Friday, June 17, 2011

अमृत दिया - ज़हर पाया!!


सात सप्‍ताह पूर्व मेरे कान में कुछ तकलीफ शुरू हुई। बात जरा सी थी। यहां के जो सर्वश्रेष्‍ठ विशेषज्ञ है, डा. जोग, उनके अनुसार उसे ज्‍यादा से ज्‍यादा चार दिन में ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन वह बीमारी सात सप्‍ताह तक चलती रही। उन्‍होंने अपने जीवन में ऐसा उदाहरण कभी नहीं देखा।
वे हैरान हो गए क्‍योंकि कोई भी दवा कारगर नहीं हो रहीं है। उन्‍होंने सब तरह की दवाओं को, सब तरह के मलहमों का उपयोग करके देख लिया। अंतत: उन्‍हें आपरेशन करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उस आपरेशन का घाव ही नहीं भर रहा था।

मेरे डेंटिस्‍ट डा. देव गीत ने सोचा , शायद मेरे दांतों से उसका कोई संबंध होलेकिन कुछ भी नहीं मिला। मेरे निजी चिकित्‍सक डा. अमृतो ने तत्‍क्षण विश्‍व के सारे संन्‍यासी डॉक्टरों को सुचित किया कि वे विषाक्‍ती करण के सभी विशेषज्ञों से संपर्क बनाये। क्‍योंकि उसका अपना विश्‍लेषण यह था कि अगर मुझे विष नहीं दिया गया है तो कोई कारण नहीं है कि मेरे शरीर ने सारा प्रतिरोध क्‍यों छोड़ दिया।

और जैसे-जैसे यह ख्‍याल उसके भीतर जोर पकड़ता गया, वह कदम-दर-कदम इस मामले की छानबीन करने लगा। और उसे वह सारे लक्षण दिखाई दिये। जो तभी प्रकट हो सकते है जब किसी प्रकार का मुझे जहर दिया गया हो।

मुझे खुद यह संदेह हो रहा था लेकिन मैंने यह बात किसी से कही नहीं। जिस दिन बगैर किसी वैद्य या अवैद्य कारण के मुझे अमेरिका में गिरफ्तार किया गया। और उसके बाद जब बिना कोई ठोस आधार होते हुए भी उन्‍होंने मुझे जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया। तो मुझे लगा था कि जरूर दाल में कुछ काला होगा।

वे बारह दिन तक मुझे एक जेल से दुसरी जेल ले जाते रहे। बारह दिनों में मुझे छह कैद खानों से गुजरना पडा जो शायद पूरे अमेरिका में फैले हुए थे।

ओक्‍लाहोमा जेल में मेरा संदेह पक्‍का हो गया। क्‍योंकि वहां मुझे आधी रात गए एक सुनसान हवाई अड्डे पर उतारा गया। और मुझे अपने कब्‍जे में लेने के लिए स्‍वयं अमरीकी मार्शल वहां पर मौजूद वह खुद गाड़ी चला रहा था। और जो आदमी उसे कार्यभार सौंप रहा था वह उसके काम में फुसफुसायाजो मैंने बिना किसी प्रयास के सुन लिया,मैं उसके बिलकुल पीछे बैठा थाउसने कहा, ‘’यह आदमी विश्‍व-विख्‍यात है और पूरे प्रसार-माध्‍यम का ध्‍यान इस पर केंद्रित हुआ है, इसलिए सीधे कुछ मत करो। बहुत सावधानी बरतना।‘’

मैं सोचने लगा,इनके इरादे क्‍या है? वे परोक्ष रूप से क्‍या करना चाहते है? और जैसे ही कैद खाने पहुंचा उसके इरादे मुझे बिलकुल साफ हो गए।

अमरीकी मार्शल ने मुझसे कहा कि फार्म पर मैं अपने हस्‍ताक्षर न करूं। उसकी बजाएं मुझे डेविड वाशिंगटन के नाम से हस्‍ताक्षर करने होंगे। मैंने कहा, किस कानून या संविधान के अनुसार तुम मुझसे यह मूढ़ता पूर्ण बात कर रहे हो। मैं साफ इनकार करता हूं क्‍योंकि मैं डेविड वाशिंगटन नहीं हूं।

वह आग्रह करता रहा,और उसने कहा, ‘’अगर आप डेविड वाशिंगटन के नाम से हस्‍ताक्षर नहीं करेंगे तो सर्दी की रात में आपको इस इस्‍पात की बेंच पर बैठे रहना पड़ेगा। मैंने कहां तुम समझदार आदमी हो। सुशिक्षित हो, क्‍या तुम नहीं देख सकते कि कैसी मूढ़ता भरी बात मुझसे कर रहे हो?
वह बोला, ‘’मैं कोई जवाब नहीं दे सकता। मैं सिर्फ ऊपर से आए आदेशों का पालन कर रहा हूं। और निश्‍चित ही, ऊपर का मतलब है: वाशिंगटन व्‍हाइट हाऊस, रोनाल्‍ड रीगन।

स्‍थिति को देखते हुएमैं थका मांदा थामैंने उससे कहा, हम समझौता कर लें। तुम फार्म भर दो, तुम्हें जा भी नाम लिखना है, लिख दें। मैं हस्‍ताक्षर कर दूँगा।
उसने फार्म भर दिया। उसमें मेरा ना डेविड वाशिंगटन था। और मैंने अपने हस्‍ताक्षर हिंदी में कर दिये। उसने पूछा, ‘’यह आपने क्‍या हस्‍ताक्षर किए है?
मैंने कहा, ‘’डेविड वाशिंगटन ही होंगे।

उनका ख्‍याल यह था कि यदि मैं डेविड वाशिंगटन लिखू और मैं ही डेविड वाशिंगटन के नाम से हस्‍ताक्षर करूं तो मुझे मार डालना, जहर देना या मुझ पर गोली चलाना आसान होगा। और मैंने कभी इस कैद खाने में प्रवेश किया था इसका सबूत भी नहीं होगा। मुझे हवाई अड्डे के पीछे के दरवाजे से लाया गया और कैद खाने में भी मुझे पीछे के दरवाजे से ले जाया गया ताकि आधी रात में किसी को पता न चले। और दफ्तर में अमरीकी मार्शल के अलावा और कोई भी उपस्‍थित नहीं था।

वह मुझे एक कोठरी ले गया और उसने मुझे वहां से एक गद्दा उठाने के लिए कहा, जिसमें तिल चट्टे भरे हुए थे। मैंने उससे कहा, मैं कोई कैदी नहीं हूं, तुम्‍हें अधिक मानवीय ढंग से व्‍यवहार करना चाहिए। और मुझे एक कंबल और तकिया भी चाहिए।

और उसने साफ इनकार कर दिया, ‘’न कोई कंबल मिलेगा। न तकिया मिलेगा। बस यहीं मिलेगा। लेना हो तो लो।‘’ और उसने उस छोटी सी गंदी सी कोठरी का दरवाजा बंद कर दिया। हैरानी की बात,बड़ी सुबह पाँच बजे उसने दरवाजा खोला और वह आदमी बिलकुल बदला हुआ था। मुझे अपनी आँखो पर भरोसा न हुआ क्‍योंकि वह अपने साथ एक नया गद्दा और एक तकिया लाया था। मैंने कहा, ‘’लेकिन रात को तो तुम बड़े जंगली ढंग से पेश आ रहे थे। अचानक तुम इतने सभ्‍य कैसे हो गए।

और इतनी सुबह मुझे नाश्‍ता दिया। किसी और कैद खाने में मुझे नौ बजे से पहले नाश्‍ता नहीं दिया गया था। मैंने कहा, ‘’यह तो बहुत जल्‍दी है। और तुम मेरी और इतना ध्‍यान क्‍यों दे रहे हो?
वह बोला, ‘’लेकिन आपको इसे खाना होगा, क्‍योंकि पाँच मिनट के भीतर हमें हवाई अड्डे के लिए रवाना होना है।‘’

मैंने पूछा, ‘’तब फिर यह गद्दा कंबल और तकिया लाने का क्‍या मतलब?
उसने बिना कुछ कहं दरवाजा बंद कर दिया। नाश्‍ता कोई बहुत ज्‍यादा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्‍या था मैं पहचान नहीं पायास्‍वादहीन, गंधहीन।
 
(क्रमशः)
[ओशो: सत्यम शिवम सुन्दरम पुस्तक से]

10 comments:

  1. अब तो आगे जानने की उत्सुकता बढ गयी है।

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  2. रोचक प्रस्तुति ..आगे का इंतज़ार है

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  3. रोचक है अब आगे की किस्त का इंतजार रहेगा |

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  4. बहुत ही रोचक प्रसंग, आगे की बेसब्री से प्रतीक्षा है।

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  5. ओह तो यह ओशो से सम्बन्धित है ....

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  6. और स्पष्ट हो, प्रतीक्षा करते हैं।

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  7. रोमांचक कथानक. अगली कड़ी का व्यग्रता से इन्तेज़ार.

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