Tuesday, August 10, 2010

एक और भूली बिसरी ग़ज़ल

हमारी एक भूली बिसरी ग़ज़ल की अगली कड़ी के रूप में यह ग़ज़ल आपकी नज़र.
एक बार पुनः समर्पित है यह गज़ल जनाब तुफ़ैल चतुर्वेदी को,जिनकी प्रेरणा से इस ग़ज़ल का जन्म हुआ.


बीमार से मिलने कोई बीमार तो आए,
अच्छा भला नहीं, न सही, यार तो आए.

ता-उम्र सो सका न मैं बिस्तर पे गुलों के,
अब नींद आ रही है, कोई ख़ार तो आए.

सूती के सिले कपड़ों में कितनी हसीन थी,
ख़्वाहिश है, वो रेशम कभी उतार तो आए.

ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.

ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.

मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गई
अल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए.

दहशत के खेल में हुई क़ुरबान ज़िंदगी
जल्लाद कई, कोई जाँनिसार तो आए.

कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए.

32 comments:

  1. बहुत ही संवेदनशील गजल ,शानदार प्रस्तुती..

    ReplyDelete
  2. बिलकुल छा गई ये ग़ज़ल ..एक एक शेर गज़ब का
    मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गईअल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए.
    बस हम भी बहार का इंतज़ार कर रहे है ...

    ReplyDelete
  3. दिल से जो सुन चुके कोई दिलदार तो आये !
    उम्मीद है कि इस जंगल में कुछ दिलदार तो मिलेंगे ! हार्दिक शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  4. एक बेहद उम्दा नज़्म ! ख़ास कर इन शेरो ने तो दिल ही जीत लिया !

    ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
    बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.


    ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.


    दहशत के खेल में हुई क़ुरबान ज़िंदगी
    जल्लाद कई, कोई जाँनिसार तो आए.

    ReplyDelete
  5. लिजिये दिलदार तो आ ही गये . बेहतरीन गज़ल

    ReplyDelete
  6. ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.

    bahut hi khoobsurat..
    bahut pasand aayi hai..
    aapka shukriya..tahe dil se..

    ReplyDelete
  7. खिंचे चले आये जी हम तो, फ़ैसला आपका लो जल्लाद बढ़ गये कि दिलदार बढ़ गये।

    ReplyDelete
  8. हालाकि इस ग़ज़ल के एक एक शे’र को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा। फिर भी
    ता-उम्र सो सका न मैं बिस्तर पे गुलों के,
    अब नींद आ रही है, कोई ख़ार तो आए.
    और
    ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.
    बेहद पसंद आए।
    अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है। आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब...
    यह शेर तो गज़ब है..

    ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.
    ....
    कहीं दर्शन, कहीं दर्द झलकता है
    संवेदना का स्वर यहाँ झलकता है.
    ..बधाई.

    ReplyDelete
  10. ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
    बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए..

    बहुत खूब ...सुन्दर गज़ल..

    ReplyDelete
  11. किसी के आने कि इतनी बेकरारी क्या कहने....
    इतने रुप बदल बदल के हो रहा है इंतजार
    हर बार इंतजार औऱ आऱजू कि कोई तो आए
    ईमान भी बेंचू, खिंजा में भी कर रहे हैं गुजारा
    वो कैसे भी आए, किसी भी तरह सही पर आए...

    कहते हैं कि दिलदार के इंतजार में तो बिरादर आखिर समय भी आंखे खुली रह जाती हैं.

    ReplyDelete
  12. क्या बात है..बहुत उम्दा!

    ReplyDelete
  13. स्वर यदि संवेदना के हों तो हम सदैव प्रस्तुत हैं श्रोता बन।

    ReplyDelete
  14. सलिल जी काश आप आज सामने होते तो इस ग़ज़ल के लिए आपको गले लगा लेता...भाई क्या ग़ज़ल कही है...सुभान अल्लाह...एक एक शेर बेजोड़ है...
    ता-उम्र सो सका न मैं बिस्तर पे गुलों के,
    अब नींद आ रही है, कोई ख़ार तो आए.
    वाह...खार-ओ-गुल को नए अंदाज़ में पेश किया है आपने...

    ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.
    अलग अनूठी कहन के चलते बेहतरीन शेर बन गया है ये...वाह.

    कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
    दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए
    संवेदना के स्वर का प्रयोग अद्भुत है और अपनी मिसाल आप है...

    इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...
    नीरज

    ReplyDelete
  15. @ श्री नीरज गोस्वामीः
    गुरुदेव आपका शब्द-शब्द आशीष है हमारे लिए... कृतार्थ हुए!

    ReplyDelete
  16. Salil sir!! bahut badhiya......waise to ham iss layak nahi ki aapke post pe comment kar saken........lekin achchha laga padh kar!!

    ReplyDelete
  17. behad nayab ghazal..reshmi khwahish ka khayaal gajab hai :)

    ReplyDelete
  18. Aapki har dua qubool ho!
    Page load error ke karan comment post nahi ho pa raha hai! Pata nahi abke bhi hoga ya nahi!
    Aur aapki shikayat! Mai aapki follower hun phirbhi post kee ittela milni band ho gayi aur mujhe laga aapne likhahi nahi! Bahut sharminda hun!Ab dobara follow karti hun.
    "Bikhare Sitare" to poora aapke liye punah prakashit kiya! Use ek dinbhi ab adhik chodna khatrese khali nahi!Aaj aakhari kadi post kee hai.

    ReplyDelete
  19. दहशत के खेल से निज़ात दिलाने के लिए जाँनिसार आयेगा नहीं , पैदा करना पड़ेगा |

    ReplyDelete
  20. salil jo bahut ,bahut ,bahut hi khoobsurat gazal samvedanshilata liye hue.behatreen.
    ek baat aur aap yadi bin bulaaye mehamaan bankar bhi mere ghar par aayenge to muhje hardik khushi hogi.ab ye mehmaan to dhithai par utar aaya tha.agar shalinta se ek jagah par baitha rahta to mai yahi sochti ki khud b- khud bakhud vapas chala jaayega.aakhir mujhme bhi samvedan shilta to hai hi jo ek naari ka khas gun hota hai.ye kadam to mujhe majburivash uthana pada.
    aapka swagat hai.
    poonam

    ReplyDelete
  21. Page load error ne bada dukhi kar diya! Khair!
    Email ID:
    kshamasadhana8@gmail.com

    ReplyDelete
  22. ek bahut hi umda aur achchi gazal .......

    ReplyDelete
  23. aainaa to aapki har post humesha hi dikhaati hai par yeh andaaz aur bhi accha lagaa... aapke sher to padhne ko mil jaate hain aksar kahin kahin... par poori ki poori gazal aaj pehli baar padhi ..

    "ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए."... so true... aaj yunhi mumbai mils ke band hone par bani film "city of gold" dekhi thi.. so ab yeh sher aur bhi zahan mein atak gaya hai...

    "मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गईअल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए."...aur iss sher ne to sab ko muskuraane pe mazboor kar diyaa hogaa..... haan muskaan ke peeche ke vichaar har kisis ke apne rahe honge... :)

    ReplyDelete
  24. ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
    बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए...

    बहुत खूब ... कमाल की ग़ज़ल है .. हर शेर लाजवाब ... आज कल ईमान सारे आम बिक रहा है ...

    कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
    दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए
    दिल ले गया ये शेर ...

    ReplyDelete
  25. एक से बढ़कर एक .....बधाई !

    ReplyDelete
  26. चैतन्य जी,
    बहूत ही मार्मिक गज़ल है।

    प्रवीण शाह जी इस प्रश्न का हल ढुंढ रहे है।

    ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
    बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.

    ReplyDelete
  27. uff,......ye ghazal padhne se rah gayi ... bemisaal hai ....behtareen sher laga

    सूती के सिले कपड़ों में कितनी हसीन थी,
    ख़्वाहिश है, वो रेशम कभी उतार तो आए

    ye sher mera khayaal hai apne hindustaan pe jyada fit hota hai ... hum ek roti aur vada paav ko chhod kar ek burgery sabhyata kee or badh chuek hain .. aur yahi resham utarna hoga...


    ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
    बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.


    khareedaar ...haan aaj kal thode chalak ho gaye hain ...sting operation ka darr jo rehta hai ..

    मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गईअल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए.

    khijaazn ho gaye angrezi saltanat ho gayi ...heheh ....shandaar sher

    कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
    दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए

    aur maqta to chamtakaar lagtahai mujhe... itna bada takhallus kaise aasaan ho jata hai aap ke istemal karte hi... shandaar ehsaas ke sath khatm hui ghazal .....hatsssssss offfffffffffffff

    ReplyDelete