Monday, December 13, 2010

प्रेम गली अति साँकरी, जा में दो न समाएँ


कुछ काम मिल बाँटकर कर लिये जाते हैं. जैसे हमारे पड़ोस में, शर्मा जी की पत्नी जबतक बर्तन मांजती हैं, शर्मा जी दाँत मांज लेते हैं. वो बेचारी बिछावन करती हैं और शर्मा जी सो जाते हैं. पूछिये तो बताएँगे कि वो अपनी पत्नी के साथ मिल बाँटकर घर का सारा काम करते हैं. बचपन में घर पर माँ को चूल्हे पर खाना बनाते देखा है. बुआ रोटी बेलती थीं और माँ रोटियाँ सेंक लेतीं. और इस तरह सारा काम बातों बातों में कब निपट जाता, पता ही नहीं चलता था.

पुराने समय में ऐसी जोड़ियाँ बहुत होती थी. क्लास में दिलीप के साथ बैठना, घर पर राकेश के साथ बाज़ार जाना, कैरम में पप्पू के साथ पार्टनर बनकर खेलना और बैडमिंटन में नवीन के साथ. गानों में जोड़ियों वाले गाने को विविध भारती पर कहते थे, अब आप लता और रफ़ी का गाया दो गाना सुनिये. बहुत परेशानी होती थी यह सोचकर कि गाना तो वो एक ही बजाते थे पर कहते थे दोगाना सुनिये. बाद में पापा ने बताया कि जोड़ी में गाया जाने वाला गाना युगल गीत यानि दो गाना कहलाता है.

यहाँ तक तो सब ठीक था, लेकिन फिर आया गाने की धुन बनाना. अब ये काम तो एक अकेला इंसान ही कर सकता है. दो जने मिलकर एक गाने की धुन बनाएँ, बात कुछ अटपटी सी लगती है. लेकिन हमारी फ़िल्मी दुनिया में तो 1944 में संगीतकारों की पहली जोड़ी आई पं. हुसनलाल भगतराम की. और उसके बाद शंकर जयकिशन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, बासु मनोहरी, सोनिक ओमी, नदीम श्रवण, साजिद वाजिद, जतिन ललित,विशाल शेखर और तिकड़ी शंकर एहसान लॉय. राम  लक्षमण ने तो अकेले होते हुए  भी जोड़ियों वाला नाम रख लिया था अपना. पहले सोचता था ये दो लोग कैसे एक गाने की धुन बनाते होंगे.शंकर जयकिशन मेरे फेवरिट थे,  इसलिए बाद में फर्क करना गया कि कौन सा गाना शंकर ने बनाया है और कौन सा जयकिशन ने. बहरहाल, नतीजा ये निकला कि ये काम अलग अलग कर लेते हैं, लेकिन नाम दोनों का ही लिया जाता है.

फिर आए सलीम जावेद. इस जोड़ी ने तो ऐसा धमाका किया कि जिसकी गूँज आज भी कानोंमें बसी है. कथा, पटकथा और सम्वाद लेखन के साथ इनका नाम ऐसा जुड़ा कि हॉलमार्क होकर रह गया. अमिताभ, प्रकाश मेहरा, जी पी सिप्पीडॉन, ज़ंजीर और शोले. ये सब के सब मील का पत्थर हैं, भारतीय सिनेमा के. ये जोड़ी टूटी भी ऐसी कि बस बिखरकर रह गई. उसके बाद कम से कम कथा, पटकथा और सम्वाद लेखन में दूसरी कोई भी जोड़ी इस तरह सफलता का पर्याय बनकर नहीं आई. अब यहाँ फिर दिमाग़ में एक सवाल पैदा हुआ कि आख़िर ये दोनोंअलग अलग कैसे लिखते होंगे! यह तो संगीत भी नहीं कि सुनकर बता दें.

दस महीने पहले तक तो वाक़ई इस सवाल का जवाब नहीं था हमारे पास. लेकिन अब बता सकते हैं कि दो लोग कैसे मिलकर लिख लेते होंगे. अव्वल तो दोनों की सोच एक जैसी होनी चाहिए. अगर हो, तो कम से कम इतना तो निश्चित तौर पर पता हो कि उन दोनों की सोच कहाँ  पर मिलती है. कुछ दिनों बाद तो ऐसा लगने लगता है कि किसी भी मुद्दे पर दोनों एक जैसा सोचते हैं. एक ने सोचा, दूसरे ने आगे बढ़ाया,  एक ने आधा लिखा  दूसरे ने पूरा किया. कई बार पूरा का पूरा आलेख एक ने लिखा, लेकिन फर्क करना मुश्किल कि किसका लिखा है
 (चैतन्य - सलिल) 
जी  मैं बात कर रहा हूँ ब्लॉग जगत की जोड़ी सलिल और चैतन्य की. हमारे आलेख और टिप्पणियों को पढ़कर कई मर्तबा लोगों के कमेंट आए जिनमें हमें नाम से सम्बोधित किया गया. लेकिन यह तो हम ही जानते हैं कि वो कमेंट या लेख  सलिल का लिखा था और उसपर कमेंट चैतन्य को सम्बोधित करके किया गया, या फिर चैतन्य के लिखे पर शाबाशी सलिल ले गए. हाँ,  हमने कभी इन बातों पर ग़ौर नहीं किया. मतलब पोस्ट के पसंद आने से है, तारीफ किसी को मिले,पहुँचनी तो दोनों को ही है. ख़ुशी तब होती है जब कोई सम्वेदना के स्वर बंधुओं या संवेदना के स्वर द्वय लिखता है.

हमने टेलिकॉम घोटाले की जितनी भी निंदा की हो, आभारी हैं हम इस सेवा के जिसने दो अलग अलग शहरों में (नोएडा/दिल्ली और चंडीगढ़) रहते हुए भी हमें जोड़े रखा है. समय की कोई परवाह नहीं, जब भी किसी के दिमाग़ में कोई बात आई जिसपर पोस्ट लिखी जा सके, तुरत फोन पर ख़बर की, प्रारम्भिक इनपुट पर चर्चा की और लिखने बैठ गए. मेल में आदान प्रदान किया नोट्स का, और फिर बहस कि कौन सा हिस्सा कैसे रखना है. हम ख़ुद अपने समीक्षक बनकर अपने अलेख की इतनी चीर फाड़ करते हैं कि जब वह पेश होता है तो दुनिया की हर आलोचना झेलने को तैयार रहता है.

अब तो ये हाल है कि कभी कभी लगातार दोनों के फोन एक दूसरे को व्यस्त मिलते हैं, जब बात होती है तो पता चलता है कि हम एक दूसरे को फोन लगा रहे थे. सोच भी एक जैसी हो गई हैं, और नज़रिया भी. ऐसे में पढ़कर यह कहना कि ये उसने लिखा है बड़ा मुश्किल होता है.

कल मॉल में एक प्यारे बच्चे को देखकर उसे प्यार करने लगा. तब तक उसकी माँ गई और मुझे देखकर मुस्कुराने लगी. मैंने पूछा कि आपका बच्चा है. वो बोली हमारा बच्चा है और उसने अपने पति की ओर उँगली से इशारा कर दिया! वो औरत तो अपने बच्चे की उंगली पकड़े आगे निकल गई. मैं गुम हो गया पास ही एक म्यूजिक स्टोर से आती हुई एक सूफी धुन के जादू में:
प्रेम गली अति साँकरी जा में दो न समाएँ!!
 

42 comments:

  1. भाई शिवम मिश्र की टिप्पणी तकनीकी खराबी के कारण डिलीट करनी पड़ी. यहां पुनः प्रकाशित:
    वैसे इस प्रेम गली में आप दोनों ही समा गए है ... और किस शिद्दत से समाये है यह सलिल भाई से हुयी एक छोटी सी मुलाकात में मैं भली भांति समझ गया था !
    .
    उस दिन चैतन्य भाई वहाँ मौजूद ना होते हुए भी पूरी तरह से मौजूद थे ... कुछ तो फोन के माध्यम से और कुछ सलिल भाई की बातों के जरिये !
    .
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएं आप दोनों के साथ है ... यह जोड़ी बनी रहे ... बस यही दुआ है!

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  2. आप दोनों को कभी पढ़ते हुए महसूस नहीं होता की दो लोगों को पढ़ रहे है .... शायद इसी को पूरा होना कहते है ...

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  3. कहते हैं जहां दो बर्तन साथ हों वहां खटपट तो होती ही रहती है..लेकिन हमने कोशिश की इस कहावत को अपवाद साबित करें, आखिर अपवाद ही तो सिद्धांतों को स्थापित करते हैं.
    हमने बर्तनों की आवाज़ को संगीत बनाया और संवेदना के सुर आप तक पहुंचाए... मेरा व्यक्तिगत रूप से बस यही मानना है कि लाली देखन मैं चली, मैं भी हो गई लाल!

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  4. न जाने क्‍यों मैं तो इसे केवल चैतन्‍य जी का ही ब्‍लाग मानता रहा हूं। सलिल भाई का नाम याद आते ही उनका चला बिहारी ही याद आता है। अब आप कहते हैं तो मान भी लेते हैं कि यह आप दोनों का बच्‍चा है।

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  5. भाई नहीं भाइयों, हमें तो यह राज आज ही मालूम पड़ा है। वैसे भी हम तो लेख में ही दिलचस्‍पी रखते हैं। अब आप युगल जोड़ी को नमन। ऐसा ही अच्‍छा लिखते रहें।

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  6. @राजेश उत्साही जी:
    यह पोस्ट हमारे एजेंडे में नहीं थी, लेकिन लगातार यह भूल/त्रुटि हमें अपने कमेंट्स और प्रतिकमेंट्स में देखने को मिली... लगा एक स्पष्टीकरण आवश्यक है... आखिर हमारा उद्देश्य भी तो यही है की यहां मन की बातें लिख दीं ताकि सनद रहे!

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  7. @ चला बिहारी ब्लोगर बनने

    प्रेम की बात है..

    मुझे तो इतना भर कहना है...

    तू ही रे...

    -चैतन्य

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  8. ...ठीक इसी तरह एक और एक भी ग्यारह हो जाते है .....
    सच में ऐसी प्रेम गली में तो एक होकर ही चलना होता है ...... ...यूँ ही आप सबकी जोड़ी अटूट बनी रहे और समाज को एक सार्थक सन्देश मिले . यही शुभकामना है.....

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  9. namak-chini dono ek saath hain...isiliye to ye blog..blog jagat ka ORS ghol ban gaya hai... blog jagat men jitna kamzor lekhan ho raha hai use door karne men ye is balog kee bahut badi bhoomika hai..waise ye namak chini ghulte is tarah hain kee alag karna asambhav hai... :) aur han hum to dekhe hi hain ki akele salil sir se milna bhi.. chaiatnay-slil dono se mi,na hai.... pata hi nahi lagta ki slil sir delhi me hain aur chaitnya sir chandi garh men ... :)

    love u both.... :)

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  10. भगवन आपकी जोड़ी बनाये रखे और सलीम जावेद से भी ज्यादा हिट हो शुभकामनाये.

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  11. @ शिवम मिश्र जी:
    भाई आपका प्रेम मान गए... जब आपका फोन आया तो समझ गए थे की पोस्ट डिलीट होने के कारण आपका फोन आया है.. धन्यवाद!
    @सोनल जी:
    बस यही हमारे लेखन की सार्थकता है! आभार आपका!
    @ डॉ. अजित गुप्ता जी:
    आप फिर गलती कर रही हैं. हम दो कहां हैं, एक ही तो हैं! आपकी शुभकामनाएं शिरोधार्य!!

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  12. @कविता रावत:
    एक और एक ग्यारह भी अच्छा है! जुड़े रहिये!
    @स्वप्निल:
    अरे हमें तो तुम जैसे बच्चों ने भी प्रेरित किया है.. शायद ही हमारी कोई चर्चा हो जिसमें तुम्हारा ज़िक्र न होता हो... चीनी-नमक का घोल कहो या घडी की बारह बजे की सुइयां. Love you too!!
    @ शिखा वार्ष्णेयजी:
    आपका हमारे साथ जुड़ाव भी अटूट रहा है, शायद ही कोई पोस्ट हो जिसपर आप बिना कुछ कहे चली गयी हों... बल मिलता है आपकी बातों से.. रहइ बात सलीम जावेद की तरह, तो हिट होने से ज़्यादा पिट जाने का दर बना रहता है हमें!!

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  13. सम्वेदना के स्वर बंधु,

    आपकी जोडी तो वाकई एक विशेष जोडी है, अमर रहे!!
    विश्वास नहिं होता, एक दुसरे के विचारो में भी घुस सकते हो। द्वैत का अद्वितीय उदाहरण हो मित्र।
    जी ललचाता है, तीन कर दूँ मैं जुडकर, पर प्रेम गली अति संकरी……………

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  14. Bada contemplative aalekh! Aapki jodi bilkul laybaddh hai...taal se taal haath se haath aur pair se pair milaake chalti hai!

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  15. सलिल चैतन्य जोड़ी अमर रहे ,जिंदाबाद जिंदाबाद ..
    हमें यह मुगालता क्यों हो कि दोनों अलग अलग हैं ....

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  16. संवेदना के स्वर मुखर
    पोस्ट आई और निखर

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  17. लीजिये हम फिर हाज़िर है नया माल ले कर ...

    सलिल भाई से चर्चा हुयी थी इस मुद्दे पर भी कि पोस्ट ' किसी की और तारीफ किसी की '... बोले इस का ही तो मज़ा हम दोनों लेते है कि कैसा बनाया सब को !!

    वैसे आप लोगो ऐसे ही लिखते रहिये ... धीरे धीरे हम जैसे आपके मुरीद जान ही जायेगे किस ने क्या लिखा है ... तब तक यह मौज युही चलती रहे !

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  18. सलामत रहे दोस्ताना तुम्हारा वैसे जोड़ी ज्यादा लोकप्रिय होती है यह राज खोलने का कारण क्या है ?

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  19. @सुज्ञ जी:
    आप तो वैसे ही जुड़े हैं हमसे... और आपको तो हमने अलग से स्पष्ट कर दिया था.. बस ऐसे ही रिश्ता बनाए रखिये!
    @क्षमा जी:
    देखिये आपने रोमन में पैर से पैर को PAIR से PAIR मिलाकर लिखा है.. देखिये हमने पेयर (जोड़ी) पक्की कर ली है!!
    @पंडित अरविंद मिश्र जी:
    सर झुका रखा है हमने आपके आशीर्वाद की बारिश में भीगने के लिए!
    @देवेन्द्र पाण्डेय जी:
    आप तो शुरू से जुड़े रहे हैं हमारे साथ. आपका आशीष शिरोधार्य!

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  20. @संजय भास्कर:
    विशेष तो यह आप लोगों के प्यार के कारण हुयी है. किन्तु आपने अपना ट्रेड मार्क क्यों छोड़ दिया..एक बार में दो कमेन्ट करने का ट्रेड मार्क!!
    @शिवम मिश्र:
    भाई आप तो दिल के करीब हैं... आप से कुछ भी छुपा नहीं.
    @सुनील कुमार:
    धन्यवाद! राज़?? कौन सा राज़? हमारे प्रोफाइल पर (जब से हम बेनामी से नामवर हुए) हमारा परिचय ऑलरेडी लिखा है..लेकिन इसके बाद भी कोई इस नाम से तो कभी उस नाम से संबोधित करते रहे.. तब जाकर हमें पोस्ट ही लिखनी पड़ी... बोले तो ऑफिशियली!!

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  21. अपनी तो जी यही दुआ है कि प्रेम गली यूँ ही गुलजार रहे। शुरू में आपको एक शरारताना कमेंट किया था तो आपकी तरफ़ से जवाब आया था कि ऐसी ही जोड़ी है हमारी, ब्रिक भी दोनों की, बुके भी दोनों का।
    शुभकामनायें ढेर सारी।

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  22. इसीलिए तो यहां का स्वर संवेदना का है।
    अब यह तो कहने से सकुचा रहा हूं कि यह जोड़ी ... !
    छोडि़ए मुद्दे पर आते हैं। बहुत से हिट्स आपने दिया है यहां, सलिम ... सॉरी सलिल-चैत्न्य की तरह ही। और इसी तरह के प्रयोग हमने भी किए हैं करण के साथ ... पूरा उपन्यास लिख गये .. ‘त्यागपत्र’ ... गांव के पोखर पर पात्र पहुंच गया तो अगले को बोल दिए कि आगे का तुम लिख देना। टांगा से पात्र गांव में पहुंच गए तो बोले भाई उसे घर तक पहुंचा देना।
    इस आनंद को वही महसूस कर सकता है, जिसने ऐसी जोड़ी बनाई हो।
    बधाई और शुभकामनाएं।

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  23. अभी भी नहीं मालूम यह किसने लिखी है, अंदाजा है कि चैतन्य की है ! मगर सलिल को मुबारक बाद देने में हर्ज़ ही क्या है ! :-))

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  24. @मो सम कौन जी:
    हम आज भी Bouquets & Brickbats साथ साथ सम्भालते हैं... मगर आप जैसे मित्रों का साथ और शुभकामनाएं, हमारे सबसे बड़े इनाम हैं!!
    @मनोज कुमार जी:
    सचमुच आपका वह अनोखा प्रयास था... अब हमें ही देख लीजिए.. हमने गज़ल भी लिखी तो मक्ते में जहां शायर अपना नाम लिखता है, वहाँ भी हमने संवेदना के स्वर ही लिखा... हमारे स्वप्निल कुमार ‘आतिश’ तो यह प्रयोग देखकर हमेशा आश्चर्य करते हैं!!
    @सतीश सक्सेना जी:
    सर जी!मान गए! गुरुदेव, क़यामत की नज़र रखते हैं!!

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  25. आपका ब्लॉग मेरे पसंदीदा ब्लोग्स में से एक है. आप लोगों की जुगलबंदी ऐसे ही चलती रहे यही कामना करता हूँ. मन में लिखने को तो बहुत कुछ है पर बस अभी इतना ही की मुझे अपने अनेक भक्तों में से एक मानिये.

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  26. एक लय में दोनों का लिखना बड़ा कठिन कार्य है, शैलियों का मिलान बहुत ही कठिन।

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  27. संवेदना के स्वर बंधुओ ,
    जुगलबंदी सलामत रहे ! दुआ ये कि आप जिन 'नायकों/फिल्मों'पर हाथ डालें वो सुपरहिट हो जायें !

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  28. अज पहली बार पता चला आपकी जोडी का सच। नाम मे क्या रखा है? जब संवेदनायें एक जैसी हों? ये संवेदनायें तो सागर से गहरी और आकाश से अधिक विस्तरित होती हैं जब इनमे दो इन्सान समा जायें तो स्वर मुखर हो उठते हैं। बस ये संवेदना के स्वर मुखर रहें । आपकी जोडी को सलाम, शुभकामनायें, आशीर्वाद।

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  29. मुझे तो ऐसा लगता है कि जब दो होंगे तो ही प्रेम-गली बन पावेगी । हाँ ये जरुर कहा जा सकता है कि जा में और (तीसरा) ना समाएं.

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  30. इस जानकारी के लिए आभार।

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  31. हम तो भगवान् से दुआ करेंगे की आपकी जोड़ी बनी रहे ... आप इतना अच्छा लिखते रहें ... वैसे ग़ज़ल गाने वालों की भी एक जोड़ी है अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन जिसका मैं उतना ही दीवाना हूँ जितना आपका ...

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  32. @निर्मला कपिला जी:
    निम्मो दी! आपका आशीर्वाद हमारी प्रेरणा है!
    @अली सा:
    आप वो पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने हमारे पहले कमेन्ट पर ही संवेदना के स्वर द्वय/बंधुओ कहकर संबोधित किया था. आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरें यही हमारी चेष्टा होगी!
    @प्रवीण पाण्डेय जी:
    जब सोच मिलने लगती है तो अभिव्यक्ति में भी सामंजस्य साफ़ दिखने लगता है.
    सुशील बाकलीवाल जी:
    जैसे नदी के दो किनारे या रेल की दो पटरियाँ, बाहर से भले दो नज़र आते हों पर नदी और रेल पर से देखें तो बस एक। प्रेम शायद वो ब्लैक होल है जहां कुछ नहीं बचता प्रेम के सिवा। दो, तीन, चार... सब गिनती समाप्त। इस प्रेम गली में सब का स्वागत है।
    ज़ील:
    धन्यवाद!

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  33. जोड़ी सलामत रहे !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  34. आपकी पोस्ट कल जबसे पढ़ी है मन में न जाने पुराने कितने ही विचार भ्रमण करने लगे सच मानिए क्या कुछ नहीं याद आ गया बस इतना कहूँगी की "जहाँ चाह वहां राह" करने को या मन ठान लेने पर कुछ भी मुश्किल नहीं बस हौसला और एक दूसरे पर विश्वास करना सीखने की जरुरत है आभार

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  35. बहुत रोचक व मन को गुदगुदाने वाला ! मन हल्का हो गया !

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  36. विचार शून्य जी:
    अरे बाप रे! भक्त! महाराज, क्यों पाप का भागी बना रहे हैं!!
    दिगम्बर नासवा जी:
    धन्यवाद! हुसैन बंधुओं के सलिल जी भी दीवाने हैं..कहते हैं उनहोंने हसरत साहब को दुबारा ज़िंदा कर दिया! और गायकी कमाल.
    रचना जी:
    हौसला और विश्वास, आपकी दोनों सीख को उतारने कि कोशिश कर रहे हैं.. आभार!!
    जगदीश बाली जी:
    :)

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  37. पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
    प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
    मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
    दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
    या हादी
    (ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

    या रहीम
    (ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

    आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
    {आप की अमानत आपकी सेवा में}
    इस पुस्तक को पढ़ कर
    पांच लाख से भी जियादा लोग
    फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

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  38. भाई बहुत बहुत बधाई आप दोनों को........

    पता नहीं ये बधाई आपको देनी चाहिए या नहीं, पर मैं कायल हूं कि किस प्रकार आपकी टाइमिंग फिक्स है - जैसे राजा और नीरा की.......

    अरे अरे...... कहाँ बात ले गया.....

    ये बात मानता हूं प्रेम गली अति साँकरी ......

    ईश्वर से प्राथना है कि ये उर्जा बनी रहे..... बरसों........ ताकि हमको भी प्रेरणा यूँ लगातार मिलती रहे.

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  39. सलामत रहे दोस्ताना तुम्हारा...
    आप दोनों के जुड़ने से फायदा पाठकों का है जिन्हें इतनी अच्छी सामग्री पढ़ने को मिल जाती है...शायद आपको पता हो लेखन में दो जानो ने लिखने की शुरुआत बहुत पहले राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी जी ने की थी. उन दोनों ने मिल कर एक उपन्यास लिखा था " एक इंच मुस्कान" आजकल बाजार में फिर से मिल रहा है...बहुत बढ़िया प्रोयोग था वो. उसका एक चेप्टर राजेंद्र लिखते और दूसरा मन्नू जी...दोनों की लेखन शैली का मजा एक ही उपन्यास में आ गया था... ये प्रयोग फिर आगे नहीं हुए...
    सलीम जावेद की जोड़ी के इतने वर्षों बाद अब आपकी जोड़ी आनंद दे रही है...लिखते रहें.

    नीरज

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  40. @दीपक बाबा जी
    @नीरज गोस्वामी जी

    धन्यवाद !

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