15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता, अपने साथ धार्मिक आधार पर हुए विभाजन की त्रासदी भी लेकर आयी थी. एक तरफ इस्लामी पाकिस्तान बना और दूसरी ओर धर्म-निरपेक्ष भारत.
इतिहास गवाह है कि इस धर्म-निरपेक्ष भारत में कथित आज़ादी के बाद से ही धार्मिक अल्प-संख्यक और बहु-संख्यक का एक छद्म युध्द जारी है. छद्म इसलिये कि इसकी आड़ में देश के असली अल्प-संख्यक और बहु-संख्यक पार्श्व में चले जाते हैं और मंच पर धर्मान्धता का राजनैतिक खेल चलता रहता है.
खेल, कभी सम्प्रदाय के नाम पर, कभी जाति के नाम पर, कभी बोली के नाम पर. लेकिन क्या किसी ने सोचा भी है कि इस देश की असली विभाजन रेखा कौन सी है, जो पूरे समाज को दो हिस्सों में बाँटती है. और दो हिस्सों के अंदर कोई हिस्सा नहीं होता. सिर्फ दो, अल्प संख्यक और बहु संख्यक. इनके दर्मियान कोई सम्प्रदाय नहीं, कोई जाति नहीं और कोई भेद भाव नहीं.
गुलज़ार साहब कहते हैं “हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं” हम भी यही कहते हैं. लेकिन हमने जिन दो हिंदुस्तानों को देखा है वो भारत और इण्डिया है. अल्पसंख्यक इण्डिया और बहुसंख्यक भारत, शासन करता हुआ प्रिटोरिआ सरकार की तरह या फिर ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तरह.
ये विभाजन अमीर से और अमीर तथा गरीब से और ग़रीब होने वाले समाज का विभाजन है. ये कोई राजनैतिक विभाजन नहीं है, समाज में नंगी आँखों से दिखाई देने वाला सच है. वह समाज जहाँ एक ओर राष्ट्रमण्डल खेलों में करोड़ों के खर्च से बड़े बड़े मकान बनाए जा रहे हैं, वहीं यमुना की छाती पर सीमेंट का क़फ़न ओढाया जा रहा है. जहाँ खेलों के बाद ये मकान करोड़ों में बिकेंगे,वहीं खेलों के दौरान कितने बेघर होंगे.
“सम्वेदना के स्वर” में हमने समय-समय पर, हमारे स्वतंत्र राष्ट्र के अंदर बसने वाले अल्पसंख्यक अमीरों के इंडिया और बहुसंख्यक ग़रीबों के भारत के बीच की इस विभाजन रेखा को विभिन्न दृष्टिकोणों से जाँच कर देखा है:
1. भला यूँ ही कर लेता है कोई आत्महत्या? 2. दो बीघा ज़मीन – एक वायबिलिटी रिपोर्ट 3. BPL बनाम IPL 4. अर्थ आवर – इंडिया बनाम भारत 5. बजट बनाम आम आदमी.
इसे एक महान राष्ट्र की महानतम् विडम्बना ही कहा जायेगा कि जिस आर्थिक सुधार के रथ पर हम विकास की सवारी कर रहे हैं, वह हमें एक ऐसे गंतव्य तक ले आया है, जहाँ इंडिया के लिए बनी कार सस्ती होकर लखटकिया भर रह गई है, वहीं दाल रु.100 प्रति किलो होकर भारत के मुँह से निवाला छीन रही है.
हाल ही में पैट्रोल-डीजल की कीमत को ‘बाज़ारू’ शक्तियों के हवाले कर, भारत पर महंगाई की मार और बढ़ा दी है. इंडिया के अम्बानी बन्धु खुश हैं कि पैट्रोल-डीजल की कीमत अब बाज़ार निर्धारित करेगा और उनके बन्द पड़े पैट्रोल पम्प फिर चल पडेंगे. उधर भारत की “कलावती” (वही, जिसका नाम लेकर देश के नेतृत्व की भावी पीढ़ी ने इंडिया को बहुत प्रभावित भी किया था, पर अपना काम हो जाने पर बेचारी कलावती को भूल गये) कैरोसिन की कीमत में तीन रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी से परेशान है.
विकास और महंगाई की इस दौड़ में, विकास का मजा अल्पसंख्यक इंडिया ले रहा है और महंगाई की मार बेचारा बहुसंख्यक भारत झेल रहा है. प्रधानमंत्री जी ने शायद इसीलिये एक बार कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यको का है.
(चित्र साभार: गूगल खोज)
19 comments:
1. जहाँ इंडिया के लिए बनी कार सस्ती होकर लखटकिया भर रह गई है, वहीं दाल रु.100 प्रति किलो होकर भारत के मुँह से निवाला छीन रही है.
2. महंगाई की मार बेचारा बहुसंख्यक भारत झेल रहा है.
**** इसको पढ़ने के बाद लगा कि कुछ चिनगारियां निकलीं और उत्तेजित करके चली गईं।
नंगा सच ...विद्रोही तेवर ...। कब वास्तव में भारत विद्रोही बनेगा ?
hamari bharatiy janata bahut hi teji se tarakki kar rahi hai sasti dal to baikward log khate hai yanha kahawat hai sasta roye bar bar mahanga roye ek bar are minya bajar me to jakar to dekho gharo me khana kanha banta hai log hotalo me khana khate , nashta karate hai . ab to hotalo me khana bhi staindarata ki nishani hai .
arganikbhagyoday.blogspot.com
शायद हमारी रीड़ की हड्डी इतनी लचीली की जितना दवाब डालो झुकती जायेगी .......... दो दिन रोयेंगे फिर दाल में पानी बढ़ा लेंगे
gulzaar saab ki wo baat ..hindustaan me do do hindustan dikhayi dete hain .. times of indai ke campaign "india poised " bhar ki baat nahi thi ..balki hindustaan ki sachhi tasveer thi ..kab tak hum baans ke jhusmuton ke peeche apni jhopadiyaan chipate firenge ,...aur kjahenge saab idhar nahi udhar dekho..wo shaah-raah hai ... sahi kaha apne..pizza 5 mint ghar me pahunchta hai ... sarkari cheeni srae din khade raho fir bhi na mile.. sim card free..daal roti sona bone pe nahi mil rahi..... india bharat ke hindustaan ki padtaal karti hui behtareen post...
ज्वलनशील और उचित पोस्ट...बेबाकी से प्रस्तुतिकरण...बस एक बात ज़हन में आती है,की जब तक देश का एक एक नागरिक जागरूक नहीं होगा तब तक कुछ होने वाला नहीं है,
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
jhakjhor dene walee post.........vaise aaj aap dekhenge ki gareebee kee paribhasha hee badal gayee hai .
समसामयिक और चेतना जागृत करती अच्छी पोस्ट...
बढ़िया है!
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प्रासंगिक बात...धारदार !!
सोनल रस्तोगी जी ने एक लाइन में बड़ा ही सटीक जवाब दिया है दो दिन रोयेंगे और फिर डाल में पानी बड़ा देंगे ...........
ये सच भी है हम जितना ज्यादा झुकते है दबते है प्रशासन उतना ही हमारा फायदा उठाता है इस बदती हुई महंगाई के पीछे कहीं ना कहीं हम भी बराबर के जिम्मेदार है !
भारत की मौजूदा स्थिति .......व्यक्त करती हुई ये पोस्ट ........आज के समय में जो गरीब है वो और गरीब होता जा रहा हैं ......और जो मध्यम परिवार का है वह बीच में लटका हुआ है .....और जो अधिक धनवान है .........उसकी तो बात ही अलग हैं .
profile picture aur material change accha laga varna to aap aam shakhs hone ke naam par fruits ke king bane hue the.............
theek hai na ?
:)
aapke sanjhe blog ke liye hardik shubhkamnae.................
bahut sahi aur sateek likha hai aapne. wakai aam insan ko jagna hoga..
kabhi to samaanta aayegi..
धारदार व्यंग्य।
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किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?
आँखे खोलने वाली विचारोत्तेजक पोस्ट
Ek iltija...aapne ek baar "Bikhare sitare" is blog pe comment kiya tha:Mai iske saath pahle kyon na juda?Mai punah prakashit kar rahi hun..roz ek kadi....padhenge to bahut khushi hogi!
गजब!!!
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