सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Wednesday, March 3, 2010

बजट बनाम आम आदमी

सत्तर के दशक मे “गरीबी हटाओ” के इन्दिरा गाँधी के नारे ने जहाँ एक ओर उस “गूंगी गुडिया” को सत्ता मे स्थापित कर दिया था, वहीं 2004 मे “आम आदमी” के नारे ने इस उपनाम को भारतीय लोकतंत्र का पर्याय बना दिया है.

इस सारे खेल मे किसने किसका उद्वार किया यह तो इतिहास मे दर्ज हो चुका है. बहरहाल, लोकतंत्र नाम के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने को छटपटाते इस आम आदमी को पिछले 19 वर्षो से आर्थिक सुधार नाम का जो टॉनिक पिलाया जा रहा है उसी टॉनिक की बोतल से निकली है वार्षिक बजट 2010-11 की ताजा खुराक. वार्षिक बजट के विश्लेषण से पहले निम्न बातों को संज्ञान में लेना आवश्यक है :

1. सरकारी आंकडों के अनुसार भारत की 65% आबादी कृषि पर निर्भर है. जबकी सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा घटकर मात्र 18% ही रह गया है. सेवा क्षेत्र का हिस्सा बढकर 51% तथा उद्योगों का हिस्सा बढकर 31% हो गया है. स्पष्ट है कि ग्रामीण भारत को इस आर्थिक सुधार के टॉनिक से लाभ नहीं नुक्सान हो रहा है.

2.  आज़ादी के 62 साल बाद भी भारत सरकार गरीबों की संख्या के अपने ही मकड जाल में उलझी है, जिसकी एक बानगी इस तरह है :
 
   क) यू .पी. ए.- 1 सरकार द्वारा गठित अर्जुनसेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 78% भारतीय 20 रुपये रोज़ की दिहाडी पर जीवित हैं.

   ख) य़ोजना आयोग द्वारा गठित सुरेश तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 38% भारतीय गरीबी की रेखा के नीचे हैं जो की 2004 के आंकडों के अनुसार 12% अधिक है. यानि हमारा तथ्य कि आर्थिक सुधार के टॉनिक से फायदा नहीं नुकसान हो रहा है - सत्य है.

  ग) गरीबी रेखा का मुख्य पैमाना है लगभग 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रति दिन का उपभोग. इस महंगाई की मार से बेहाल आम आदमी को, परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को 2400 कैलोरी प्रति दिन जुटाने मे कितने रुपयों की दरकार होगी, इसका हिसाब सरकार जान बूझ कर भूल जाना चाह्ती है.

3. 120 करोड की आबादी वाले देश में टैक्स अदा करने वाले कुल जमा साढे तीन करोड लोग ही हैं, एक मोटे अनुमान के अनुसार मध्यम तथा उच्च वर्ग की कुल संख्या 20 करोड है, यानि करीब 100 करोड भारत कीडॆ-मकोडों का जीवन जीने को विवश है.

4. पिछले दिनो एक आंकडा आया कि सबसे अमीर 51 भारतीयों की कुल सम्पत्ति सकल घरेलु उत्पाद की 25% है. एक अनुमान के अनुसार देश की 80% सम्पदा पर 20% कुलीन वर्ग का कब्ज़ा है.

“इंडिया” और “भारत” के इस विभेद को जानने के बाद श्री प्रणव मुखर्जी के वार्षिक बजट 2010-11 के मुख्य आकर्षण इस प्रकार हैं:

1. बजट का 21% हिस्सा भारत सरकार द्वारा लिये गये ऋण के ब्याज कि चुकायेगी में जायेगा, 13% रक्षा खर्चों में, 11% उस सब्सीडी को जिसे उद्योगपातियों तथा अफसरों की पूरी जमात सालभर धीरे धीरे खाती है. लीजिये, 45% बजट तो यूं ही स्वाहा हो गया!

2. शेष 55% बजट का बडा हिस्सा इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर फिर इंडिया को समर्पित है. बाकी बचे पैसे को महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु, इन्दिरा गाँधी, राजीव गाँधी आदि महापुरुषों की याद में जारी अनेकानेक योजनाओं की मार्फत उस आम आदमी तक पहुचाने की वार्षिक कवायद की गयी है, जिसकी पह्चान सरकार अभी तक नहीं कर सकी है.

3. जहाँ उस आम आदमी की संख्या पर भ्रम हो सकता है, वहीं बजट में 1900 करोड रुपये उसी आम आदमी के हाईटेक पह्चान पत्र बनाने के लिये आबंटित किये गये हैं. फिलहाल इससे भी मध्यम तथा उच्च वर्ग के लिये ही रोजगार का सृजन होगा. तो भाईसाहब! जब तक भारत की पह्चान होती है, इंडिया की प्रगति को तो रोका नहीं जा सकता!

4. मध्यम तथा उच्च वर्गीय इंडियावासी को करों मे राहत का तोह्फा मिला है, तो भारतवासियों को उत्पाद कर में 2% वृद्धि की महंगाई और झेलेने की प्रताडना.

5. बढती महंगाई की आग में पेट्रोल और डीज़ॅल के मूल्यों में लगभग 3 रुपये की वृद्धि सह सके, बस इतना आशावाद ही तो मांगा है हुक्मरानों ने आम आदमी से.

विपक्ष ने इस बजट का वहिष्कार किया है, सत्ता पक्ष के घटक दलों ने धमकी दी है और सरकार... कानों में तेल डाले सो रही है. मीडिया की ख़बर ये कहती है कि निकट भविष्य में चुनाव होने नहीं जा रहे हैं इसलिये धमकी और वहिष्कार ठेंगे से!!


3 comments:

Naveen Rawat said...

Gr8, thoughts!Samvedana ke Swar!

it is said that
when we spend our money on ourself, we see value.
when we spend our money on sombody, we see cost.
when somebody spend money on us, we become indulgent.
when we spend somebody else money on somebody else, we are simply careless.

Needless to say that the government is in 4th category.
what to expect, from these self-styled public servants?

मनोज भारती said...

अच्छा विश्लेषण, आर्थिक मामलों की अच्छी जानकारी और सरकार के बजट की वास्तविकता को बयां करता सुंदर लेख ...एक आम आदमी का सरकार के नाम खुला पत्र ... जय हो !!! आम आदमी ।

Unknown said...

बारूद के ढेर में
आग कब लगायेंगे
यहाँ तो ऐसा लगता है
सभी के मन की आग पूरी तरह
बुझ चुकी है
सहनशीलता की हद हो गयी है
काँटों की चुभन अब असर नहीं करती
क्योंकि
अब चुभन की आदत सी हो गयी है
कोई तो बारूद में आग लगाने आये
शायद . . . . . .
हम में से कोई

विनोद कुमार

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