The battle in Rajya Sabha is won but War is not yet over. The women in cities have started fighting for individuality but women in villages are still deprived and being exploited. The war is on.
The legislature will help breaking the status quo. Narri Shakti ke haatho dunia itni viduwansak nahi hogi

पूनम श्रीवास्तव said...

pichchale yug ki naari aur aaj ke samay ki naari par aapanebahut hi aachchi post prastut ki hai.sachachi ko chchooti aapki ki yah rachana ati sundar------
poonam

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