Saturday, December 31, 2011

2011 बीता नहीं है!!!


समय कभी नहीं बीतता। बीतना प्रकृति में है ही नहीं। मात्र रूपांतरण है, लेकिन मनुष्य़ बीतता है। यही नहीं, उसे अपने बीतने की चेतना भी है। बहुत पुराने जमाने में इंसान को, न समय का बोध था, न बीतने की चेतना। लाखों साल पहले वह प्रकृति के अखंड जीवन-प्रवाह का एक अंग था। पीढ़ी-दर-पीढ़ी वह अपने प्रतिरूपों मे जीवित रहता था। व्यक्ति–चेतना थी ही नहीं, तो भला व्यक्ति बीतता कैसे ! कबीले थे, समुदाय थे, जातियां थीं - एक अनंत जीवन में अस्तित्वमान !

सभ्यता के निर्माण की प्रक्रिया में मानव ने समय का अविष्कार किया। इस समय के सापेक्ष उसने अपने जीवन को मापना शुरु किया। समय के इस अविष्कार ने बड़ी भूमिका निभाई। चीजें तेज गति से होने लगीं। जीवन बदला, विकसित हुआ। परंतु कुछ खो भी गया। अब इंसानी जीवन अखंड, अनंत प्रकृति के महाप्रवाह का अंग न रहकर उससे विलग हो गया। समूह की चेतना की जगह, व्यक्ति की चेतना उपजी। अब इंसान बीतने लगा। उसका जीवन उसी के साथ खत्म होने लगा। इस बात ने मनुष्य को विकास की उपलब्धियां दीं, परंतु उसे सीमित और स्वार्थी भी बनाया।

जीवन से ऊबे और परास्त विचारक, इसीलिये सभ्यता का निषेध करते हैं। वे मनुष्य को फिर से उसके अखंड-अस्तित्व में लौटा लाना चाहते हैं। जहां अपनी खोई अखंड़ता को हासिल करने की मानव की प्यास सच्ची है। वहीं इस प्यास के बरक्स हज़ारों सालों में बना सभ्यता का जटिल और विकसित होता गया रूप भी सच है। इस सच को निषेध कर, प्रकृति की ओर कुछ लोग लौट सकते हैं, संपूर्ण मानव जाति नहीं। इसकी आवश्यकता भी नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि सभ्यता इस दिशा में बढ़ सके कि व्यक्तिवाद में बीतता हुआ मनुष्य, समूह चेतना में फिर से अनंत हो जाये। अपने अखंड़ और अव्यतीत होने का बोध उसे पुनः प्राप्त हो। यह सब न तो उपदेशों से हो सकता है, न धार्मिक शरणस्थलियों को जाती पगडंडियों से। रास्ता एकमात्र है – सामाजिक ढांचे का पुननिर्माण। एक ऐसे समय की पुनर्रचना जिसमे बस्तर, दिल्ली और वाशिंगटन के समय में शताब्दियों का फर्क न हो । एक ऐसे समय की रचना जो संपूर्ण मानवीय ज्ञान और मूल्यों की महान विरासत से रचा हुआ हो। फिर न समय बीतेगा, न मनुष्य । पृथ्वी की निर्माण–कथा इसकी साक्षी है। जीवन अपने अंतिम रूप में एक ऊर्जा है और विज्ञान ने जाना है कि ऊर्जा का न तो क्षय होता है, न ही निर्माण; उसका सिर्फ रूपांतरण होता है। बहुत पुराने युगों के ज्ञानियों ने भी ब्रह्मा का चिंतन करते हुये इस सत्य को जाना और कहा था।

इसलिये 2011 बीता नहीं है, वह हममें जियेगा नया रूप धरकर – इस नये रूप को हम नया नाम देंगे और हम भी बीतने के बोध से मुक्त हो, समय की तरह अनंत और अविनाशी होंगे।


-आलोक श्रीवास्तव (सम्पादक अहा! जिन्दगी)

34 comments:

  1. आप को सपरिवार आने वाले नव वर्ष २०१२ की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  2. बहुत गहनता से सोचने की जरुरत है आपके इस आलेख पर .....! समय बीतता नहीं ...सही कहा है आपने .....!

    ReplyDelete
  3. Badee pate kee baat bata rahaa hai ye aalekh!
    Naye saal kee aap sabhee ko dheron shubh kamnayen!

    ReplyDelete
  4. ये कहाँ आ गए हम ...
    कितनी गहन बातें कहीं हैं आपने.
    आपको नव वर्ष की समस्त शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  5. फिल्हाल यह समय , समय की उत्पत्ति की चिंता करने के बजाये जीवन के गतिमान बने रहने के लिए शुभकामनायें बांटने का है !

    अशेष शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  6. वर्ष 2011 संक्रमण का समय रहा...भ्रष्टाचार से मुक्त शासन को लोगों ने गुंजित किया...नए वर्ष में समय एक ओर करवट लेगा...शुभ का समय निकट है...मंगलकामना

    ReplyDelete
  7. जय हो! सपरिवार आपको, आपके मित्रों व परिचितों को भी नववर्ष की शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  8. आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  9. हर बीता वर्ष बस गया है हममें

    ReplyDelete
  10. पहिले तो भैया आह! जिंदगी को अहा! जिंदगी बनाइये। बहुते खराब लग रहा है..अब पूरा पढ़के फिर आते हैं।

    ReplyDelete
  11. सामाजिक ढांचे का पुनर्निमाण ही एक मात्र रास्ता है। पुनर्निमाण हो भी रहा है लेकिन सुनियोजित नहीं..वैसे मनमाना जैसे की बन रही हैं अवैध कालोनियाँ शहरों में...लोभ और स्वारथ से वशीभूत। वैसे होता जैसे जंगल में उगते हैं खर पतवार तो भी चलता। कम से वहां कोई स्वार्थ तो न होता।

    विज्ञान ने जाना है कि ऊर्जा का न तो क्षय होता है, न ही निर्माण; उसका सिर्फ रूपांतरण होता है।
    ...जाना भी और माना भी। दुःख सिर्फ इस बात का है कि जान कर भी एक पल जीया नहीं।

    ReplyDelete
  12. देवेन्द्र पांडे जी! आभार आपका.. सुधार कर दिया है!!

    ReplyDelete
  13. कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥

    ReplyDelete
  14. यह सत्‍य है कि समय नहीं चुकता वरन हम चुक जाते हैं।

    ReplyDelete
  15. परिवर्तन ही जीवन का नियम है। नियम बदले पर जीवन तो शास्वत रूप से चलता रहता है।

    ReplyDelete
  16. वैज्ञानिक चिंतन से निकला निष्कर्ष है यह- समय नहीं बीतता, व्यक्ति बीतता है।
    समय के स्वरूप का तार्किक विवेचन।

    ReplyDelete
  17. समय नहीं बीतता ,
    बीतता है व्यक्ति !

    ....सही विचार पढ़वाए !

    आपका भला हो !

    ReplyDelete
  18. bahot sunder vyakhya.......'samay beetta nahin'.

    ReplyDelete
  19. बहुत ही सार्थक व सटीक बात कही है आपने ..आभार ..नववर्ष की अनंत शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  20. आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  21. कल 04/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, 2011 बीता नहीं है ... !

    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  22. गंभीर चिंतन...! सही हैं- चेतनता के इसी क्षण में विगत और आगत दोनों विद्यमान हैं! हैं में ही थे, होंगे दोनों शामिल हैं।

    ReplyDelete
  23. jane kaha gaye wo din ....aane wale dinon ki mangalkamna ke sath ..nav varsh ki shubhkamnaye

    ReplyDelete
  24. बीतने का गहन,गंभीर विवेचन...बधाई ! !

    ReplyDelete
  25. ठहरा है या बीत गया .. क्या सोचना ! नए वर्ष की शुभकामनायें

    ReplyDelete
  26. आपको नव वर्ष कीशुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  27. ak sundar pravishti gambhir chintan ke sath ....pravishti tatha apko badhai.

    ReplyDelete
  28. काल का गूढ़ गम्भीर विवेचन,

    समय की न आदि है न अन्त, इसलिए काल भी अनंत है।
    बहुत ही आनन्ददायी आलेख!!

    निरामिष शाकाहार प्रहेलिका 2012

    ReplyDelete
  29. लापता रहने का कारण जान सकता हूं....लिखने के क्रम में आप विराम लगा कर रह नहीं सकते.....कहां व्यस्त हैं...

    ReplyDelete