सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Tuesday, May 4, 2010

भला यूँ ही कर लेता है कोई आत्महत्या?

सबसे पहले तो सीमा गर्ग जी का धन्यवाद, जो उन्होंने हमारी पिछली रिपोर्ट को न सिर्फ पढ़ा, बल्कि तथ्यों की स्वयम् जाँच भी की. अतः यह हमारा उत्तर्दायित्व बनता है कि हम उनके द्वारा उठाये गये प्रश्नों के उत्तर ही नहीं, वरन आँकड़ों की सत्यता भी प्रमाणित करें.

1. आप अपने कृषक मित्र से पूछें कि वो कितने बड़े खेत के मालिक हैं और इस “बिना टैक्स की आय” के अलावा क्या उनकी आय के और साधन भी हैं? अर्थशास्त्र में “Economies of Scales” का बहुत मह्त्व होता है. जैसे हमारे घर के बाहर, ठेले पर सब्ज़ी बेचने वाले तथा “रिलायंस रिटेल” दोनों के Business Model एक ही हैं. फर्क सिर्फ “Economies of Scales” का है. एक व्यापारी रू.500 प्रतिदिन का व्यापार करके रू.50 कमाता है. दूसरी ओर, रू.50 लाख का व्यापार करके दूसरा व्यापारी रू.5 लाख का मुनाफा कमाता है. यही कारण है कि पहला अपनी बेटी को शादी में तोले भर सोने के ज़ेवर दे सकने में खुद को असमर्थ पाता है और दूसरा अपनी पत्नी को जन्म दिन पर रू.400 करोड़ का हवाई जहाज़ उपहार में दे देता है.

2. हमारे आँकड़े दो बीघा ज़मीन के बारे में हैं जो 1 एकड़ के आधे से भी कम का हिस्सा होती है. (1 एकड़ = 4.8 बीघा). कोई भी कृषक इस बात को confirm करेगा कि एक एकड़ ज़मीन का टुकड़ा लगभग 16 से 18 कुंतल गेहूँ पैदा करता है. इस प्रकार दो बीघा खेत से 8 कुंतल गेहूँ का उत्पादन ज़्यादा ही है, कम नहीं!


3. फिर गेहूं का न्यूनतम् समर्थन मूल्य (MSP). यह एक ऐसी चीज़ है जिसका ढिंढोरा सभी सरकारें दिन रात पीटती हैं. वर्त्तमान में यह रू.1100 प्रति कुंतल है. इस प्रकार इस बात में कोई शक नहीं कि दो बीघा ज़मीन से रू.8800 से अधिक की आमदनी हो ही नहीं सकती, यदि लागत मूल्य शून्य भी मान लिया जाये.


4. रही बात खर्च के आँकड़ों की, तो इसमें मज़दूरी के वे रुपये भी हैं जो किसान या उसका परिवार खेत में लगाता है. ये बात दीगर है कि इस मज़दूरी का मूल्य भी कोई रू.1000-1500 से अधिक नहीं होता.


5. दरअसल कृषि का अ-लाभकारी होना, छोटे किसानों को इतने सीधे सपाट तरीके से समझ नहीं आता, जिस तरह हम शहरी लोग अपने मुनाफे का गणित कर लेते हैं. वो आमतौर पर बैंक या महाजन से लिये गए कर्ज़ो से ही अपनी मूलभूत ज़रुरतें भी पूरी करता है और अपने बच्चों की तरह खड़ी फसल को भी पालता है. उत्पादित अनाज़ का कुछ हिस्सा वो घर के लिये बचा कर रखता है. यह हिस्सा उसको बस तब तक ज़िन्दा रखने को काफ़ी है, जब तक हालात आत्महत्या के लिये विवश ना कर दें.


6. छोटे किसानों के परिवार के सदस्य भी मज़दूरी करके, अपने परिवार की अन्य ज़रुरतें पूरी करते हैं. अपनी maid या उस रिक्शावाले भाई से पूछें तो उनमें से कोई न कोई तो कह ही देगा कि गाँव में उसका एक छोटा खेत भी है, जो फ़िलहाल बिल्डरों और उद्योगपतियों की मह्त्वाकांक्षी योजनाओं से अभी तक बचा हुआ है.

7. और अब अंतिम किंतु महत्वपूर्ण बात. श्री पी. साईनाथ, इस देश के गिने चुने ईमानदार पत्रकारों में से एक हैं. “दि हिन्दू” के 25 जनवरी, 2010 के अंक में छपे अपने लेख में उन्होंने “नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो” के सरकारी आँकडों का उल्लेख करते हुए बताया है कि सिर्फ सन 2008 में कुल 16,196 किसानों ने हमारे देश में आत्महत्या की और सन 1997 के बाद किसान आत्महत्या का ये आँकड़ा 1,99,132 हो चुका है.


स्वतंत्र भारत में बसने वाला ये किसान नाम का प्राणी, प्रगति के हाशिये पर डाल दिये जाने के कारण मजबूर और अपमानित है.
नहीं तो क्या, यूं ही कर लेता है कोई आत्महत्या?




पुनश्चः हम आभार व्यक्त करते हैं उन सभी का जिनको इस लेख ने एक विचारमंथन की ओर मोड़ा है.

18 comments:

kshama said...

Mai ek kisan ki beti hun....Apne aalekh me aapne bilkul sahi mudde pe laksh kendrit kiya hai...kisan ko qudarti ki maar sahni padti hai..ya to bemausam barsat fasal tabah kar deti yaa sookha nigal jata hai..nahar ke panike batwareme gazab ka bhrashtachar..

imemyself said...

यथार्तपरक स्पष्टीकरण!
अब क्या प्रमाण मांगे आपसे?

भला यूँ ही तो नहीं कर लेता है कोई आत्महत्या!

Shekhar Kumawat said...

bahut lambi chodi calculation he aap ki


dhayan se samjhna padega

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सार्थक लेख....हमारे देश के बड़े बड़े अर्थशास्त्री कहाँ सोये हुए हैं? कृषि मंत्री...शायद उनको कृषि से ज्यादा कोई और मुद्दा ज्यादा आकर्षित करता है....

sonal said...

इंडिया में रहने वालों को भारत दिखता ही कहाँ है ...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सार्थक लेख... दोनों ही पोस्ट पढ़ी दोनों नायब.

Urmi said...

सही मुद्दे को लेकर आपने बहुत ही शानदार रूप से प्रस्तुत किया है! सुन्दर और सार्थक लेख!

Naveen Rawat said...

वरिष्ठ पत्रकार "कुलदीप नय्यर" के आज दैनिक जागरण मे छपे लेख " किसानों के साथ धोखा" में भी इसी व्यवस्था के बारे मे कहा गया है.

soni garg goyal said...

namaskar sir, dhanyvaad ki aapne mere prshn ka jawab diya aur isse aaj kafi jankaari bhi mili .....
1. aapne apne pehle hi point main jis eco.of scales ki charcha ki wo kafi sahi lagi aur sahi kahu to bus pehla hi point sab kuch samjhne ke liye kaafi raha bahut hi satik example diya aapne ek sabzi wale aur ek relince store ka ...aur ye baat bhi sach hai ki maine jis kisaan bhai ki baat ki thi unka kheti ke alawa bhi aay ka dusra sadhan hai ........
2.sarkar dwara diya jane wala gehu ki nyuntam fasal ka nyuntam mulya pehle bhi akhbaaro main kai baar pad chuki hun jisko badane ki maang kisan humesha se karte aaye hai .......
3.ab baat karte hai aapke 5 point ki jisme aapne kaha ki "jis tarah hum shehri log apne kunaafe ka gadit kar lete hai us tarah ye kissan aaj bhi bank ya mahajan par hi apne karz ke liye nirbhar hai" main khud ek busuness family se hun aur ye baat puri tarah se sahi hai ki hum shehri log aaj puri lagat jodne ke baad hi product ki kimmat tay karte hai aur is lagat main 1/- tak ka bhi hisab rakha jata hai ........
4.ab baat karte hai aapke chate point ki jisme aapne kaha ki "apni maid ya rikshe wale se puch kar dekhe to koi na koi keh hi dega ki gaanv main uska ek chota khet hai....."sir koi na koi to kya lagbhag sabhi ka apne-apne gaanv main ek chota khet hai jise unke chote bhai bhan ya mata pita sichte hai aur ye sabhi fasal katne ke samay apne-apne ganv jate hai .......
ab is pure lekh ko pad kar main to isi nishkarsh par pahuchi ki inki is halat ka jimmedar inka shiksha aur takniki gyan ka abhav hai jise inhe durust karne ki koshish karni chahiye aur kheti ke sath-sath ajivika ke liye dusre upay bhi talashne chaiye kyuki atmhatya hi kisi bhi pareshani ka ekmaatr hal nahi hai ......kher apne hi ghar main aur apni hi ankho ke samne hote hue bhi sab kuch nahi dekh pai shayad ye meri shehri soch ka natiza hai lekin aaj aapka lekh padke kaafi kuch janne ko mila iske liye aapki tahe dil se aabhari hu aur asha karti hu ki aage bhi aise gyanvardhak lekh padne ko milte rahenge .....lekin sir yahaan ek baat aur kehna chaungi ki aapke is lekh main mujhe fir se ek gadbad nazar aayi aur wo ye ki mera naam Soni garg hai Seema garg nahi ...but its OK.....

संजय भास्‍कर said...

सार्थक लेख... दोनों ही पोस्ट पढ़ी दोनों नायब.

सम्वेदना के स्वर said...

@soni garg ji
सोनी गर्ग जी, आपके नाम को लेकर जो त्रुटी हमसे हो गयी है, उसके लिये हम क्षमा प्रार्थी हैं.
अपनी सम्वेदनाओं को हमें हर हाल मे जीवित रखना है, अपने भारत को इंडिया के आक्रमण से भी बचाना है. भा र त यानि भाव, रस और ताल का अभिनव संगम.

दिगम्बर नासवा said...

सार्थक ... यथार्थ लिखा है ... देश के अनुभवी अर्थशास्त्री कहा हैं ....

soni garg goyal said...

@SAMVEDANA KE SAWAR.....
It's ok, aur aapne Bharat ki jo full form batai wo mujhe aaj hi pata lagi iske liye dhanyvaad........

स्वप्निल तिवारी said...

pichali post par soni ja ka comment padhne par mere bhi mann me aisi hi kuch baaten aayio theen..aap ne aankh kholne wali baaten likhi hain .. ek achhi padtaal..bhagawaan aur sarkar ki mili bhagat ka achha lekha jokha mila hai aap ki dono post me..

Ra said...

bahut achha lekha-jokha diya ..achhi jaaankaari mili ...shukriya janaab


http://athaah.blogspot.com/

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

मदर इण्डिया का ये अमर गीत याद आ गया:
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा....
जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपके बेटे के जन्मदिन के बारे में ज्ञात हुआ...उसके लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाये...

और आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया

kshama said...

Oho! "Simte lamhen'pe comment ke liye shukriya..Pata nahi wahan meree banaye hue bhittee chitr kee tasveer kyon na copy hui tab!
Kavita ke shabd usse mel khate hain!

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