कुछ साल पहले, जनाब तुफ़ैल चतुर्वेदी ने उनकी त्रैमासिक पत्रिका ‘लफ्ज़’ में दो लाईनें दीं और उन्हें 'ऊला' या 'सानी' की तरह इस्तेमाल करते हुए, दो अलग-अलग ग़ज़ल लिखने का एक मुक़ाबला रखा. मैंने भी लिखी थी दो गज़लें और आदतन भेजी नहीं. भूल भी गया लिखकर. आज आप लोगों के सामने रख रहा हूँ. ग़ज़ल का मक़्ता नया लिखा है, जो ‘मेरी’ ग़ज़ल का ‘हमारा’ एडिशन है:
नज़रे-आतिश मेरा मकान भी था,
तब लगा सर पे आसमान भी था.
सारी दुनिया ने ज़ख्म मुझको दिए,
इनमें शामिल तुम्हारा नाम भी था.
मुफलिसी में जो बेच डाले थे,
उनमें यादों का कुछ सामान भी था.
हमने जिसको बिठाया संसद में,
वो तो बहरा था, बेजुबान भी था.
अपनी खादी की सफेदी देखो,
ख़ून का इसपे इक निशान भी था.
जिन गवाहों ने दिलाई है सज़ा,
दोस्त! उनमें तेरा बयान भी था.
होंगे 'संवेदना के स्वर' तेज़ाब,
क्या तुझे ये कभी गुमान भी था?
24 comments:
ghazal hai ya katal hai...mujhe sare sher pasand aaye...matle me hi mera nam dikh gaya apun khush ho gaye..:P har mijaaz ke sher hain .... aur itna bada takhallus aap kaise istemal kar pate hain mujhe to isi pe hairani hoti hai .. aur maqta hi mera sabse fav bhi hai ..samvedna ke swar...aur tezaab...wah
जवाब नहीं ......आपके इस रचना का ....प्रत्येक पंक्तियाँ अपने आप में विस्तरित हैं .........बहुत खूब .
are wah.....aap to chupe rustam nikle jee........
Lajawab.................har ek sher NAHLE PAR DAHLA HAI .
Aasheesh
आपतो बेहतरीन शायर हैं , वाकई में संवेदित लोगों से खतरे की कोई उम्मीद "लोगों" को नहीं होती !
wah wah ..........kya baat hai another hit.....
Oh ! Harek lafz chunida,harek pankti bemisaal!
Is gazal ko note kar lene ka irada hai..mai to gazal likhti nahi,par maa ko sunau to badi khush hongi!
waah is gazal ne to kasam se maar daala....bahut khoob...
जिन गवाहों ने दिलाई है सज़ा ....
बहुर ही लाजवाब लगा ये शेर ... वैसे पूरी गज़ाल कमाल है संवेदनाओं से भरी है ....
ये जान कर बहुत अच्छा लगा की आप ४ साल शारजाह रहे पर फिर अफ़सोस भी हुवा की पहले क्यों नही मिले ... जैसा की आपने लिखा शायद किस्मत को यहाँ मिलना मंज़ूर नही था ... पर मिलने की हसरत रहेगी तो ज़रूर भारत या कहीं भी मुलाकात ज़रूर होगी ...
behtareen.....:)
आज आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ी...सच कहूँ दिल बाग़ बाग़ हो गया...बहुत असरदार ग़ज़ल कही है आपने...मेरी दिली दाद कबूल करें...
नीरज
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बेहतरीन. बहुत खूब!
आप पढ़िए:
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
बड़ी दूर तक गया।
लगता है जैसे अपना
कोई छूट सा गया।
कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
ख्वाहिश छीन ली सबकी।
लेख मेरा हॉट होगा
दे दूंगा सबको पटकी।
सपना हमारा आज
फिर यह टूट गया है।
उदास हैं हम
मौका हमसे छूट गया है..........
पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:
http://premras.blogspot.com
jativaad ke chakrvyooh me bete bhee fasaa kar mout ke ghat utare ja rahe hai...................
agyan ka ghana andhakar kabhee chatega isee aasha ke sath..........
very good.
कथ्य और शिल्प दोनों ही बढ़िया हैं....
एक मुकम्मल गज़ल . काबिले तारीफ है ।
......तेरा बयान भी था ।
लाजबाव ।
प्रिय भैया जी ! अभी उन्नाव में प्रधानाचार्य का कल ही कार्यभार संभाला है 1999 मे कमीशन से चयन हुआ था . इसलिए व्यस्ततावश नयी रचना पोस्ट करने में विलम्ब है ।
बहुर ही लाजवाब लगा ये शेर ...
जिन गवाहों ने दिलाई सजा..उनमें तेरा नाम भी था...उफ्फ!! क्या गजब लिखते हैं आप!! वाह!!
तुझ तक पहुँच सकूँ मैं जल्दी
यही मेरा हुँकारे-ईमान भी था..
मगर, हाय ये व्यस्तता!! आशा है नाराज न होंगे. :)
मुफलिसी में जो बेच डाले थे
उनमें यादों का सामान भी था ....
वाह क्या बात है .....!
बहुत बढ़िया.....!!
shaandaar..............bahut khubsurat!!
"गज़ल एक बेहतरीन विधा है हर कोई नहीं लिख सकता ,आपने लिखा है और क्या खूब लिखा है वाह....!
इतने सारे फनकारों ने वाह ! वाह ! कहा है जनाब...बधाई !!! उम्दा
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