समीर लाल का नाम ज़हन में आते ही राजेश रेड्डी का एक शेर सामने आ जाता है.
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह,या तो सबकुछ ही इसे चाहिये, या कुछ भी नहीं.
ये एक ब्लॉगर हैं, कवि हैं, कथाकार हैं, व्यंग्य लेखक हैं, उपन्यासकार हैं, संस्मरणकार हैं, यात्रा वृत्तांत लेखक हैं और अब एक उपन्यासिका लेखक- “देख लूँ तो चलूँ.” किसी ने कहा कि यह वास्तव में उनके ब्लॉग पोस्ट का संकलन मात्र है. मुझे तो लगा कि वास्तव में यह एक उपन्यासिका है जिसके विभिन्न अंश वे ब्लॉग पर हमसे साझा करते रहे, समय समय पर.
अपनी तीन घण्टे की (आती जाती मिलाकर) मेट्रो यात्रा के दौरान इसको पूरा पढ़ गया. और शायद इस उपन्यासिका को पढ़ने का सही तरीका और जगह भी यही है. बिल्कुल सिम्यूलेटेड माहौल में. उपन्यासिका के दृश्य मेट्रो ट्रेन की खिड़की से भागते नज़र आते हैं और किरदार आपके आस पास बिखरे हुए. कनाडा हो या भारत, सब एक जैसा लगता है. भागता हुआ, आपसे पीछा छुड़ाता हुआ. बस उसी पीछा छुड़ाते हुये समय, दृश्य और भाव को पकड़ने की और उसे देखने की यात्रा है “देख लूँ तो चलूँ.”
शायद खुशवंत सिंह ने लिखा था कि एक बार वे विदेश में कहीं पहली बार गये. जहाँ उन्हें जाना था, वहाँ से कोई उनको ले जाने नहीं आया. उन्हें बताया गया था कि कोई भी टैक्सी वाला ले जाएगा. और टैक्सी का किराया इतना होना चाहिये. वो टैक्सी पर बैठ गये और निगाह मीटर पर जमा दी. टैक्सी वाले ने रास्ते में उनसे अपने घर, अपनी पत्नी से मिलवाने की गुज़ारिश की. वो कहने लगा कि मेरी पत्नी ने आज तक कोई सरदार नहीं देखा है, और वो देखना चाहती है. सिंह साह्ब ने कह दिया कि उन्हें ऐतराज़ नहीं है, मगर वो मीटर पर इसके एक्स्ट्रा पैसे नहीं देंगे. टैक्सीवाला ले गया उन्हें अपने घर, पत्नी से मिलवाया और फिर उनको छोड़कर आया. किराया उतना ही हुआ जितना उनको उनके दोस्त ने बताया था. जब वो किराया देने लगे तो टैक्सी वाले ने मना कर दिया. बोला, आज मेरी पत्नी के चेहरे पर जो खुशी आपसे मिलकर आई है, वो इस बिल से कहीं ज़्यादा है.आपने मेरा मेहमान बनकर मुझे दुगुना किराया दे दिया. खुशवंत सिंह ने कहा कि मुझे लगा कि मैं सारे रास्ते टैक्सी का मीटर देखता रहा और मैंने शहर के नज़ारे तो देखे ही नहीं,जो हर नए व्यक्ति का पहला परिचय होता है उस शहर के साथ.
समीर लाल की यह उपन्यासिका वो ग़लती नहीं दोहराती. एक हाईवे की लम्बी यात्रा पर शायद पहली बार वे अपनी हमसफर के बग़ैर निकले हैं और तब उनको दिखता है कि उनके साथ तो सारी दुनिया चल रही है. और साथ चल रहा है ख़ुद समीर लाल. जो उनसे बातें करता है. और बताता है कि तुम कनाडा में रहते हो मगर मैं हिंदुस्तानी हूँ और तुम्हारे साथ साथ 120 मील फ़ी घण्टे की रफ्तार से चल रहा हूँ. वो बातें करता है, पोंगा पंडितों की, स्वार्थी बच्चों की, बूढ़े माँ बाप की, उनकी उम्मीदों की, कानून तोड़ने वालों की और कानून के पालन करने वालों की, शिष्ट झगड़े की और बनावटी देशप्रेम की, प्यारे परिंदों के चहचहाहट की और बिल्ली का ग्रास बनने की, भ्रष्ट राजनेताओं की और देश की बदहाली की, बिगड़ी सड़कों की और ऊबड़ खाबड़ रास्तों की. पीछे पीछे आरही कोई महिला को भी देखता है और देखता रह जाता है. सब कुछ मामूल के हिसाब से घटता हुआ और साथ ही लगातार चलने वाली बातचीत. यह सब बातें कनाडा में रहने वाले समीर और जबलपुर के समीर के बीच होती है. और उपन्यासिका पढने वाला मानो पिछली सीट पर बैठा उनकी बातें सुनता जाता है चुपचाप.वे बातें जो सीधा दिल में उतरती जाती है.
भाषा बिलकुल बातचीत वाली. लगता ही नहीं कि कोई दुरूह साहित्य पढ़ रहा है कोई! कहीं कहीं पर आध्यात्म और दर्शन का पुट भी देखने को मिलता है जब वो ओशो की तरह जीने की कला छोड़कर कहने लगते हैं कि मैं मृत्यु सिखाता हूँ. उपन्यासिका के कुछ अंश दिल को छू जाते हैं, कुछ व्यथित करते हैं, कुछ गुदगुदाते हैं, कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं. एक हाईवे की ड्राईव के बहाने इन्होंने पूरा भारत दर्शन और भारतीय महात्म्य समझाया है. मेरी मानें तो कभी लॉन्ग ड्राईव पर यह उपन्यासिका पढ़कर देखिये, स्टडी में पढ़ने से ज़्यादा मज़ा आएगा.
आख़िर में गुलज़ार साब की चंद लाईनें याद आ रही हैं
इक बार वक़्त से, लम्हा गिरा कहीं
वहाँ दास्ताँ मिली, लम्हा कहीं नहीं,
थोड़ा सा हँसा के, थोड़ा सा रुलाके
पल ये भी जाने वाला है.
वक़्त से टूटे, वे लम्हें जो कभी आपके जीवन का हिस्सा नहीं होते, भागते जाते हैं, छूटते जाते हैं. कभी उन्हें रोककर प्यार से बतियाइये तो जो दास्तान सुनाई देगी, उसी का नाम है “ देख लूँ तो चलूँ.”
30 comments:
प्रवीण पाण्डेय जी की पोस्ट 'बहता समीर' याद आई.
abhi mauka nahi mila padhne kaa
पढ्में की जिज्ञासा बढा दी… सुरूचिपूर्ण व्याख्या।
जैसे जैसे ब्लागस पर इस किताब के बारे पढ रहा हूँ इसको पढने की जिज्ञासा उतनी ही बढ रही है।
एक महीना हो गया इसे चले हुए, अभी तो पहुँच नही पायी (वाह रे डाक विभाग)
समीक्षा अच्छी लगी
समीर जी की लेखन शैली में गज़ब की रोचकता है. और मान गए आपको आपने भी पूरे दिल से समीक्षा कर डाली है.
बहुत सुन्दर. .
पढ़ने की ललक और बढ़ गई !
यात्रा के समय क्या देखते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मनःस्थिति क्या है। इस यात्रा में पूर्ण उन्मुक्त मानसिकता थी समीरलालजी की।
समीक्षा इसे कहते हैं। जो, पाठक को उस पुस्तक को पढने की, और जल्द से जल्द पढने की रूचि जगा दे।
बेहतरीन समीक्षा।
आपने दो-दो शे’र सुनाया तो एक तो बनता है ना बड़े भाई ...
क़तरे में दरिया होता है
दरिया भी प्यासा होता है
मैं होता हूं वो होता है
बाक़ी सब धोखा होता है
पुस्तक की समीक्षा बहुत अच्छी लगी । आपने बहुत दिल से लिखा है । पढ़ते समय ऐसा लगा जैसे मैं स्वयं भी हाई-वे पर हूँ और पुस्तक पढ़ रही हूँ। पुस्तक में वर्णित हर लम्हा आँखों के सामने जीवंत हो उठा । इस बेहतरीन समीक्षा के लिए आपका आभार ।
mauka nahi mila ji padhne ka
समीक्षा बहुत ही अच्छी है.
लगता है आधी किताब तो समीक्षायों में ही पढ़ लूंगा.
शुक्रिया.
Ab to ye upanyasika padhke hee chain milega!
सादर सस्नेहाभिवादन !
सम्वेदना के स्वर पर आए इतना अंतराल हो गया कि एक झिझक-सी अनुभव हो रही है … आशा है , अनुपस्थिति के कारण रुष्ट नहीं हुए होंगे … हालांकि आपका भी शस्वरं की ओर इस बीच आना नहीं हुआ …
जाल नाम शायद यहीं सार्थक होता है … उलझ जाते हैं इधर -उधर … :)
कुछ बात पोस्ट से संबंधित हो जाए …
देख लूं तो चलूं – लम्हों की दास्तान के द्वारा आपने पुस्तक का सार संक्षेप में दे दिया है । वाकई समीक्षा का आपका अंदाज़ भा गया ।
अभी चार - पांच दिन पहले तो समीर जी ने डाक पता भेजने को कहा और समीर जी की दोनों पुस्तकें आज डाक से मिल भी गई है ।
आपकी समीक्षा पढ़ने के बाद लगता है , पहले इस पुस्तक को प्राथमिकता से समय देना होगा …
सुंदर पोस्ट के लिए आभार और बधाई !
♥बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सलील जी
आपसे मुलाकात के आत्मिक क्षण साथ सहेज कर ले आये हैं. एक सुखद अनुभूति है साथ साथ.
यह बेहतरीन एवं उम्दा समीक्षा आपके स्नेह को दर्शाता है कि मेरी साधारण लेखनी इतनी उत्कृष्ट जान पड़ रही है.
सदैव आभारी रहूँगा.
सुन्दर समीक्षा!
मैं भी इस पुस्तक को पढ़ने में लगी हूँ, काफी रोचक प्रस्तुति है समीर जी की.
समीर लाल की कृति के कई अछूते पहलुओं पर आपने प्रकाश डाला , समीर लाल जैसे सरल स्वभाव के लोग इस सम्मान के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं ! शुभकामनायें आपको !
आपकी इस पुस्तक परिचायिका(पता नहीं यह सही शब्द है भी या नहीं? मतलब इंट्रोडक्टरी ) ने मुझमें पुस्तक को पढने की तत्क्षण लालसा बढ़ा दी है .....रही किस्सागोई के उस्ताद अपने खुशवंत दादा के संस्मरण की बात तो उनकी बातों का क्या कहना -मौजी हैं मौज लेते हैं .....कभी कभी नारी नितम्बों पर चिकोटी काटने और अक्सर नारी पात्रों से मिलन की उनकी आकांक्षाओं के विवरण यथार्थ का दामन छोड़ने लग जाते हैं ...अब अपने समीर भाई कहाँ इतने अफ़साने -मुन्तजिर हैं ? या हैं ?
बेहतरीन समीक्षा।
ये सच है के इस पुस्तक के अधिकांश अंश उनके ब्लॉग पर हम पढ़ चुके हैं लेकिन इस पुस्तक को पढ़ते हुए कभी नहीं लगता के इसे दुबारा पढ़ रहे हैं...कथा का तारतम्य इस तरह से बनाये रखा है के पाठक बिना इसे ख़तम किये उठने की कोशिश भी नहीं कर पाता...मानव मन की गुत्थियों को जिस तरह वो खोलते चलते हैं उसे देख कर उनकी लेखनी पर रश्क होता है...कमाल के इंसान हैं तभी कमाल का लिख पाते हैं...
नीरज
बहुत ही सहजता से आपने लिखा है इस पुस्तक के बारे में. पुस्तक पढ़ने का आनंद कम्प्यूटर स्क्रीन पर कहाँ?
पुस्तक तो अभी नहीं पढ़ी पर आधे से ज्यादा किस्से सभी ने समीक्षा में पढ़ा दिए है और कुछ ब्लॉग पर पढ़ा चुकी हूँ | समीर जी की किताब की कई समीक्षाए पढ़ चुकी हूँ सब एक दुसरे से अलग होते है सबकी अपनी लेखन शैली का उसमे प्रभाव होता है आप की भी समीक्षा दूसरो से अलग है |
आपकी समीक्षा पर समीर लाल जी के खुद के कमेन्ट के बाद कहने को क्या शेष रहा !
बहुत ही crisp और रोचक समीक्षा है… जिज्ञासा बढाती है उपन्यासिका की तरफ……
बेहतरीन समीक्षा
कांग्रेसी नेता इस बात का जी तोड़ प्रयत्न कर रहे हैं कि किसी प्रकार से सत्ताधारी परिवार (दल नही परिवार) की छवि गरीबों के हितैषी के रूप मे सामने आए, इसके लिए वो छल छद्म प्रपंच इत्यादि का सहारा लेने से भी नही चूकते। इसकी जोरदार मिसाल आपको नीचे के चित्र मे मिल जाएगी
http://bharathindu.blogspot.com/2011/03/blog-post.html?showComment=1299158600183#c7631304491230129372
khushwant singh ji bala kissa pasand aya.
पढ़ी है मैंने ये किताब .. समीर भाई की लेखनी का जादू कमाल कर रहा है ...
ये फोटो मैंने आपके लैपटॉप पे देखी थी....और बाकी किताब की बात, तो पढ़ने वाला हूँ कुछ दिन में...मेरे घर में किताब पहुँच गयी है, बस मुझे मंगवाना है वहां से :)
बहुत ही बेहतरीन समीक्षा है ......
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