चार जून की रात, दिल्ली के रामलीला मैदान में जो हुआ, उसे देखकर आप अपने भारतीय होने पर शर्मिन्दा हों या न हों, बेशर्म व्यवस्था तनिक भी शर्मसार नहीं है. इसके उलट, जो कुछ भी उस रात हुआ, बेहयाई से उसे सही साबित करने में लगी है। बिका हुआ इलेक्ट्रानिक मीडिया पूँछ हिलाता हुआ व्यवस्था से यह सवाल भी नहीं कर पा रहा है कि गुर्जरों द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर पूरी उत्तर रेलेवे को ठप्प किए जाने के बावजूद भी जिनकी नींद नहीं खुली, एयर इंडिया पर गम्भीर घोटालों के आरोप के बाद भी पायलटों की हडताल जो नहीं खत्म करवा सकी; उसे आखिर किस बात का डर था जो आधी रात को हज़ारों भूखे-प्यासे, निह्त्थे, अहिंसक अनशनकारियों, सोती हुई महिलाओं और बच्चों पर लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले छोडने जैसा कदम उठाना पड़ा।
शुरुआती झटके से एक बार तो मीडिया भी सकते में आ गया; लेकिन अचानक स्वामीभक्ति ने अंगडाई ली और “हो रहा भारत निर्माण” की हड्डियां चबाने को मिलीं तो सारे एलेक्ट्रानिक मीडिया अलग अलग मोर्चे पर डट गए किसी ने इसे भगवा आतंकवाद घोषित कर दिया, किसी ने आर.एस.एस./बी.जे.पी. से तार जोड़े, किसी किसी ने तो काले धन के खिलाफ इस मुहिम को अन्ना हज़ारे बनाम बाबा रामदेव की लड़ाई का रूप तक दे डाला. कुल मिलाकर आका का हुक्म तामील करने लगे.
हालिया घटनाओं के इस परिप्रेक्ष्य में, हमें लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई में देश को अन्ना हज़ारे भी चाहिये और बाबा रामदेव भी। वह इसलिये कि यह दोनों जन इंडिया और भारत का अलग अलग प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
बाबा रामदेव :
1. बाबा रामदेव को ठग कहने वालों से सीधा सवाल यही है कि यदि बाबा ठग होता तो (कु)व्यवस्था के पोषकों से समझौता करके 1100 करोड़ और हासिल कर लेता। उनकी इस तरह मुखालफत नहीं करता, जिसे आप साँप के बिल में हाथ डाल देने या कुल्हाड़ी पर पैर मारने जैसा दुस्साहस कह सकते हैं।
2. बाबा रामदेव की भाषा गंवार देहाती भारत की भाषा है, जो अंग्रेजीदां इंडिया और उसके भोंपू मीडिया की समझ से परे है. बाबा रामदेव उस भारत का प्रतिनिधित्त्व कर रहा है जिसके सारे संसाधन लूटे जा चुके हैं, अंग्रेजी की समझ और सोच वाले जब उसे बीपीएल परिवार कहकर भीख का प्रबन्ध करने का वादा करते है, तो वह अपमानित महसूस करता है।
3. बाबा रामदेव के इस देहाती भारत का गुस्सा अनियंत्रित है. जब वह गुस्से में फौज़ बनाने की बात कहता है तो इन्डियन व्यवस्था देशद्रोह का आरोप लगाकर उसकी मिट्टी पलीद करने पर तुल जाती है. उसकी मजबूरी यह है कि देहाती भारत की समस्याओं की पैरवी के लिये कोइ नामी वकील उसके पास नहीं हैं,उसकी बात नीम की गोली सी कड़वी है। उस पर चीनी की चादर डालना उसे नहीं आता।
4. बाबा रामदेव देहाती भारत के भगवा कपड़ो के राजनीतिक समीकरण को नहीं समझ पाता। 5000 साल की उसकी मां भारती के बदले, 63 साल के राष्ट्रपिता का सौदा वह नहीं कर पाता है तो व्यव्स्था उसे साम्प्रदायिक कहकर खारिज़ कर देती है।
अन्ना हज़ारे :
1. अन्ना हज़ारे सुविधाभोगी, नौकरीपेशा और इस लूट से लाभान्वित उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो एक हाथ में आइसक्रीम और दूसरे हाथ में कैंडिल लेकर पीस-मार्च करते हैं। कमाल तो यह है कि इस अंग्रेजीदाँ वर्ग को भी लगता है कि वह ठगा गया है. क्योकि इतनी बड़ी लूट में उसके हाथ तो सिर्फ मूंगफली ही लगी हैं।
2. अन्ना हज़ारे व्यवस्था के खिलाफ इस तरह की लड़ाईयां पहले भी लड़ चुके हैं। उन्हें पता है कि बात कितनी कहनी है और कहां तक ले जानी है। बीजेपी शासन के भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस का इस्तेमाल और कांग्रेस शासन के करप्शन के खिलाफ बीजेपी-शिव सेना का इस्तेमाल वह महाराष्ट्र में कई बार कर चुके हैं।
3. अन्ना मीडिया की पसन्द हैं, क्योकि उनके साथ ग्लैमर है सहयोगी किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, भूषण पिता-पुत्र आदि का. ये लोंग उसी व्यवस्था से आते हैं और फर्राटा अंग्रेजी बोल सकते हैं और तर्क संगत वक्तव्य दे सकते हैं। और सोने पर सुहागा ये कि अन्ना के सहयोगियों को व्यवस्था की रग-रग की पहचान है. यही कारण है कि छ्द्म सीडी हमले को शान्ति भूषण न सिर्फ झेल गए बल्कि उसका मुंह तोड़ जवाब भी दिया. किन्तु ऐसे किसी भी हमले पर बाबा रामदेव तो खेत रहेंगें ।
4. अन्ना के लोग वह राष्ट्रवादी हैं जो इत्तेफाकन हिन्दू हैं। जबकि बाबा रामदेव के कपड़ो का रंग “हिन्दू राष्ट्रवादी” होनें की गाली सरीखा है. यह भी एक कारण है कि इंडिया के प्रतिनिधि अन्ना और उनकी टीम हो सकती है।
बहरहाल, जिस तरह भारत और इंडिया दोनों इस देश की बुनियादी सच्चाई है, वहीं बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे दोनों इस देश को राष्ट्र का दरजा दिलाने की मुहिम मे लगे ही हैं। अब सुपरहीरो अमिताभ बच्चन हों या राजेश खन्ना हों, जिसे जो पसन्द हो चुन ले। सवाल और मुद्दे दोनों के एक ही हैं। काली व्यवस्था खत्म करो. गिरवी तन्त्र से इस देश को निजात दिलाओ।
तमाम तर्कों और आंदोलनों का एक क्षण में पटाक्षेप हो जाये, यदि सरकार काले धन के पोषकों के नाम घोषित कर दे और इस धन को वापस लाने के लिये सिर्फ सकारात्मक कोशिश करती हुयी दिखायी देने लगे, हम दोहराना चाहते हैं कि सिर्फ सकारात्मक कोशिश करती हुयी दिखायी देने लगे.
लेकिन क्या सरकार ऐसा कर पाएगी ?
बस इसी “लेकिन” ने आज अन्ना हज़ारे , बाबा रामदेव को इंडिया और भारत का हीरों बना कर, जन-आक्रोश को उबाल पर ला खड़ा किया है।
30 comments:
bahut saari baaton ko saaf karti hui ek post hai...jahaan bhi share kar sakta hun..kar raha hun...
सटीक बात कही है ...सरकार बौखलाई हुई है ... आखिर उनका ही तो धन काला है और उनसे ही गुहार लगायी जा रही है ...
सत्ता के लिये हिचकोले खाते मुलायम,, मायावती, ममता बनर्जी या शरद पवार सरीखे नेता भी है। जिन्हे पता है कि मुद्दे ना सिर्फ सियासत डगमगा सकते है बल्कि सियासी समझ को भी बदल सकते है और उनकी जरुरत पर भी सवालिया निशान लगा सकते है। लेकिन मुद्दो को ही अगर राजनीतिक रंग में रंग दिया जाये तो फिर मुद्दे बिना सियासी चाल के आगे बढ़ नहीं सकते। इसलिये चंद हथेलियो का कालाधन देश में लाना जरुरी है या बाबा रामदेव के पीछे संघ परिवार है, इसे समझना जरुरी है। भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिये जन-लोकपाल कानून बना कर उसके दायरे में प्रधानमंत्री से लेकर जजो को लाना जरुरी है या फिर अन्ना हजारे के रिश्ते बीजेपी या आरएसएस से है इसका पता लगाना जरुरी है। भ्र्रष्टाचार से लेकर महंगाई में डूबे देश को इनसे निजात दिलाने की जरुरत है या फिर मनमोहन सिंह की दूसरी पारी में मुश्किल क्यो आयी और यही मुद्दे यूपीए-एक के वक्त क्यो नहीं उभरे, इसका आकलन जरुरी है।
पहली बार संघर्ष में सरोकार की खुशबू है जबकि सत्ता सरोकार को छोड़ हिंसक हो रही है।
http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2011/06/blog-post_09.html
जब से कांग्रेसियों के सम्बन्ध स्वामी रामदेव से खट्टे हुए हैं तब से कांग्रेस श्री रामदेव जी का इतिहास खंगालने मे लगी है / अगर स्वामीजी ने पिछले सत्रह सालों मे ग्यारह अरब रुपये की संपत्ति दान मे आये रुपियों से अर्जित भी है तो भी उन्होंने कोई राष्ट्रद्रोह का अपराध नही किया है / स्वामीजी ने भारतीयों को सुबह सबह उठकर भगवान् का नाम लेना भी सिखाया है और कई मांसभक्षियों को शाकाहारी भी बनाया है / विदेशी तरल पेय पदार्थों और शराब की जगह ,लोगों को स्वदेशी शरबत पीने की शिक्षा भी दी है/ अगर शारीरिक व्यायाम का व्यवसायीकरण किया भी है तो भी बदले मे देशवासियों को सुस्वास्थ्य ही दिया है/ खैर स्वामीजी ने अपनी संपत्ति मे स्पष्ट कर दिया है कि यह आय दान से अर्जित है या अपने प्रतिष्ठान मे निर्मित उत्पादों की बिक्री से अर्जित है/
परन्तु देश मे आज कई ऐसे शिक्षा माफिया भी हैं जो आज से बीस साल पहले मात्र दो सौ वर्ग फुट जगह मे अपनी क्लिनिक चलाते थे ,या एक ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय चलाते थे.या पीतल के बर्तन बेचा करते थे,या प्रोपर्टी की दलाली करते थे,या स्कूल कोलिजों की पुस्तकें बेचा करते थे या गेस पेपर बेचा करते थे,या छोटा सा प्राथमिक शिक्षा विद्यालय चलाया करते थे,और कुछ तो प्रतिबंधित नारकोटिक दवाएं ही बेचा करते थे, परन्तु आज उन्होंने तकनीकी उच्च शिक्षा जैसे प्राईवेट मेडिकल शिक्षा, डेंटल शिक्षा, इंजीनियरिंग शिक्षा, मेनेजमेंट शिक्षा,बी एड शिक्षा ,कानून शिक्षा आदि को खुले आम खुले बाजार मे मोटी डोनेशन से तकनीकी एवं उच्च शिक्षा को बेचकर अपने अपने प्राईवेट विश्विद्यालय तक खोल लिए/
माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की खुले आम धज्जी उड़ाने वाले इन शिक्षा माफियाओं ने अपने प्राईवेट विश्विद्यालयों के नाम भी महापुरुषों और भगवान् के नाम पर रख लिए/ गौर तलब बात यह है कि इन शिक्षा माफियाओं के सरंक्षक तो स्वयं केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ही हैं/जहां तक काला धन का सवाल है तो डोनेशन की आय कालीकमाई है या सफ़ेद , क्या मानव संसाधन मंत्री या वित्त मंत्री या प्रधान मंत्री बताएँगे ?इनके कार्यरत वरिष्ठ टीचरों ,प्रधानाचार्यों और कुलपतियों को भी वेतन काले सफ़ेद दोनों रूप मे दिया जाता है,मतलब कुछ रकम चेक से और कुछ रकम नगद दी जाती है / आप स्वयं ही समाचार पत्रों मे नाना प्रकार के शिक्षा दलालों के विज्ञापन देख सकते हैं,जो आपके बच्चे का एडमिशन किसी भी प्राईवेट कोलिज मे कराने का ठोस वायेदा करते हैं/ समस्त देशवासी इस तथ्य से भली भांति अवगत हैं कि देश मे उच्च शिक्षा खरीदी जाती है,खुले बाजार मे डेंटल शिक्षा ,मेडिकल शिक्षा ,इंजीयरिंग शिक्षा ,बी एड शिक्षा या कानून की ही शिक्षा का रेट लाखों रूपया है फिर भी देशवासी देश मे व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने को तैयार नही जबकि सरकार ने स्वयं इन शिक्षा केंद्र खोलने को प्रोत्साहन स्वरुप कई अनुदान भी स्वीकृत किये हुए हैं/
सरकार कहती है कि केवल चुनाव द्वारा चयनित व्यक्ति ही भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात कर सकता है या लोकपाल बिल की वकालत कर सकता है तो केन्द्रीय सरकारी मंत्री यही बतादें कि देशवासियों ने इन नेताओं को क्या देशवासियों को ही ठगने या लूटने के लिए चुना था/ अगर प्रधानमंत्री या कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा ही ईमानदार हैं तो क्यों नही इन प्राईवेट मेडिकल, डेंटल, इंजिनयरिंग,या मेनेजमेंट कोलिजों की मान्यता एवं गुणवत्ता की सीबीआई जाँच कराने के आदेश दे देते जबकि यह गोरखधंधा पिछले पंद्रह सालों से बदस्तूर जारी है ,पिछले पंद्रह सालों से मिली मान्यता की अगर सीबीआई जाँच होती है तो कई बड़े बड़े मगरमच्छ सामने आयेंगे जिनके सामने स्वामी राम देव तो मात्र एक छोटी सी मछली हैं/ अगर राम देव जी लोगों का स्वाभिमान जगाने का प्रयास कर रहे हैं तो क्या यह राष्ट्रद्रोह है?
प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी के कार्यकाल में कैबिनेट सचिव का पद संभालने वाले बीजी देशमुख सरीखे वरिष्ठ नौकरशाह ने बताया है कि 1980 के बाद से कांग्रेस पार्टी को भारतीय उद्योगपतियों-व्यवसायियों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय सौदों में विदेशी कंपनियों से कमीशन लेना अधिक सुविधाजनक लगा। ऐसा करने से कांग्रेस को अपने देश में किसी उद्योगपति अथवा व्यवसायी को लाभान्वित करने के आरोपों से बचने की सहूलियत मिली। इससे कांग्रेस देश में भ्रष्टाचार की चर्चा के आरोपों से भी बच गई। कांग्रेस की यह शानदार योजना हालांकि तब तार-तार हो गई जब स्वीडन के ऑडिट ब्यूरो ने खबर दी कि हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स ने 1986 में भारत को तोप बेचने के सौदे में कुछ लोगों को दलाली दी थी।
बाबा रामदेव ने काला धन वापिस लाने की मुहिम चलाई है. हम उन खाताधारकों की कमाई का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि स्विस बैंक के नियमानुसार, खाता खुलवाने की जमानत राशि ही पचास लाख रूपए है, इसके अलावा हर वर्ष 15,000 रूपये रखरखाव राशि के रूप में भरने होते हैं, इस बात से यह साबित हो जाता हैं कि स्विस बैंक में केवल काली कमाई ही जाती है, और इस काली कमाई के स्वामियों की सार्वजनिक छवि बहुत साफ है. काली कमाई करने वालों के काले पैसों की स्विस बैंक में सुरक्षा का खासा ख्याल रखा जाता है. उनके नामों, और जमा धनराशि आदि को गुप्त रखा जाता है, और यदि बैंक का कोई कर्मी या अधिकारी उनसे संबंधित किसी भी सूचना का खुलासा करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही का भी प्रावधान है.
एक और बात जो मुझे समझ में नहीं आ रही वो ये कि हमारे फिल्म अभिनेता जिन्हें बस जनता के बीच आने का मौका मिलना चाहिए, जो छोटे-बड़े सभी आंदोलनों को अपना समर्थन तो देते ही हैं और साथ ही बिना मांगे अपनी अनमोल राय भी देते हैं ताकि दर्शकों के बीच उनकी सकारात्मक छवि बन सके, वह इस आंदोलन से दूरी क्यों बनाए हुए हैं. इसके उलट तो वे बाबा के इस आंदोलन पर विरोधी टिप्पणी ही करते हुए, बाबा को केवल योगा करने की ही सलाह दे रहे हैं. लाखों लोगों के पसंदीदा कलाकार शाहरुख खान तो पहले ही 2जी घोटाले के सदमे से उबर नहीं पाए हैं, हो सकता है और कोई झटका सहना उन्हें गवारा ना हो, लेकिन बाकियों का क्या? यह सवाल उठना तो लाजमी ही है.
वास्तविकता का स्पष्ठ विवेचन!! सत्यपरक निष्कर्ष!!
पुण्यप्रसून जी नें सही कहा……
"पहली बार संघर्ष में सरोकार की खुशबू है जबकि सत्ता सरोकार को छोड़ हिंसक हो रही है।"
जूते की कील जिसे चुभ रही है, वे ही तो चीखेंगे ना।
सही कहा आज देश में दोनों की ज़रूरत है।
सरकार उद्धत है और इशारा एक जगह से है !
आज एक बार फिर जरूरत है
नरम दल और गरम दल की
और देखो ना ………दोनो है हमारे पास
तो साथियों वक्त ने फिर करवट ली है
इतिहास खुद को दोहरायेगा
...इस सरकार का नामोनिशान मिट जायेगा
वन्दे मातरम्……जय हिन्द
यदि आज राजीव दीक्षित होते तो बाबा भी अकेले नहीं पड़ते। उनके पास भी एक सशक्त आवाज होती। अभी भी उन्हें अपने साथ कुछ प्रबुद्ध और अनुभवी लोगों को जोड़ लेना चाहिए।
आपने बाबा और अन्ना में जो मूल भूत फर्क समझाया है वो काफी हद तक सही है...बाबा अपने अधिकतर फैसले ज़ज्बाती हो कर लेते हैं जबकि अन्ना सोच समझ कर...अन्ना अपनी लड़ाई बाबा से बहुत पहले से शुरू कर चुके हैं इसलिए उन्हें मालूम है के कौनसी बात कब और कैसे कहनी है...बहरहाल इन दोनों के लिए दुआएं कीजिये और देखिये के ये लोग सफल हों क्यूँ की इनके द्वारा अपनाया रास्ता आखिर तो राष्ट्र हित में ही है...
नीरज
देश को वाकई दोनों कि जरुरत है.जो भी हो बस सूरते हाल बदल जाये.सरकार की बोखलाहट में यह आवाज दब न जाये.
बाबा में नेतृत्व की शक्ति है। भटके हुए भ्रष्टाचारी उनसे घबरा कर गलती पे गलती किये जा रहे हैं । लेकिन निष्कपट बाबा रामदेव का आन्दोलन व्यर्थ नहीं जाएगा , उन्होंने जो जन-चेतना फैलाई है , वो रंग ज़रूर लाएगी।
Gandhi se desh azaad nahi huya ....
desh azad hua AZAD,Bhagat Singh,Rajguru,jaise logo se .....
Baba ke saath saath kuch aur log aaye tabhi kaam yaab honge....
jai baba banaras....
absolutely....agreed
atleast black money ko bahar se laane ke liye consider bhi kiya ja raha hai...aur blace money leaders ka hi nahi hai...Leader, Businessman, Filmstar, Generalist etc...sabhi shamil hai...
Hamara to sochna hai ki EVM mein " NOne of them" option bhi hona chahiye....kyonki agar aapke khetra se galat vyakti khada hai ...to aap vote kariye lekin " None of them"
तार्किक विष्लेषण. बिकी हुई मीडिया से किसी तरह की अपेक्षा व्यर्थ है.
जनता का समर्थन दोनों को है
यदि सरकार कि हरकतें नहीं बदली तो सरकार को इसका पूरा खामिआज़ा भुगतना तो पड़ेगा. अभी हो सकता है सरकार सत्ता मद में मदमस्त हो.
इस विषय पर जागरूक करते रहने के लिए आपका आभार.
लोग कहते हैं कि बाबा रामदेव अतिउत्साहित हो गए.. वैसे ही जैसे भगत सिंह हो गए थे.... आज सुविधाभोगी समाज को भगत सिंह नहीं चाहिए उसे तो सैटर चाहिए... जो बाबा से मिलने आये थे क्लैरिज़ होटल में... १७००० करोड़ के घोटाले पर देश और मीडिया उतना चिन्तित नहीं दिख रहा अभी जितना करोड़ों लोगो से स्वेच्छा से जुटाए ११०० करोड़ पर त्योरिया चढ़ रही है.... बाबा कोई आधुनिक प्रबंधक नहीं हैं जो करोडो हज़म कर डकार भी ना ले.. यही चरित्र देश के एक तबके को नहीं भा रहा...
देश को सुन्दर बनाने का प्रयास करने वाले हर व्यक्ति की आवश्यकता है हमें।
जो भी हो पर बाबा ने आज सरकार को नंगा कर दिया है और वह तन ढंकने के लिए बहाने खोज रही है भले ही वह संध का क्यों न हो...
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
खास चिट्ठे .. आपके लिए ...
गुमशुदा नेता की तलाश.
आज जब पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ धरना दे रहा है तो राहुल गाँधी लापता है. कृपया इन्हे खोजने मे देश की मदद करे
नाम:राहूल गाँधी
उमर:41
कद:5 फीट 6 इन्च
रंग:सुर्ख लाल
काम: दिग्गी राजा के बताये मार्ग पर चलना
इन्हे आखरी बार इसी सिलसिले मे उत्तरप्रदेश मे धरना देते हुए देखा गया था। यदि आपको ये कहीं भी दिखायी दें तो कृपया इस पते पर सूचित करें :
Doordarshan Gumshuda Talash Kendra
Nayi Kotwali
DariyaGanj
New Delhi :-110001See More
ऐसे मुद्दे पर कोई भी आगे आये, स्वागत होना चाहिये उसका। हमें इस बात से कोई आपत्ति नहीं कि इसका श्रेय रामदेवजी को न मिले, असली मतलब तो उद्देश्य सधने से है।
सरकार को शर्म नही आ रही ... और जनता अगले तीन सालों में भूल जाएगी ... अब तो ये भूलने वाली बात मीडीया भी बोलता है ... अभी कुछ दिन पहले एन डी टी वी पर मैने सुना ... Indian Public with short memory will not remember Baba Ramdev incident for next 3 years ...
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