Tuesday, February 8, 2011

अव्यवस्था से लड़ता वह अकेला आदमी - डॉ. सुब्रमनियन स्वामी

रवींद्र नाथ ठाकुर के आह्वान “जदि तोमार डाक शुने केऊ ना आशे, तबे एकला चलो रे!” और रवींद्र जैन जी के एक गीत में कही बात कि
सुन के तेरी पुकार,
संग चलने को तेरे कोई हो न हो तैयार,
हिम्मत न हार
चल चला चल, अकेला चल चला चल!

हम लोग इस आह्वान को सुनकर बहुत रोमांचित हो जाते हैं, लेकिन कभी भी किसी अकेले चलने वाले के पीछे चलना पसंद नहीं करते, साथ चलने की तो बात ही दीगर है. एक भेड़ चाल सी मची है. सब भीड़ चाल में हैं, क्योंकि भीड़ में मुँह छिपाना बहुत आसान होता है.

फिर भी एक शख्स है, जो भीड़ से अलग चलता है और इस बात की परवाह भी नहीं करता कि कोई उसके साथ है कि नहीं. सही मायने में “वन मैन आर्मी!!”

15 सितम्बर 1939 को चेन्नै में जन्मे इस व्यक्ति का नाम है डॉ. सुब्रमनियन स्वामी.

डॉ. स्वामी विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड विश्वविद्यालय से सन् 1962 से ही जुड़े हैं, वहीं से उन्हें अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि मिली और यह उपाधि भी उनके उस शोध पर जो उन्होंने नोबेल विजेता साईमन कुज़्नेत्स और पॉल सैम्युलसन के साथ मिलकर किया । 1969 में वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर भी रहे। बाद में उन्हें आईआईटी दिल्ली में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर का ओहदा मिला। 1963 में कुछ समय के लिए इन्होनें संयुक्त राष्ट्र सचिवालय में आर्थिक मामलों के सहायक अधिकारी के रूप में भी काम किया।

इसके बाद डॉ. स्वामी 1974 से 1999 तक पाँच बार संसद में चुनकर आए, 1990-91 में नरसिंह राव सरकार में वाणिज्य, विधि एवम् न्याय मंत्री बनें, 1994-96 में श्रम मानक एवम् अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कमीशन के अध्यक्ष के रूप में योगदान दिया।

लेखन के क्षेत्र में इनका योगदान लगभग दस से ज़्यादा पुस्तकों का रहा है. इकोनॉमिक ग्रोथ इन चाईना एंड इंडिया (1989) और हिंदूज अंडर सीज (2006) इनमें प्रमुख हैं
डॉ. स्वामी के भाषा ज्ञान का अनुमान इसी बात से लगाया जाता है कि वो चीन की मांदारिन भाषा पर भी महारत रखते हैं। चीन के अर्थशास्त्र पर इनके लेखों का उपयोग माओत्से तुंग के बाद चीनी नेतृत्व की कमान सम्भालने वाले नेता देंग चियओपिंग ने अपने आर्थिक सुधारों को समझाने के लिये किया।

विदेश नीति के क्षेत्र में भारत-चीन, भारत-पाक और भारत-इस्राइल संबंधों को बेहतर बनाने का श्रेय इनको जाता है. उनके प्रयासों का ही परिणाम रहा है कि 1992 में भारत ने इन देशों में अपने दूतावास खोले.

1981 में इनके प्रयासों से भारत-चीन सम्बंधों में सुधार हुआ। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने विपक्ष में होने के बाबजूद भी डॉ. सुब्रमनियन स्वामी को चीनी नेता देंग चियओपिंग से बातचीत करने कि लिये चीन भेजा। इनके प्रयासों से कैलाश मानसरोवर का मार्ग चीन ने खोल दिया. तिब्बत जाने वाला यह मार्ग चीनी नेता देंग चियओपिंग ने इस शर्त पर खोलने की इजाज़त दी कि कैलाश मानसरोवर जाने वाले पहले जत्थे का नेतृत्व डॉ. सुब्रमनियन स्वामी करें। डॉ. सुब्रमनियन स्वामी नें इस चुनौती को बखूबी निभाया।

इस्राइल के साथ हमारे देश के संबन्धों के पीछे भी इनके प्रयास रहे। जिन आर्थिक सुधारों को हम भारत का स्वर्णिम सुधार काल कहते हैं और जिसे बाद में तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिंह राव ने लागू किया, उसके ब्लू प्रिंट को तैयार करने में उस सरकार के वाणिज्य मंत्री रहते हुये डॉ. स्वामी के योगदान को भूला नहीं जा सकता।

भारतवर्ष में डॉ. स्वामी की पहचान इमर्जेंसी के दौरान (1975-77) इनके प्रखर विरोध के कारण बनी. इमरजेंसी के दिनों की एक बड़ी हैरत अंगेज़ घटना बताई जाती है. पुलिस में इनका नाम मॉस्ट वांटेड की सूची में था. इसके बावजूद भी वो विदेश चले गये और विदेश में रह रहे भारतीयों को संगठित किया. अगस्त 1976 में वे पुनः भारत आए और संसद में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कर पुनः अंतर्ध्यान हो गये. वे जताना चाहते थे कि आपातकाल जैसी निरंकुशता की ठोस दीवार में भी सेंध लगाई जा सकती है. श्रीमती गाँधी ने 1977 में चुनाव की घोषणा कर दी, जो शायद स्वामी जी से हार स्वीकार करने की दिशा में पहला क़दम था. तब से स्वामी जी ने राष्ट्रीय हित के लिये जनता को प्रभावित करने वाले हर मुद्देपर अपनी आवाज़ बुलंद की है.

एक सांसद के रूप में इनका कार्यकाल काफी विस्तृत रहा है. 1974 में उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के लिए चुने गए, 1977 में उत्तर पूर्व मुम्बई से लोक सभा में, 1988-94 तक पुनः राज्य सभा में उत्तर प्रदेश से, 1988 में मदुरै से लोक सभा में... इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इन्होंने अपने मतदाताओं का साथ कभी नहीं छोड़ा और हमेशा उनके सम्पर्क में रहे.

यूपीए-2 सरकार अपने शासन के पहले ही साल में जिस तरह से घोटालों, काले धन और मंहगाई डायन के प्रकोप से पीड़ित दिख रही है, उसमें सरकार के लिये सबसे बड़ी समस्या इस समय 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर है। कोई और समय होता तो सरकार विपक्ष के हो-हल्ले को “तू भी तो चोर है” कहकर चुप करा देती. परंतु जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर सुब्रमनियन स्वामी की जनहित याचिका पर कार्यवाही करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री को एफेडेविट फाईल करने पर मजबूर कर दिया, तब मीडिया से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक, सब हरकत में आये। और अब तो ख़ैर सारा खेल ही खुले में हो रहा है।

दुनिया का दस्तूर है कि मुँह पर दोस्ती और छिपे में दुश्मनी निकालना, लेकिन स्वामी जी का सिद्धांत अनोखा है- मेरे कई उजागर दुश्मन हैं और छिपे दोस्त. उनका कहना है कि उनके मित्र दुनिया भर में फैले हैं और सत्य को उद्धघाटित करने की मुहिम में उन्हें सूचनाएँ उपलब्ध कराते रहते हैं। डॉ. सुब्रमनियन स्वामी की आधिकारिक वेब साइट पर न जाने कितने ही रोचक रहस्योदघाटन हैं, जिन्हें पढकर किसी के भी मुँह से बरबस यही निकलेगा कि “उफ! यह तो विकीलीक्स का भी बाप है!”

आज जब इस देश में हर चीज़ बिकाऊ है, हर चरित्र पर प्राईस टैग लगा है, हर योजनाएँ बिकी हुई हैं और हर नागरिक ख़ामोश है, कोई एक अकेला इस लड़ाई में जुटा है. सम्वेदनहीनता की नींद सोये आज भी कई लोग यही कहते हैं कि यह व्यक्ति सिर्फ एक स्टंट मैन है. लेकिन उनको कौन समझाए कि हर नायक की बहादुरी के पीछे एक स्टंट मैन का ही हाथ होता है. दुष्यंत कुमार के शेर पर हर कोई तालियाँ बजाता दिख जाता है, लेकिन डॉ. सुब्रमनियन स्वामी अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने हाथों में पत्थर उठा रखा है और 72 वर्ष की उम्र में भी हौसला ऐसा है कि जब तक आकाश में सुराख़ न कर लें, सुस्ताएँगे नहीं.

और अंत में :

डा. सुब्रमण्येम स्वामी बताते हैं कि आम आदमी क़ानून की जानकारी रखने से बचता है और न्याय से वंचित रह जाता है। पेशे से वकील न होते हुये भी डा. सुब्रमनियन स्वामी ने कानून की अनेकों लड़ाईयां लड़ी हैं और लड़ रहे हैं। वह अपनी वकील पत्नी के साथ केस पर मिल कर काम करते हैं। इसलिए उन्हें अक्सर सर्वोच्च न्यायालय जाना पड़ता है। उनके पास संसद का पास है। पर सर्वोच्च न्यायालय में इस पास को मान्यता नहीं दी जाती। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में आसानी से आने जाने के लिए उन्होंने पास प्राप्त करने के लिये आवेदन किया और उसमें खुद को अपनी पत्नी रुक्साना स्वामी (वकील) का क्लर्क बताया। डा. सुब्रमनियन स्वामी के परिवार में पत्नी और दो बेटियाँ हैं। पत्नी रुक्साना सुप्रीम कोर्ट में वकालत करती हैं। दो बेटियों – गीतांजलि स्वामी और सुहासिनी हैदर – में से एक सुहासिनी पत्रकार हैं। वह समाचार चैनल सीएनएन-आईबीएन में वरिष्ठ पद पर हैं।

25 comments:

  1. सच में स्वामी जी का कार्य देश और समाज के लिए बहुत प्रशंसनीय है ...मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कार्यों का समर्थक हूँ ..आपका आभार इतनी उम्दा पोस्ट के लिए

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  2. डॉ. स्वामी आड़ आदमी के पक्ष को लेकर खड़े हैं उस से समूचे देश के नेतृत्व को सबक लेने की जरुरत है.. ठीक ही कहा है डॉ. स्वामी ने कि आदमी क़ानून के बारे में अनिभिज्ञ रहकर अपने अधिकारों से दूर रहता है... एक प्रेरित करने वाला आलेख !

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  3. प्रेरित करता व्यक्तित्व्……………उम्दा पोस्ट्।

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  4. आप काफी मेहनत से आलेख तैयार करते है जो पढने में अच्छा लगता है सुंदर भाषा के कारण और तथ्य परक भी उसके अंदर समाहित कंटेंट के कारण. बहुत बहुत बधाई डा० स्वामी से परिचित करने के लिए.

    वसंत ऋतु के आगमन पर ढेर सारी शुभ कामनाएं.

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  5. सुब्र्मनयन स्वामी किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं मगर आप द्वारा उनका यह प्रोफाईल आपकी सुरुचिपूर्नता और नेक कामों के प्रति समर्पण को दर्शाती है -साधुवाद !

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  7. सच कहूँ कहूँ तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध किये जा रहे श्री सुब्रमनियम स्वामी जी के प्रयासों को जानने के बावजूद अभी तक तो मैं भी को इनको एक स्टंट मेन ही समझता था पर आपके लेख से इनके बारे में नयी जानकारियां मिली और इनके बारे में अब मेरी पुरानी धारणा में निश्चय ही बदलाव आयेगा. मौसम में परिवर्तन के त्यौहार वसंत पंचमी कि बधाई.

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  8. डॉ स्वामी जी के योगदान को ये देश कभी भूल नही पायेगा
    सही कहते है स्वामी जी कि आदमी कानून के बारे मे ना जानकर अपने अधिकारो से वचिंत रहते है
    आपने इस लेख पर काफी मेहनत की है आपकी इस मेहनत को नमन
    शुभकामनाये

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  9. उनके बारे में थोडा बहुत जानकारी थी पर आप ने तो कई नई और चौकाने वाली जानकारी भी दे दी धन्यवाद | यही ब्लॉग जगत में उनके द्वारा कोर्ट में दायर की गई कई और महत्वपूर्ण याचिकाओ के बारे में पढ़ा था और पता चला की कई बार उन्होंने ये कारनामा कर कई घोटालो और अव्यवस्था को उजागर किया है |

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  10. सुब्रह्मणियन स्वामी के प्रति मेरी धारणा कुछ पोज़िटिव करने वाले की तरह की नहीं रही थी। पर इस आलेख को पढने के बाद इसे बदलने का मन बना रहा हूं, इसलिए कि आपके आलेखों को मैं गंभीरता से लेता हूं। इस शख्सियत के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला।

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  11. शीर्षक का पहला शब्द ही सोचने को मजबूर करता है, ये अव्यवस्था ही है जिसे हम व्यवस्था के नाम से जानते हैं।
    डा.स्वामी के बारे में विस्तार से जानने को मिला। धारा के विरुद्ध बहना आसान काम नहीं, और इस काम में ये एक्सपर्ट हैं।
    बहुत अच्छा लगा, जानकारी पाकर।

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  12. सुब्रहमन्‍यम स्‍वामी का विस्‍तृत परिचय पाकर बहुत अच्‍छा लगा। वास्‍तव में हमारी राजनीति में अनेक विद्वान लोग हैं लेकिन उनका आकलन सार्वजनिक नहीं हो पाता और हम सभी को बेकार सिद्ध करने पर तुल जाते हैं।

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  13. भाजपा के "ड्राइंगरूम छाप नेताओं" को शर्म आनी चाहिये…
    "खुले दुश्मन और छिपे मित्र" - बहुत गहरी बात कही है स्वामी ने…

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  14. .

    स्वामी जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हूँ। बहुत बार उनके वक्तव्यों कों टीवी पर और विडिओ में सुन चुकी हूँ। उनका व्यक्तित्व एक अनुकरणीय व्यक्तिव है । उन्हें अपना आदर्श समझती हूँ। मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके ओजमयी वक्तव्य मन-मस्तिष्क कों ऊर्जा से भर देते हैं।

    .

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  15. एक चमत्कृत कर देने वाला व्यक्तित्व है इनका... कम से कम इनको देखकर यह विश्वास तो होता है कि कुछ लोग आज भी बिकाऊ नहीं हैं!!

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  16. मेरे मन में डा.स्वामी की छवि अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग करने वाले व्यक्ति की रही है किन्तु पिछले कुछ दिनों से उन्होंने राष्ट्रहित के मुद्दों पर जी तोड मेहनत की है ! अत्यंत सार्थक कार्य किया है ! हालिया घोटालों ( २ जी स्पेक्ट्रम ) को उजागर करने में उनकी भूमिका निसंदेह प्रेरणादाई है ! किन्तु जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि वे अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग करते हैं ! वे फिलहाल जयललिता के साथ हैं !

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  17. @ अली सा

    स्वामी को हम एक मौलिक विद्रोही मानते हैं।

    कितना आसान था कि किसी मलाईदार पद या कुछ करोड़ रुपये की रजाई ओड़कर वह भी ये सर्दीयां मजे में निकाल देते।

    आज जब देश की सम्पदा की लूटखसोट इस स्तर पर आ गयी है तो इसके लिये,आगत खतरों की सूचना को "कांस्पिरेसी थ्योरी" कहकर खारिज करने की हमारी "राष्ट्रीय सोच" उत्तरदायी है।

    ..जारी

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  18. रही बात स्वामी के जयललिता के साथ होने की तो स्वामी ने स्वम कहा है कि जयललिता पर किये गये किसी भी मुक्क्दमे को उन्होने वापस नहीं लिया है और अदालत से जयललिता को कोई राहत नहीं है।

    स्वामी ने तमिलनाडु की वर्तमान परिस्थिति (जिसमे दोनों दलों की सीटों में बहुत अंतर शायद न हो, इस बात के कयास हैं) का बहुत ही व्यवहारिक उपाय वहां की जनता को सुझाया है कि उनके दल को बस पाचं सीटे जिता दे जिसके बाद करुणानिधि और जयललिता में कोई भी सत्ता में आये वह उनके भ्रष्टाचार पर काबू रख सकेंगे!

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  19. संवेदना के स्वर बंधुओ ,
    दुआ करता हूं कि आपकी जुबान सुफल हो और चन्दन विष व्यापत नहीं...की कहावत भी !

    यानि कि मेरी धारणाएं टूटें तो सर्वाधिक प्रसन्नता भी मुझे ही होगी !

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  20. सलिल भैया, हैप्पी बड्डे:))

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  21. एक साल पहले शुरू हुई यह यात्रा जारी रहे यही कामना है।
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    जन्‍मदिन की बधाई।

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