सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Tuesday, August 10, 2010

एक और भूली बिसरी ग़ज़ल

हमारी एक भूली बिसरी ग़ज़ल की अगली कड़ी के रूप में यह ग़ज़ल आपकी नज़र.
एक बार पुनः समर्पित है यह गज़ल जनाब तुफ़ैल चतुर्वेदी को,जिनकी प्रेरणा से इस ग़ज़ल का जन्म हुआ.


बीमार से मिलने कोई बीमार तो आए,
अच्छा भला नहीं, न सही, यार तो आए.

ता-उम्र सो सका न मैं बिस्तर पे गुलों के,
अब नींद आ रही है, कोई ख़ार तो आए.

सूती के सिले कपड़ों में कितनी हसीन थी,
ख़्वाहिश है, वो रेशम कभी उतार तो आए.

ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.

ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.

मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गई
अल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए.

दहशत के खेल में हुई क़ुरबान ज़िंदगी
जल्लाद कई, कोई जाँनिसार तो आए.

कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए.

32 comments:

kishore ghildiyal said...

bahut hi badiya va behatrin

honesty project democracy said...

बहुत ही संवेदनशील गजल ,शानदार प्रस्तुती..

sonal said...

बिलकुल छा गई ये ग़ज़ल ..एक एक शेर गज़ब का
मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गईअल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए.
बस हम भी बहार का इंतज़ार कर रहे है ...

Satish Saxena said...

दिल से जो सुन चुके कोई दिलदार तो आये !
उम्मीद है कि इस जंगल में कुछ दिलदार तो मिलेंगे ! हार्दिक शुभकामनायें!

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा नज़्म ! ख़ास कर इन शेरो ने तो दिल ही जीत लिया !

ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.


ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.


दहशत के खेल में हुई क़ुरबान ज़िंदगी
जल्लाद कई, कोई जाँनिसार तो आए.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

लिजिये दिलदार तो आ ही गये . बेहतरीन गज़ल

स्वप्न मञ्जूषा said...

ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.

bahut hi khoobsurat..
bahut pasand aayi hai..
aapka shukriya..tahe dil se..

संजय @ मो सम कौन... said...

खिंचे चले आये जी हम तो, फ़ैसला आपका लो जल्लाद बढ़ गये कि दिलदार बढ़ गये।

मनोज कुमार said...

हालाकि इस ग़ज़ल के एक एक शे’र को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा। फिर भी
ता-उम्र सो सका न मैं बिस्तर पे गुलों के,
अब नींद आ रही है, कोई ख़ार तो आए.
और
ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.
बेहद पसंद आए।
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है। आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत खूब...
यह शेर तो गज़ब है..

ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.
....
कहीं दर्शन, कहीं दर्द झलकता है
संवेदना का स्वर यहाँ झलकता है.
..बधाई.

nilesh mathur said...

बेहतरीन गज़ल!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए..

बहुत खूब ...सुन्दर गज़ल..

Rohit Singh said...

किसी के आने कि इतनी बेकरारी क्या कहने....
इतने रुप बदल बदल के हो रहा है इंतजार
हर बार इंतजार औऱ आऱजू कि कोई तो आए
ईमान भी बेंचू, खिंजा में भी कर रहे हैं गुजारा
वो कैसे भी आए, किसी भी तरह सही पर आए...

कहते हैं कि दिलदार के इंतजार में तो बिरादर आखिर समय भी आंखे खुली रह जाती हैं.

Udan Tashtari said...

क्या बात है..बहुत उम्दा!

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वर यदि संवेदना के हों तो हम सदैव प्रस्तुत हैं श्रोता बन।

नीरज गोस्वामी said...

सलिल जी काश आप आज सामने होते तो इस ग़ज़ल के लिए आपको गले लगा लेता...भाई क्या ग़ज़ल कही है...सुभान अल्लाह...एक एक शेर बेजोड़ है...
ता-उम्र सो सका न मैं बिस्तर पे गुलों के,
अब नींद आ रही है, कोई ख़ार तो आए.
वाह...खार-ओ-गुल को नए अंदाज़ में पेश किया है आपने...

ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए.
अलग अनूठी कहन के चलते बेहतरीन शेर बन गया है ये...वाह.

कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए
संवेदना के स्वर का प्रयोग अद्भुत है और अपनी मिसाल आप है...

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...
नीरज

सम्वेदना के स्वर said...

@ श्री नीरज गोस्वामीः
गुरुदेव आपका शब्द-शब्द आशीष है हमारे लिए... कृतार्थ हुए!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Salil sir!! bahut badhiya......waise to ham iss layak nahi ki aapke post pe comment kar saken........lekin achchha laga padh kar!!

Parul kanani said...

behad nayab ghazal..reshmi khwahish ka khayaal gajab hai :)

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah....
mazaa aa gaya bhai.....

kshama said...

Aapki har dua qubool ho!
Page load error ke karan comment post nahi ho pa raha hai! Pata nahi abke bhi hoga ya nahi!
Aur aapki shikayat! Mai aapki follower hun phirbhi post kee ittela milni band ho gayi aur mujhe laga aapne likhahi nahi! Bahut sharminda hun!Ab dobara follow karti hun.
"Bikhare Sitare" to poora aapke liye punah prakashit kiya! Use ek dinbhi ab adhik chodna khatrese khali nahi!Aaj aakhari kadi post kee hai.

Sumit Pratap Singh said...

jhakaas gazal hai janaab...

hem pandey said...

दहशत के खेल से निज़ात दिलाने के लिए जाँनिसार आयेगा नहीं , पैदा करना पड़ेगा |

पूनम श्रीवास्तव said...

salil jo bahut ,bahut ,bahut hi khoobsurat gazal samvedanshilata liye hue.behatreen.
ek baat aur aap yadi bin bulaaye mehamaan bankar bhi mere ghar par aayenge to muhje hardik khushi hogi.ab ye mehmaan to dhithai par utar aaya tha.agar shalinta se ek jagah par baitha rahta to mai yahi sochti ki khud b- khud bakhud vapas chala jaayega.aakhir mujhme bhi samvedan shilta to hai hi jo ek naari ka khas gun hota hai.ye kadam to mujhe majburivash uthana pada.
aapka swagat hai.
poonam

kshama said...

Page load error ne bada dukhi kar diya! Khair!
Email ID:
kshamasadhana8@gmail.com

soni garg goyal said...

ek bahut hi umda aur achchi gazal .......

वर्तिका said...

aainaa to aapki har post humesha hi dikhaati hai par yeh andaaz aur bhi accha lagaa... aapke sher to padhne ko mil jaate hain aksar kahin kahin... par poori ki poori gazal aaj pehli baar padhi ..

"ठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए."... so true... aaj yunhi mumbai mils ke band hone par bani film "city of gold" dekhi thi.. so ab yeh sher aur bhi zahan mein atak gaya hai...

"मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गईअल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए."...aur iss sher ne to sab ko muskuraane pe mazboor kar diyaa hogaa..... haan muskaan ke peeche ke vichaar har kisis ke apne rahe honge... :)

दिगम्बर नासवा said...

ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए...

बहुत खूब ... कमाल की ग़ज़ल है .. हर शेर लाजवाब ... आज कल ईमान सारे आम बिक रहा है ...

कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए
दिल ले गया ये शेर ...

Arvind Mishra said...

एक से बढ़कर एक .....बधाई !

सुज्ञ said...

चैतन्य जी,
बहूत ही मार्मिक गज़ल है।

प्रवीण शाह जी इस प्रश्न का हल ढुंढ रहे है।

ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.

स्वप्निल तिवारी said...

uff,......ye ghazal padhne se rah gayi ... bemisaal hai ....behtareen sher laga

सूती के सिले कपड़ों में कितनी हसीन थी,
ख़्वाहिश है, वो रेशम कभी उतार तो आए

ye sher mera khayaal hai apne hindustaan pe jyada fit hota hai ... hum ek roti aur vada paav ko chhod kar ek burgery sabhyata kee or badh chuek hain .. aur yahi resham utarna hoga...


ईमान अपना बेचने निकला है वो घर से
बाज़ार मिल गया है, ख़रीदार तो आए.


khareedaar ...haan aaj kal thode chalak ho gaye hain ...sting operation ka darr jo rehta hai ..

मेहमान बनके आई थी जो, बस के रह गईअल्लाह! ये ख़िज़ाँ टले, बहार तो आए.

khijaazn ho gaye angrezi saltanat ho gayi ...heheh ....shandaar sher

कब से खड़े हैं राह में ‘सम्वेदना के स्वर’
दिल से जो सुन सके, कोई दिलदार तो आए

aur maqta to chamtakaar lagtahai mujhe... itna bada takhallus kaise aasaan ho jata hai aap ke istemal karte hi... shandaar ehsaas ke sath khatm hui ghazal .....hatsssssss offfffffffffffff

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