ओशो के सम्बोधिं दिवस पर
वो ब्लैक होल सा
बुलाता रहा मुझे दूर से
और जब आकर्षित हुआ मै उसकी ओर
निचोड़ लिया उसने मुझे
या
पी गया था मैं उसे!
गहन अथाह अन्धेरे के दूसरे सिरे पर
उसका दिव्य स्वरूप दिखाई दिया
जिसमें अनंत विस्तार था
मैं था या नहीं ??
कुछ नहीं पता.....
पर वो हर तरफ था!
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जीवन के परम एकांत में
अपने ब्रुश की नपुंसकता को चुनौती देते हुए
जब मैंने बन्जर कनवास पर
रंगों का बीज प्रत्यारोपित किया
तो सृजन हुआ एक महापुरुष की आकृति का.
ध्यानमग्न उस महपुरुष के चित्र में
एक स्वर्गिक शांति थी
अधरों पर थी एक अप्रतिम मुस्कान
उन्मीलित चक्षुओं में ज्ञान का आलोक
एक समाधिस्थ सम्पूर्ण महापुरुष
संग्रहालयों में रखी प्रतिमा सा हू ब हू बुद्ध.
सह्सा मेरे कलाकार मन में
तर्क के तड़ित का संचार हुआ
और अंतरमन में एक जिज्ञासा सी जगी
कि सदियों से समधिस्थ हों वे यदि
और परिवर्तित ना हुआ हो उनका मुखमंडल तनिक भी
सम्भव नहीं.
उठाकर ब्रुश को तत्काल
संशोधित किया चित्र को मैंने
चेहरे पर शुभ्र धवल दाढियाँ चित्रित कीं
अनावृत शरीर पर डाला एक चोग़ा
और सिर पर एक ऊनी टोपी.
पूर्णतया चित्रित हो चुके थे वे
दिख रहा था अभी भी मुखमंडल पर तेज
अधरों पर मुस्कान
आनंदातिरेक से मुंदे नेत्रों में वही असीम शांति
अंतर मात्र वस्त्र और दाढियों का था
किंतु इनके पीछे वह पूर्ण सम्बुद्ध बुद्ध ही था.
आज भी वह चित्र
एक नपुंसक ब्रुश द्वारा
एक बांझ कनवास पर बना
मेरी दीवार पर सुशोभित है
घर आने वाला हर अतिथि
चित्र देखकर यही कहता है
कि कलाकार की कला का विस्तार अनंत है
जगद् गुरु ओशो का चित्र सचमुच जीवंत है.
7 comments:
ओशो के संबोधि दिवस का ध्यान दिलाने का आभार।
ओशो को शत-शत नमन.....
.......
मेरे ब्लॉग पर भी ओशोधरा का लिंक है....
मेरे ब्लॉग का लिंक है.....
http://laddoospeaks.blogspot.com
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
Dear Friend, Could not read your comments because of font. can you rewrite in roman. and we must say, your poetry is beautiful...
ओशो के संबोधित दिवस पर ......एक बहेतरीन प्रस्तुति .
Osho was a real thinker....his speeches were based on logical reasonings and appropriate illustrations......I shall be thankful if u keep on publishing his more ideas
shant rakshit
Sundar rachana!
Ramnavmi ki shubhkamnayen sweekar karen!
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