एक जुलाहा, सूत के पतले धागों से एक चादर बिनता. टुकड़े टुकड़े धागों को ऐसी गाँठ लगाता कि पूरी चादर में गाँठ ढूँढे से भी न मिले. ज़िंदगी का ताना बाना बुनते बुनते कितनी गाँठें लग जाती हैं, जो दिखती भी हैं और खोले से खुलती भी नहीं. ऐसा ही एक जुलाहा तकरीबन सात सौ साल पहले हमारे बीच आया, एक तरकीब बताने, जिससे ज़िंदगी की चादर बिनते हुए कोई गाँठ दिखाई न दे और ये चादर जब उतरे तो मैली न हो, उसपर कोई दाग़ न रहे.
एक अनपढ़ इंसान जिसे वेद, क़ुरान का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उसकी तकरीबन पाँच सौ वाणियाँ गुरु ग्रंथ साहिब में मौजूद हैं. नमन करते हैं हम कबीर को… आज जेठ माह की पूर्णिमा के दिन, उनकी जयंती पर.
दोहे, साखियाँ और निरगुण गाने वाले कबीर ने एक ग़ज़ल भी कही है. हमारी तरफ से एक श्रद्धांजलि उस महान संत कोः
हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद, या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में, हमन को इंतजारी क्या ?
खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?
न पल बिछुड़े पिया हमसे, न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?
(शीर्षक साभार: गुलज़ार)
24 comments:
कबीर अपनी तीखी परन्तु निरपेक्ष वाणी से हमेशा प्रभावित और प्रेरित करते रहे हैं.
कबीर जयंती पर उन्हें श्रद्धा पूर्वक नमन.
Oh ! wah! Maine Sant Kabeer ki yah rachna nahee padhee thi!
बहुत अच्छी रचना को संजोया है....शुक्रिया
कमाल का पोस्ट,,,ज्ञानवर्धक...कबीर जयंती पर हमारी और से बहुत बहुत श्रधांजलि
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
bahut badhiya post .......kabeer ke dohe ka to koi jawaab nahi
अच्छी रचना ,बधाई
कबीर के दोहे तो पढ़े थे पर ये रचना तो एकदम नई है ...बहुत बहुत धन्यवाद
अच्छा लगा...
कबीर को याद करना....
अच्छा यद् दिलाया आपने ...आभार.
कुछ त्रुटि लग रही है कृपया देख लें...
तीसरे शेर में ...अनपे को=अपने को
मक्ते में.....इश्क का माता= इश्क का नाता
iske liye to bas shukriya shukriya kaha jata hai...behad achchha rach...rachna to na kahunga
@ बेचैन आत्माः
हमारी पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया के उत्तर में
मूल स्रोत से ज्यों का त्यों उद्धृत करने के कारण,हमने शब्दों में कोई हेर फेर नहीं किया है... कई अन्य साइटों पर भी यही लिखा देखा. इसे कई गायकों ने गाया भी है, किंतु वहाँ भी वह शेर पूरी तरह गायब है...अर्थ के अनुसार आपकी बात मानते हुए "अनपे" को "अपने" कर दिया है. "माता" शब्द सही है. इसका अर्थ है मतवाला, नशे में चूर... बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह शब्द इसी तरह प्रचलित है. धन्यवाद आपका!
आपकी टिप्पणी के बाद हमने खोजा तो एक पुस्तक घर में मिली. हिंद पाकेट बुक्स से प्रकाशित एक पुरानी पुस्तक है..."हिंदी के लोकप्रिय संत कवि ..कबीर". उसमें भी..
कबीरा इश्क का नाता दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाजुक है, हमन सरबोझ भारी क्या
..यही लिखा हुआ है. जो अर्थ आपने बताया वह भी ठीक लग रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कबीर पर लिखने वाले विद्वान अपने मन से शब्द तोड़ मरोड़ देते थे..! क्योंकि एक स्थान पर आपने लिखा है..
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनियाँ से यारी क्या
लेकिन इस पुस्तक में लिखा है...
हमन हरिनाम राँचा है हमन दुनियाँ से यारी क्या
..अर्थ तो एक ही है चाहे हरिनाम कहो या गुरुनाम कहो लेकिन जो कबीर के द्वारा वास्तव में कहे गये हैं..वे ही शब्द इन प्रकाशकों को प्रकाशित करना चाहिए था.
@बेचैनआत्माः
अभी हाल ही में एक संत ने रामचरित मानस के शब्दों को ठोंक पीट कर दुरुस्त करने का दावा किया था...चलिए इस विवाद को जाने देते हैं...अन्नू कपूर ने भी कबीर सीरियल में कबीरा इश्क़ का नाता ही गाया है...
कबीर को याद करने का नायाब ढ़ग
@Apanatva:
आपकी ये स्माईली बड़ी प्यारी है... इसका इस्तेमाल करना हमें आया नहीं कभी…लेकिन कोलन और बंद कोष्ठक से बनी इस आकृति पर चार लाईनें कही थीं
ये स्माइली भी बड़ी सख़्त जान है कम्बख्त
ऐसा लगता है किसी शख़्स ने कटोरे में
नम से दो क़तरे सजा कर उँडेल डाले हैं
अश्क़ हैं या जमी हुई शबनम?
धर दिनी चदरिया । ऐसा जीवन तो सिर्फ संतो का ही होता है। हम जैसे लोगो की चादर तो जाते वक्त मेली होती है।
बहुत सुन्दर लिखा अंकल जी...शानदार.
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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
कबीर को याद करने का ये सही तरीका लगा आभार
sundar ji.....
kabir ji ko naman...
kunwar ji,
हमारे महान संत कबीर को श्रद्धांजलि. आपकी इस पोस्ट और टिप्पणियों से ज्ञानवर्धन भी हुआ.
kabeer ki ghazal foir se padhne ko mili ....bahut din baad...lekin aapne jis tarah se yaar jul;ahe wali baat ke sath ise pesh kuiya hai kasam se kamaal hai wo ..aap ke aur bechain atma ji ki baaton se bhi kafi kuch seekhne ko mila...:) aaj aanad anand ..anandam
बहुत प्यारा लेख , मुझे दुःख है की समय पर नहीं देख पाया . शायद आप उन चंद लोगों में से हैं जो कबीर को याद करते हैं, आपका आभार ! आपके और बेचैन आत्मा के मध्य संवाद अच्छा लगा !
सादर
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?
just move on...
अभी-अभी पदा आपका ये लेख अच्छा है मैंने कबीर के दोहे ही पदे थे पर आज ये पद कर अच्छा लगा ............
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