सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Thursday, June 6, 2013

रावण

बस यूं ही!! बैठे-बैठे बातचीत में हमने एक साथ सोचा कि “संवेदना के स्वर” बहुत दिनों से मौन पड़े हैं. क्यों न इसे पुनः मुखर किया जाए.

बस यूं ही!! याद आया दो-ढाई साल पहले यूं ही चैतन्य जी ने मेरे पास कुछ पंक्तियाँ लिख भेजीं, व्यवस्था से नाराज़ होकर. मैंने उसमें अपनी चंद लाइनें जोड़ दीं.

बस यूं ही!! बैठे-बैठे एक कविता बन गई.
बहुत दिनों तक हमने साथ-साथ मिलकर कई आलेख लिखे, लेकिन मिलकर कविता लिखने का यह प्रयास...!! अब आप ही बताएँगे!!

******

सोने की लंका में बैठा मैं
स्वयम को विभीषण सा पाता था,
अपने देश को रावणों से घिरा देख,
कितना विवश
प्रतीक्षारत
कि कोई राम
अपनी वानर सेना लिये आयेगा
और तब
इंगित कर रावण की नाभि की ओर
खोल सकूँगा समस्त छिपे रहस्य!

युगों की प्रतीक्षा के बाद,
राम आए, 
अपनी वानर सेना के साथ
किंतु राम ने आने में बड़ी देर कर दी,
घर का भेदी कहलाने का कलंक
पोंछ दिया मैंने मस्तक से
सोने की चमक भाने लगी मुझे
और धीरे-धीरे मैं बन गया
दिति पुत्र
रावण बन्धु
दैत्यराज विभीषण!

36 comments:

Padm Singh said...

अद्भुद है ...

Arvind Mishra said...

एक नवीन दृष्टि -राम भी यूज हो गए :-) साधुवाद !

kshama said...

Behad sateek...mere blogpe do aalekh aapke intezaar me hai!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

शानदार,बहुत उम्दा सटीक प्रस्तुति,,,

RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )

mridula pradhan said...

manna padega......vishay aur shabd donon hi lazabab......

प्रवीण पाण्डेय said...

क्या देखें, देश या कुल।

Arun sathi said...

मथ के रख दिया जी, ओह ओह ओह, कटु यथार्थ......

Arun sathi said...

मथ के रख दिया जी, ओह ओह ओह, कटु यथार्थ......

देवेन्द्र पाण्डेय said...

राम आए कहाँ!

आवन कह गये, अजहु न आये
रावण खैर करे...

राक्षस कुल में जन्म लियो है
कब तक वैर करे..

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

भाई देर इसी तरह अंधेर का कारण बनती है । एक अलग व यथार्थपरक विचार । अभिव्यक्ति भी । संवेदना के स्वर अब सुनाई देते रहें ।

Smart Indian said...

सुंदर, सटीक और सामयिक!

रचना दीक्षित said...

विभीषण का दैत्यराज बनना स्वाभाविक ही है. बिना आलंबन टिके रहना कहाँ आसान है.

आचार्य परशुराम राय said...

Change in legendary incident has created a good sense of humor and depth in meaning. At present being Hyderabad, I don't have Devanagari script in the computer I am using.

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत खूब लिखा | जय श्री राम

Apanatva said...

kya sanyog hai ek arase se pad rahee pustak
( VAYUM RAKSHAMAH AACHARYA CHATURSEN SHASTREE JEE KE LIKHE UPANYAS KO JO MYTHOLOGY KO SAMETE HAI AUR JO RAVAN PAR AADHARIT HAI ) AAJ HEE POOREE HUEE HAI .
aur sakshatkar ho gaya ise kavita se... sunder prayas
tum logo ka apanapan bus din dugna ratt chougana bade aisee aasheesh hai meree .

Pyar Ki Kahani said...

Aankhon Ke Aansoo Ab Pani BanKe Behne Laga Mano Barsaat Ho Rahi Hai. Thank You For Sharing.
Pyar Ki Kahani

Pyar Ki Kahani said...

Aankhon Ke Aansoo Ab Pani BanKe Behne Laga Mano Barsaat Ho Rahi Hai. Thank You For Sharing.
Pyar Ki Kahani

Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता said...

oh

Smart Indian said...
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Smart Indian said...

काजल की कोठरी में कइसो हू सयानो जाय, एक लीक काजल की लागी है, पै लागी है ...

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन: कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

मुकेश कुमार सिन्हा said...

यूं ही बहुत कुछ कह दिया

ब्लॉग बुलेटिन से यहाँ पहुँचना अच्छा लगा :)

Satish Saxena said...

संवेदना के स्वर अभी भी मौन क्यों ?
लिखते रहें !!

soni garg goyal said...

दो बार पढ़ी तब समझ आयी ! अगली बार ऐसा कुछ भी लिखने से पहले हम जैसो का भी दयां कर लिया कीजिये !

Suman said...

मिलाजुला बढ़िया प्रयास है,आज के संदर्भ में सटीक रचना है !
घर का भेदी कहलाने से ज्यादा अपने भाई के रंग में रंगना उचित लगा होगा बिभीषण को :)

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_21.html

जसवंत लोधी said...

शुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in

अजय कुमार झा said...

"आदरणीय श्रीमान |
सादर अभिवादन | यकायक ही आपकी पोस्ट पर आई इस टिप्पणी का किंचित मात्र आशय यह है कि ये ब्लॉग जगत में आपकी पोस्टों का आपके अनुभवों का , आपकी लेखनी का , कुल मिला कर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है , हिंदी के हम जैसे पाठकों के लिए .........कृपया , हमारे अनुरोध पर ..हमारे मनुहार पर ..ब्लोग्स पर लिखना शुरू करें ...ब्लॉगजगत को आपकी जरूरत है ......आपकी अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में ...और यही आग्रह मैं अन्य सभी ब्लॉग पोस्टों पर भी करने जा रहा हूँ .....सादर "

सुशील कुमार जोशी said...

खट खट । हम भी पहूँच गये खटखटाने :)

Aman Shrivastav said...
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Aman Shrivastav said...
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Aman Shrivastav said...
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123456 said...

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name anirudh said...


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AjayKM said...

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