Tuesday, February 1, 2011

कुत्ते की दुम


हरिशंकर परसाई जी ने अपनी एक व्यंग्य रचना में लिखा था कि राम नाम सत्य है यह उक्ति ऐसी है जिसकी सत्यता पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं लगा सकता. किंतु यह बात किसी के विवाह के अवसर पर बोलकर देखो तो लोग बिना पीटे नहीं छोड़ेंगे. अरे भाई क्यों पीटना उस बेचारे को, उसने सच ही तो कहा है कि एक राम का नाम ही सत्य है. और अगर ग़लती से आप कहीं उनके समर्थन में खड़े हुए नहीं कि आप भी पिटे. अब जो आकट्य सत्य है उसके लिये भी लोग स्थान, काल और परिस्थिति की भ्रांतियाँ फैलाये बैठे हैं. कमबख़्त सच ना हो गया कोई विज्ञान का सिद्धांत हो गया कि एन.टी.पी. (नॉर्मल टेम्परेचर प्रेशर) पर ही सही माना जाएगा.

दुनिया बड़ी विचित्र है. अब वो साधु और बिच्छू वाली कहानी तो आप सब ने सुनी होगी. दुबारा नहीं जा रहे हम सुनाने. लेकिन एक संदेह है. ज़रा बताइये कि कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी, यह मुहावरा साधु के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिये या बिच्छू के लिये? सब के सब कहेंगे बिच्छू के लिये. क्योंकि यह मुहावरा हमेशा टेढ़े लोगों के लिये ही प्रयोग किया जाता रहा है. इसका अर्थ है कि टेढ़े लोग कभी सीधे नहीं हो सकते. इसलिये बिच्छू पर ही लागू होती है यह कहावत, साधु पर हो ही नहीं सकती.

पर हमारे विचार से इसका सीधा सरल अर्थ यह है कि इंसान अपनी आदत से बाज नहीं आता है.  कुत्ते की दुम को नलकी में डालकर चालीस साल ज़मीन में गाड़ दो, जब निकालो नलकी टेढ़ी मिलेगी, पर दुम सीधी नहीं. मगर यही बात तो अच्छे कर्मों वाले व्यक्तियों पर भी लागू होती हैं. साधुओं की भी आदत कहाँ बदलने वाली, बिच्छू के डंक के विष से मर ही जाएँ तभी शायद उसको डूबने से बचाने का प्रयास त्यागेंगे. सोचिये बिच्छुओं की जमात क्या कहती होगी उनके बारे में. यही कि पता नहीं ये साधु किस मिट्टी का बना है. कुत्ते की दुम है कभी सीधा  नहीं हो सकता.

हमारे एक कॉमन मित्र थे (ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र दे, अभी  भी  स्वस्थ हैं, पर मित्र नहीं हैं अब). बेचारे बड़े सज्जन व्यक्ति. उनकी सज्जनता का लोहा सारा मुहल्ला मानता है. गली, मुहल्ले, नुक्कड़ पर कोई भी निरीह जीव कष्ट में दिखा नहीं कि वे द्रवित हो जाते हैं और उसकी पूरी सेवा का प्रबंध करते हैं. सिर्फ यही नहीं इस कार्य में तो वे इंसानों और पशुओं के साथ समान व्यवहार करते हैं. किसी के लिए किसी प्रकार की सहायता को वो हमेशा तत्पर रहते हैं. इतना ही नहीं, सड़क पर दो बंदे लड़ रहे हों तो वहाँ वो बीच बचाव करते दिखेंगे, भले इसमें ख़ुद उनको चोटें जाएँ, लेकिन उनके प्रयास में कोई कमी नहीं आएगी. उल्टा हर कोई उनको कह जाता है कि सब कुछ सीखा तुमने, ना सीखी होशियारी.

हमारे पास वो अक्सर बैठा करते थे. और जैसा कि हर बात की शुरुआत के लिये ज़रूरी है, हम पूछ ही बैठते कि और क्या ख़बर है. बस यह हमारे श्रीमुख से निकला अंतिम वाक्य होता. क्योंकि उसके बाद वो खुलकर अपने किसी ताज़ातरीन नेकी की चर्चा छेड़ देते. किसको हस्पताल पहुँचाया, किसकी पिटाई हो रही थी तो झगड़ा निपटाया. कई बार कहा उनसे कि आप ये सब करते हैं तो आख़िर क्या मिलता है आपको. उल्टे कई लोग तो अपकी हँसी उड़ाते नज़र आते हैं.

मगर वो भी अपनी धुन के पक्के थे. लोग लाख कुछ कहें, उनका एक ही मूलमंत्र है कि पीठ पीछे  या खुले आम की जाने वाली बुराइयाँ कोई इंसान के बदन से चिपक थोड़े जाती है. बल्कि इसी बहाने लोग याद तो रखते हैं. मगर कभी कभी बेचारे बड़े मायूस भी हो जाते. कहते बड़ा दुःख होता है लोगों की बातों से, लेकिन आदत से मजबूर नेकी का कीड़ा ज़िंदा भी तो नहीं रहने देता. सच कहा जाए तो उनके अंदर कोई बुरी लत नहीं, मगर सबसे बुरी लत यही है कि नेकी नहीं छूटती उनसे. जितनी नेकियाँ उतनी नेकियों की कहानियाँ. और ज़्यादातर कहानियाँ उनकी ख़ुद की फैलाई  हुई. उनका मानना था कि कम से कम उनकी नेकियों के बहाने लोग उनको अच्छे आदमी के रूप में याद रखें और उनकी तारीफ करें.

लेकिन अचानक हमारी मामूली सी बात पर उन्होंने हमसे नाता तोड़ लिया. कारण सिर्फ इतना कि उनके किसी किस्से पर अभिभूत होकर हमने बड़े भावविह्वल होकर कह दिया कि आप कुत्ते की दुम हैं सुधरेंगे नहीं. बस इत्ती सी बात पर वो बुरा मान गए!

31 comments:

  1. गलत उपमा देंगे तो यही होगा न. :)
    मस्त लेख है. मज़ा आ गया.

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  2. मौके बेमौके का ख़याल तो रखना ही चाहिए न !:)

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  3. जी हरिशंकर परसाई...आपने संभाल ली कमान ...अच्छी बात है ...आनंद के साथ सन्देश भी दे दिया ...शुक्रिया आपका

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  4. बड़े भाई ... याद है, एगो फ़िलिम आया था, जब हम लोग जवान थे ... हम नहीं सुधरेंगे?

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  5. और आपका जो हाल हुआ उस पर कहना है ...

    धूप से फिर छांव में हम आ गये,
    ज़िन्दगी के अर्थ फिर धुंधला गये।
    आपको नफ़रत थी सच्चाई से जब,
    आईने के सामने आप क्यूं आ गये?

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  6. heheheh...kar diye na galti... bicchoo wali kahaawat sadhu pe lagoo kar denge to yahi hoga na...hehehe... aaj yahaan sansmaran dekhne ko mila... :)

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  7. चलिए नहीं पूछता सज्जन कौन ? वैसे भी आप कहाँ बताने वाले हैं ! बताना होता तो लिख नहीं देते।
    मुहावरे का सही स्थान पर प्रयोग नहीं करने से अर्थ का अनर्थ निकलता है। एक सज्जन मेरी बात नहीं सुन रहे थे मैने भी गलती से कह दिया..
    बड़े चिकने घड़े हो..!
    अब क्या हुआ होगा आप अधिक समझदार हैं।

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  8. हा हा हा हा... बड़ा निर्दोष सा व्यंग है ये तो....

    एक पुरानी बात याद आ गयी. कहीं पढ़ा था कि अगर हम अपने किये गए अच्छे कार्यों का खुद ही बखान करते हैं तो उनके शुभ प्रभाव कम होते जाते हैं और इसी तरह से अगर हम अपने द्वारा किये गए पाप को किसी के साथ बाटते हैं तो उस पाप कर्म का दुष्प्रभाव भी कम होता जाता है.

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  9. मस्त लिखा है जी,
    कुत्ते की पूँछ कब सीधी होती है
    और सज्जन कहाँ सज्जनता छोडने वाला है
    101 फालोवर की शुभकामनाये

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  10. बिलकुल सहई कहा आपने, उस साधु के लिये भी वाज़िब ही मुहावरा प्रयोग किया था।:)
    भाई उसको जितनी भी बार बिच्छु को बचाना था चुपचाप बचाता रहता,इस बचाने की कहानी को प्रकाशित करने की क्या जरूरत थी? :))

    फिर तो कोई भी कहेगा न कुत्ते की दुम!!

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  11. आनंद के साथ सन्देश भी दे दिया.....बहुत खूबसूरत

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  12. आप कुत्ते की दुम हैं सुधरेंगे नहीं किसी को कहना उसको ज़लील करना ही तो है, नाराज़गी भी होने चाहिए
    .
    ज़रा सोंच के देखें क्या हम सच मैं इतने बेवकूफ हैं

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  13. मेरी आपत्ति दर्ज करे की ये मुहावरा भी हम हर किसी के लिए प्रयोग नहीं कर सकते है कभी कभी ये कुत्ते और उसकी दुम दोनों का अपमान होता लगता है |

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  14. :) सही बात...कहावतें जिस समय बनी पता नहीं क्या स्वरुप था ..समय बदल गया है तो अर्थ भी बदलना चाहिए.

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  15. आज उस दोस्त की याद आ रही है ... यह समझ आ रहा है ... आप ही पहल क्यों नहीं करते ?

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  16. नेकी कर और कुवे में डाल .... आपके इस मित्र से शायद हमारी भी किसी मोड़ पर मुलाकात हो चुकी है। रोचक संस्मरण...भाषा शैली उत्तम !!!

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  17. अब पिटें चाहे कुछ और हो, हम तो आपकी पोस्ट को मस्त डिक्लेयर करके ही मानेंगे। सही कहा कि बिच्छु तो साधु के बारे में भी ऐसा ही काह्ते होंगे।
    वैसे मित्र ’थे’ पर अपना मानना है कि once a friend, always a friend. जैसा आपने अपने मित्र के बारे में कहा, हम भी भावविह्वल हुये जा रहे हैं।
    लेकिन एक शंका है, वो अगर इतनी ही कुत्ते की दुम हैं तो आपसे बुरा मान ही कैसे सकते हैं? वर्णन से तो लग रहा है कि हातिमताई के ट्वेंटी फ़र्स्ट सेंचुरी एडीशन हैं, हम नहीं मानते कि वो बुरा मान गये होंगे।

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  18. मुहावरों और कहावतों का प्रयोग यथास्‍थान ही करना चाहिए, बहुत अच्‍छी प्रकार से आपने समझाया है।

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  19. सीख_ हर चीज एक ही तरह नही वजन की जा सकती जैसे कि कोई ठोस खुले मेँ, द्रव किसी बर्तन मेँ और गैस बन्द बर्तन मेँ। ऐसे ही शायद मुहावरा भी फिट नही बैठा होगा। सुन्दर प्रस्तुति।

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  20. कहा तो आपने बिल्कुल ठीक ही है, जब नहीं सुधरना है, तो बुरा क्यों मान गये।

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  21. कोई भला इंसान इत्ती सी बात के लिए बुरा मान जाए ये सही बात नहीं...हाले दिल उनको सुनाया तो बुरा मान गए...प्यार आँखों से जताया तो बुरा मान गए...:-)
    नीरज

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  22. अरे तो क्या उस ब्लागर ने आपसे बातचीत बंद कर दी ? :)



    अब ये मत पूछियेगा किसने :)

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  23. कुत्ते की दुम
    इस बात का मतलब समझो पहले फिर आगे बात रखो |
    कुत्ते की दुम - यानी कुत्ते की पूँछ |
    एक प्राकृतिक चीज़ है |
    और प्रकृति कभी बदलती नहीं है |
    यह आदत नहीं हैं |
    आदत बदल जाती हैं |
    साधु और बिच्छू की कहानी आपने जो कही है वह आपने पूरी समझी नहीं हैं |
    साधु की आदत नहीं है किसी की जान बचाना | यह तो साधु का स्वभाव है |
    बिच्छू तो जानता नहीं है की पानी में जाने से उसका क्या होगा किन्तु साधु जानता है |
    और वह उसको उस गलत काम से बचा रहा है |
    तो कोन सा अपराध कर रहा है |
    अगर साधु आशीर्वाद दे दे तुमको की तुम्हारे को इस देश का राजा बनाया जाता है तो साधु ठीक है और साधु किसी को कष्ट से बचा रहा है तो यह उसकी मूर्खता है |
    साधु को उस बिच्छू का डंक असर कर रहा है की नहीं यह हमको क्या पता |
    क्यूंकि साधु तो सांप नाग बिच्छू के काटे का मंत्र जानते हैं |
    अब उस साधु का स्वाभाव है करुणा, दया, तो इसमें आदत कहाँ से आ गई |
    आखिर उस बिच्छू में भी तो जीव है |
    और साधु जब विश्वामित्र की तरह ताड़का को मारने के लिए कहेगा तो ही साधु होगा |
    यह हिंसा तो साधु का स्वभाव नहीं है |
    साधु की साधना ही अहिंसा से शुरु होती है |
    जहाँ तक सुधरने की बात है तो आदमी तभी सुधरता है जब वह उधर जाता है |
    यानी की अपने पक्ष को छोड़कर दुसरे के पक्ष में जाता है तो वह सुधर जाता है |
    क्योंकी वह जान जाता है की अब अपना यहाँ कोई नहीं है तो सुधर जाओं नहीं तो मार पड़ेगी |
    जैसे किसी को सुधारना होता है तो उसे अपने से दूर किया जाता है |
    जैसे अमेरिका में विद्यार्थियों के पाओं में बेडी डाल दी किन्तु किसी ने भी विरोध नहीं किया |
    और अगर यही काम अपने देश में होता तो फिर देखो हंगामा |
    और सुधरने का उपाय बताते हैं |
    की जो उधार मांगता है वह सुधर जाता है |
    कितना भी बिगड़ा हो |
    उधार मांगने के बाद उसकी चाल बदल ही जाती है |
    अगर किसी को सुधारना हो तो यह दो उपाय हैं |

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  24. वैसे आजकल ऐसे साधु भी कहाँ मिलते हैं .... जो कुत्ते की दूम की तरह हों ...
    अच्छा लिखा है आपने ....

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  25. मेरे गाँव में एक लल्लू जी हैं... गाँव का कोई ऐसा आदमी नहीं है जिनके मारनी हरनी में उन्होंने मदद नहीं की हो... रात को एक बजे आवाज़ दीजिये दौड़े आयेंगे.. नहीं बुलाएँगे तब भी आयेंगे... और उनको भी लोगो कुक्कुर के नगड़ी कहते हैं... क्या कीजियेगा... आपके मित्र अगली बार जब कोई नेकी करेंगे जरुर आयेंगे आपको बताने..

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  26. @namaskaar meditation:
    महाप्रभु!
    नमस्कार है आपको! आपने तो हमारा काम और आसान कर दिया. हम जिसे आदत समझ रहे थे वो तो प्रकृति निकली. कम से कम हमारी आत्मा पर से यह बोझ तो उतर गया कि यह कहावत सिर्फ बिच्छू पर क्यों लागू हो, साधु पर क्यों नहीं. दोनों अपनी प्रकृति से बँधे हैं, अतः दोनों में से कोई नहीं बदल सकता, कुत्ते की पूँछ की तरह क्योंकि यह भी प्राकृतिक है. चलिये यहाँ तक तो सब ठीक है.
    साधु और बिच्छू वाली कहानी पर आपकी सप्रसंग व्याख्या अत्यंत मधुर रही, जलेबी की तरह. किंतु साधु पर डंक असर कर रहा है कि नहीं यह तो आपको पता होना चाहिये, क्योंकि आपने बड़े मनोयोग से वह कथा पढ़ी है. डंक असर कर रहा था तभी तो बार वह बिच्छू पानी में छूट जाता था. बिच्छू के काटे का मंत्र पता होता उन्हें तो मुट्ठी में दबाकर रेत पर छोड़कर आते सीधा एक ही बार में.
    ख़ैर आपके आगमन से अभिभूत हुये, किंतु पहली मुलाक़ात में सीधा तुम पर उतर आए आप! आश्चर्य!! आशीर्वाद दें ताकि हमे6 सद्बुद्धि प्राप्त हो!!

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  27. मदद | मद में जो हो उसी की मदद की जाती है | मद यानी नशा अब वह चाहे किसी का भी हो शराब, अहंकार, ज्ञान, | जब आदमी नशे में होता है तभी उसकी मदद की जाती है | जैसे कोई शराबी नशे में है तो उसे घर छोड़ने के लिए मदद की जाती है वह मदद | यहाँ पर साधु मदद नहीं करुणा कर रहा है जो करुणा उसके अन्दर से प्रस्फुटिक हो रही है | उसको किसी ने बोला नहीं है ऐसा करने को किन्तु फिर भी कर रहा है |
    साधु प्रकृति से नहीं बंधा है वह तो जाग्रत है | प्रकृति से बंधा होता तो ऐसा काम नहीं करता | क्यूंकि प्रकृति में बिच्छु से भय उत्पन्न होता है | और भय के कारण वह उस बिच्छू के पास जाता भी नहीं | किन्तु साधु है वह सारा ज्ञान रखता है | इसलिए उस बिच्छू को पानी में डूबने से बचा रहा है |
    अब रही बात स्वाभाव की तो स्वाभाव और प्रकृति में अंतर होता है |
    जब कोई अपने स्व यानी आत्मा को जान जाता है वह स्वाभाव | यानी स्वयं का भाव | यानी अपने भाव को जानना की मेरा भाव कितना है |
    और प्रकृति यानी जो अभी पर यानी परमात्मा की कृति यानी कृत की गयी | यानी जो चीज़ परमात्मा द्वारा कृत की गयी है उसी में रहता है वह प्रकृति |
    साधु यदि प्रकृति में रहता तो वह एक आम इंसान होता और एक आम इंसान बिच्छू को देखकर या तो उससे दूर जाने की कोशिश करता या फिर उसे मार डालता और उसे बचने की बात तो दूर है वह इंसान उससे बचने की कोशिश करता | किन्तु अब वह साधु है और साधु यानी स अध् उ यानी जो नीची से ऊपर आया है | यानी साधना करके जो ऊपर आया है अपने आत्मा के स्वाभाव में आया है वह साधु |
    और बिच्छू अभी परमात्मा की प्रकृति में है | तो वह वही करेगा जो प्रकृति में निश्चित है |
    जैसे एक और कथा है साधु और चुहिया की |
    उसमें भी साधु मरी चुहिया को पहले जिन्दा करता है फिर लड़की बनता है फिर और आखिर में वह चूहे को ही पसंद करती है शादी के लिए |
    यह प्रकृति है | और वह स्वाभाव है |
    और आप का आदर जो है वह अदर ( Other ) यानी परायों के लिए होता है अपनों से तो कोई औपचारिकता नहीं होती है |

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  28. संस्कृत में एक कहवत है -सत्यम प्रियम न ब्रुयात।

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  29. अरे..
    आज शाम ही को देखा कि,
    कुत्ते की दुम तो टेढ़ी ही है ।
    यानि कि मैन्युफ़ैक्चरिंग डिफ़ेक्ट !
    जिनको आपने कहा, सही कहा, मलाल काहे ?
    हाँ, इस बहाने अनोखी ज्ञानचर्चा पढ़ने को मिली !

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  30. ohho.....inni si baat pe dosti toot gayi...!!! baad mein mana lena tha na.....

    par badi mazedaar post hai...lotpot ho gayi subah....hhhihhihihi

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