आर. के. लक्ष्मण के कार्टूनों में से झाँकता
समाज व्यवस्था के संघर्षों से जूझता
अनवरत पीड़ा का प्रतीक
वो बूढा है, क्या आम आदमी?
सत्ता पाने
और सत्ता में बने रहने का सूत्र
किसी राजनीतिक पार्टी के चुनावी कैम्पेन की
टैग-लाइन है क्या वो आम आदमी?
बाँझ खेतों को
अपने खून से सींचता
कपास का किसान है
या, लक्मे फैशन वीक के
“खादी क्लेक्शन” का प्रतीक चिह्न है
क्या वो आम आदमी?
धन्ना सेठ से अपनी ज़मीन,
अपना जंगल हार चुका
सभ्य जगत में
आदिवासी करार कर दिया गया
वो बेकार बेगार है क्या आम आदमी?
दफ्तरों में कलम घिसता
माँ की बीमारी, बेटे की नौकरी
या बेटी की शादी के लिये हलकान
मूल्यों सिद्धांतों और अपनी आत्मा से
हर रोज़ समझौता करता
बेबस लाचार है
क्या वो आम आदमी ?
शातिर दिमागों की शतरंजी चालों को
अपने आक्रोश की बन्दूकों से
जीतने की कोशिश करता
हाशिये पर पड़ा
नक्सलवादी ग्रामीण है
क्या वो आम आदमी ?
ग़रीब के नाम से लूटे
सरकारी ख़जाने के पैसों से
अपने मोटे पेट को पालता
सरकारी अफसर है क्या वो आम आदमी ?
बीस रुपये रोज़ पर जीवन बितानेवाला
व्यवस्था से दरकिनार
देश का लगभग
दो तिहाई हिस्सा है क्या वो आम आदमी ?
बाज़ार की पटरी पर
आई पी ओ के फार्म बटोरता
रीटेल इंवेस्टर है क्या वो आम आदमी ?
कभी गर्मी, कभी सर्दी,
कभी बरसात से हारी
सडक किनारे पड़ी
लावरिस लाश है क्या वो आम आदमी?
कभी महंगे बाज़ारों को
हसरत भरी निगाहों से देखते
और कभी अपने क्रेडिट कार्ड की
बची हुई लिमिट को आंकते
मल्टीनेशनल कम्पनी का
एम बी ए मैनेज़र है क्या वो आम आदमी !!
सरकारी योजनाओ का केन्द्र है आम आदमी !!
खास लोगों के लिये आम बात है -आम आदमी !!
अपने ही देश मे खो गयी, देश की अवाम है-आम आदमी !!
भरे पेटों के गुलाबी गालों में छुपी कुटिल मुस्कान है -आम आदमी !!
17 comments:
आम आदमी को ज्यों का त्यों रख दिया है अपने प्रश्नों में ... सोचने को मजबूर करती गहन रचना
एक एक पंक्ति सटीक है.
कुछ बड़ी बड़ी शार्क -शख्सियतों के सामने तो हम सभी आम आदमी ही हैं भाई!
रोता बिसूरता घबराता कराहता सहमा अक्रोश व्यक्त करता कोई भी समाधान न पाता है आम आदमी.
कविता आहत कर जाती है आम आदमी के लिए
आम आदमी को सोचने के लिये मजबूर करती सटीक पंक्तियाँ,,,,,,,
RECECNT POST: हम देख न सके,,,
कुछ आम आदमी है कुछ आम आदमी बनने का नाटक करती है और कुछ जरुरत पड़ने पर आम आदमी का व्यवहार करती है |
जो आम न खरीद पाये, वही आम आदमी..
Mai khud bhee to ek aam wyakti hun!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 04-10 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....बड़ापन कोठियों में , बड़प्पन सड़कों पर । .
अपने ही देश में खोई हुई इक रुँधी पुकार है आम आदमी !
इसकी यही नियति है ..क्योंकि ये आम आदमी है.
आम आदमी की व्यथा कथा और परेसानिया अनंत है बहुत सुन्दर रचना
आम आदमी से रूबरू कराती सुंदर बहतरीन पोस्ट ...
प्रासंगिक प्रश्न !
बेहतरीन !
बहुत उम्दा.....
आपने सवालों में ही दे दिया है जवाब। यही तो है आम आदमी।
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