सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Tuesday, October 2, 2012

मैं हूँ आम आदमी!!





कौन है आम आदमी ?
आर. के. लक्ष्मण के कार्टूनों में से झाँकता
समाज व्यवस्था के संघर्षों से जूझता
अनवरत पीड़ा का प्रतीक
वो बूढा है, क्या आम आदमी?

सत्ता पाने
और सत्ता में बने रहने का सूत्र
किसी राजनीतिक पार्टी के चुनावी कैम्पेन की
टैग-लाइन है क्या वो आम आदमी?

बाँझ खेतों को
अपने खून से सींचता
कपास का किसान है
या, लक्मे फैशन वीक के
“खादी क्लेक्शन” का प्रतीक चिह्न है
क्या वो आम आदमी?

धन्ना सेठ से अपनी ज़मीन,
अपना जंगल हार चुका
सभ्य जगत में
आदिवासी करार कर दिया गया
वो बेकार बेगार है क्या आम आदमी?

दफ्तरों में कलम घिसता
माँ की बीमारी, बेटे की नौकरी
या बेटी की शादी के लिये हलकान
मूल्यों सिद्धांतों और अपनी आत्मा से
हर रोज़ समझौता करता
बेबस लाचार है
क्या वो आम आदमी ?

शातिर दिमागों की शतरंजी चालों को
अपने आक्रोश की बन्दूकों से
जीतने की कोशिश करता
हाशिये पर पड़ा
नक्सलवादी ग्रामीण है
क्या वो आम आदमी ?

ग़रीब के नाम से लूटे
सरकारी ख़जाने के पैसों से
अपने मोटे पेट को पालता
सरकारी अफसर है क्या वो आम आदमी ?

बीस रुपये रोज़ पर जीवन बितानेवाला
व्यवस्था से दरकिनार
देश का लगभग
दो तिहाई हिस्सा है क्या वो आम आदमी ?

बाज़ार की पटरी पर
आई पी ओ के फार्म बटोरता
रीटेल इंवेस्टर है क्या वो आम आदमी ?

कभी गर्मी, कभी सर्दी,
कभी बरसात से हारी
सडक किनारे पड़ी
लावरिस लाश है क्या वो आम आदमी?

कभी महंगे बाज़ारों को
हसरत भरी निगाहों से देखते
और कभी अपने क्रेडिट कार्ड की
बची हुई लिमिट को आंकते
मल्टीनेशनल कम्पनी का
एम बी ए मैनेज़र है क्या वो आम आदमी !!

सरकारी योजनाओ का केन्द्र है आम आदमी !!
खास लोगों के लिये आम बात है -आम आदमी !!
अपने ही देश मे खो गयी, देश की अवाम है-आम आदमी !!
भरे पेटों के गुलाबी गालों में छुपी कुटिल मुस्कान है -आम आदमी !!

17 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आम आदमी को ज्यों का त्यों रख दिया है अपने प्रश्नों में ... सोचने को मजबूर करती गहन रचना

shikha varshney said...

एक एक पंक्ति सटीक है.

Arvind Mishra said...

कुछ बड़ी बड़ी शार्क -शख्सियतों के सामने तो हम सभी आम आदमी ही हैं भाई!

सुज्ञ said...

रोता बिसूरता घबराता कराहता सहमा अक्रोश व्यक्त करता कोई भी समाधान न पाता है आम आदमी.


कविता आहत कर जाती है आम आदमी के लिए

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आम आदमी को सोचने के लिये मजबूर करती सटीक पंक्तियाँ,,,,,,,

RECECNT POST: हम देख न सके,,,

anshumala said...

कुछ आम आदमी है कुछ आम आदमी बनने का नाटक करती है और कुछ जरुरत पड़ने पर आम आदमी का व्यवहार करती है |

प्रवीण पाण्डेय said...

जो आम न खरीद पाये, वही आम आदमी..

kshama said...

Mai khud bhee to ek aam wyakti hun!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 04-10 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....बड़ापन कोठियों में , बड़प्पन सड़कों पर । .

प्रतिभा सक्सेना said...

अपने ही देश में खोई हुई इक रुँधी पुकार है आम आदमी !

दीपक बाबा said...

इसकी यही नियति है ..क्योंकि ये आम आदमी है.

Mamta Bajpai said...

आम आदमी की व्यथा कथा और परेसानिया अनंत है बहुत सुन्दर रचना

उपेन्द्र नाथ said...

आम आदमी से रूबरू कराती सुंदर बहतरीन पोस्ट ...

Arvind Mishra said...

प्रासंगिक प्रश्न !

सुशील कुमार जोशी said...

बेहतरीन !

कौशल लाल said...

बहुत उम्दा.....

Asha Joglekar said...

आपने सवालों में ही दे दिया है जवाब। यही तो है आम आदमी।

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