सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Friday, March 19, 2010

पागलपन

एक बार ऐसा हो गया कि एक गाँव में एक जादूगर आया. उसने आकर गाँव के कुँए में एक मंत्र पढा और कोइ चीज़ उसमें डाल दी और कहा कि इस कुँए का पानी जो भी पियेगा वो पागल हो जायेगा. साँझ होते होते उस गाँव के सभी लोगों ने उस कुँए का पानी पिया. क्योंकि प्यास नहीं सही जा सकती, पागलपन सहा जा सकता है. सारा गाँव सांझ होते होते पागल हो गया. सिर्फ वहाँ के राजा, रानी और वज़ीर बच गये. उनका अपना कुँआ था.
लेकिन सांझ उन्हें पता चला कि भूल हो गई हमारे बचने में. पूरे गाँव के लोग जुलूस बनाकर महल के सामने आ गये और नारा लगाने लगे और उन्होने कह, “ऐसा मालूम होता है कि राजा का दिमाग़ खराब हो गया है. राजा को बदलेंगे हम. पागल राजा नहीं चल सकता.”

राजा बहुत घबराया. उसके सैनिक भी पागल हो गये थे. उसने अपने वज़ीर से पूछा, “क्या करें हम? बात उलटी है. पागल ये लोग हो गये हैं,लेकिन भीड़ जब पागल हो जाये तो बताना बहुत कठिन है कि वो पागल है.” वज़ीर ने कहा, ”एक ही रास्ता है. पीछे के दरवाज़े से हम भागें, जितनी तेज़ भाग सकते हैं.”

राज, रानी और वज़ीर भागे. उन्होंने जाकर उसी कुँए का पानी पी लिया. फिर उस रात उस गाँव में बहुत बड़ा जलसा मनाया गया और गाँव के लोगों ने बड़ी खुशी मनाई और भगवान का धन्यवाद किया कि राजा का दिमाग़ ठीक हो गया.

जब सारा समूह एक ही पागलपन से पीड़ित हो तो पहचानना कठिन हो जाता है कि पागलपन क्या है. और अगर कोई आदमी पहचान ले तो वही आदमी उलटा मालूम होता है. भीड़ पागल नहीं मालूम पड़ती.

जीसस पागल मालूम पड़ते हैं, इसलिए भीड़ ने उन्हें सूली पर लटका दिया. सुकरात पागल मालूम पड़ते हैं, इसलिए भीड़ ने उन्हें ज़हर दिया. मंसूर पागल मालूम पड़ते हैं, इसलिए भीड़ ने उनकी चमड़ी खींच ली. गांधी पागल मालूम पड़ते हैं, इसलिए भीड़ ने उन्हें गोली मार दी.

आज तक ज़मीन पर जितने भी लोगों ने भीड़ के कुँए का पानी नहीं पिया, उनके साथ यही व्यवहार हुआ है और भीड़ निश्चिंत है. भीड़ पर शक पैदा नहीं होता क्योंकि चारों तरफ सभी लोग गवाह होते हैं कि ठीक हैं हम.

(संबुद्ध सद् गुरु ओशो के प्रवचन से उद्धृत)

11 comments:

Naveen Rawat said...

ओशो के वचन आज के सन्दर्भ में और सामायिक हो चलें हैं.
एक संबुद्ध् हमें, हमारा पागलपन बता गया है. चेत सको तो चेतो.

Dev said...

बहुत गज़ब का सन्देश एक रोचक कहानी के साथ .......बहुत बहुत धन्यवाद

Dev said...

आपके मार्गदर्शन से मैंने अपने प्रोफाइल से ...निराशा पूर्ण शब्द हटा दिए है .........आपका बहुत बहुत धन्यवाद .

विजयप्रकाश said...

भीड़ की मानसिकता आज भी यही है.अच्छी कहानी के लिये धन्यवाद

Udan Tashtari said...

जय हो ओशो!!

Unknown said...

यही तो हो रहा है हमारे आसपास।......

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

पागलो की भीड़ में मैं भी शामिल होना चाहता था
पर पागलों ने ही मुझे भीड़ से अलग कर एक कार्य दिया है
ऐसे लोगो को पागल करने का
जो अपने कारनामो से औरो को पागल कर रहें हैं
पर समाज सुधार का चेहरा ओढ़े
औरो को पागल कर रहें हैं.
मैं भी एक पागल हूँ
पर
प्रमाण पत्र की तलाश में
अभी भी भटक रहा हूँ

विनोद कुमार

meenakshi said...

dhanyavad kintu ek prashan hai ki yadi sabh hi pagal ho jayenge to samaj ki pagal bhid ko kaun sudharega.

Unknown said...

पागलो की भीड़ को सुधारने जो भी जायेगा
बहुत जल्द ही उस भीड़ में शामिल हो जायेगा
लोग कहेंगे उसे पागल
वो कहेगा लोगो को पागल

विनोद कुमार

स्वप्निल तिवारी said...

a great write wid strong message..

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...