सम्वेदना के स्वर

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Tuesday, April 6, 2010

मुर्गा लड़ाई- लखनऊ के चौक से, टेलिविज़न स्टूडियो तक

(चौथे खम्भें मे लगी दीमक भाग -3)


नवाबों का शहर लखनऊ और नवाबी ठाठ का एक नमूना – मुर्गा लड़ाई. मीर और मिर्ज़ा की शतरंज की तरह, मुर्गा लड़ाई भी नवाबी शौक का एक हिस्सा थी. अपने-अपने मुर्गे को दाना पानी खिला-पिलाकर एक दूसरे से भिड़ा देते थे. शहर के चौक पर मुकाबला होता और चारों तरफ लोगों का हुजूम.

इधर मुर्गे उछल-उछल कर एक दूसरे पर चोंच और पंजों से वार करते और उधर लोग चीख-चीखकर मुर्गों की हौसला अफजाई करते. इस चीखोपुकार में कब वो भीड़ सफ़ेद और काले मुर्गे के हक में या खिलाफ खड़ी हो जाती, पता ही नहीं चलता. खेल की शुरुआत में जिस भीड़ की मुर्गों से कोई जान-पहचान भी नहीं होती, खेल के दौरान, काले या सफ़ेद मुर्गे के खेमे में बंट जाती और खेल खतम होने पर उन मुर्गों की हार या जीत पर कभी खुशी कभी गम मनाती हुई लौटती.

खेल के बीच भीड़ के पीछे चुपचाप कुछ सयाने इस लड़ाई को बड़े तजुर्बेकार नज़रों से देखते, तोलते और बोलते कि किस मुर्गे पर बड़ा दांव खेला जा सकता है. बड़े बड़े रईस इनकी राय पर बड़े से बड़ा दांव लगाते. इन मुर्गों पर लगी होती थी नवाबों की दौलत और पुश्तों की कमाई इज्ज़त. ये सयाने दरसल इन नवाबों के आदम मुर्गे होते थे.


वक्त बदला, देश और समाज बदला. जानवरों के खिलाफ अत्याचार की बात संजीदगी से ली जाने लगी और मुर्गा लड़ाई बंद हो गयी. लेकिन इंसान की सिफत है, आदतें मुश्किल से ही जाती हैं. और नशे की आदतें तो जाती ही जान के साथ हैं. नवाबों को नूरा कुश्ती का नशा और सयानों को सौदेबाजी का - इतनी आसानी से कहाँ छूटने वाली हैं ये लतें और ऐसे में भीड़ को भी तो मिलना चाहिये, अपना जोश और गुबार निकालने का कोई ज़रिया..

आज मुर्गा लड़ाई कि ये सांस्कृतिक विरासत संभाली है, हमारे न्यूज़ इंटरटेनमेंट यानि समाचार मनोरंजन चैनलों ने. शहर का चौक बना है उनका स्टूडियो और मुर्गे हैं तीन सियासी पार्टियां... काली, सफ़ेद और चितकबरी. इनको लडाता हुआ जोर जोर से बा-आवाज़-ए-बलंद चीखता रहता है न्यूज़ चैनल का एंकर. ऐसा दिखाने कि कोशिश हो रही होती है कि बस देश कि सूरत बदल डालेंगे. राय, सलाह, चेतावनी, हवाले, इलज़ाम, बचाव, पलटवार... लब्बो-लुआब ये कि कोई भी मुर्गा दूसरे को हराने का कोई भी दांव नहीं छोडना चाहता.

हर चौक पर अलग अलग मुर्गों की लड़ाई चल रही होती है. जहां मुर्गों की अहमियत होती है वहाँ इसे नाम दे दिया “बिग फाईट” (NDTV 24X7) या “मुकाबला” (NDTV INDIA), जहां भीड़ कि अहमियत साबित करनी हुई, वहाँ नाम दिया “we, the people” (NDTV 24X7) या “हम लोग” (NDTV INDIA). कोई कोई तो सीधा नाम दे डालता है “मुद्दा” (IBN7).

नाम चाहे जो भी हो, लड़ाई के उसूल वही रहते हैं और सबकी कोशिश यही हो रही होती है कि कोई हारे भी नहीं और नतीजा भी न निकले. क्योंकि असल मकसद तो साफ़ है कि ज़्यादा से ज्यादा दांव लगें ताकि भरपूर कमाई की जा सके. सप्ताहांत में चलने वाला ये खेल, आने वाले हफ्ते को खनकती शुरुआत जो देता है, सिक्कों की खनक से गूंजती सुनहरी सुबह.

कभी गौर से स्टूडियो में चलने वाली इस लड़ाई को देखें तो आपको जॉर्ज ओरवेल की “एनीमल फ़ार्म” का आखिरी हिस्सा याद आ जाएगा, जहां उन्होंने लिखा था कि उन सबके चेहरे इस क़दर आपस में मिल गए थे कि ये फैसला करना बड़ा ही मुश्किल था कि उनमें आदमी कौन है और “मुर्गा” कौन ?

12 comments:

imemyself said...

सब पैसे का खेल है, सत्ता और सत्ता के दलालों ने पूरे देश को मुर्गा बना रखा है!

Arvind Mishra said...

नए युग की मुर्गा लड़ाई -मजेदार !

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

सशक्त प्रस्तुति...
मजा आ गया.......वाह....बहुत खूब......

Manoj Bharti said...

आज की गला-फाड़ मीडिया छदम पत्रकारिता पर करारा प्रहार ...मुर्गा लड़ाई से आपने हमारे मीडिया और राजनीतिज्ञों के आपसी रिश्तों को और आपसी सांठगांठ को बखूबी खूबसूरती से बता दिया है ... यह करारा विश्लेषण सचमुच मीडिया की आँखे खोल सकता है ...बहुत बढ़िया । इसी प्रकार के सार्थक लेखों की जरूरत मीडिया के लोगों को है... जो उन्हें देश और समाज के असल मुद्दों का रास्ता दिखा सकें ।

रणविजय said...

आपका विश्लेषण बिल्कुल सही है। जो जितना बड़ा जुमलेबाज, उसका धंधा उतना चोखा।

Dev said...

जबर्दस्त अभिव्यक्ति .....आज के समय में हर चीज़ सिर्फ पैसे पर जा टिकी है ....मिडिया का तो पूछना ही नहीं ....

Urmi said...

वाह बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार लगा ये मुर्गा लड़ाई! दिलचस्प और शानदार पोस्ट!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अब मुर्गा लड़ाई की सांस्कृतिक विरासत संभाली है समाचार मनोरंजन चैलनों ने...!
सुंदर प्रस्तुती करारा व्यंग्य।

Unknown said...

ऐसा क्यों लगता है "जैसे भैंस के आगे बिन बजाये भैंस खड़ी पगुराए"
असल में "थेथ्रोलोजी" में जब पी एच डी कर लिए हों
तो बड़ा मजा है
हम भी एड्मिसन के जुगाड़ में है
कम्मे समय में पी एच डी कर लेंगे
तब बताएँगे "स्पेशल थेथ्रोलोजी" होता क्या है

वैसे कोशिश करते जाइये
शायद भैस को बिन सुनाई देने लगे

विनोद कुमार

Unknown said...

शिव प्रिय जी,
शब्दों के तीर से घायल करती
सत्य को उधेड़ती
आपकी अभिव्यक्ति
आपके मन के दर्द को व्यक्त करती
आपकी अभिव्यक्ति
निश्चय ही रंग लाएगी
कामना है, आशा है
ऐसा ही हो
आज नहीं तो कल
कल नहीं तो परसों
पर रंग तो लाएगी ही

विनोद कुमार

chugh parveen said...

मुर्गा लड़ाई या खूनी खेल
http://www.ganganagarpr.com/cock-fight.html

chugh parveen said...
This comment has been removed by the author.
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