Saturday, May 26, 2012

आई.पी.एल. - बड़े बच्चों के बड़े खिलौने


"मीडिया-क्रुक्स" हमारा प्रिय ब्लॉग रहा है. मीडिया से लेकर, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर जिस धारदार लेखन का परिचय रविनार ने अपने ब्लॉग और ट्वीट्स के जरिये दिया है वह मारक ही कहा जा सकता है. व्यंग्य ऐसा कि चीर-कर रख दे. हमने कई बार चाहा कि उनकी पोस्ट का अनुवाद कर हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत करें. मगर झिझक ने रोक लिया. कल यह आलेख पढ़ने के बाद हिम्मत करके हमने अनुमति मांग ही ली और कमाल यह कि उन्होंने तुरत हामी भर दी. आप भी देखिये एक बानगी, कलम की और कलम की धार की!
                                 
 (डिस्क्लेमर: इस आलेख में जिन लोगों के नाम आये हैं उनमें से अधिकतर ने अपनी बदौलत सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त की है. उनकी योग्यता और प्रतिभा संदेह से परे है और कोई भी अपवाद उनपर लागू नहीं होता. इसे एक अत्यंत मनोरंजक “थ्योरी” से अधिक कुछ भी न समझा जाए और जैसा कि हर सिद्धांत के साथ होता है, यह सही भी हो सकती है और गलत भी. और मैं प्रायः गलत ही साबित होता हूँ...)

आप लोगों को फिल्म “शराबी” याद है? एक छोटा सा बच्चा (बाद में अमिताभ बच्चन) रात में सो नहीं पाता था. इसलिए उसका एकाकी अभिभावक, प्राण, उसे एक या दो चम्मच शराब पिला दिया करता था और एक पल में ही वो दैत्य गहरी और शांत नींद में सो जाता था. और फिर कुछ ही सालों में शराब उसका प्रिय “खिलौना” बन जाती है. बहरहाल, सारे अभिभावक इतने सृजनात्मक नहीं होते. अधिकतर तो कोई लोरी गाते हैं या उसे पालने में रखकर झुलाते हैं. दूसरे मौकों पर जब बच्चा रोता है तो माँ-बाप उन्हें गले लगाते है या उनको चूमते हैं. लेकिन ज्यादातर माँ-बाप उन्हें कोई बोलने वाला या “टिंग-लिंग” गाने वाला खिलौना थमा देते हैं. और फिर आहिस्ता-आहिस्ता उन खिलौनों की जगह बार्बी डौल या सॉफ्ट-टॉयज या कोई शानदार सी बन्दूक जिनसे गोलियाँ चलने की आवाजें निकलती हैं. खिलौनों का यह जूनून बड़े होने पर भी समाप्त नहीं होता, खासकर कुछ रईसजादों के लिए या फिर रईसों की बीवियों के लिए. ऐसे में उनके हाथों में थमा दिए जाते हैं कुछ मिलियन या करोड़ रुपये ताकि वे अपनी खिलौनों की दुनिया में व्यस्त रहें. आने वाले सालों में हो सकता है कि कुछ नए खिलौने आ जाएँ, जैसे – लास वेगास, मोनैको या एटलांटिक सिटी. आज नहीं तो कल वे खिलौने भी उबाऊ हो जायेंगे. इसलिए मिल गया है उन्हें एक नया खिलौना – आई.पी.एल. (इन्डियन प्रीमियर लीग).

मैं धीरू भाई अम्बानी के समय तक नहीं जाना चाहता. लेकिन शुरुआत उनके बच्चों और उनकी पत्नियों से ही किया जाए. उसकी शादी अनिल अम्बानी से हुई. वास्तव में टीना अम्बानी कर क्या रही हैं आजकल? हो सकता है वो अनिल के हिस्से वाले रिलायंस में बोर्ड-मेंबर हो, मुझे पता नहीं. हालांकि एक बिजनेस है जिसे पूरी तरह से सिर्फ वही चला रही हैं. सुना है कभी? पूरे विमल के कारोबार की बात तो पक्की नहीं, लेकिन टीना हार्मनी फर्निशिंग्स अवश्य संभाल रही हैं. अब विमल और हार्मनी किसी भी तरह रिलायंस का सबसे बड़ा धंधा नहीं है. लेकिन एक औरत के लिए, जो कभी फिल्मों में काफी सक्रिय थी, व्यस्त रहने को कुछ तो होना ही चाहिए. तो ऐसा कहें कि अनिल ने उसे एक बड़ा सा खिलौना थमा दिया – “हार्मनी फर्निशिंग्स”! तुम इसे चलाओ, इसके साथ खेलो, इससे मुनाफ़ा कमाओ या नुक्सान उठाओ और जो जी में आये सो करो! यह खिलौना टीना को व्यस्त रखता है और अनिल को शांतिपूर्वक अपना बिजनेस चलाने में मदद करता है.

अब मुकेश अम्बानी का क्या? आपने कभी  नीता अम्बानी को पेट्रोलियम या गैस या ऐसे ही बिजनेस में दिलचस्पी लेते नहीं देखा होगा. वो शिक्षा की अपनी दुनिया में व्यस्त रहती हैं. एक धीरूभाई इंटरनेशनल स्कूल है और रिलायंस विश्वविद्यालय भी आने ही वाला है, इसलिए वो ऐसे ही संबद्ध क्षेत्रों में व्यस्त हैं. इसमें उनका काफी समय निकल जाता है. भूल नहीं हो रही हो तो यह बस थोड़ा बहुत अच्छा काम है जो वो करती हैं. वो आई.पी.एल. का एक प्रमुख चेहरा, मुम्बई इंडियंस की मालकिन भी हैं. अब ज़ाहिर सी बात है, मुम्बई इंडियंस नाम उन्हें चेरापूंजी इंडियंस जैसे नाम से बिलकुल अलग पहचान देता है. और आप कभी भी नीता को खुशी से उछलते हुए या अपने ग्यारह सूरमाओं को गले लगाते हुए नहीं देखेंगे. वास्तव में, इन खिलौनों से राजसी ठाठ का पता चलता है. कुछ टीमों के तो नाम से ही यह जूनून टपकता है. किंग्स एलेवेन पंजाब, चेन्नई सुपर किंग्स, राजस्थान रोयल्स, रोयल चैलेंजर्स बैंगलोर, कोलकाता नाईट राइडर्स. इन नामों से साफ़ पता चलता है कि लोकतंत्र में हमारी जड़ें कितनी गहरी जमी हैं.

शशि तरूर याद है? उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि उनपर इलज़ाम था कि उन्होंने अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर को ७० करोड़ रुपये का खिलौना तोहफे में दे दिया था. हालाकि खबरें तो कहती थीं कि वे खुद एक सफल व्यवसायी-महिला हैं. लेकिन इससे क्या, उन्हें भी खिलौने चाहिए होते हैं. नहीं होते? बदकिस्मती से, वह तोहफा देना फिस्स हो गया किसी चाइनीज़ घातक खिलौने की तरह और आज कोच्ची टस्कर्स आई.पी.एल. का हिस्सा नहीं हैं. यूं कि देखने वाली बात ये है कि आई.पी.एल. के साथ इतने सारे फिल्म कलाकार और सेलेब्रिटीज़ का जमघट कैसे लग गया, जबकि किसी का क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं.

आइये देखें! विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस काफी समय से समस्याओं से जूझ रही है. तो वह अपने बेटे सिड माल्या (वो मुझपर मुकदमा नहीं दायर कर सकता कि मैंने उसे सिद्दार्था क्यों नहीं कहा) को किंगफिशर की उसे फिर से पटरी पर लाने और समस्याओं से लड़ने के लिए लेकर आया होगा. मगर ज़रा ठहरिये!!! उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया. बल्कि, उसने अपने बेटे के लिए एक आई.पी.एल. की टीम खरीदी और अपने बच्चे को थमा दिया, उसके साथ खेलने को. वो बच्चा आर.सी.बी. का निदेशक है और उसका सारा कारोबार देखता है. कोई जोखिम नहीं है इसमें, अगर बच्चे ने एक खिलौना तोड़ भी दिया, तो दूसरा आ जाएगा. जी हाँ, आर.सी.बी. सुर्ख़ियों में है इन दिनों, और क्रिकेट के कारणों से नहीं!! अब उन खिलौनों के साथ इतना क्या उलझना!!

प्रीटी जिंटा, एक सफल फिल्म-अभिनेत्री, ने लगभग पिछले दो सालों से कोई फिल्म नहीं की. उनके सम्बन्ध नेस वाडिया से हैं और वाडिया ग्रुप की कंपनियों के कारोबार में वो उनकी मदद करती रही हैं. अहा, यही कहेंगे न आप!! मैं उन कंपनियों की बात नहीं कर रहा. नेस वाडिया ने उन्हें एक टीम खरीदकर दी है, किंग्स इलेवेन पंजाब, और वो अपने इस खिलौने को लेकर इतनी एक्साइटेड हो जाती है कि कभी-कभी तो मैदान में उतर आती है, ठीक वैसे ही जैसे डब्ल्यू.डब्ल्यू.ई. के पहलवान अचानक कूदकर रिंग में दाखिल हो जाते हैं.

अच्छा अब राज कुंद्रा के बारे में क्या कहेंगे, वही ट्रेडिंग मैग्नेट, जिसने शिल्पा शेट्टी से विवाह किया है? मान लिया कि शिल्पा मूलतः राजस्थान (!!!) की हैं और ऐसे में उनके लिए शादी के तोहफे के तौर पर एक आई.पी.एल. खिलौने – राजस्थान रॉयल्स से बढकर कुछ क्या हो सकता है! हालांकि राज कुंद्रा एक किफायती पति मालूम पड़ता है, ऐसे में बाक़ी के आई.पी.एल. खिलौनों की तुलना में यह थोड़ा सस्ता खिलौना ही कहेंगे.

और अब बारी शाहरुख खान की, भारत के महानतम सलामी बल्लेबाज़. वो और सह-अभिनेत्री जूही चावला काफी समय तक बड़े अच्छे दोस्त थे और जय मेहता, जूही के पति, के कारोबारी साझेदार भी. वो अपनी पत्नी जूही को एक आई.पी.एल. खिलौना तोहफे में देना चाहता था, मगर उसकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा जब पता चला कि इसमें शाहरुख भी हिस्सेदारी करना चाहता है. कल्पना करें कि जिस आदमी ने क्रिकेट का आविष्कार किया वही के.के.आर. में साझेदार है, जैसा कि जूही ने फ्लोरेंस, इटली से ट्वीट में कहा – “अगर आज एस.आर.के. भड़क जाए और आई.पी.एल. छोड़ दे तो मुझे ताज्जुब नहीं होगा कि लोग मैच देखना छोड़ देंगे... वानखेडे क्या किसी भी स्टेडियम में!!!” मैं पूर्णतः सहमत हूँ! शाहरुख आई.पी.एल. टॉय स्टोरी के सबसे बड़े एम्बेसेडर हैं.

अब बारी आती है कमाल की पत्रकार गायत्री रेड्डी की, जो एक अखबार “डेक्कन क्रॉनिकल” चलाती हैं. हम्म्म!! अखबारों का काम सिर्फ ख़बरों की रिपोर्टिंग करना है, लेकिन खिलौनों से खेलना तो खबरें बनाने जैसा है. इसलिए डेक्कन क्रॉनिकल ने खूबसूरत दिखने वाली गायत्री को एक आई.पी.एल. खिलौना थमा दिया – डेक्कन चार्जर्स! आप उनका नाम सुनते रहते होंगे और कल्पना कर सकते हैं कि हर छोटी बात उनके लिए हंगामाखेज होती है. जाने दीजिए, और जब तक खिलौने में चाबी भारी हुई है, इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि वे क्या कर रहे हैं,

अब बात करते हैं डेल्ही डेयरडेविल्स की. यह अकेली ऎसी टीम है जिसके मालिक जी.एम्.आर. कभी खुले-आम अपने खिलौने से खेलते नहीं दिखाई देते. इसलिए उन्हें कभी-कभी स्टंट-मैन अक्षय कुमार जैसे लोगों को लाना पड़ता है यह बताने के लिए कि इन खिलौनों से कैसे खेला जाता है. सुब्रत सहारा राय, को पुराने समय से क्रिकेट प्रायोजक के रूप में जाना जाता रहा है. लेकिन वे खेलों पर इतना खर्च करते रहते हैं कि अपने बेटे को एक खिलौना खरीदने के लिए उन्हें बड़ी जद्दोजहद करनी पडी. हाँ अगर वे एक फिल्मी कलाकार होते तो उनका काम आसान हो गया होता. खैर, अंत भला तो सब भला, उनके सुपुत्र सुशान्तो राय को आखिरकार अपना खिलौना मिल ही गया. सुशांतो सहारा ग्रुप के रियल-एस्टेट का कारोबार भी देखते हैं.

इस पूरे जमघट में अगर कोई बेमेल है तो वह है एन. श्रीनिवासन, वर्त्तमान बी.सी.सी.आई. अध्यक्ष. उन्हें बी.सी.सी.आई., आई.पी.एल. और सी.एस.के. जैसे खिलौने चाहिए. वो भी खुद के लिए और किसी के लिए नहीं. हाहा साला स्वार्थी!! ऐसी खबर है कि बेटे की बाप से नहीं बनती क्योंकि वो समलैंगिक हो गया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो उस बेटे के पास आई.पी.एल. का सबसे कीमती खिलौना होता.

अंत में जब सारे सेलेब्रिटी अपने खिलौनों से खेल रहे हैं, स्टैंड में नाच रहे हैं, अपने-अपने चियर-लीडर्स लेकर आ रहे हों, तो मीडिया कैसे पीछे रह सकता है. उन्हें भी हर रोज दो से तीन घंटे की टॉय-स्टोरी मिल ही रही है ना. तो इस तरह राजनेताओं, फिल्मी सितारों, रियल-एस्टेट मुगलों और मीडिया-क्रुक्स को आकर्षक जुआ-घरों (क्सीनों) का तोड़ मिल ही गया. हाँ, खिलौनों के साथ एक बात है, खेलने वाला आज या कल ऊब ही जाता है उनसे और हमेशा नया खिलौना चाहता है. आई.पी.एल. मीडिया के लिए एक बना बनाया सोप-ओपेरा है और चुनौती है कि कैसे इसे और अधिक बेकार और बेस्वाद बनाया जाए.

इन सबों के पीछे एक बड़ी अच्छी बात भी है. अगर इन रईसजादों और उनकी बीवियों को कोई बड़ा और महँगा खिलौना न मिला, तो ये कुछ और ही तोड़ने में लग जायेंगे. खैर, तब तक आओ मिलकर खेलें खेल!!


24 comments:

  1. यही चरित्र है पूंजीवाद का...

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  2. सच्ची में ये अमीरों के खिलौने ही हैं जो गरीबों का खून चूस रहे हैं और वे गरीब समझते हैं कि उनका मनोरंजन हो रहा है !

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  3. waqayi ye bada zabardast aalekh hai!

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  4. संवेदना के स्वर बंधुओ ,
    किसी खेल / विधा की लोकप्रियता में व्यवसाय की तलाश अस्वाभाविक नहीं है और ना ही किसी नये व्यवसाय में अपने ही घर के किसी सदस्य को आगे बढ़ा देना कोई नई बात या अनहोनी !

    फिर भी ये आलेख , बड़े व्यावसायिक घरानों की इस खास प्रवृत्ति पर गुदगुदाहट करते हुए , खरोंच मार जाता है ! ये खरोंच ही इस आलेख की सफलता है !

    अनुवादक(गण) और प्रस्तोता(ओं) को खास शुभकामनायें :)

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  5. लोगों के पास पैसा है, देख रहे हैं, दिखा रहे हैं।

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  6. यह मानव का स्वभाव है कि वह खिलौनो से खेलना चाहता है। खिलौनो से खेलना बुरा नहीं, बुरा तो तब है जब खिलौने उससे खेलने लगते हैं।

    पूँजीपतियों के पास पूँजी है तो वे रेत में बालू के घर तो बनायेंगे नहीं। चाहेंगे एवरेस्ट में चढ़ने के लिए लिफ्ट लग जाय। जो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में रात दिन खटते रहते हैं वे भला कैसे खेलेंगे खिलौनो से? वे तो स्वयम् वक्त के हाथों झुनझुने हैं।

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  7. @देवेन्द्र पाण्डेय:
    एवरेस्ट पर लिफ्ट और वक्त के हाथों झुनझुने.. क्या बात कही है!! आभार!!

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  8. @अली सा,
    आपकी टिप्पणी हमारा सदा हौसला बढाती है!!

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  9. सामयिक सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...

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  10. बाप रे बाप इतने मँहगे खिलौने, हमें तो लगा कि वे देश सेवा कर रहे थे।

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  11. कोफ़्त होती है इन सबको देखकर और इन्हें देखते हुओं को देखकर भी, मैं तो खुद को सैडिस्टिक ही माने बैठा था लेकिन हौंसला हुआ कि अकेला नहीं हूँ|

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  12. कहते हैं बड़ा होने पर खिलौने अपने आप छूट जाते हैं,लेकिन इस पोस्ट से ऐसा नहीं लगता;बड़ा होने पर खिलौनों के रूप बदल जाते हैं। गरीब के बच्चों के खिलौने अमीरज़ादों के टूटे-फुटे खिलौने बन सकते हैं...लेकिन गरीब की हसरत भी नए खिलौनों की रहती ही है...इस हसरत को ही तो आज रइसज़दों ने भुनाया है...फिर भारत जैसे देश में तो क्रिकेट का जुनून काफी पुराना है...और रइसजादों ने अपनी बीबियों को आईपीएल का झुनझुना थमा दिया है तो इसमें बुरा क्या है...हां अब इन रइसजादों को क्रिकेट के साथ दूसरी विधाओं को मिलाने का श्रेय भी है। महिला टिप्पणीकार,चियर-लिडर्स यहां तक की कैबरे भी अब गरीब अपने घर में देख सकता है...अरे जो वह अपनी जिंदगी में कभी नहीं देख पाता आईपीएल ने वह उसे दिखा कर उस पर बहुत बड़ा अहसान किया है। गरीब वैसे ही महंगाई का मारा है...वास्तविक जिंदगी में वह कहां यह सब कर पाता है...तो भला हो हमारे इन रइसजादों का कि उनकी बदोलत गरीब कुछ राहत महसूस कर रहा है।

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  13. भैया हमें भी तो देखने के लिए कुछ चाहिए न। अब इतने महंगे खिलौने हमें तो खेलने के लिए मिलने से रहे। जिसे वर्षों पहले तक हम इडियट बॉक्‍स के नाम से दुत्‍कारते रहे थे, वही हमें ये खेल दिखा रहा है। कभी नीता अंबानी आ जाती हैं, तो कभी अमिताभ आ जाते हैं करोड़पति बनाने तो कभी आमिरखान सत्‍यमेव जयते लेकर नमक छिड़कने। हम तो बस दर्शक ही हैं। अब दर्शक होने का तमगा तो हमसे मत छीनिए।

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  14. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  15. padh kar hasii aagii
    aaklan sahi haen par utna bhi nahin

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  16. पैसेवाला है तो महंगे खिलौने खरीदेगा । पर हम भी तो उन्हें इन खिलौनों सेऔर पैसा कमाने में मदद करते हैं ।

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  17. आपने बिलकुल ठीक कहा। रविनार जी की लेखनी काफी धारदार है और वैसे ही आपका अनुवाद। हमलोगों को लगता है कि यह काफी मँहगा खिलौना है, उनके लिए ऐसा कुछ नहीं है।
    वैसे IPL ने क्रिकेट का क्रेज़ समाप्त कर दिया है। मैने शायद एक या दो मैच देखे होंगे।

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  18. .
    paisa kidhar se aaye kaise aaye bus esi dhun mein din raat lage rahte hain....
    ..bahut badiya prerak prastuti..

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  19. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद ।

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  20. क्षमा प्रार्थी हूँ, बहुत दिन बाद आ पाया चैतन्य ..
    लिखना कम क्यों ? ४ माह से कोई पोस्ट नहीं ...
    सादर !

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