अमृत दिया ज़हर पाया –1 ...............
(उसने बिना कुछ कहे दरवाजा बंद कर दिया। नाश्ता कोई बहुत ज्यांदा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्या् था मैं पहचान नहीं पाया—स्वानदहीन, गंधहीन।)
अमृत दिया ज़हर पाया –2 ...............
(यह सवाल नहीं है कि मुझे कौन सा जहर दिया गया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि रोनाल्डं रीगन के अमरीकी शासन ने मुझे जहर दिया है।)
और अब अंतिम कड़ी :
(उसने बिना कुछ कहे दरवाजा बंद कर दिया। नाश्ता कोई बहुत ज्यांदा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्या् था मैं पहचान नहीं पाया—स्वानदहीन, गंधहीन।)
अमृत दिया ज़हर पाया –2 ...............
(यह सवाल नहीं है कि मुझे कौन सा जहर दिया गया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि रोनाल्डं रीगन के अमरीकी शासन ने मुझे जहर दिया है।)
और अब अंतिम कड़ी :
इसके लिए और भी परिस्थितिगत प्रमाण है। चूंकि उसके पास मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं था—मैंने कोई जुर्म नहीं किया था—उन्होंने मेरे अटर्नियों को ब्लैकमेल करने की कोशिश की, जो कि अमरीका के सर्वश्रेष्ठ अटर्नी थे। सर्वोच्च न्यांयालय के अटर्नियों ने मेरे अटर्नियों से कहां: ‘’अगर आपको भगवान की जान बचानी है तो उचित होगा कि आप मुकदमा न लड़े। क्यों कि आप जानते है और हम भी जानते है कि उन्हों ने कोई जुर्म नहीं किया है और सारे के सारे 35 या 36 इल्जाम झूठे है। लेकिन किसी भी सूरत में अमरीकी शासन एक अकेले व्येक्ति से मुकदमा हारना नहीं चाहेगा।
उन्होंने इस मुकदमे का नाम रखा था: ‘’संयुक्त राज्य अमेरिका—विरूद्ध—भगवान श्री रजनीश।‘’ अब विश्व का सबसे शक्तिशाली देश, इतिहास की सबसे बड़ी सत्ता स्व्भावत: अदालत में एक सत्ताविहीन व्यक्ति’ से हारना नहीं चाहेगा।
मेरे अटर्नी आंखों में आंसू लिए मेरे पास आए। उन्होंने कहा, ‘’हम आपकी रक्षा करने के लिए है लेकिन वह असंभव जान पड़ता है। हम मुकदमा लड़ने की जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि हमें बहुत प्रत्यक्ष रूप से बताया गया है कि आप की जान खतरे में है। तो आपकी और से हम नाममात्र के लिए दो इलज़ामों को स्वीकार करने के लिए राज़ी हो गये है—सिर्फ अमरीकी सरकार की इज्जत रखने के लिए। ताकि वे आपको दंडित करके इस देश से निष्कासित कर सकें।‘’
यह बातचीत अदालत के शुरू होने के सिर्फ दस मिनट पहले हुई। और संघीय अदालत के न्यायाधीश ‘’लेवी’’ ने मुझे सिर्फ उन दो( इलज़ामों) के बारे में पूछा, जिन्हें कबूल करने का फैसला मेरे अटर्नियों ने किया था कि पैंतीस इलज़ामों में से न्यायाधीश ‘’लेवी’’ ने मुझे तत्क्षण दो के संबंध में पूछा: आप इन दो मामलों के संबंध में अपराधी है या नहीं? जाहिर है कि न्यायाधीश ‘’लेवी’’ भी इस पूरे षडयंत्र का हिस्सा थे।
उसने तुरंत अपना फैसला सुनाया। यह भी एक आश्चर्य कि बात है। मेरे स्वींकार या अस्वीकार के बाद फैसला लिखा जाना चाहिए। लेकिन फैसला पहले से ही तैयार था। वह मेज पर रख ही था। उसने सिर्फ उसे पढ़कर सुनाया। शायद यह फैसला उन्होंने भी न लिखा हो। शायद वह उसको दे दिया गया हो।
और फैसला यह था कि मुझे चार लाख डालर का दंड दिया जाता है। मेरे अटर्नियों को बड़ा धक्का लगा, उन्हें तो यकीन ही नहीं हुआ कि उन दो औपचारिक इलज़ामों के लिए जो झूठे थे, करीब-करीब आधे करोड़ रुपयों से भी अधिक दंड दिया गया था। उसके साथ, अमरीका से निर्वासन, पाँच साल तक प्रवेश नहीं; और अगर मैंने प्रवेश किया तो दस साल का निलंबित कारावास। और मुझसे कहा गया कि मुझे इसी वक्त कैद खाने से मेरे कपड़े उठाने है और हवाई अड्डे पर मेरा हवाई जहाज इंतजार कर रहा है। मुझे तुरंत अमरीका छोड़ना है। ताकि मैं उच्चतर अदालत में अपील न कर सकूँ।
मुझे कैद खाने ले जाया गया। पोर्टलैंड का कैद खाना सर्वाधिक आधुनिक है। वह हाल ही में बनाया गया था। अभी तीन महीने पहले ही उसका उदघाटन हुआ था। वह अत्याधुनिक है। सारे आधुनिक सुरक्षा के उपकरण साधन….जैसे ही मैं भीतर प्रवेश किया, पहली मंजिल बिलकुल खाली थी। वहां सब तरह के दफ्तर थे। लेकिन आज इस समय उन दफ़्तरों में कोई नहीं था। जो आदमी मुझे वहां ले गया था मैंने उससे पूछा क्या: ‘’कारण है कि पूरी पहली मंजिल खाली क्यों है।‘’
उसने कहा: ‘’मुझे पता नहीं है।‘’ लेकिन मैंने उसकी आंखों में देखा और मैंने देखा कि उसे पता है।
जब मुझे अंदर ले जाया गया तो वहां कमरे में सिर्फ एक आदमी था। दूसरा आदमी तुरंत बाहर चला गया। और कमरे के भीतर जो आदमी था उसने मुझे एक खास तरह की कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। यह भी अजीब बात थी। क्योंकि वहां बहुत-सी कुर्सीया थीं। मैं कोई भी चुन सकता था। लेकिन उसने इशारा किया। कि मैं इस कुर्सी पर बैठूं। ‘’और मैं अपने अधिकारी के दस्तखत लेने जा रहा हूं तो आपको कम से कम दस-पंद्रह मिनट यहां रूकना होगा।
बाद में मुझे पता चला कि किसी अधिकारी के दस्तखत की कोई जरूरत नहीं थी। मैं खुद उस फार्म को देख रहा था। और मैंने उस आदमी से पूछा। तुम्हारे अधिकारी के दस्तदखत कहां है? इनकी कोई जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो मेरे दस्तखत की, मुझे अपने कपड़े मिल गये है। और किसी अधिकारी के दस्तखत नहीं चाहिए।‘’
वह इतना घबरा गया था की वातानुकूलित कमरे में भी उसे पसीना छूट रहा था। और चूंकि फार्म उसके हाथ में था वह फार्म कंप रहा था, उसका हाथ कंप रहा था।
जैसे ही मैं हवाई अड्डे पहुंचा, तत्क्षण मैंने यह अफवाह सुनी कि मैं जिस कुर्सी पर पंद्रह मिनट तक बैठा था, उसके नीचे एक बम मिला। शायद ऐसी व्यवस्था थी की यदि मैं मुकदमे का आग्रह करता हूं और दो अपराधों को स्वीककार नहीं करता तो बम उड़ा कर मुझे खत्म कर देना ही ठीक है। इसीलिए पूरी पहली मंजिल खाली थी। और उस कमरे में जो आदमी जो मुझे मेरे कपड़े देने वाला था। वह अधिकारी के दस्तखत लेने के बहाने भाग गया। और उसने बाहर से दरवाजे को ताला लगा दिया। लेकिन चूंकि मैंने अपराध स्वीकार कर लिया था। और मुझे तुरंत अमरीका छोड़ने का आदेश दिया गया था। इसलिए बम का विस्फोरट नहीं किया गया। वह पूछने गया होगा कि उसे क्या करना है क्यों कि उसे पता नहीं था कि अदालत में क्या हुआ है।
मेरे एक अटर्नी—जो कि मेरे संन्यासी भी हैं—स्वामी प्रेम नीरेन यहां उपस्थित है। दो साल पहले अमरीका में जब मैंने उनसे विदा ली थी तब उनकी आंखों में आंसू थे। आज भी उनकी आंखों में आंसू—प्रेम और श्रद्धा के आंसू; और आदमी की आदिम, पाशविक और हिंसक परंपरा के आगे अपरिसीम असहायता के आंसू।
इस तरह के आंसू ही यह आशा जगाते है कि एक दिन आदमी इस पाशविकता के शिकंजे से बाहर जरूर निकलेगा।
मैं सुनिश्चित रूप से कहता हूं, कि मुझे जहर दिया गया है। और ये सात सप्ताह मैंने आत्यंतिक संघर्ष से बिताए है।
कोई कारण नहीं है कि मैं इस संसार में क्यों जीऊं। शाश्वत जीवन का सारतत्व मैंने अनुभव कर लिया है। जान लिया है। लेकिन इससे पहले कि मैं उस पार, दूसरे किनारे की यात्रा पर निकल पडूं, कोई चीज है जो मुझे इस किनारे पर कुछ देर और ठहरने पर मजबूर कर रही है।
वह तुम हो, वह तुम्हारा प्रेम है। वह तुम्हारी आंखे है, वह तुम्हारा ह्रदय है। और जब मैं कहता हूं, ‘’तुम’’ तो मेरा मतलब सिर्फ उन लोगों से नहीं है जो यहां उपस्थित है; मेरा मतलब उन लोगों से भी है, जो विश्वभर में फैले हुए हैं—मेरे लोग।
मैं चाहूंगा कि ये नन्हें –नन्हें अंकुर वृक्ष बन जाएं। मैं देखना चाहूंगा कि तुम्हारे जीवन में वसंत आ गया है। तुम्हारी परम चेतना खिल गई है। बुद्धत्व के आनंद से और मस्ती से आपूर तुम छलक रहे हो, तुम्हें परमात्मा का स्वाद मिल गया है।
मेरा बगीचा अभी भी एक नर्सरी है। जिस दिन मैं देखूँगा कि तुम खिल गए हो, तुमने अपनी सुगंध बिखेर दी है। और तुम अपनी नियति को उपलब्धख हो गए हो, उस दिन मैं प्रसन्नतापूर्वक यह शरीर छोड़ दूँगा कि तुम सबके लिए यह महातीर्थ यात्रा—यहां से यहां तक, सूली से पुनरुज्जीवन तक। समाप्ति हुई। उस दिन में नाचते हुए ह्रदय से विदा ले सकूंगा। और परम चैतन्य् में विलीन हो जाऊँगा।
और वहां भी में तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहूंगा।
मैं चाहूंगा मेरे लोग स्वयं को रूपांतरित करें और उनके द्वारा इस प्यारे ग्रह पर प्रामाणिक सभ्यता और मानवता आए।
एक ही धर्म है; और पूरी मनुष्यता एक है। हम एक-दूसरे के अंग है।
जिन्होंने मुझे जहर दिया उनके प्रति मेरी कोई शिकायत नहीं है। उन्हें क्षमा करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है। वे जो किये चले जा रहे है। उसका उन्हें जरा भी होश नहीं है।
कहते है इतिहास अपनी पुनरूक्ति करता है। इतिहास अपनी पुनरूक्तिं नहीं करता, वह तो मनुष्य की मूर्च्छा है, मनुष्य का अंधापन है जो अपनी पुनरूक्ति करता है। जिस दिन मनुष्य सचेतन, सजग, होश पूर्व होगा उस दिन के बाद कोई पुनरूक्ति नहीं होगी। सुकरात को जहर नहीं दिया जायेगा। जीसस को सूली नहीं दी जायेगी। अल-हिल्लाल-मंसुर की हत्या कर उसके टुकडे-टुकडे नहीं किए जाएंगे। और ये हमारे श्रेष्ठतम फूल है। ये हमारे उच्चतम शिखर है। ये हमारी नियति हैं, हमारे भविष्य है। वे हमारी अंतर्हित संभावना हैं जो साकार हो गई है।
ओशो
(सत्यम् शिवम् सुंदरम् पुस्तयक से)