पिछले दिनों ईवीएम के दुरुपयोग के सन्दर्भ में नेट पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर हमने दो बार चर्चा की, यहाँ और यहाँ . इसके अलावा, गाहे-बगाहे इस विषय पर मीडिया में कई खबरें आती रहीं। ईवीएम में विवादास्पद सुरक्षा खामियों को उजागर करने वाले हरि प्रसाद के जेल जाने की खबरों के बीच यह भी सुनने को मिला की चुनाव आयोग ने इन मशीनों को फूल-प्रूफ बताया है।
इस बीच आज सुबह देश के दो प्रमुख समचार पत्रों में ईवीएम के सन्दर्भ में प्रकाशित दो अलग अलग खबरों ने एक बार फिर चौंका दिया। यह दो बड़ी ख़बरें इस प्रकार हैं :-
कॉन्ग्रेस ने गुजरात राज्य निर्वाचन आयोग से यह यह शिकायत की है कि म्युनिसिपल चुनावों में भाजपा ने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की है ताकि चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सके.“विश्वस्त सूत्रों से पता चला है, कि भाजपा फिर आज होने वाले तालुक्का/ ज़िला पंचायत चुनाव परिणामों में हेर फेर करने की चेष्टा कर रही है. इस हेरा फेरी के लिए ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने हेतु भाजपा ने लैपटॉप से लैस कई टेक्नोक्रैट वहाँ भेजे हैं.” गुजरात कॉन्ग्रेस के सचिव गिरीश परमार ने मुख्य चुनाव आयुक्त को दिए एक ज्ञापन में कहा.परमार ने कहा, “चुँकि EPROM (Erasable Programmable Read-only Memory) को आसानी से ब्लू टुथ तकनीक अथवा एक पोर्ट सीरियल डाटा केबल से प्रभावित किया जा सकता है, अतः 100 मीटर की परिधि में कोई भी लैपटॉप या कम्प्यूटर को ले जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये.”आज कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता मोहन प्रकाश ने अपनी पार्टी के इस “यू टर्न” पर बचाव की मुद्रा में यह कहा कि भाजपा का आरोप “बिना साक्ष्य के नकारात्मक” (Negative without evidence) था, जबकि कॉन्ग्रेस के पास साक्ष्य मौजूद हैं. प्रकाश के अनुसार, एक चुनाव बूथ पर भाजपा के पक्ष में 111 वोट दर्ज़ हुये इस ईवीएम में, जबकि वहाँ मात्र 44 लोगों ने मतदान किया. एक अन्य बूथ पर, जब एक मतदाता ने मतदान के लिए बटन दबाया तो एक अन्य उम्मीदवार के सामने की बत्ती जल गई.भाजपा ने इसी माह हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में सभी दलों का सफाया कर दिया था. आज वहाँ पंचायत और नगर निगम के चुनाव हुए.
और दूसरी दैनिक जागरण सेः
वाशिंगटन। भारतीय शोधकर्ता हरि कृष्णा प्रसाद वेमुरू को भारत में इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीन [ईवीएम] में खामी का दावा करने पर भले ही जेल जाना पड़ा लेकिन अमेरिका में इसके लिए उन्हें एक प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जाएगा। सैन फ्रांसिस्को स्थित शीर्ष नागरिक स्वतंत्रता संगठन 'इलेक्टॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन' ने हरि कृष्णा को वर्ष 2010 का पायनियर अवार्ड देने की घोषणा की है।संगठन के एक बयान में कहा गया है, 'हरि कृष्णा प्रसाद वेमुरू एक भारतीय शोधार्थी हैं जिन्होंने हाल ही में ईवीएम में सुरक्षा खामियों को उजागर किया था। भारतीय चुनाव प्रणाली में इस्तेमाल हो रही ईवीएम की पहली स्वतंत्र सुरक्षा समीक्षा के लिए उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी। उन्हें बार-बार पूछताछ का सामना करना पड़ा और राजनीतिक उत्पीड़न का शिकार बनाया गया।' यह पुरस्कार 1992 से दिया जा रहा है। हरि कृष्णा के साथ इस साल यह पुरस्कार पारदर्शिता कार्यकर्ता स्टीफन आफ्टरगुड, ब्लॉगर पामेला जोंस और जेम्स बॉयल को भी मिलेगा। इन सभी को 8 नवंबर को सैन फ्रांसिस्को में एक समारोह में यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
चुनाव प्रक्रिया किसी भी लोकतंत्र के लिये थर्मामीटर का काम करती है, जिससे जन-अपेक्षाओं के तापमान का पता चलता है। इस प्रक्रिया से देश की पंचायत (संसद) चुनी जाती है और फिर देश के संसाधनों को इसके हवाले कर दिया जाता है, इस आशा में कि यह इन संसाधनों के समुचित दोहन से प्रत्येक देशवासी को लाभ मिलेगा।
परंतु यदि थर्मामीटर की गुणवत्ता ही संदेहास्पद हो तो मामला गम्भीर हो जाता है. बीमार को सिंहासन और भले चंगे को बीमार घोषित कर दिया जाता है।
लोकतंत्र के इस थर्मामीटर, “ईवीएम” की कार्य कुशलता पर इस बार जो सवाल खड़े किए गये हैं वो बहुत महत्वपूर्ण इस कारण हो जाते हैं क्योकिं सत्तारुढ दल ने भी माना है कि ईवीएम में गड़बड़ झाला है। आप क्या कहतें है ?
12 comments:
भारत में कुछ भी हो सकता है..
तकनालॉजी का उपयोग किसी भी क्षेत्र में हो वह पारदर्शी और उपयोगी होना चाहिए। ईवीएम ने चुनाव प्रक्रिया को आसान बनाया है इसमें तो कोई शक नहीं होना चाहिए। उसकी जो खामियां हैं उन्हें दूर किया जाना चाहिए। और यह आज के युग में कतई असंभव नहीं है।
लोकतंत्र सदा सरकारी मशीनरी पर नाचता है - जब तक कोई बहुत बड़ा उलट फिर न हों.
इ वी ऍम पर कल तक भाजपा कह रही थी और कोंग्रेस नाक सिकोड़ रही थी....
आज कांग्रेस कह रही है.
ek to machine hai upar se sarkari ..bharose ka sawaal to pahle se hi nahi hai ...:P ... kai desho me waise bhi EVM ko inhi gadbadiyon ke chalte manyta nahi di gayi hai ,...yahaan kyun hai yahi samjh nahi aata...aadmi vote dene bhi jaye to kis bharose..
हम तो यही आशा करते हैं कि अगर कुछ गड़बड़ियां हैं तो ज़ल्द ही दूर हो जाएंगी। इसमें कोई शक नहीं कि इसने जटिल चुनावी प्रक्रिया को सरल किया है।
आपके ब्लाग में इस विषय में पहले भी चर्चा हुई है !
कांग्रेस /भाजपा /अन्य दलों की जो भी शिकायतें है उन्हें दूर किया जाना चाहिये !
दिल्ली में पिछले चुनाव में मुझे ई वी एम् मशीन को करीब से देखने और समझने का मौका मिला था.. तकनीकी दृष्टि से भी.. उस से कम ही संभावना है कि इस से छेड़ छाड़ किया जाय.. यदि बिल्कुल ही इसकी मेमोरी को डिलीट करके नए सिरे से वोटिंग ना की जाय.. और ऐसा आज के समय में बड़े पैमाने पर संभव नहीं दिखता.. कुछ जगह मशीन चलने में ... इसे अंतिम रूप से शील करने में दिक्कत आ सकती है.. लेकिन उस से वोटिंग प्रभावित नहीं होता.. हाँ हैण्डलिंग थोड़ी जटिल जरुर है.. इसलिए अधिक घबराने की जरुरत नहीं है.. और बी ई एल ने इसे बनाया है .. जो कि देश की सर्वश्रेष्ठ इलेक्ट्रोनिक कंपनियों में एक है.. अपने घरेलु इन्वेंसन पर भी भरोसा रखिये...
ना जाने क्यों हमारे यहाँ हर चीज़ में खोट निकल ही आता है... या यूं कहें की निकाल लिया जाता है....
@ अरुण रॉय जी एवं @ मोनिका जी -
बराय-मेहरबानी, इस लिंक को देखने का कष्ट करें…
1) http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/08/evm-hacking-hari-prasad-arrested.html
2) http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/06/evm-rigging-elections-and-voting-fraud.html
3) http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/05/electronic-voting-machines-fraud.html
शायद आपकी शंकाओं का समाधान मिल सके… :)
आदरणीय सुरेश चिपलूनकर जी,
धन्यवाद आपका,इसलिये नहीं कि आपने हमारी ओर से स्पष्टीकरण दिया बल्कि इसलिये कि अपने शोधपरक लेखों का उद्धरण दिया. आपके आलेख को कोई व्हिसल ब्लोवर माने न माने आई ओपेनर तो हैं ही वे आलेख.
@सुरेश जी /सलिल जी
आदरणीय सुरेश जी आपके लिंक के बहाने आपके ब्लॉग पर भी हो आया और लिंक से काफी जानकारी मिली.. ज्ञानवर्धन भी हुआ... श्री लालू प्रसाद यादव जी बक्से से जिन्न निकला करते थे.. आज भी बैलेड बाक्स से जिन्न निकलते हैं.. लेकिन इतना आसान नहीं होता... भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ की चुनाव प्रक्रिया फूलप्रूफ नहीं तो विश्वशनीय जरुर है... जहाँ तक ई वी एम् मशीन को हैक करने की बात है तो यह असंभव तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक बड़े पैमाने पर मशीन के निर्माण के समय ही कोई गड़बड़ी ना हो जाए... मतपत्र में भी केवल आपको पता होता था कि आपने किसको वोट दिया है लेकिन मतदाता इसे साबित तो नहीं कर सकता ना... इसी तरह जब मशीन को तैयार किया जाता है.. चुनाव अधिकारी सभी दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष मशीन की वोटिंग शुन्य करके जांच करते हैं.. डम्मी वोट डाल कर सुनिश्चित करते हैं के मशीन में पहले से वोट नहीं डाले हैं.. फिर मशीन को सील किया जाता है... फिर कौन सी मशीन कहाँ जाएगी.. अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग बटन अलग अलग पार्टी को मिलते हैं.. ऐसे में संभावना बहुत ही कम है... जब ए टी एम् बैंकिंग में आया था तो ऐसे ही चर्चे चले थे.. आज भी ए टी एम् फ्रौड़ होते हैं लेकिन फिर भी यह उपयोगी ही सिद्ध हुआ है.. ऐसे में अच्छी बातें , उपयोगी बातें लोगों तक पहुंची चाहिए.. और खास तौर पर जब बिहार जैसे संवेदनशील प्रान्त में चुनाव हो रहे हों... खैर !
तकनीकी जितनी भी उन्नत हो कभी न कभी तो इंसान के सामने हारेगी ही ... ज़रूरत है उसे समय समय पर दुरुस्त करने की ... वैसे चुनावों में कुछ भी हो सकता है ...
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