Tuesday, February 15, 2011

पाचवें खम्बे की अदालत में “सदरे रियासत आई.एम.एफ. सिंह”

अदालत… न्यायालय… कचहरी... प्रजातंत्र का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण खम्बा. लेकिन आम आदमी की राय यही है कि भैय्या थाना और अदालत के चक्कर बड़े ख़राब होते हैं. इनसे तो भगवान बचाए. इसके उलट देश के ख़ास लोग अदालत से ज़रा भी नहीं घबराते. मुस्कुराते हुए जाते हैं और हँसते हुए बाहर आ जाते हैं. पूछिये तो कहते हैं कि मुझे देश की न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. साल भर पहले हलफनामा दायर करके एक बात कहते हैं और और एक साल बाद दूसरा हलफनामा दाखिल करके बताते हैं कि पहला हलफनामा ग़लत है. साथ में एक घिसा पिटा मुहावरा कि मुझे देश की न्यायपलिका पर पूरा भरोसा है.

आम आदमी पर लौटें तो उसे न्यायालय का मतलब सिनेमा और टीवी पर दिखाई जाने वाली ड्रामाई अदालत लगता है. सिनेमा में बी आर चोपड़ा और टीवी पर रजत शर्मा. आप की अदालत नामक घण्टे भर के प्रोग्राम से इण्डिया टीवी तक का सफर बड़ा लम्बा रहा है.

आईये इस तीसरे खम्बे के बारे में, चौथे खम्बे पर लगा रजत शर्मा का पोस्टर देखकर अब बारी है पाँचवें खम्बे की अदालत की. तो पेश है पाचवें खम्बे की अदालत.

आज का मुक़दमा हम चलाने जा रहे हैं अंधेर नगरी के सदरे रियासते आई.एम.एफ. सिंह पर. आप बहुत ही कम बोलने वाले और बिना इजाज़त नहीं बोलने वाले शासक हैं, दरसल हमारा यह एपिसोड सिर्फ इसलिये लम्बित रहा कि इन्हें बोलने की परमिशन नहीं मिली थी. और अब चुँकि यह बोलने लगे हैं, इसलिये अपनी सफ़ाई ख़ुद देंगे.

तो शुरु होता है “सदरे रियासते अंधेरनगरी IMF सिंह” पर आज का मुक्द्दमा

आरोप नम्बर : 1

आपकी कोई नहीं सुनता ?

डेविल्स ऐडवोकेट : जनता को आपसे सबसे बड़ी शिकायत यह है कि आपके दीवानेख़ास में ही आप की कोई नहीं सुनता? आपके नवरतन भी नहीं! कोई 15% पर सौदा कर रहा है (लोटसनाथ), कोई बेईमानी से लाइसेंस बेच रहा है (स्पेक्ट्रम आजा), कोई मंहगाई में आग लगाने के लिये भड़काऊ बयान दे रहा है (गर्द गंवार)... लोग माल गड़प रहे हैं और आप GDP-GDP का जाप कर रहें हैं, गायत्री मंत्र की तरह।

आई.एम.एफ. सिहं: ना जी ना! ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैं कमजोर बिल्कुल नहीं हूं. पिछले चुनाव में एल के बागवानी ने मुझे कमजोर सदर कहा था, अब वो खुद बागवानी करता घूम रहा है। आप समझने की कोशिश करो! अर्थव्यव्था का जब वैश्वीकरण हुआ है तो भ्रष्टाचार भी तो ग्लोबल होगा न ! तुस्सी इतना तो समझदे होंगे। मनीटेक आलूवाला ने एक रिसर्च की है, जिसमें उसने बताया है कि लाखों करोड़ रुपयों के करप्शन का मतलब है 1.5 ट्रिलियन डालर की GDP तो पक्के की हो गयी और तुस्सी समझों की इतनी ही कच्चे की!

हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!

आरोप नम्बर : 2

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप निष्क्रिय रहे हैं ?

डेविल्स ऐडवोकेट : देश का लाखों करोड़ रुपया विदेशी बैंकों में जा रहा है, देश में लाखों करोड़ रुपयों के घोटाले हर रोज़ सामने आ रहे हैं, और तो और घोटालों के तार आपके दफ्तर से भी जोड़े जा रहें हैं। रिआया दबी ज़ुबान में यह भी कह रही है कि आप जब मुल्क के वज़ीरेख़ज़ाना थे तब भी रिकार्ड तोड़ शेयर घोटाला हुआ था। इस बार तो जीरा भांडिया के टेप सरकार के पास 2009 से ही थे तब आप क्यों मौनी बाबा बनकर बैठे हैं?

आई.एम.एफ. सिंह: हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!

डेविल्स ऐडवोकेट : कमाल है क्या कह रहें है आप?

आई.एम.एफ. सिंह: अब मैं कुछ कहता हूं तो आप कहते हैं कि क्या कह रहें है आप? चुप रहता हूं तो मौनी बाबा! मनीटेक आलूवाला की पहली रिसर्च के बारे में तो मैंने बताया ही है. फिर अर्थशास्त्र की किताबों में भी यही लिखा है। मनीटेक आलूवाला की दूसरी रिसर्च कहती है कि “इंडिया स्टोरी” को कामयाब करने के लिये, अपनी पूंजी को अमेरिका और यूरोप घुमा कर इसी तरह से वाया मारिशस वापस लाया जा सकता है। जिसे आप भ्रष्टाचार कह रहे है, वैश्विक परिदृष्य़ मे उसे अपार्चुनिटिस् कहा जाता है। फिर सबसे बड़ी बात यह है कि “अमेरिका की तरक्की में ही हम सब की तरक्की है।“ ऐसा समझो की जिस तरह सामरिक दृष्टि से कमजोर पाकिस्तान हमारे लिये नुकसानदेह है उसी तरह आर्थिक रूप से कमजोर अमेरिका हमारे लिये ठीक न होगा! “अमेरिका की तरक्की में ही हम सब की तरक्की है।“

आरोप नम्बर : 3

देश में मंहगाई आपके अनर्थ शास्त्र की देन है ?

डेविल्स ऐडवोकेट : विदेशी पूंजी निवेश की जिस औषधि से आप इस देश की गरीबी दूर करने की चिकित्सा कर रहें हैं उसके परिणाम स्वरूप एक दशक में लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं, बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रहा ही, शिक्षा और स्वास्थ तो छोड़िये साग-सब्ज़ियां, दूध आदि जरुरत की चीज़े भी आम आदमी की पहुँच से दूर हो गयीं हैं।

आई.एम.एफ. सिहं : देखिये ऐसा दुष्प्रचार हमारे विरोधीयों की चाल है, किसानों के हमने कर्जे माफ करें है, खेती में होने वाले घाटे को देखते हुये किसानों सलाह दी जाती है कि अपनी जमीन किसी बिल्डर को बेच वह मजदूरी करे। इससे उनका स्वास्थ भी बना रहेगा और हमारे उधोगों को सस्ते मजदूर मिलते रहेंगे। हमारी मरेगा स्कीम इसी दूरदर्शी योजना का परिणाम है! हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!

आरोप नम्बर : 4

आप की आंखों पर अमेरिका का चश्मा चड़ा है ?

डेविल्स ऐडवोकेट : आप पर इलजाम है कि देश की अर्थनीति का सारा जोर इस बात पर है कि 20 करोड़ मध्यमवर्गीय भारतीयों का बाज़ार अमेरिका को कैसे उपलब्ध हो। पहले सीधा गेहूं अमेरिका से आता था वो बन्द हुआ तो अब खाद, बीज और कीटनाशक दवायें सब बहुराष्ट्रीय कंपनियों से खरीदा जा रहा है, देश में शोर मचा है कि हम आत्म निर्भर हो गये। और तो और उस नाभकीय संधि पर आपने सरकार दाव पर लगा दी जो अमेरिका को कई बिलियन डालर का बाजार उपल्ब्ध करायेगी।

आई.एम.एफ. सिहं : देखिये मेरी बात समझने की कोशिश कीजिये। आर्थिक सुधारों की “इंडिया स्टोरी” का सीधा सीधा मतलब है भारत को इंडिया बनना है, आगे चलकर खेती बाड़ी जैसे तुच्छ कामों को अफ्रीकी देशों से करवाना है। ऐसे समझिये कि देश के हर गाँव का सपना क्या है? उसे शहर बनना है। और हर छोटे शहर को दिल्ली-मुम्बई और दिल्ली-मुम्बई को न्यूयार्क-वाशिंगटन! इसीलिये बात घूम फिर के वहीं आ जाती है कि अमेरिका हमारा रोल माडल है, और “अमेरिका की तरक्की में ही हम सब की तरक्की है।“

आरोप नम्बर : 5

आप गरीब आदमी को अनाज बाटने जैसे सवाल पर सुप्रीम कोर्ट से क्यों भिड़ गये ?

डेविल्स ऐडवोकेट : सुप्रीम कोर्ट नें जब यह कहा कि अनाज को गोदाम में सड़ाने से अच्छा है कि उसे गरीबों में मुफ्त बाँट दिया जाये इस बात पर आप सुप्रीम कोर्ट तक से भिड़ गये। क्या आम आदमी सिर्फ वोट माँगने और पोस्टर पर लगने की चीज़ बन कर रह गया है?

आई.एम.एफ. सिंह: इस सवाल का जबाब थोड़ा टेक्निकल है, जिसे एक अर्थशास्त्री ही समझ सकता है न्यायशास्त्री नहीं। जब न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हम अनाज खरीदते हैं, तो वह मूल्य सरकार की बैलेंस शीट में जस का तस ही रहता है. बस उसका स्वरूप नकद रुपये से बदलकर वस्तु का मूल्य हो जाता है। लेकिन जैसे ही उसे सस्ते में या मुफ्त में बेचा जाता है तब सरकारी बैलेंस शीट में उस घाटे को लिखना पड़ता है. जिस कारण सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ जाता है।

डेविल्स ऐडवोकेट : अब सरकार के वित्तीय घाटे के बढ़ने से आप हलकान हुये जा रहें है और गरीब भूखों मर रहा है उसकी कोई चिंता नहीं?

आई.एम.एफ. सिहं : देखिये विश्व बैंक में काम कर चुके एक अर्थशास्त्री के लिये वित्तीय घाटा सबसे बड़ी चिंता का कारण है, वित्तीय घाटा बड़ा दिखेगा, तो विदेशी पूंजी देश में नहीं आयेगी और यदि विदेशी पूंजी नहीं आयेगी तो हम अमेरिका कैसे बनेगें?

डेविल्स ऐडवोकेट : पर विदेशी पूंजी तो यहां नोट कमाने के लिये ही आयेगी कौन सी हमारे देश की गरीबी दूर करने आयेगी ।

आई.एम.एफ. सिहं : हमें नही भूलना चाहिये कि “अमेरिका की तरक्की में ही हम सब की तरक्की है।“ अब राजमाता से बड़ा तो कोई नहीं हो सकता इस दुनिया में! वो तक मानती हैं कि, हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!

डेविल्स ऐडवोकेट : हद है, आपकी चाटुकारिता की ! देश का मीडिया जो अभी तक आप पर लट्टू था वह तक आप की नीतियों पर सवाल कर रहा है, ऐसे में अब आप क्या करेंगे?

आई.एम.एफ. सिहं : हमें पता है कि मीडिया को भी अमेरिका बनना है, उनका GDP पीछे कुछ कम हो गया था पर अभी हमने उन्हें कई सौ करोड़ के सरकारी विज्ञापन जारी किये हैं। आल इज़ वैल! हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!

आज की सुनवाई पर जज साहब का निर्णय :

इस मुक़दमे का फ़ैसला सुनाने के लिये कोई न्यायाधीश नहीं है अदालत में. डेविल्स ऐडवोकेट के अभियोग एवम श्री आई.एम.एफ.सिंह की दलील सुनकर फ़ैसला आपको लेना है. ध्यान रहे कि आपका फ़ैसला मुल्क की सूरत बदल सकता है. और प्रेमचंद जी की मानें तो पंच के पद पर बैठकर न तो कोई किसी का मित्र होता है न शत्रु. तो रखिये हाथ अपने अपने दिल पर और सुनाइये फ़ैसला आज के मुक़दमे पर !

17 comments:

  1. देखिये साहब हमारे देश कि परंपरा ये कहती है कि बड़ी हेसियत रखने वाले लोगों को हर अपराध से बाइज्जत बरी कर दिया जाना चाहिए जैसा कि राहत फ़तेह अली खान साहब के मामले में अभी ताजा ताजा हुआ है इसलिए मैं तो सिंह साहब कि ऊँची पगड़ी का ख्याल करते हुए उन्हें हर आरोप से बाइज्जत बरी करूँगा और आपके ऊपर मुकद्दम चलने कि मांग करूँगा कि आप व्यंग भरे तीर मार कर क्यों लोगों कि आत्मा को आहत करते हैं.

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  2. "हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!"

    सच में यही तो हो रहा है ... एक बेहद मजबूत तरीके से ... आपको नहीं लगता ??


    एक गाना था फिल्म मेरे अपने में ... कुछ लाइन लिखे दे रहा हूँ उसकी ...

    "हाल चाल ठीक ठाक है ... सब कुछ ठीक ठाक है ... BA किया है MA किया ... लगता है वह भी एवे किया ... काम नहीं है वर्ना यहाँ ... आपकी दुआ से सब ठीक ठाक है !"

    सरकार की सब से बड़ी ताकत यही है कि वह यही मानती रहे कि सब ठीक ठाक है जबकि सच्चाई भले ही कुछ भी हो !

    इस लिए यही सच है कि ... "हो रहा भारत निर्माण! हो रहा भारत निर्माण!"

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  3. Samajh me nahee aa raha ki,sir peeta jaye ya hansa jaye!! Kirdaar naye,naye aate hain,kahani wahee purani!Chaltahi rahega,chaltahi rahega....Bharat nirmaan kah lo ya deshka banta dhaar!

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  4. सारी कार्रवाई को मद्दे नज़र रखते हुए यह कहा जा सकता है कि श्री सिंह अपने वर्तमान परिस्थिति में निरर्थकता और विभिन्न शक्लों को रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की मामूली घटनाओं, बातों के प्याज, ओह सॉरी ब्याज से उभारा है। बड़बोलापन उनका चयन भी हो सकता है, विवशता भी। इसलिए संदेह का लाभ देते हुए अदालत उन्हें भारी-इज़्ज़त करते हुए बरी करती है।

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  5. आदरणीय मनोज का कहना सही है ...

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  6. एक बेहतरीन प्रस्तुति , परन्तु पंच के पद पर बैठना और न्याय करना एक अति दुरूह कार्य है ।

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  7. अब कठपुतली के लिए क्या फैसला सुनाये?

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  8. एक बेचारा कब तक झेले, कितना झेले।

    बहुत सम्हाला, लगे रहे रेले पर रेले।

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  9. सबसे पहले अदालत की कारवाही से एक शब्द निकाल जाये की मुंबई वासिंगटन नहीं संघाई बनने वाला है पिछले दो चुनाव मुंबई को संघाई बानाने के नाम पर जीता गया था |

    सारी कवायद देखने के बाद ये तय किया जाता है की कठपुतली को सजा देने से क्या फायदा उसको ऊपर से चलाने वाले और उसकी जगह बोलने वाले को तो कुछ नहीं होगा हम एक को हटायेंगे वो दूसरा ले कर आएंगे और भारत का निर्माण ऐसे ही होते रहेगा |

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  10. चैतन्य जी

    तीन महीने बाद दी बधाई के लिए धन्यवाद आशा है तीन महीने बासी खाना खाने के बाद आप की तबियत ठीक होगी :)

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  11. @ देश के खास लोग.....
    असहमति - दुनिया भर का माल खा पचा लेते हैं लेकिन अदालत में जाते ही रक्तचाप और ह्रदयगति अनियमित होने की शिकायत करते हैं बेचारे।

    GDP-GDP मुझे तो गड़प गड़प की आवाज लगी:)

    हो रहा INDIA निर्माण, हो रहा INDIA निर्माण
    होकर रहेगा जी, सन्नू ते मन्नू दी गड्डी जांदी है छलांगा मारदी.

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  12. आपके लेख के मुताबिक न्यायाधीश की हैसियत में बैठे लोग जाती,धर्म में फंस कर लड़ते रहेंगे और यह कार्यक्रम वैसे ही चलता रहेगा.

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  13. @ संवेदना के स्वर बंधुओ ,
    'सुनाइये फ़ैसला'...

    फैसला तो बहुत पहले से लिया हुआ है पर दिक्कत ये है कि मेरे अकेले वोट से इन लोगों का कुछ बनता बिगडता नहीं है !


    [ बेहतर शैली में बेहतर प्रस्तुति ]

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  14. फैसला है कि अभियुक्त को सजाए मौत दिया जाय, उससे कम सजा उसके गुनाह के लिए कम ही होगी। तो बंधुबर आने वाले लोकसभा चुनाव में आईएमएफ सिंह को सजाए मौत दिया जाय,,,,


    जय हो
    आपने हिलाकर रख दिया, करारा व्यंग, मुंह पर कालिख पोत दी,,बहुत बहुत साधूवाद।

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  15. एक आदमी था। वो भूखों मर रहा था तो उसने आत्‍महत्‍या की कोशि‍श की, पक़ड़ा गया। मुकददमा चला, इस बीच जज, संतरी, वकीलों की दालरोटी चली। वो आखि‍रकार जेल में सड़ सड़ कर अपने आप मर गया।

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