“ईमानदार” प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली सरकार ने एक सच्चे संत के सामने अंतत: घुटने टेक दिये और आज सुबह अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया।
अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में देश की जनता ने जिस अन्दाज़ में अपना समर्थन दिया है, उसे देखकर घोर निराशा में जी रहे हम जैसे बहुत से लोगों के भीतर उम्मीदें फिर जाग गयीं हैं।
पहला कदम उठा लिया गया है। थैंकू अन्ना !!
सरकारी नोटिफिकेशन की प्रति जनता की अदालत में
अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में देश की जनता ने जिस अन्दाज़ में अपना समर्थन दिया है, उसे देखकर घोर निराशा में जी रहे हम जैसे बहुत से लोगों के भीतर उम्मीदें फिर जाग गयीं हैं।
नवरात्र के इन पिछले पांच दिनों के सारे धटनाक्रम का मनोवैज्ञानिक पहलू यह रहा कि हमारी तरह पूरे देश ने घनघोर अव्यव्स्था से उपजे अवसाद को बहुत ही गाधींवादी तरीके से बाहर निकालकर कैथार्टिक रिलीफ महसूस किया।
आदर्श व्यव्स्था तो यह होती कि जनता के द्वारा चुनी हुयी सरकार, सत्य की तरह सरल और निष्पाप होती परंतु जो कूटनीति और दबाब की राजनीति सरकार ने खेली, वह उलटा उसी के गले पढ़ गयी। और अब, सरकार के पांच प्रतिनिधि (प्रणव मुखर्जी, कपिल सिब्बल, चिदम्बरम, वीरप्पा मोएली और सलमान खुर्शीद) अन्ना की टीम (अन्ना हज़ारे, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, संतोष हेगडे, अर्विन्द खेजरीवाल) के सामने बहुत बौने दिखाई दे रहें हैं।
पहला कदम उठा लिया गया है। थैंकू अन्ना !!