सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

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Saturday, March 26, 2011

अर्थ आवर - अंधियारा भारत बनाम चमकता इंडिया (एक रीपोस्ट)

“अर्थ आवर” का अर्थ, पढे लिखे लोगों के लिये बहुत गहरा है. आज दुनिया के 121 देशों ने इस महायज्ञ में भाग लिया और वहाँ की जनता ने रात साढे आठ बजे से साढे नौ बजे के बीच घर की बत्तियाँ गुल कर दीं. हमारे देश की गिनती भी उन देशों में है.
लेकिन ठहरिये! ये कैसा योगदान है कि एक तरफ आम आदमी घर की बत्ती गुल किये बैठा रहा. दिल्ली में लाल क़िले और क़ुतुब मीनार को अंधेरे के हवाले कर दिया गया. मक़सद ये कि इससे तपती धरती को ठंडक मिले. वहीं हज़ारों वाट की दूधिया रोशनी में हो रहे क्रिकेट के खेल के दौरान कोई “अर्थ आवर” नहीं मनाया गया. क्योंकि सवाल Earth का नहीं ‘अर्थ’ का है, करोड़ों रुपयों के आर्थिक दाँव का.

ज़रा सोचिये ! इंडिया के अंदर एक भारत भी बसता है. एक ओर इंडिया ने “अर्थ आवर” के नाम पर घंटे भर बत्तियाँ बुझा दीं, वहीं दूसरी तरफ भारत, इस आस में बिजली के खम्बों की ओर देख रहा था कि शायद आज आधे घंटे के लिये भी उनको बिजली के दर्शन हो जायें.
गुलज़ार साहब ने तो कहा है - हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं. उनका मतलब कतई इस बात से नहीं होगा कि एक तरफ इंडिया घंटे भर का “अर्थ आवर” celebrate करता है और दूसरी तरफ बरसों से “अर्थ आवर” की मजबूरी झेल रहा है - हमारा भारत.

Monday, April 19, 2010

BPL बनाम IPL

पिछले दिनों समाचार पत्रों और समाचार मनोरंजन चैनलों पर दो खबरें छायी रहीं, एक खबर BPL-वाले भारत से थी : “दंतेवाड़ा मे CRPF के 76 जवानों का नक्सलवादी हमले में शहीद होना” और दूसरी खबर IPL-वाले इंडिया से थी: “केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर का IPL विवाद के चलते मंत्रिमन्डल से इस्तीफा देना.” इन दोनों घटनाओं ने भारत और इंडिया के बीच की विभाजन रेखा को एकदम स्पष्ट कर दिया है, जिसकी चर्चा हम प्रायः अपने इस ब्लॉग के ज़रिए करते रहते हैं.
एक स्पष्ट विरोधाभास दिखाई देता है हमारे देश में और देश वासियों में और तब हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं, जब पता चलता है कि यह भेद विधाता ने नहींबीच, भारत भाग्यविधाता ने बनाया है.

BPL-वाला भारत, जिसके प्रतिनिधित्त्व का दावा करते हुए नक्सलवादी कह्ते हैं कि वे BPL (Below Poverty Line/गरीबी रेखा) से थोड़ा ऊपर और उससे नीचे वाले सभी वर्गों के लिये लड़ रहे हैं. इस BPL-वाले भारत की संख्या, भारत सरकार द्वारा गठित अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी कुल आबादी का 78 प्रतिशत बताती है. आश्चर्यजनक है कि सुरेश तेन्दुल्कर कमेटी उसी आबादी को मात्र 39 प्रतिशत मानती है. ऐसे में हमारा मत यह है कि 39 प्रतिशत आबादी भुखमरी का जीवन जी रही है और कुल 78 प्रतिशत हिस्सा गरीबी के दायरे में है.
हिसाब करें तो बचाखुचा 22 प्रतिशत हिस्सा यानि मात्र 27 करोड़ लोग उस IPL-वाले इण्डिया में हैं, जो आर्थिक बयार में सराबोर होकर BPL-वाले भारत के लिये मनरेगा (महात्मा गाधीं राष्टीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना) जैसी योजना बनाते है.
यह एक ऐसी ड्रीम योजना है जो सरकारी एजेंसियों द्वारा पहचान किए गये, हर गरीब परिवार के, एक व्याक्ति को साल मे 100 दिन का रोज़गार मुहैया कराने की “गारण्टी” है. अब यह सोचने की फिक्र किसे है कि साल मे 365 दिन होते हैं और ग़रीब के घर में दो बच्चों और माता-पिता को मिलाकर औसतन 6 सदस्य होते हैं.
BPL-वाले भारत के सिर्फ घरों मे ही नहीं, ज़िन्दगियों में भी घना अन्धकार है.

दूसरी ओर IPL-वाला इंडिया, जिसके प्रतिनिधि ललित मोदी का इण्टरनेशनल ब्रान्ड, क्रिकेट है और जिसमें बॉलीवुड के ग्लैमर का तड़का है, चियर गर्ल्स का भोंडा नाच है और भरा पड़ा है भ्रष्ट नेताओं तथा भ्रष्ट उधोगपतियों का काला धन.
BPL-वाले भारत से “जबरन छीने संसाधनों” के मज़े लूटता, IPL-वाला इंडिया बालीवुड और क्रिकेट की अफीम के नशे में “वन्स मोर”, “वन्स मोर” की पुकार मचा रहा है.
ये IPL-वाले इंडिया में ही सम्भव है कि किसी केन्द्रीय मंत्री की “महिला मित्र” को, उसके द्वारा कोच्ची टीम की इमेज़ चमकाने के लिए शीत-ताप-नियंत्रित कमरे में बहाए गये पसीने की कीमत 75 करोड़ रुपए लगायी जाती है, जबकि प्रेमचंद के भारत का होरी सिर्फ 100 रुपए में अपना ख़ून पसीना बेचता है.

क्या नारा दें हम अपने देश को I Love my India या मेरा भारत महान. कब तक भारत नारों को गूँधकर वादों की आँच पर BPL की रोटियाँ खाने को मजबूर रहेगा ?
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