Friday, August 27, 2010

राबिया की कुरान

राबिया नाम की एक फकीर औरत हुई। कुरान में कहीं एक वचन है कि शैतान को घृणा करो। उसने वह वचन काट दिया। एक दूसरा हसन नाम का फकीर उसके घर मेहमान था, उसने कहा, यह कुरान किसने खराब कर दिया, अपवित्र कर दिया?क्योंकि धर्मग्रंथों में संशोधन नहीं किया जा सकता,उनमें सुधार नहीं किया जा सकता। किसी धर्मग्रंथ में कोई सुधार नहीं किया जा सकता। वे अंतिम किताबे हैं। उनके आगे कोई सुधार की गुंजाइश नहीं है। उस हसन ने कहा,यह किस पागल ने किताब खराब कर दी? इस पवित्र ग्रंथ में किसने लकीर काट दी।
राबिया ने कहा, मुझी को काटनी पड़ी है।
तुम कैसी पागल हो गई हो? बुढ़ापे में दिमाग खराब हो गया है? जीवन भर कुरान पढ़ी, जीवन भर धर्मग्रंथ पढ़े, नमाज को मस्जिद गई। यह बुढ़ापे में क्या हुआ?
उसने कहा,इसके सिवाय कोई रास्ता न रहा कि इसको काटकर कुरान को पवित्र कर दूँ।
वह बहुत हैरान हुआ कि तुम कैसी पागल हो ?कुरान को भी अभी पवित्र होना है, तुम्हारे द्वारा।
राबिया ने कहा, जब मैं प्रेम से भर गई तो मैंने अपने भीतर बहुत खोजा, वहां मुझे कहीं घृणा नहीं मिलती है। अगर शैतान मेरे सामने खड़ा हो जाए तो भी मैं प्रेम करने के लिए मजबूर हूँ। क्योंकि घृणा करने के लिए घृणा होनी भी तो चाहिए। सवाल यही काफी नहीं है कि शैतान खड़ा है, उसको दान दो, लेकिन देने के लिए भी तो कुछ होना चाहिए। और अगर देने के लिए नहीं है तो गरीब आदमी को दान भी कैसे देंगे?तो उसने कहा, शैतान भला मेरे सामने खड़ा हो, मैं तो असमर्थ हूँ, मैं तो प्रेम ही दे सकती हूँ। प्रेम ही मेरे पास है। और परमात्मा भी खड़ा हो तो भी प्रेम ही दे सकती हूँ। और उसने कहा,अब तो बड़ी कठिनाई में पड़ गई हूँ कि पहचान भी नहीँ पाऊंगी कि कौन शैतान है,कौन परमात्मा है। क्योंकि प्रेम पहचान नहीं पाता और फर्क नहीं करता। इसलिए मैंने यह पंक्ति काट दी है और ग्रंथ को पवित्र कर दिया है।
- ओशो की पुस्तक “गिरह हमारा सुन्न में”  के “नई संस्कृति का  जन्म” प्रवचन का अंश

23 comments:

  1. बहुत बढ़िया सीख देती पोस्ट........आभार !

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  2. बहुत सुन्दर दॄष्तांत प्रस्तुत किया है आपने। इन्हीं राबिया बसरा की एक और कहानी बहुत प्रचलित है जिसमें इम्होंने दोजख और जन्नत को आग लगा देने की इच्छा जाहिर करी थी, ताकि कोई लोभ या डर के कारण खुदा की इबादत न करे, बल्कि स्वेच्छा से यह मार्ग चुने।

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  3. @ मो सम कौनः
    आपकी बात को आगे बढाते हुएः
    राबिया ने कहा, 'ऐ खुदा, अगर मैं नरक के भय से तुम्हारी उपासना करूं तो मुझे नरक की आग में ही जलाते रहना और अगर स्वर्ग पाने की अभिलाषा से उपासना करूं तो उससे मुझे वंचित कर देना। लेकिन अगर सिर्फ तुम्हारे लिए ही तुम्हारी उपासना करूं, तो अपने अनन्त सौन्दर्य के दर्शन से मुझे वंचित न रखना।'
    राबिया की प्रार्थना थी, 'हे परमात्मा, इस संसार में हमारे लिए जो कुछ भी तुमने तय कर रखा है, उसे अपने दुश्मनों को देना। और परलोक का जो कुछ है उसे अपने उपासकों को देना। मेरे लिए तो तुम ही यथेष्ट हो, मैं और कुछ भी नहीं चाहती।'

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  4. बहुत अच्छी सीख दी.

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  5. प्रेम पर अदभुत राग छेड़ दिया है आपने ! इंसानियत को इसकी बेहद ज़रूरत है ! बहुत शुक्रिया !

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  6. प्रेम से प्रेम ही बढता है । सुंदर कथाएँ दोनो ही ।

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  7. bahhut badhiya post ......prem hi jeewan ko dhnay bnata hai ...

    is beech mere exam chal rahe jiske karan net par ana kam ho raha hai ....iske liye mafi chata hun .

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  8. मुद्दे की बात यही है कि जिसे प्रेम करना आता है वह प्रेम करेगा। जिसे घृणा करनी आती है वह घृणा करेगा।
    किसी में दोनों होते हैं,कोई उनका संतुलन बनाकर रख्‍ाता है तो कोई नहीं बना पाता। किसी में प्रेम हावी होता है तो किसी में घृणा । यही है जिंदगी है और उसका सत्‍व।

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  9. कबीर के प्रसंग याद आये...
    ढाई आखर प्रेम के (सभी किताब, धर्मग्रंथों से ऊपर है)

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  10. बहुत बढ़िया प्रसंग ! प्यार कि सही परिभाषा यही है ! मजबूत लेखनी के लिए शुभकामनायें !

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  11. क्या अजब संयोग है कि अभी सुबह ही ओशो पुस्तक से मैं इस दृ्ष्टांत को पढ के चुका हूँ और आज ही दोबारा से आपके द्वारा पुन: पढने को मिल गया...
    सच में, जिसने प्रेम की वास्तविक परिभाषा जान ली तो समझिए उसने परमात्मा को पा लिया.....

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  12. प्रेम को अपनी आध्यात्मिक उन्नति में सहायक बनने दो। प्रेम को अपने हृदय और साहस का पोषण बनने दो ताकि तुम्हारा हृदय किसी व्यक्ति के प्रति ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के प्रति खुल सके ........
    http://oshotheone.blogspot.com/

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  13. वाकई परमात्मा से तन मन वाणी से एकाकार हो पाने वाले ही महान होते है।
    सच्ची सीख देती, सच्ची कथा।
    विरले ही परमात्मा को पा सकते है।

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  14. क्योंकि प्रेम पहचान नहीं पाता और फर्क नहीं करता। इसलिए मैंने यह पंक्ति काट दी है और ग्रंथ को पवित्र कर दिया है।

    बहुत प्रेरक प्रसंग ...

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  15. प्रेरक प्रसंग !...मेरे लिए नया था, ...आभार ।

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  16. यह बातें न मुल्लाओं को समझ में आयेंगी और न उन्हें समझ में आई होंगी संभव है जिन लोगों ने कुरआन के अपवित्र होने के नाम पर ढेरों कमेन्ट कर डाले हैं.
    यह सूफियों की बातें हैं.धर्म की नहीं अध्यात्म की बातें हैं.

    समय हों तो ज़रूर पढ़ें:
    पैसे से खलनायकी सफ़र कबाड़ का http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html

    शहरोज़

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  17. शुद्ध ह्दय में ऐसे प्रेम के बीज प्रस्फुटित होते हैं ।

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  18. राबिया का ये प्रसंग पहले भी पढ़ा है लेकिन आज फिर से पढ़ कर ताज़ा हो गया !

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  19. शैतान से नही उसकी शैतानी से घ्रना करो .... प्रेम का पाठ जो पढ़ता है वो बस प्रेम ही देना जानता है .... सुलझी हुई पोस्ट है ...

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