सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Monday, June 20, 2011

अमृत दिया ज़हर पाया – अंतिम कड़ी

अमृत दिया ज़हर पाया –1 ...............

(उसने बिना कुछ कहे दरवाजा बंद कर दिया। नाश्ता कोई बहुत ज्यांदा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्या् था मैं पहचान नहीं पाया—स्वानदहीन, गंधहीन।)

अमृत दिया ज़हर पाया –2 ...............
(यह सवाल नहीं है कि मुझे कौन सा जहर दिया गया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि रोनाल्डं रीगन के अमरीकी शासन ने मुझे जहर दिया है।)

और अब अंतिम कड़ी :

इसके लिए और भी परिस्थितिगत प्रमाण है। चूंकि उसके पास मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं था—मैंने कोई जुर्म नहीं किया था—उन्होंने मेरे अटर्नियों को ब्लैकमेल करने की कोशिश की, जो कि अमरीका के सर्वश्रेष्ठ अटर्नी थे। सर्वोच्च न्यांयालय के अटर्नियों ने मेरे अटर्नियों से कहां: ‘’अगर आपको भगवान की जान बचानी है तो उचित होगा कि आप मुकदमा न लड़े। क्यों कि आप जानते है और हम भी जानते है कि उन्हों ने कोई जुर्म नहीं किया है और सारे के सारे 35 या 36 इल्जाम झूठे है। लेकिन किसी भी सूरत में अमरीकी शासन एक अकेले व्येक्ति से मुकदमा हारना नहीं चाहेगा।

उन्होंने इस मुकदमे का नाम रखा था: ‘’संयुक्त राज्य अमेरिका—विरूद्ध—भगवान श्री रजनीश।‘’ अब विश्व का सबसे शक्तिशाली देश, इतिहास की सबसे बड़ी सत्ता स्व्भावत: अदालत में एक सत्ताविहीन व्यक्ति’ से हारना नहीं चाहेगा।

मेरे अटर्नी आंखों में आंसू लिए मेरे पास आए। उन्होंने कहा, ‘’हम आपकी रक्षा करने के लिए है लेकिन वह असंभव जान पड़ता है। हम मुकदमा लड़ने की जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि हमें बहुत प्रत्यक्ष रूप से बताया गया है कि आप की जान खतरे में है। तो आपकी और से हम नाममात्र के लिए दो इलज़ामों को स्वीकार करने के लिए राज़ी हो गये है—सिर्फ अमरीकी सरकार की इज्जत रखने के लिए। ताकि वे आपको दंडित करके इस देश से निष्कासित कर सकें।‘’

यह बातचीत अदालत के शुरू होने के सिर्फ दस मिनट पहले हुई। और संघीय अदालत के न्यायाधीश ‘’लेवी’’ ने मुझे सिर्फ उन दो( इलज़ामों) के बारे में पूछा, जिन्हें कबूल करने का फैसला मेरे अटर्नियों ने किया था कि पैंतीस इलज़ामों में से न्यायाधीश ‘’लेवी’’ ने मुझे तत्क्षण दो के संबंध में पूछा: आप इन दो मामलों के संबंध में अपराधी है या नहीं? जाहिर है कि न्यायाधीश ‘’लेवी’’ भी इस पूरे षडयंत्र का हिस्सा थे।

उसने तुरंत अपना फैसला सुनाया। यह भी एक आश्चर्य कि बात है। मेरे स्वींकार या अस्वीकार के बाद फैसला लिखा जाना चाहिए। लेकिन फैसला पहले से ही तैयार था। वह मेज पर रख ही था। उसने सिर्फ उसे पढ़कर सुनाया। शायद यह फैसला उन्होंने भी न लिखा हो। शायद वह उसको दे दिया गया हो।

और फैसला यह था कि मुझे चार लाख डालर का दंड दिया जाता है। मेरे अटर्नियों को बड़ा धक्का लगा, उन्हें तो यकीन ही नहीं हुआ कि उन दो औपचारिक इलज़ामों के लिए जो झूठे थे, करीब-करीब आधे करोड़ रुपयों से भी अधिक दंड दिया गया था। उसके साथ, अमरीका से निर्वासन, पाँच साल तक प्रवेश नहीं; और अगर मैंने प्रवेश किया तो दस साल का निलंबित कारावास। और मुझसे कहा गया कि मुझे इसी वक्त कैद खाने से मेरे कपड़े उठाने है और हवाई अड्डे पर मेरा हवाई जहाज इंतजार कर रहा है। मुझे तुरंत अमरीका छोड़ना है। ताकि मैं उच्चतर अदालत में अपील न कर सकूँ।

मुझे कैद खाने ले जाया गया। पोर्टलैंड का कैद खाना सर्वाधिक आधुनिक है। वह हाल ही में बनाया गया था। अभी तीन महीने पहले ही उसका उदघाटन हुआ था। वह अत्याधुनिक है। सारे आधुनिक सुरक्षा के उपकरण साधन….जैसे ही मैं भीतर प्रवेश किया, पहली मंजिल बिलकुल खाली थी। वहां सब तरह के दफ्तर थे। लेकिन आज इस समय उन दफ़्तरों में कोई नहीं था। जो आदमी मुझे वहां ले गया था मैंने उससे पूछा क्या: ‘’कारण है कि पूरी पहली मंजिल खाली क्यों है।‘’

उसने कहा: ‘’मुझे पता नहीं है।‘’ लेकिन मैंने उसकी आंखों में देखा और मैंने देखा कि उसे पता है।

जब मुझे अंदर ले जाया गया तो वहां कमरे में सिर्फ एक आदमी था। दूसरा आदमी तुरंत बाहर चला गया। और कमरे के भीतर जो आदमी था उसने मुझे एक खास तरह की कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। यह भी अजीब बात थी। क्योंकि वहां बहुत-सी कुर्सीया थीं। मैं कोई भी चुन सकता था। लेकिन उसने इशारा किया। कि मैं इस कुर्सी पर बैठूं। ‘’और मैं अपने अधिकारी के दस्तखत लेने जा रहा हूं तो आपको कम से कम दस-पंद्रह मिनट यहां रूकना होगा।

बाद में मुझे पता चला कि किसी अधिकारी के दस्तखत की कोई जरूरत नहीं थी। मैं खुद उस फार्म को देख रहा था। और मैंने उस आदमी से पूछा। तुम्हारे अधिकारी के दस्तदखत कहां है? इनकी कोई जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो मेरे दस्तखत की, मुझे अपने कपड़े मिल गये है। और किसी अधिकारी के दस्तखत नहीं चाहिए।‘’

वह इतना घबरा गया था की वातानुकूलित कमरे में भी उसे पसीना छूट रहा था। और चूंकि फार्म उसके हाथ में था वह फार्म कंप रहा था, उसका हाथ कंप रहा था।

जैसे ही मैं हवाई अड्डे पहुंचा, तत्क्षण मैंने यह अफवाह सुनी कि मैं जिस कुर्सी पर पंद्रह मिनट तक बैठा था, उसके नीचे एक बम मिला। शायद ऐसी व्यवस्था थी की यदि मैं मुकदमे का आग्रह करता हूं और दो अपराधों को स्वीककार नहीं करता तो बम उड़ा कर मुझे खत्म कर देना ही ठीक है। इसीलिए पूरी पहली मंजिल खाली थी। और उस कमरे में जो आदमी जो मुझे मेरे कपड़े देने वाला था। वह अधिकारी के दस्तखत लेने के बहाने भाग गया। और उसने बाहर से दरवाजे को ताला लगा दिया। लेकिन चूंकि मैंने अपराध स्वीकार कर लिया था। और मुझे तुरंत अमरीका छोड़ने का आदेश दिया गया था। इसलिए बम का विस्फोरट नहीं किया गया। वह पूछने गया होगा कि उसे क्या करना है क्यों कि उसे पता नहीं था कि अदालत में क्या हुआ है।

मेरे एक अटर्नी—जो कि मेरे संन्यासी भी हैं—स्वामी प्रेम नीरेन यहां उपस्थित है। दो साल पहले अमरीका में जब मैंने उनसे विदा ली थी तब उनकी आंखों में आंसू थे। आज भी उनकी आंखों में आंसू—प्रेम और श्रद्धा के आंसू; और आदमी की आदिम, पाशविक और हिंसक परंपरा के आगे अपरिसीम असहायता के आंसू।

इस तरह के आंसू ही यह आशा जगाते है कि एक दिन आदमी इस पाशविकता के शिकंजे से बाहर जरूर निकलेगा।

मैं सुनिश्चित रूप से कहता हूं, कि मुझे जहर दिया गया है। और ये सात सप्ताह मैंने आत्यंतिक संघर्ष से बिताए है।

कोई कारण नहीं है कि मैं इस संसार में क्यों जीऊं। शाश्वत जीवन का सारतत्व मैंने अनुभव कर लिया है। जान लिया है। लेकिन इससे पहले कि मैं उस पार, दूसरे किनारे की यात्रा पर निकल पडूं, कोई चीज है जो मुझे इस किनारे पर कुछ देर और ठहरने पर मजबूर कर रही है।

वह तुम हो, वह तुम्हारा प्रेम है। वह तुम्हारी आंखे है, वह तुम्हारा ह्रदय है। और जब मैं कहता हूं, ‘’तुम’’ तो मेरा मतलब सिर्फ उन लोगों से नहीं है जो यहां उपस्थित है; मेरा मतलब उन लोगों से भी है, जो विश्वभर में फैले हुए हैं—मेरे लोग।

मैं चाहूंगा कि ये नन्हें –नन्हें अंकुर वृक्ष बन जाएं। मैं देखना चाहूंगा कि तुम्हा‍रे जीवन में वसंत आ गया है। तुम्हारी परम चेतना खिल गई है। बुद्धत्व के आनंद से और मस्ती से आपूर तुम छलक रहे हो, तुम्हें परमात्मा का स्वाद मिल गया है।

मेरा बगीचा अभी भी एक नर्सरी है। जिस दिन मैं देखूँगा कि तुम खिल गए हो, तुमने अपनी सुगंध बिखेर दी है। और तुम अपनी नियति को उपलब्धख हो गए हो, उस दिन मैं प्रसन्नतापूर्वक यह शरीर छोड़ दूँगा कि तुम सबके लिए यह महातीर्थ यात्रा—यहां से यहां तक, सूली से पुनरुज्जीवन तक। समाप्ति हुई। उस दिन में नाचते हुए ह्रदय से विदा ले सकूंगा। और परम चैतन्य् में विलीन हो जाऊँगा।

और वहां भी में तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहूंगा।

मैं चाहूंगा मेरे लोग स्व‍यं को रूपांतरित करें और उनके द्वारा इस प्यारे ग्रह पर प्रामाणिक सभ्यता और मानवता आए।

एक ही धर्म है; और पूरी मनुष्यता एक है। हम एक-दूसरे के अंग है।

जिन्होंने मुझे जहर दिया उनके प्रति मेरी कोई शिकायत नहीं है। उन्हें क्षमा करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है। वे जो किये चले जा रहे है। उसका उन्हें जरा भी होश नहीं है।

कहते है इतिहास अपनी पुनरूक्ति करता है। इतिहास अपनी पुनरूक्तिं नहीं करता, वह तो मनुष्य की मूर्च्छा है, मनुष्य का अंधापन है जो अपनी पुनरूक्ति करता है। जिस दिन मनुष्य सचेतन, सजग, होश पूर्व होगा उस दिन के बाद कोई पुनरूक्ति नहीं होगी। सुकरात को जहर नहीं दिया जायेगा। जीसस को सूली नहीं दी जायेगी। अल-हिल्लाल-मंसुर की हत्या कर उसके टुकडे-टुकडे नहीं किए जाएंगे। और ये हमारे श्रेष्ठतम फूल है। ये हमारे उच्चतम शिखर है। ये हमारी नियति हैं, हमारे भविष्य है। वे हमारी अंतर्हित संभावना हैं जो साकार हो गई है।

ओशो
(सत्यम् शिवम् सुंदरम् पुस्तयक से)

Saturday, June 18, 2011

अमृत दिया ज़हर पाया - 2

उसने बिना कुछ कहे दरवाजा बंद कर दिया। नाश्‍ता कोई बहुत ज्‍यादा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्‍या था मैं पहचान नहीं पाया—स्‍वादहीन, गंधहीन। पिछले अंक से आगे 

अब डा. अमृतो यह महसूस करता है कि मुझे जहर दिया गया था। शायद सभी छह कैद खानों में मुझे जहर दिया गया था। मुझे जमानत न देने के पीछे यही कारण था और छह घंटे की यात्रा के लिए बारह दिन लगा देने के पीछे यहीं उदेश्य था: एक धीरे-धीरे कमजोर कर देगा। और उसने मुझे कमजोर कर दिया है।

अमरीका कैद खानों में वे बारह दिन बिताने के बाद मेरी सारी निंद्रा खो गई है। मेरे शरीर में कई ऐसी चीजें होने लगी जो पहले नहीं होती थी। भूख बिलकुल गायब हो गई, भोजन एकदम बेस्वाद लगने लगा। पेट मरोड़ने लगा, जी मिलाने लगा, उलटी करने का भाव, प्यास भी खो गई। और एक जबरदस्त अहसास….जैसे मेरी जड़ें उखड रही है।

लगता था जैसे स्नायु तंत्र में भी कुछ प्रभावित हो गया था। कभी-कभी पूरे शरीर में झुनझुनी सी फैलने लगती, जो खास कर मेरे दोनों हाथों में बड़ी प्रगाढता से महसूस होती। और पलकें भी ऐंठ जाती।

जिस दिन मैंने कैद खाने में प्रवेश किया उस दिन मेरा वजन 150 पौंड था। और आज मेरा वजन केवल 130 पौंड है। मेरा भोजन वहीं है लेकिन मेरा वजन बिना किसी कारण के घट रहा है। और एक सूक्ष्म कमजोरी….ओर तीन महीने पहले मेरे दाहिने हाथ की हड्डी में भयंकर पीडा होने लगी।

ये सब एक खास किस्मा के जहर के लक्षण है। मेरे बाल गिर गए है। मेरी आंखें कमजोर हो गई है। और मेरी दाढ़ी के बाल इतने सफेद हो गए है जितने के मेरे पिता के पचहत्तर साल की आयु में थे। अमरीका में, उन्होंने मेरी जिंदगी के करीब-करीब बीस साल कम कर दिए।

डा. अमृतो ने तत्क्षण सभी संन्यामसी डॉक्टरों को सूचित किया कि विष-प्रयोग संबंधी विश्व के जो भी विशेषज्ञ है उनसे संपर्क बनाएँ और उनमें से एक डा. ध्यान योगी ने तत्क्षण मेरे खून और पेशाब के नमूना लिये, कुछ बाल लिए और वे लंदन तथा जर्मनी के सर्वश्रेष्ठश विशेषज्ञों के पास गए। यूरोप के विशेषज्ञों का सुझाव यह था कि ऐसा कोई जहर नहीं है जो दो सालों के बाद शरीर में पाया जाए। लेकिन सारे लक्षण बताते है एक खास किस्म का जहर दिया गया है।

बीमारी के कारण कोई प्रतिरोधक न होना। अकारण वज़न कम होना, समय से पहले बालों का सफेद हो जाना,अकारण बालों का गिरना,झनझनाहट जैसी संवेदना का अतिरेक,भूख न लगना, स्वादहीनता, मितली, मेरे दाहिने हाथ की हड्डी का दर्द……जर्मनी के एक कुशल डाक्टार दो बार मेरे हाथ की जांच करने आए थे और उनकी समझ में नहीं आया था कि यह किस तरह की बीमारी है। क्योंकि जो मुझसे कोई बीमारी ही नहीं है। यहां के विशेषज्ञ डा. हार्डी कर जो मुझे प्रेम करते है। वे यहां आते रहे है। और तीन महीनों तक सतत निरीक्षण करते रहे है। लेकिन वे भी कुछ समझ नहीं पाए कि यह दर्द क्यों होता है।

इंग्लैंड और जर्मनी के विशेषज्ञों के एक विशिष्ट् जहर के नाम का सुझाव दिया है, थैलीयम, भारी धातुओं के जो जहर होते है, उस वर्ग का यह जहर है। वह शरीर के भीतर से आठ सप्ताह में निकल जाता है। लेकिन अपने परिणाम छोड़ जाता है और शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति है उसे नष्ट कर देता है। और मैंने तुम्हें जो भी लक्षण बताये है ये सब थैलीयम जहर के परिणाम है।

अमेरिकन विशेषज्ञों ने एक अलग ही जहर की और संकेत किया है, जो उनके विचार में,शासन विद्रोही व्यऔक्तिहयों के लिए उपयोग करता रहा है। उस जहर का नाम है, ‘’सिंथटिक हेरोइन।‘’ यह साधारण हेरोइन से हजार गूण ज्यादा खतरनाक है। और दो साल के बाद इसके कोई निशान पाये जाने की संभावना नहीं होती।

जापानी विशेषज्ञ जो रेडियोधर्मी ता के संबंध मे हिरोशिमा और नागासाकी में अन्वेषण कर रहे थे। उनका कहना है कि ये लक्षण रेडियोधर्मी प्रभाव से बड़े परिष्कृत ढंग से पैदा किए जाते है।

डा. अमृतो का अपना अन्वेषण…..ओर वह चिकित्सा विज्ञान का अत्यंत प्रतिभाशाली डाक्टर है। उसके पास सारी उच्चरतम उपाधियां हैं। उसके एक चौथे जहर की खोज की है जिसका विरले ही उपयोग किया जाता है। उस जहर का नाम है ‘’फ्रुरोकार्बन।‘’ यह कुछ मिनटों के भीतर ही विलीन हो जाता है। खून में या पेशाब में उसके कोई निशान नहीं मिलते लेकिन ये सारे लक्षण उसी की और इंगित करते है।

यह सवाल नहीं है कि मुझे कौन सा जहर दिया गया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि रोनाल्ड रीगन के अमरीकी शासन ने मुझे जहर दिया है।
                                                                                                                        (अगले अंक में समाप्त)

ओशो
(सत्यम् शिवम् सुंदरम् पुस्तक से)

Friday, June 17, 2011

अमृत दिया - ज़हर पाया!!


सात सप्‍ताह पूर्व मेरे कान में कुछ तकलीफ शुरू हुई। बात जरा सी थी। यहां के जो सर्वश्रेष्‍ठ विशेषज्ञ है, डा. जोग, उनके अनुसार उसे ज्‍यादा से ज्‍यादा चार दिन में ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन वह बीमारी सात सप्‍ताह तक चलती रही। उन्‍होंने अपने जीवन में ऐसा उदाहरण कभी नहीं देखा।
वे हैरान हो गए क्‍योंकि कोई भी दवा कारगर नहीं हो रहीं है। उन्‍होंने सब तरह की दवाओं को, सब तरह के मलहमों का उपयोग करके देख लिया। अंतत: उन्‍हें आपरेशन करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उस आपरेशन का घाव ही नहीं भर रहा था।

मेरे डेंटिस्‍ट डा. देव गीत ने सोचा , शायद मेरे दांतों से उसका कोई संबंध होलेकिन कुछ भी नहीं मिला। मेरे निजी चिकित्‍सक डा. अमृतो ने तत्‍क्षण विश्‍व के सारे संन्‍यासी डॉक्टरों को सुचित किया कि वे विषाक्‍ती करण के सभी विशेषज्ञों से संपर्क बनाये। क्‍योंकि उसका अपना विश्‍लेषण यह था कि अगर मुझे विष नहीं दिया गया है तो कोई कारण नहीं है कि मेरे शरीर ने सारा प्रतिरोध क्‍यों छोड़ दिया।

और जैसे-जैसे यह ख्‍याल उसके भीतर जोर पकड़ता गया, वह कदम-दर-कदम इस मामले की छानबीन करने लगा। और उसे वह सारे लक्षण दिखाई दिये। जो तभी प्रकट हो सकते है जब किसी प्रकार का मुझे जहर दिया गया हो।

मुझे खुद यह संदेह हो रहा था लेकिन मैंने यह बात किसी से कही नहीं। जिस दिन बगैर किसी वैद्य या अवैद्य कारण के मुझे अमेरिका में गिरफ्तार किया गया। और उसके बाद जब बिना कोई ठोस आधार होते हुए भी उन्‍होंने मुझे जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया। तो मुझे लगा था कि जरूर दाल में कुछ काला होगा।

वे बारह दिन तक मुझे एक जेल से दुसरी जेल ले जाते रहे। बारह दिनों में मुझे छह कैद खानों से गुजरना पडा जो शायद पूरे अमेरिका में फैले हुए थे।

ओक्‍लाहोमा जेल में मेरा संदेह पक्‍का हो गया। क्‍योंकि वहां मुझे आधी रात गए एक सुनसान हवाई अड्डे पर उतारा गया। और मुझे अपने कब्‍जे में लेने के लिए स्‍वयं अमरीकी मार्शल वहां पर मौजूद वह खुद गाड़ी चला रहा था। और जो आदमी उसे कार्यभार सौंप रहा था वह उसके काम में फुसफुसायाजो मैंने बिना किसी प्रयास के सुन लिया,मैं उसके बिलकुल पीछे बैठा थाउसने कहा, ‘’यह आदमी विश्‍व-विख्‍यात है और पूरे प्रसार-माध्‍यम का ध्‍यान इस पर केंद्रित हुआ है, इसलिए सीधे कुछ मत करो। बहुत सावधानी बरतना।‘’

मैं सोचने लगा,इनके इरादे क्‍या है? वे परोक्ष रूप से क्‍या करना चाहते है? और जैसे ही कैद खाने पहुंचा उसके इरादे मुझे बिलकुल साफ हो गए।

अमरीकी मार्शल ने मुझसे कहा कि फार्म पर मैं अपने हस्‍ताक्षर न करूं। उसकी बजाएं मुझे डेविड वाशिंगटन के नाम से हस्‍ताक्षर करने होंगे। मैंने कहा, किस कानून या संविधान के अनुसार तुम मुझसे यह मूढ़ता पूर्ण बात कर रहे हो। मैं साफ इनकार करता हूं क्‍योंकि मैं डेविड वाशिंगटन नहीं हूं।

वह आग्रह करता रहा,और उसने कहा, ‘’अगर आप डेविड वाशिंगटन के नाम से हस्‍ताक्षर नहीं करेंगे तो सर्दी की रात में आपको इस इस्‍पात की बेंच पर बैठे रहना पड़ेगा। मैंने कहां तुम समझदार आदमी हो। सुशिक्षित हो, क्‍या तुम नहीं देख सकते कि कैसी मूढ़ता भरी बात मुझसे कर रहे हो?
वह बोला, ‘’मैं कोई जवाब नहीं दे सकता। मैं सिर्फ ऊपर से आए आदेशों का पालन कर रहा हूं। और निश्‍चित ही, ऊपर का मतलब है: वाशिंगटन व्‍हाइट हाऊस, रोनाल्‍ड रीगन।

स्‍थिति को देखते हुएमैं थका मांदा थामैंने उससे कहा, हम समझौता कर लें। तुम फार्म भर दो, तुम्हें जा भी नाम लिखना है, लिख दें। मैं हस्‍ताक्षर कर दूँगा।
उसने फार्म भर दिया। उसमें मेरा ना डेविड वाशिंगटन था। और मैंने अपने हस्‍ताक्षर हिंदी में कर दिये। उसने पूछा, ‘’यह आपने क्‍या हस्‍ताक्षर किए है?
मैंने कहा, ‘’डेविड वाशिंगटन ही होंगे।

उनका ख्‍याल यह था कि यदि मैं डेविड वाशिंगटन लिखू और मैं ही डेविड वाशिंगटन के नाम से हस्‍ताक्षर करूं तो मुझे मार डालना, जहर देना या मुझ पर गोली चलाना आसान होगा। और मैंने कभी इस कैद खाने में प्रवेश किया था इसका सबूत भी नहीं होगा। मुझे हवाई अड्डे के पीछे के दरवाजे से लाया गया और कैद खाने में भी मुझे पीछे के दरवाजे से ले जाया गया ताकि आधी रात में किसी को पता न चले। और दफ्तर में अमरीकी मार्शल के अलावा और कोई भी उपस्‍थित नहीं था।

वह मुझे एक कोठरी ले गया और उसने मुझे वहां से एक गद्दा उठाने के लिए कहा, जिसमें तिल चट्टे भरे हुए थे। मैंने उससे कहा, मैं कोई कैदी नहीं हूं, तुम्‍हें अधिक मानवीय ढंग से व्‍यवहार करना चाहिए। और मुझे एक कंबल और तकिया भी चाहिए।

और उसने साफ इनकार कर दिया, ‘’न कोई कंबल मिलेगा। न तकिया मिलेगा। बस यहीं मिलेगा। लेना हो तो लो।‘’ और उसने उस छोटी सी गंदी सी कोठरी का दरवाजा बंद कर दिया। हैरानी की बात,बड़ी सुबह पाँच बजे उसने दरवाजा खोला और वह आदमी बिलकुल बदला हुआ था। मुझे अपनी आँखो पर भरोसा न हुआ क्‍योंकि वह अपने साथ एक नया गद्दा और एक तकिया लाया था। मैंने कहा, ‘’लेकिन रात को तो तुम बड़े जंगली ढंग से पेश आ रहे थे। अचानक तुम इतने सभ्‍य कैसे हो गए।

और इतनी सुबह मुझे नाश्‍ता दिया। किसी और कैद खाने में मुझे नौ बजे से पहले नाश्‍ता नहीं दिया गया था। मैंने कहा, ‘’यह तो बहुत जल्‍दी है। और तुम मेरी और इतना ध्‍यान क्‍यों दे रहे हो?
वह बोला, ‘’लेकिन आपको इसे खाना होगा, क्‍योंकि पाँच मिनट के भीतर हमें हवाई अड्डे के लिए रवाना होना है।‘’

मैंने पूछा, ‘’तब फिर यह गद्दा कंबल और तकिया लाने का क्‍या मतलब?
उसने बिना कुछ कहं दरवाजा बंद कर दिया। नाश्‍ता कोई बहुत ज्‍यादा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्‍या था मैं पहचान नहीं पायास्‍वादहीन, गंधहीन।
 
(क्रमशः)
[ओशो: सत्यम शिवम सुन्दरम पुस्तक से]

Saturday, June 11, 2011

देश को चाहिये - बाबा रामदेव भी! अन्ना हज़ारे भी !

चार जून की रात, दिल्ली के रामलीला मैदान में जो हुआ, उसे देखकर आप अपने भारतीय होने पर शर्मिन्दा हों या न हों, बेशर्म व्यवस्था तनिक भी शर्मसार नहीं है. इसके उलट, जो कुछ भी उस रात हुआ, बेहयाई से उसे सही साबित करने में लगी है। बिका हुआ इलेक्ट्रानिक मीडिया पूँछ हिलाता हुआ व्यवस्था से यह सवाल भी नहीं कर पा रहा है कि गुर्जरों द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर पूरी उत्तर रेलेवे को ठप्प किए जाने के बावजूद भी जिनकी नींद नहीं खुली, एयर इंडिया पर गम्भीर घोटालों के आरोप के बाद भी पायलटों की हडताल जो नहीं खत्म करवा सकी; उसे आखिर किस बात का डर था जो आधी रात को हज़ारों भूखे-प्यासे, निह्त्थे, अहिंसक अनशनकारियों, सोती हुई महिलाओं और बच्चों पर लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले छोडने जैसा कदम उठाना पड़ा।

शुरुआती झटके से एक बार तो मीडिया भी सकते में आ गया; लेकिन अचानक स्वामीभक्ति ने अंगडाई ली और “हो रहा भारत निर्माण” की हड्डियां चबाने को मिलीं तो सारे एलेक्ट्रानिक मीडिया अलग अलग मोर्चे पर डट गए किसी ने इसे भगवा आतंकवाद घोषित कर दिया, किसी ने आर.एस.एस./बी.जे.पी. से तार जोड़े, किसी किसी ने तो काले धन के खिलाफ इस मुहिम को अन्ना हज़ारे बनाम बाबा रामदेव की लड़ाई का रूप तक दे डाला. कुल मिलाकर आका का हुक्म तामील करने लगे.

हालिया घटनाओं के इस परिप्रेक्ष्य में, हमें लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई में देश को अन्ना हज़ारे भी चाहिये और बाबा रामदेव भी। वह इसलिये कि यह दोनों जन इंडिया और भारत का अलग अलग प्रतिनिधित्त्व करते हैं।

बाबा रामदेव :

1. बाबा रामदेव को ठग कहने वालों से सीधा सवाल यही है कि यदि बाबा ठग होता तो (कु)व्यवस्था के पोषकों से समझौता करके 1100 करोड़ और हासिल कर लेता। उनकी इस तरह मुखालफत नहीं करता, जिसे आप साँप के बिल में हाथ डाल देने या कुल्हाड़ी पर पैर मारने जैसा दुस्साहस कह सकते हैं।

2. बाबा रामदेव की भाषा गंवार देहाती भारत की भाषा है, जो अंग्रेजीदां इंडिया और उसके भोंपू मीडिया की समझ से परे है. बाबा रामदेव उस भारत का प्रतिनिधित्त्व कर रहा है जिसके सारे संसाधन लूटे जा चुके हैं, अंग्रेजी की समझ और सोच वाले जब उसे बीपीएल परिवार कहकर भीख का प्रबन्ध करने का वादा करते है, तो वह अपमानित महसूस करता है।

3. बाबा रामदेव के इस देहाती भारत का गुस्सा अनियंत्रित है. जब वह गुस्से में फौज़ बनाने की बात कहता है तो इन्डियन व्यवस्था देशद्रोह का आरोप लगाकर उसकी मिट्टी पलीद करने पर तुल जाती है. उसकी मजबूरी यह है कि देहाती भारत की समस्याओं की पैरवी के लिये कोइ नामी वकील उसके पास नहीं हैं,उसकी बात नीम की गोली सी कड़वी है। उस पर चीनी की चादर डालना उसे नहीं आता।

4. बाबा रामदेव देहाती भारत के भगवा कपड़ो के राजनीतिक समीकरण को नहीं समझ पाता। 5000 साल की उसकी मां भारती के बदले, 63 साल के राष्ट्रपिता का सौदा वह नहीं कर पाता है तो व्यव्स्था उसे साम्प्रदायिक कहकर खारिज़ कर देती है।

 
अन्ना हज़ारे :

1. अन्ना हज़ारे सुविधाभोगी, नौकरीपेशा और इस लूट से लाभान्वित उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो एक हाथ में आइसक्रीम और दूसरे हाथ में कैंडिल लेकर पीस-मार्च करते हैं। कमाल तो यह है कि इस अंग्रेजीदाँ वर्ग को भी लगता है कि वह ठगा गया है. क्योकि इतनी बड़ी लूट में उसके हाथ तो सिर्फ मूंगफली ही लगी हैं।

2. अन्ना हज़ारे व्यवस्था के खिलाफ इस तरह की लड़ाईयां पहले भी लड़ चुके हैं। उन्हें पता है कि बात कितनी कहनी है और कहां तक ले जानी है। बीजेपी शासन के भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस का इस्तेमाल और कांग्रेस शासन के करप्शन के खिलाफ बीजेपी-शिव सेना का इस्तेमाल वह महाराष्ट्र में कई बार कर चुके हैं।

3. अन्ना मीडिया की पसन्द हैं, क्योकि उनके साथ ग्लैमर है सहयोगी किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, भूषण पिता-पुत्र आदि का. ये लोंग उसी व्यवस्था से आते हैं और फर्राटा अंग्रेजी बोल सकते हैं और तर्क संगत वक्तव्य दे सकते हैं। और सोने पर सुहागा ये कि अन्ना के सहयोगियों को व्यवस्था की रग-रग की पहचान है. यही कारण है कि छ्द्म सीडी हमले को शान्ति भूषण न सिर्फ झेल गए बल्कि उसका मुंह तोड़ जवाब भी दिया. किन्तु ऐसे किसी भी हमले पर बाबा रामदेव तो खेत रहेंगें ।

4. अन्ना के लोग वह राष्ट्रवादी हैं जो इत्तेफाकन हिन्दू हैं। जबकि बाबा रामदेव के कपड़ो का रंग “हिन्दू राष्ट्रवादी” होनें की गाली सरीखा है. यह भी एक कारण है कि इंडिया के प्रतिनिधि अन्ना और उनकी टीम हो सकती है।

बहरहाल, जिस तरह भारत और इंडिया दोनों इस देश की बुनियादी सच्चाई है, वहीं बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे दोनों इस देश को राष्ट्र का दरजा दिलाने की मुहिम मे लगे ही हैं। अब सुपरहीरो अमिताभ बच्चन हों या राजेश खन्ना हों, जिसे जो पसन्द हो चुन ले। सवाल और मुद्दे दोनों के एक ही हैं। काली व्यवस्था खत्म करो. गिरवी तन्त्र से इस देश को निजात दिलाओ।

तमाम तर्कों और आंदोलनों का एक क्षण में पटाक्षेप हो जाये, यदि सरकार काले धन के पोषकों के नाम घोषित कर दे और इस धन को वापस लाने के लिये सिर्फ सकारात्मक कोशिश करती हुयी दिखायी देने लगे, हम दोहराना चाहते हैं कि सिर्फ सकारात्मक कोशिश करती हुयी दिखायी देने लगे.

लेकिन क्या सरकार ऐसा कर पाएगी ?

बस इसी “लेकिन” ने आज अन्ना हज़ारे , बाबा रामदेव को इंडिया और भारत का हीरों बना कर, जन-आक्रोश को उबाल पर ला खड़ा किया है।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...