सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

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सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Monday, April 26, 2010

भिक्षुक

(फोटो साभार: Ronn Ashore - Flickr)

[वह आता,
दो टूक कलेजे के करता
पछ्ताता पथ पर आता – निराला ]


दिसंबर की ठिठुरती ठंड में
दिल्ली के जनपथ पर
मुझे याद आ गए कविवर निराला
जब दिखा ‘भिक्षुक’ मुझे इक
ख़ुद में गठरी की तरह सिमटा हुआ
और माँगने को रुपए - दो रुपए सभी को ताकता.
उसकी आँखों में था एक प्रतिबिम्ब पीड़ा का
थे पेट और पीठ मिलकर एक होते
भूख से पीड़ित, विवश था माँगने को भीख
इक करुणा भरी आवाज़ देता
“ईश्वर के नाम पर भूखे कुछ भी दे दे बाबा !
एक रुपया दे दे बाबा !!”

थी बड़ी पीड़ा असीम, उसके करुण स्वर में,
थी सच्चाई भरी चेहरे के भावों में,
औ’ मर्मान्तक थी उसकी याचना, जो
बींधती सी पार होती थी हृदय से.

मैंने दस का नोट पाकिट से निकाला,
आँसुओं को रोकने का यत्न करते,
उस भिखारी की फटी झोली में डाला.
एक पल में मैं मुड़ा, निकला वहाँ से.
उसके क्रंदन से तुरत पीछा छुड़ा के.

एक सज्जन हँस के तब कहने लगे,
“ये ऐक्टर हैं साले, सब के सब!
फ़िज़ूल ही आपने पैसे गँवा डाले.”
मैं अपनी गीली आँखों में ज़रा सा मुस्कुराया,
और उन साहब की नासमझी को दुत्कारा.
बस इतना मन ही मन में गुन सका,
यदि ऐक्टिंग है ये तो अद्भुत है!
करोड़ों से तो कम अमिताभ भी लेता नहीं
इस ऐक्टिंग के,
इस बेचारे ने करोड़ों का ख़ज़ाना
कौड़ियों के मोल बेचा है.

तभी जनपथ पे बैठा भीख देखो माँगता है!
तभी जनपथ पे बैठा भीख देखो माँगता है!!

समर्पण:

यह कविता समर्पित है श्री सतीश सक्सेना को,
जिनकी   संवेदना को हम अपने   निकट पाते   हैं.

16 comments:

मनोज भारती said...

एक ययार्थ को बयां करती सुंदर कविता ।

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी पोस्ट।

kshama said...

Ek peedase sarabor rachana...

Lehari. said...

Uncle yeh hamare hindi book me ek chapter tha...bahut hi gehra...purani yaadein taaza ho gayi...

Satish Saxena said...

मैं इस योग्य तो बिलकुल नहीं हूँ कि जिन्हें एक पोस्ट समर्पित की जाए , इस प्यार के प्रतुत्तर में सिर्फ आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ !संवेदना का अर्थ अब लोग भूलते जा रहे हैं , और कहीं दिखती भी है तो केवल दिखावटी ! मानव होने के नाते कम से कम इंसान के कष्ट में खड़े होकर उसे साथ देने का अहसास करा पायें तो यही बहुत है ...शायद हम परम पिता का प्यार पाने में कुछ कामयाब हो सकें !
यही जीवन का आनंद है ! हार्दिक शुभकामनायें

Dev said...

मार्मिक वर्णन .....शब्द नहीं बयाँ करने के लिए .

कविता रावत said...

मार्मिक यथार्थपरक रचना..... गहरी संवेदना के साथ...
आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस रचना से आपकी संवेदनशीलता दिखती है....मर्मस्पर्शी रचना..और लोगों का ऐक्टर वाला नजरिया भी बन जाता है जब कभी ऐसे ऐक्टर भिक्षुक के द्वारा बेवकूफ बने हों....आपको बाबा भारती की कहानी...हार की जीत याद होगी..जैनेन्द्र कुमार जैन की लिखी हुई है...

इस रचना ने गहरे तक असर किया ...

रचना दीक्षित said...

उफ्फ्फ !!!!मार्मिक

kunwarji's said...

मार्मिक!तब आप रोये अब सभी पढने वाले रो रहे होंगे!अद्भुत,भावो को शब्द दिए आपने!

कुंवर जी,

स्वप्निल तिवारी said...

adbhutttttttttttt......... nazariya badlne wali rachna hai .... ant behad tarkik hai ..behad mramsparshi hai sir... haan kabhi kabhi ho jata hai aisa.. ki e log bewaquf banate hain ..par milawat to har jagah hai ,,kuch bhikhari peshewar hain to kya hua..garibi pesha karne par mzboor karti hai ..kaudiyon ke bhav aisa talent bik jata hai .. :(

Apanatva said...

aapkee ye samvedana kee jhalak mujhe aapke dwara kisee bhee blog kee tippanee me bhee dikhtee hai.aapke lekhan pratibha ko naman...
shubhkamnae....

संजय भास्‍कर said...

गहरे तक असर किया ...

Unknown said...

मन की पीड़ा की अभिव्यक्ति के लिए
ऐसे शब्द !
बिरले ही मिलते है
काश ! आपकी नजरो से आस पास देख पता
विनोद कुमार

Brahmachari Prahladanand said...

भिक्षुक
भगवान् को पाने का जो इक्षुक होता है वह भिक्षुक होता है |
भगवान् के नाम पर किसी से धन माँगनेवाले को भिक्षुक नहीं कहते हैं |
उसे तो याचक कहते हैं |
जो याचना करता है |
यह याचना भगवान् से नहीं होती है यह याचना होती है उससे जो अपने धन के गर्व के सीना फुलाएं घूमता है |
और यह याचक उस गर्वीले के गर्व का फायदा उठाता है और वह गर्वीला ही अपने आपको फिर भगवान् समझने लगता है |
ऐसे धन के गर्वीले जो अपने आपको दाता - अन्नदाता - भगवान् - कहलाने में ही अपना गर्व समझते हैं |
भिक्षुक तो किसी से कुछ मांगता नहीं है |
उसे तो बिना मांगे ही इतना मिलता है की और लोग उससे लेने आते हैं |
जैसे सिरडी के साईं बाबा |

अजय दत्ता said...

बहुत अच्छी कविता!!

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