सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Sunday, May 9, 2010

माँ तुझे सलाम!!!

वैसे तो हम दोनों का यही मानना है कि जिन मौक़ों के लिए दिन मुकर्रर कर दिए जाते हैं उनकी अहमियत, बस उस दिन या तारीख तक मह्दूद होकर रह जाती है, एक फॉर्मेलिटी की तरह. और दुनिया का सबसे मीठा लफ्ज़ और सबसे पाकीज़ा रिश्ता, सिर्फ एक दिन का मोह्ताज नहीं. हमारे लिए तो हर दिन मदर्स डे है. हम तो उस देस के वासी हैं, जहाँ देश, धरती, नदियाँ और देवी को भी माँ कहते हैं. लेकिन सबसे ऊपर जन्म देने वाली माँ और जन्मभूमि है.
सोचा आज की पोस्ट पर क्या लिखें. और अचानक दोनों की ज़ुबान पर एक ही नाम आया, जनाब मुनव्वर राना का. हमने एक साथ उनका मुशायरा सुना था और उनके हर शेर पर हमारी आँखें गीली होती रहीं. कुछ चुनिंदा शेर जनाब मुनव्वर राना के दीवान से उस औरत के नाम जिसे दुनिया तमाम मुख्तलिफ ज़ुबानों में भी माँ के नाम से पुकारती हैः
(चित्र साभार: ट्रेक अर्थ)

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना.

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती.

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा.

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई.

ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया.

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है.

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ.

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है.

कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी.

दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है.

दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है.

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है.

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही.

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है.
 
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं,
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं.

पुनश्च: गुरुदेव रबिन्द्र नाथ ठाकुर की १५० वीं जयंती पर  हमारी श्रद्धांजलि

16 comments:

दिलीप said...

maa tujhe salaam...

Apanatva said...

ek se bad kar ek sher hai.

aapne ineko blog par daal kar bahut nek kaam kiya hum subko padne ka mouka mila..........
aabhar.2 ,5 ,6,10 aur11 Lajawab sher hai.....jitnee tareef kee jae kum hai........
5va to gazab ka hai......
kai var pad chuke par man nahee bhara..........

Urmi said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

सम्वेदना के स्वर said...

@Babli:

बबली बहन! ये एकबहुत ही अज़ीम शायर के अशार हैं... हमारा कलम मुनव्वर साहब के सामने बौना है...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मुनव्वर साहब का ये कलाम मन की गहराई तक पहुंचा....आभार यहाँ पेश करने का

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ई जो सायरी आप छपे हैं मुनव्वर राना साहेब का ऊ हमरे भी फेभरेट शायर है...लेकिन छाँट कर एक जगह लाना बहुते बड़ा बात है... ई पूरा सायरी में माँ का एतना रूप भरा है कि कोनो रूप को नमन कीजिए, माँ के चरन में पहुँचता है... आपका एह्सान ई काम के लिए!! अऊर रबिंद्र नाथ टैगोर को भी आप याद किए, ई बहुत बढिया बात है...

Ra said...

एक अच्छी कविता लाने के लिए तहेदिल से ..शुक्रिया .....दुनिया की हर माँ को मेरा शत-शत नमन

Satish Saxena said...

अफ़सोस है कि हम इस प्यार को नहीं समझाते हैं सो कोई कमेंट्स नहीं आज !

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut acchhi post...aur aaj hi maine newspaper me ye uper k kuchh sher bhi padhe the. bahut acchhe chunida sher hai. shukriya.

Dev said...

बेहतरीन प्रस्तुती ......

KK Yadav said...

..अंडमान में अपने माँ की याद दिला दी..बेहतरीन पोस्ट ..बधाई.

***************

'शब्द सृजन की ओर' पर 10 मई 1857 की याद में..आप भी शामिल हों.

kunwarji's said...

रोज ही की तरह आज भी माँ तुझे सलाम!

कुंवर जी,

दिगम्बर नासवा said...

कमाल के शायर हैं राणा जी ... दिल भीग जाता है ऐसे शेर पढ़ कर ...

sm said...

maa tujhe salaam..
beautiful

soni garg goyal said...

aaj hi padi aapki ye post bahut khub hai kabhi kisi shayar ko pada ya suna nahi islye kisi shayar ke baare main kuch bhi kehna galat hoga .......
aapne kaha ki jin ke liye din mukarar kiye jate hai wo sirf ek formality ban jate hai lekin aaj to logo ne bhagvaan ki puja ke liye bhi din tay kar diye hai.........
aakhir main bus itna hi
MAA HI GANGA MAA HI JAMUNA
MAA HI TIRATH DHAM
MAA KA SAR PAR HATH JO TERE
TO KYA ISHWAR KA KAAM .....

स्वप्निल तिवारी said...

aah in ashaar ka kya kehna..... munawwar rana saheb ki ek poori kitaab " maa' hai ..jise padhne ka aanand main bayan nahi kar sakta..us kitaab tak bhej diya aapne...shuqriya

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