दो तीन दिन पहले मुझे अचानक पटना जाना पड़ा. वहाँ भारतीय जनता पार्टी की विशाल रैली थी. राज्य के मुख्य मंत्री (बीजेपी के सहायक दल से) इस बात पर बिदक गए कि उनकी तस्वीर श्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाते हुए दिखाई गई थी. और मीडिया ने इस बात का बतंगड़ भी बनाया. मैं किसी भी राजनैतिक पार्टी का समर्थक या विरोधी नहीं, अच्छी बुरी बातोंको लेकर हर पार्टी के विषय में मेरी अपनी राय है. नरेंद्र मोदी को लेकर जो रुख़ सारी तथाकथित धर्म निरपेक्ष पार्टियों ने अपनाया हुआ है, और उन्हें अछूत घोषित किया है, इस सारे प्रकरण ने मुझे उनको पसंद करने पर मजबूर कर दिया. एक अकेले इंसान के पीछे जब नहा धोकर सारे चोटी के दल पड़ जाएं, तो उसमें दम है. इसको लेकर मेरी चैतन्य भाई से फोन पर लम्बी चर्चा होती रही. क्योंकि उनके राजनीति को लेकर बड़े स्पष्ट विचार और धारणाएं हैं, जो मुझमें बिल्कुल नहीं.
मैंने जिज्ञासावश अपने मन की बातें उनके सामने रखीं और उनसे जानना चाहा कि क्यों गुजरात की समृद्धि और विकास के बावजूद भी नरेंद्र मोदी, एक अछूत नाम बना है देश की राजनीति में.
गुजरात में गोधरा के बाद जो दंगे हुए, उनमें नरेंद्र मोदी का प्रत्यक्ष रूप से हाथ बताया जाता है…
चैतन्य जी ने मेरी बात काटते हुए कहा, “क्या देश में इससे पहले दंगें नहीं हुये ? मै उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर मुरादाबाद से आता हूं और छोटी उम्र में दंगों की त्रासदी देखी है मैंने. नाना-नानी के पास रहता था और वहाँ नियमित रूप से बी. बी. सी. हिंदी समाचार सुने जाते थे. गुजरात के अहमदाबाद शहर के कालूपुर और दरियापुर मुहल्ले मुझे वहां आए दिन होने वाले दंगों के समाचारों के कारण आज भी याद हैं. साम्प्रदायिक दंगों का एक पूरा इतिहास रहा है गुजरात का, इस बात को पृष्ठभूमि में क्यों नहीं रखा जाता ?
नरेन्द्र मोदी के साथ गुजरात दंगों को एक गहरी राजनैतिक साजिश के तहत चस्पां कर दिया गया है! वरना क्या कारण है कि मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों के दंगों को भुला दिया जाता है और गोधरा बाद के दंगे इतिहास में दर्ज़ हो जाते हैं? 1984 के सिक्खों के नरसंहार के अपराधियों का क्या हाल हुआ, आपसे छिपा नहीं! राजीव गाँधी की प्रतिक्रिया थी कि “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो आस-पास की ज़मीन थोड़ी हिलती ही है” इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है, जिसमें तकरीबन दस लाख लोगों का कत्ले-आम हुआ बताया जाता है! कौन था उसका दोषी ? नरेन्द्र मोदी??
आप उत्तेजित हो गए! तो क्या मीडिया की रिपोर्ताज़, और टीवीपर दिखाई जाने वाली ख़बरें सच्चाई से परे हैं?
मुझे याद है 90 के दशक में टेलिविज़न समाचार चैनलों की शुरुआत हुइ थी और टेलीविज़न एंकर प्रनॉय राय, एस पी सिहं, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, विनोद दुआ आदि घर घर में पहचानें जाने लगे. बॉलीवुड स्टार और क़िकेट स्टार से इतर एक नया “बुद्धिजीवी सा दिखने वाला वर्ग ” पैदा हुआ, टेलीविज़न पत्रकारों का ! मै यह पृष्ठभूमि इसलिए दे रहा हूं कि मेरी दृष्टि से इन मीडिया पर्सनैल्टीज़ ने लालू यादव और नरेन्द्र मोदी का इस्तेमाल किया है, ख़ुद को मीडिया मुग़ल बनाने में. सलिल भाई! आप जानते हैं मेरा इशारा किस तरफ है. इन फैक्ट सब जानते हैं!!
साउथ दिल्ली और नोएडा सेक्टर 16 के टेलीविज़न चैनलों की हक़ीक़त हम दोनों ने ही करीब से देखी है. राजनीति के चौसर पर सबसे ख़तरनाक घोड़े की ढाई घर वाली चाल इन चैनलों के ज़रिये ही चाली जाती है.
टेलीवीज़न नाम के इस बुद्धू बक्से से सिर्फ रूप और सौंदर्य निखारने के लिए साबुन तैल और शैम्पू ही नहीं बेचे जाते वरन् राजनैतिक छवियाँ भी बनाई और बिगाड़ी जाती हैं.
मोदी जी के गुजरात में विकास तो दिखाई देता है. यहाँ तक कि अमित जी भी वहाँ के ब्रैंड एम्बैसेडर बने बैठे हैं..
देखिए! अपने काम के सिलसिले में मुझे जब भी गुजरात से सम्बन्धित कोई व्यव्सायी या व्यक्ति मिलता है तो अनायास ही गुजरात के विकास से सत्य को पड़तालने की मेरी चेष्टा रहती है. इस फीड बैक से मुझे तो यही पता चलता है कि मोदी ने ब्युरोक्रैसी को जबाबदेह बनाया है, विकास की नर्मदा बहायी है और सरकारी भ्रष्टाचार को कम किया है. रतन टाटा सिंगूर में नैनो का कारखाना लगाने के लिये वर्षों पापड़ बेलते रहे परंतु गुजरात में तुरंत-फुरंत सबकुछ सही हो गया. कुछ तथ्य तो है, गुजरात के विकास के इस सत्य में!
एक व्यक्तिगत प्रश्न. क्या लगता है आपको कि कपड़ों से लेकर चप्पलें तक श्वेत रंगी पहनने वाला व्यक्ति, व्यक्तिगत शुचिता का प्रतिनिधित्व करता है ?
आज जब सभी संस्थाएँ धराशायी हो रही हैं, अविवाहित रह्कर, देश सेवा का विचार अपने आप में एक श्रेष्ठ साधना है. अपने निजी जीवन में जिस सादगी और शुचिता से नरेन्द्र मोदी रहते हैं, उस पक्ष को आम जनता की जानकारी में कभी लाया नहीं जाता. शायद! मुर्गा और शराबखोर मीडिया के एक बड़े वर्ग के लिये यह भी संकीर्ण और पुरातन मानसिकता है.
लेकिन उनके सफेद कपड़ों पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का जो दाग़ लगा है, उसका क्या?
दरअसल ये जो हम अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग मुसलिम समुदाय के पर्याय के रूप में करते हैं, वह अपने आप में एक घोर साम्प्रदायिक विचार है. इस तथ्य का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि कहने वाले व्यक्ति ने पहले ही धर्म के चश्मे चढा रखें हैं वरना सही शब्द होता धार्मिक अल्पसंख्यक. फिर अल्पसंख्यक एक सापेक्षिक बात है कश्मीर में हिंदु अल्पसंख्यक है, मुस्लिम बहुसंख्यक, उत्तर पूर्व में ईसाई बहुसंख्यक हैं. सौ बात की एक बात कहें तो वास्तव में इस देश में समझदार लोग अल्पसंख्यक हैं.
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पटना की रैली से शुरू हुआ यह प्रश्नकाल चलता ही रहता, यदि बी.एस.एन.एल. की कृपा से मोबाईल नेट्वर्क ऐसा बाधित न हुआ होता. पता नहीं चैतन्य जी के विचारों से मैं कितना सहमत हो पाया, क्योंकि राजनीति की समझ मुझमें चाणक्य भूमि से जुड़े होने के बाद भी नहीं आई.
15 comments:
Jo bhi ho,Modi pe wishwas nahi hota...pragati jantaki aankhon me dhool jhonk deti hai aur peeth peechhe hone wale bhedbhav is adme chhup jate hain.
Person who invariably has vested interest,cannot be trusted as a savior!
sahi kaha yahan dimaag waale hi alpsankhyak hain...gujraat me vikas ki ganga bahane wale mukhymantri ko mera naman...
आपकी और चैतन्य जी की वार्ता पढ़ कर .......अच्छा लगा चैतन्य जी ने जो कहा वो तर्कसंगत लगता है . ......बढ़िया पोस्ट
एकदम सही कह रहे हैं चैतन्य जी..
यह एकदम सत्य है कि मीडिया किसी को भी मोहरा बनाकर स्वयं चमकता है। कभी तो ऐसा लगता है कि जो हीरो होने चाहिए थे उन्हें मीडिया ने विलेन बनाकर पेश किया और जो विलेन होने चाहिए थे उन्हे हीरो बना दिया। इस देश में जब तक मीडिया का यह खेल चलेगा तब तक जनता इसी प्रकार भ्रमित रहेगी। लेकिन दोष जनता का भी कम नहीं है, वह भी मीडिया पर अंधा विश्वास करती है, तथ्यों को जाने बिना। आपने अच्छा लिखा है बधाई।
sub bikaaoo hai.......par saanch ko aanch nahee isee tathy me vishvas ab bhee hai ..........
क्या कहें आपको... जय हो...
अच्छा लगा पढ़कर यह विचार भी!
अच्छे विचार ........अच्छा तर्क वितर्क ............और खराब मोबाईल नेटवर्क ..................सर कोई अच्छा नेटवर्क ट्राई कीजिये ताकि हमें एक अच्छी जानकारी मिल सके !!!!!!!!
हर किसी के विचार निजी हो सकते हैं पर जब आप उसे अपनी परख की कसौटी पर उतारेंगे तो पता चल जाएगा .... वैसे मैं पूर्णतः सहमत हूँ उनके विचार से ...
इलेक्ट्रोनिक मीडिया को गंदगी के गर्त में उतारने का श्रेय इसी गुट को जाता है , जिसका जिक्र हुआ है !
हीरो हैं या जीरो, यह तो गुजरात की जनता तय कर चुकी है तीन-तीन बार चुनकर… और रही विकास की बात तो गुजरात के पिछले 10 साल और बंगाल के एक पार्टी के शासन के पिछले 30 साल तुलना करके देख लीजिये।
नरेन्द्र मोदी और बाबा रामदेव से अब सभी लोग घबराने लगे हैं, कई "दुकानें" बन्द होने का खतरा पैदा हो गया है। :)
श्री चैतन्य भाई की एक-एक बात गौर करने वाली है.. उन्ही की तरह हर अपने गुजराती जान-पहिचान वाले से मैं भी जब कुछ पूछता हूँ तो नरेन्द्र मोदी की तरेफ्फ़ के अलावा कुछ नहीं बताया जाता.. इस दंगे से पहले कई बार जगन्नाथ यात्रा के दौरान हर बार बहुसंख्यक वर्ग के कम से कम ८-१० लोगों को चुपचाप मार दिया जाता था. तब मीडिया कहाँ था? मैं किसी वर्ग विशेष का समर्थन नहीं करता खासकर जब किसी इंसान को मार दिया जाए. पर न्याय की मांग एक तरफ़ा क्यों???????????????
"मोदी जी बस म.प्र. को शेर दे दें और सरदार सरोवर बाँध से बिजली......बाकि साम्प्रदायिक दंगों के लिये सिर्फ मनुष्य ज़िम्मेदार है और कोई नहीं...."
is post ki babat to meri tarf se salil ji chaitnya ji dono ko hats offfffff......ek ek baat se sehmat hun ...ek ek baat se... narendra modi ke chakkar me maine kai doston se galiyaan khayi hain .. lekin fir bhi main humesha unke sath khada raha... main aise shaharon me raha hun jahaan bhayankartam dange hue hain...mau nath bhanjan , azamgarh, ayodhya...isliye in dango se kuch had tak to parichit tha... media aur kuch chhoti ker dalon ki mili bhagat ke hi chalti gujraat ke vikaas kary ko nepathya me rakha jata hai ..aur ul julul baaton ko ubhara jata hai ...
mere liye bahut arthpurn rahi aap ki yah post..mere dimaag me kuch tathya aur spasht ho gaye hain ... thanku so muchh
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