सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Sunday, July 10, 2011

इक मुस्टंडा पेड़

पिछले साल जयपुर में किसी उत्सव में भाग लेने गुलज़ार साहब भी आए थे. वहाँ एक नज़्म सुनाई थी उन्होंने. चैतन्य जी ने वो नज़्म सुनी और उसके टुकड़े-टुकड़े भाव मुझे सुनाए. मुझे भी कुछ बिखरा-बिखरा सा ख्याल आया कि शायद ये नज़्म कहीं पढ़ी/सुनी है. नेट पर खोजा और अपनी आलमारी की सारी गुलज़ार साहब कि किताबें खंगाल डालीं. उनके “स्कूल ऑफ थॉट” के कुछ स्टुडेंट्स से भी दरयाफ्त की. मगर नतीजा सिफर का सिफर!
दो दिन पहले उनका नया मजमुआ “पन्द्रह पांच पचहत्तर” लेकर आया. पन्द्रह सेक्शन में पांच-पांच नज्मों का बेहतरीन संकलन. और उसी के बीच मिली “इमली..” चैतन्य भाई की दीवानगी को बढाते हुए आज सुबह वो नज़्म उनको पढकर सुनाई और अब ये खट्टी इमली आपकी नज़र.


कोसबाद के नुक्कड़ पर

इक मुस्टंडा पेड़ खडा है इमली का

उसका गुस्सा नहीं उतरता.

अदरख जैसी मोटी-मोटी गिरहें पड़ी हैं जोड़ों में
सारा दिन खुजलाता है, एक्जिमा है.
जिस मोड़ पे है, उस मोड़ पे जब बस रुकती है
जल्दी-जल्दी बीड़ी बुझाकर उसके बदन पर,
लोग बसों में चढ जाते हैं.
पान की पीक भी थूक दिया करते हैं उसपर
चक्कू से काटे हैं लोगों ने उसकी शाखों के डंठल
खड़े-खड़े बस यूं ही उस पर ढेले फेंका करते हैं
इसीलिये तो उसका गुस्सा नहीं उतरता!!

भूरे लाल मकोडों को
ज़िंदा ही निगल जाता है अक्सर
बाँह झटक कर नीचे फेंक दिया करता है
“अड्डी-टप्पा” खेलती गोल गिलहरी को
च्यूँटियाँ पाल रखी हैं उसने
टेक लगाए कोइ, या कोइ जूता झाड़े उसपर तो...
च्यूँटियाँ छोड़ दिया करता है!

उसका गुस्सा नहीं उतरता
कोसबाद के नुक्कड़ पर
इक मुस्टंडा पेड़ खडा है इमली का!!

-    गुलज़ार

                                 (पन्द्रह पांच पचहत्तर से)

Sunday, July 3, 2011

अंधेर नगरी में नवरत्नों की सभा

अंधेर नगरी में इन दिनों एक असंतोष की सी स्थिति बनती जा रही है. प्रजा में राजमाता के नवरत्नों की करतूतों को लेकर भी कानाफूसी हो रही है. यह बात और है कि राज्य में भोंपू  पर यह घोषणा होती रहती है कि “हो रही है प्रकाशमान, अंधेर नगरी है महान!” इसके अतिरिक्त राज्य में एक डुगडुगी राजा की भी पदस्थापना की गयी है जिसका काम विरोध के स्वर मुखर करने वाली प्रजा अथवा उनके प्रतिनिधि के प्रति अनर्गल और व्यर्थ प्रलाप करना भर है, ताकि प्रजा उसके शब्दों और बयानों के खंडन में ही उलझी रहे.
किन्तु फिर भी राजमाता ने यह विचार किया कि जब नवरत्नों की करतूतों से प्रजा अप्रसन्न है तो क्यों न उनके विभाग बदल दिए जाएँ. समस्त प्रजा में ऐसा तो है नहीं कि समस्त नवरत्नों के प्रति आक्रोश है. कोइ किसी से चिढा है तो कोइ किसी और से. अतः पुराने चोरों के स्थान पर नए चोरों के आने से एक लाभ यह होता है कि पुराने थाने में नए चोर का कोइ अपराध दर्ज नहीं होता. जनता भूल जाती है पुराने को, क्योंकि नया हमेशा अच्छा होता है ऐसा उन्हें घुट्टी में पिलाया गया है.
राजमाता के गुप्त मंत्रणा-कक्ष में अन्धेर नगरी के नवरत्न और महारत्न ईमानदार सिंह आ चुके थे। सभा प्रारम्भ होने के पहले सबने मिलकर समवेत स्वर में गाया, “हो रहा है प्रकाशमान, अंधेर नगरी है महान!"
ईमानदार सिंह: राजमाता की जय हो! मेरे नियुक्ति-पत्र की प्रस्तावना में वैसे तो लिखा है कि मैं राजमाता की अनुमति के बिना मुख भी नहीं खोल सकता, किन्तु मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि मुझे पदच्यूत कर किसी राजपुरुष को महारत्न का स्थान दिए जाने के प्रयास सक्रिय हैं. मैं जनता में यह घोषणा भी कर चुका हूँ कि इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है. किन्तु मैं यह सोचता हूँ....
(सोचने की बात पर राजमाता ईमानदार सिंह को घूरती हैं)
ईमानदार सिंह: मतलब स्वयं सोचने की धृष्टता की माफी मांगते हुए यह अनुरोध करना चाहता हूँ कि मेरी नियुक्ति पत्र के अनुच्छेद 5 के अनुसार मुझे पद से हटाने की स्थिति में आप कम से कम 3 महीने की पूर्वसूचना अवश्य देंगी। एक बात और राजमाता नवरत्नों के विभागों के विस्तार के विषय में इस बार मुझे कम से कम एक दिन पहले तो बता दिये जायें। पिछली बार तो आपके खरीदे गए भोंपुओं के माध्यम से मुझे पता चला कि मैंने नवरत्नों के विभाग बदल दिए हैं. वस्तुतः इन फेर बदल के बाद जब जब भोंपू संचालक मुझसे इस विषय में प्रश्न पूछते हैं तो मैं उनके सामने एकदम (बीप) दिखाई देता हूँ. हे माताश्री! (लगभग मचलते हुये) बता देंगी न आप मुझे!! वो जो हरे राम बागवानी है ना, वो सबके सामने मुझे कमजोर और कायर कह कर चिढाता है।
राजमाता: और कुछ कहना है तुझे ?

ईमानदार सिंह: हे माते! ये मेरा दाग छुड़ाने का रसायन अब पुराना हो गया है, इससे कालिख के निशान अब नहीं मिटते. मेरी वर्दी भी बहुत गन्दी रहने लगी है। आप अपना स्विसप्रदेश वाला रसायन यदि मुझे भी प्रदान करें तो इस वर्दी को फिर से साफ करने की चेष्टा करूँ.

राजमाता: कुछ दिनों की बात है, न वर्दी रहेगी न दाग. मुझे और भी महत्वपूर्ण काम करने हैं. हाँ तो बाबू मोशाय! तुमसे ही आरम्भ करते हैं!

बाबू मोशाय: राजमाता! मुझे गल्ले पर ही रहने दें। देखिये गल्ले पर किसी (बीप) ने बहुत सारा चिपचिपा चर्वक पदार्थ लगा दिया था और फिर कोई गुप्त यंत्र के द्वारा मेरी बातें सुन रहा था. 

राजमाता: गुप्तचरी की शिकायत से पहले यह बता कि ऐसी कौन सी बातें करता था तू, जिसके सुने जाने का डर सता रहा है तुझे?

बाबू मोशाय: नहीं राजमाता! ऐसी बात नहीं है. दरअसल बहुत सी व्यक्तिगत बातें भी उस यन्त्र द्वारा सुनी गयी होंगी. इसीलिये मैं लजा अनुभव कर रहा हूँ. जैसे मेरा पेट बहुत खराब रहता है और शरीर के अध:निकास द्वार से वायु उत्सर्जन का स्वर. आपके कथनानुसार मैंने तो अब यह मान लिया है कि गुप्तचरी जैसा कुछ हुआ ही नहीं. अतः मेरी यह गुहार है कि गल्ले के लिये मैं ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति हूं. विश्वास न हो तो कृपया राज्य के प्रतिष्ठित बड़े नगरसेठ और छोटे नगरसेठ, दोनों का संस्तुति पत्र देख लिया जाये.

लुंगीभरम: (भीख मांगनें की मुद्रा में) अईयो राजमाता अम्मा! मेरे को मेरा गल्ला वापस मांगता है. लास्ट टाइम जब गल्ला मेरा हाथ में था तब हम अपना स्वामीभक्ति साबित...

राजमाता : (लुंगीभरम की बात बीच में ही काटते हुये) स्वामी नहीं बोलने का. तेरे को मालूम है बस वो भूत का नाम से मेरे को डर लगता है. तेरे मुंह से फिर कभी स्वामी शब्द नहीं नहीं निकलना चहिये, नहीं तो घरेलू विभाग भी जाएगा तेरे हाथ से और स्वामी का भूत पकड़ के ले जाएगा तुझे सबसे पहले!!

लुंगीभरम : (बचाव की मुद्रा में) सत्य वचन राजमाता!! वो (बीप) तो मेरे पीछे भी पड़ गया है। राजमाता! मुझे सुरक्षा विभाग दे दो, क्योंकि सबसे ज्यादा मेरे को सुरक्षा की आवश्यकता है और बिना हींग फिटकिरी के 30% का बट्टा काटने का यह काम मेरे को बरोबर आता है. इस घरेलू विभाग तूफानी तो है पर इसमें मालपानी बिलकुल नहीं. राजमाता अम्मा! युवराज अब बड़े हो गये हैं, उन्हें अगर घरेलू विभाग दे दिया जाये तो वो बेधड़क पूरी अन्धेर नगरी में अपनी स्वच्छंद होकर विचरण कर सकेंगे। (दबी जुबान में बोलते हुये) जवान खून है, यदि घरेलू विभाग के मालिक का मन यदि कभी कभार मचल भी जाये, तो घरेलू मामलों का शोर कहाँ मचता है, सब युवराज स्वयं संभाल लेंगे!!

राजमाता : लुंगीभरम, होल्ड योर टंग! ही इज युवराज फॉर मी, बट फॉर यू फूल्स, ही इज़ द किंग! माइंड इट!  

लुंगीभरम : (भयाक्रांत स्वर में) राजमाता की जय हो!

कुटिल: राजमाता! मैं आपको प्रारम्भ से समझाता हूं कि अन्धेर नगरी में इस समय दो सबसे बड़ी समस्याएं है - सैयां हमारे और जाजा भागलेव. इन (बीपों) को तो मेरे जैसा (बीप) ही (बीप) कर सकता है। देखिये मै यहां स्प्ष्ट कर दूं कि ऐसा मैं किसी भी विभाग को पाने के लिये नहीं कर रहा हूं, ताकि मैं भी कमा सकूं. उसके लिए तो अपनी काली गली वाली दूकान ही काफी है. अपनी विद्वता तो अपनी कुविद्या है. अन्धेरे नगरी में कुविद्या को बढावा देने और अपनी मंडली की कुनीतियों का दसों दिशाओं में प्रचार प्रसार करने के लिए मेरा तर्क यही है कि कुविद्या और दूरसंचार दोनों ही मेरे हवाले रहें। (गुगली मारने के अन्दाज़ में, धीमे स्वर में) राजमाता! उस विदेशी फूलियन फसान्दे से डील हो गयी है! आल इज़ वेल नाऊ!

यम टोनी: राजमाता की जय! माता मुझसे यह सुरक्षा विभाग नहीं सम्भलता. एक ओर तो काला सफेद और लाल इन तीन रंगों के एजेन्टी के पैसे का हिसाब रखो, फिर सेना की मांगें भी पूरी करो। बहुत काम है और मैं अपनी दोनों रानियों को पूरा समय भी नहीं दे पाता हूं। युवराज द किंग (समझदारी दिखाते हुये) को सुरक्षा विभाग भी दिया जा सकता है. मामा करामाती की गोद में खेले हैं हमारे राजा भय्या (बाकी दरबारीयों की ओर हीन भाव से देखते हुये)...उस दिन राजा भय्या हमसे बोले कि चचा टोनी. मनी हैज़ नो कलर!!       

लोटस नाथ: (दोनों हाथ जोड़े विनती की मुद्रा में) राजमाता की जय! माता की प्रेरणा से अपना सपना भी मनी मनी. उसी आशा में मैने जाजा भागलेव के चरण धोये थे कि शायद मान जाये। राजमाता आप मुझे जो भी विभाग दें परंतु मेरी यह प्रतिज्ञा है कि अब मेरे 15% के सुविधा शुल्क में से आधा अंधेर-नगरी के अंधेरगर्दी कोष, स्विसप्रदेश में सीधा भेज दिया जायेगा।

वितृष्णा: राजमाता! परदेस विभाग में रहते हुए मैंने आपकी सभी परदेस यात्राओं के लिये समुचित प्रबन्ध किये। मेरी परदेस यात्रा में भी जो कागज मेरे सामने रखा गया उसे मैने जैसे का तैसा पढ़ा है। मुझे यह विभाग बहुत पसन्द आ रहा है (फिर अज्ञात भय से डरते हुये) नहीं नहीं मैं अपने इलाके में नहीं जाना चाहता. वह जगह मेरे जैसे सभ्यजन के लिये ठीक नहीं है। 

राजमाता: हमें सारी बात समझ में आ गयी है. तुम सब अपनी अपनी हांकने में लगे हो. हमने यह फैसला किया है कि हर ओहदे के लिए तुम सब दावेदार हो. इसलिए हमें बातों से बहलाने के स्थान पर बंद लिफ़ाफ़े में यह लिखकर बताओ कि किस स्थान के बदले में युवराज कोष में कितनी राशि जमा करोगे. जिसकी राशि अधिक होगी उसे वह ओहदा दे दिया जाएगा.

(समवेत स्वर में राजमाता की जय के नारे के मध्य “हो रहा प्रकाशमान! अंधेर नगरी है महान! के गान के साथ सबों का प्रस्थान.)
भोंपू पर भोंपू संचालक यह घोषणा कर रहा था कि राजमाता योग्य व्यक्ति के चयन के बाद जल्द ही घोषणा करेंगी कि कौन सा नवरत्न किस पद को संभालेगा. राजमाता को प्रजा की चिंता है अतः वे नहीं चाहती कि अयोग्य व्यक्ति के हाथ प्रजा का अहित हो!
    
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