सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

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सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

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Saturday, April 10, 2010

किरन खेर : मुर्गा-लड़ाई मे घुसी शेरनी



अचानक इस विषय पर लिखना पड़ेगा, ऐसी हमारी तैयारी भी न थी और योजना भी नहीं. लेकिन एक घटना ने हमें विवश कर दिया लिखने पर. पिछली रात, पौने ग्यारह का समय था ! बुद्दू बक्से के रिमोट पर उंगली क़िकेट खेल रहा था कि अचानक NDTV 24 X 7 पर चल रही मुर्गा-लडाई दिखाई दी. आगे बढने को ही था कि खास मुर्गों पर नज़र पड़ी. स्टूडियो में थे कॉंग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी, भा.ज.पा. के रवि शंकर प्रसाद और मुम्बई से अप्रत्यक्ष रूप से इस मुर्ग़ा लड़ाई में शामिल थीं बॉलिवुड अभिनेत्री और भा.ज.पा. की नेत्री किरण खेर. दूसरी तरफ NDTV ने अपने प्रतिद्वंद्वी चैनेल से बिठा रखा था IBN7 के आशुतोष को.

किरण के बारूदी तेवर पहले देख चुका था और NDTV पर IBN-7 के आशुतोष को देखकर लगा कि बैकग्राउंड में “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है” बज रहा होगा. बात चौंकने वाली थी. उस पर मुर्गा लडाई का शीर्षक था “ क्या मीडिया को सेलेब्रिटीज़ के व्यक्तिगत जीवन मे इस कदर दखल देना चाहिये जैसा शोएब–आयशा-सानिया विवाद मे हुआ?”

इतना आकर्षण बहुत था उंगलियों को रिमोट से हटाकर आराम देने के लिये और हमारी वैचारिक खुजली मिटाने के लिये. और इस मुर्ग़ा लड़ाई में तो पीछे बैठने वाला सयाना स्वयम चोंचबाज़ी करने आया था, तो सोचा कुछ देर यहीं ठहर कर तफरीह की जाये.

इस संक्षिप्त सी मुर्ग़ा लड़ाई की उससे भी संक्षिप्त सी झलकी प्रस्तुत है. भीड़ की प्रतिक्रिया कोष्ठक में दी गई हैः

निधि राज़दान : हमारे प्रतिद्वन्दी चैनल के आशुतोष जी आज के विषय पर पहला सवाल है कि क्या शोएब–आयशा-सानिया विवाद का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने ज़रुरत से ज़्यादा एक्स्पोज़र किया है ?

(बहिन जी! ये 'जरुरत भर' भी आप ही बताती हैं और 'जरुरत से ज़्यादा भी'....पब्लिक तो बस साबुन-तैल-शैम्पू चुनने के लिये ऐसे वहियात कार्यक्रम देखती है)

आशुतोषः (अ....आ....के बीच, अपनी हिन्दी सोच को तुरंत-फुरंत अंग्रेज़ी के कपड़े पहिनाते हुए) देखिये! यह कहना गलत होगा कि इस विवाद को मीडिया ने जरुरत से ज़्यादा एक्स्पोज़र दिया है. अ....आ..... आखिर सेलेब्रिटीज़ को इसके लिये तैयार रहना ही चाहिये, सेलिब्रिटीज़ पब्लिक आइकोन हैं, तो मीडिया ये सब दिखायेगा ही...

निधि राज़दान:  हां, बिल्कुल ठीक, सेलेब्रिटीज़ मीडिया का इस्तेमाल करके पब्लिसिटी के द्वारा ही तो सेलिब्रिटीज़ बनते हैं.

(जैसे ये मीडिया पब्लिसिटी फ्री मे चैरिटी के नाम पर करता होगा, है न??? भैय्या हमको मालूम है जन्नत की हकीकत...लेकिन.....)

आशुतोष : अ....आ....प्रिंट मीडिया ने भी खूब छापा है इस विषय पर. दरअसल इलेक्ट्रानिक मीडिया एक अलग तरह का माध्यम है जो 24 घण्टे काम करता है. अ...आ...अभी हम भी, इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाये हैं?

(हा.. हा.. हा....हमें पता है ! आप ही देर से समझे ,आशुतोष भाई. वास्तव में “ये बन्दर के हाथ उस्तरा लगने वाली कहानी है !!)

इसके साथ ही रविशंकर प्रसाद ने भी टी.आर.पी. की बात उछाली और अभिषेक मनु सिंघवी ने भी क्लिष्ट सी विधि की भाषा में कुछ कहा, जिनका सारांश ये था कि मीडिया ये सारे एक्स्पोज़र सस्ती लोकप्रियता यानि टी.आर.पी. के लिए करता है.

(सत्य वचन महाराज. विरोधियों की सीडियाँ दिखवाकर आप भी तो अपनी टी.आर.पी. इनके माध्यम से ही बढवाते हैं और आज रत्नाकर से वाल्मीकि बने रामायण बाँच रहे हैं...धन्य प्रभु, वाह वाह!!)

आशुतोष : ऐसा आप नहीं कह सकते कि हम सिर्फ सेलेब्रिटी के एक्स्पोज़र ही दिखाते हैं. हमने तो महिला आरक्षण बिल पर भी सुबह 9 बजे से देर रात तक परिचर्चा दिखाई थी.

(लो कल्लो बात!! हम भी हफ्ता भर झूठ बोलने और रिश्वतखोरी करने के बाद मज़ार पर चादर और मंदिर में सवा किलो लद्दू चढा देते हैं. अब इसका ढिंढोरा क्या पीटना)

निधि राज़दान : किरण खेर जी आपका इस विषय़ पर क्या कहना है ?

किरण खेर : आज संस्क्रति Guilt और Shame को केन्द्र मे रखकर चल रही है. इंसान Guilt झेल लेता है क्योंकि वह उसके अंदर होता है. लेकिन Shame एक सामजिक पीड़ा है, जो अधिक कष्ट पहुँचाती है. अभी हाल ही में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्राध्यापक द्वारा की गई आत्महत्या इस बात का सबूत है. वह आदमी अपने guilt के साथ रह रहा था, लेकिन मीडिया ने एक्स्पोज़ करके उसे shame के दलदल में धकेल दिया. नतीजा आपके सामने है. वह अपराधी था या नहीं, ये बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन उसके अपराध की सज़ा कम से कम मौत तो नहीं ही हो सकती.
फिर ये कहना भी गलत होगा कि सेलेब्रिटीज़ बहुत ताकतवर हैं, जबकि इस देश मे “सरकार” और “मीडिया” ही सर्वशक्तिशाली हैं. मैं आप से पूछती हूँ कि क्या मीडिया पर्सनालिटीज़ सेलेब्रिटीज़ नहीं हैं? क्या निधि राज़दान, आशुतोष, बरख़ा दत्त, राजदीप सरदेसाई सेलेब्रिटीज़ नहीं हैं? फिर ऐसा क्यों है कि इन पर कोई एक्स्पोज़ करने के कार्यक्रम नहीं होते? इनकी लाइफ स्टाइल की चर्चा क्यों नहीं होती?

(हा...हा...हा... किरण जी आप ने कहाँ के सवाल पूछ लिये. मंदिर में बैठकर भगवान के अस्तित्व का प्रश्न उठा दिया आपने... जिन्होंने अपना सारा जीवन समाज की बुराइयाँ एक्स्पोज़ करने में लगा दिया हो, उनके चरित्र पर प्रश्न चिह्न लगाना आपको शोभा नहीं देता..)

मुर्गा लड़ाई में कोई मुर्गी इस तरह बेतकल्लुफ हो जायेगी, कतई अप्रत्याशित था! बहरहाल... मुर्गा-लडाई का यह खेल थोड़ी देर और चला...घर बुलाए मेहमान, आशुतोष, के घाव पर मरहम पट्टी की गई और बात सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर आ गई यानि कॉमर्शियल ब्रेक.

चंडीगढ की शेरनी ने जो सवाल सबके लिए छोड़ा शायद उसपर कभी चर्चा न हो. लेकिन मन में एक नई सोच लिए, मैंने रिमोट पर उंगली दबाई और IPL की अफीम चाटकर सोने के लिए हमने मोहाली के मैच का रुख किया. चड़ीगढ़ के पठ्ठे इधर भी फट्टे चक रहे थे.
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