सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Saturday, May 15, 2010

आरुषी हेमराज हत्याकाण्ड - जाँच एजेंसियों को मुँह चिढाता

कुछ नवजात शिशुओं के शरीर पर, ध्यान से देखें तो नीले निशान पाए जाते हैं. मेरी माँ कहा करती थीं कि जब भी कोई बच्चा इस दुनिया में आने से मना करता है, भगवान उसे पीटकर दुनिया में भेजते हैं. और ये निशान दरसल उसी पिटाई के होते हैं. कितना सच, कितना झूठ..जाने दीजिए. लेकिन इस बात में तनिक भी सच्चाई है तो आजकल पैदा होने वाले हर बच्चे के शरीर पर यह निशान पाया जाता होगा. क्योंकि इस दुनिया का हाल देखकर, अपनी मर्ज़ी से कोई भी पैदा नहीं होना चाहेगा. बढते अपराधों ने इंसान को इस हद तक सम्वेदन शून्य बना दिया है कि आज संगीन से संगीन अपराध भी सामान्य लगने लगे हैं और क़त्ल की कोई भी घटना उद्वेलित नहीं करती.
ऐसी ही एक घटना 16 मई 2008 को अख़बार की सुर्ख़ियों और टीवी की ब्रेकिंग़ न्यूज़ में आई. ख़बर थी, 14 वर्षीय आरुषी के क़त्ल की. घर का नौकर लापता बताया गया और शक़ के घेरे में सबसे पहले वही आया. शाम तक पुलिस ने रू.20000 का ईनाम घोषित कर दिया, उस नौकर को पकड़वाने वाले को. घटना नोएडा के सेक्टर 25 की थी, यानि हमारा पड़ोस.

हम दोनों तब इकट्ठे नोएडा में ही थे. दोनों ने एक दूसरे की आँखों मे देखा और मुड़ गए सेक्टर 25 की ओर. पुलिस की बदइंतज़ामी, मीडिया का जमघट, लोगों का हुजूम... हम बिना किसी रोक टोक के घटना स्थल पर पहुँच गए. हमारे ऑफिस के बैग वगैरह हमारे कंधे से झूल रहे थे, लिहाजा लोगों ने हमें भी पत्रकार समझा और हम लग गए अपने काम में. हमारी नज़रों ने सारी जगह और महौल का अच्छी तरह मुआयना किया. साथ ही हमने मीडिया की बनावटी जाँच भी देखी. अपनी लाईनें काग़ज़ पर लिखकर रट्टा लगाते, कैमेरे के सामने ज़बर्दस्ती बाल बिखेरकर रिपोर्टिंग करते… कुछ चैनेल वालों ने तो प्राइवेट जासूस भी बुला रखे थे, जिनका ज़ोर जाँच की दिशा और उनके अनुमान से अधिक इस बात पर था कि उनके सिर पर जमी हैट हरक्युल पॉएरो सी लगती है या शर्लॉक होम्स सी. एक बार तो हमने उनकी थ्योरी पर सवाल उठा दिया तो वे कहने लगे, “आपकी बात सच है, पर हम ऐसा नहीं कह सकते.”
आधी रात बाद तक अपनी बिल्डिंग के लॉन और टेरेस पर बैठे हम दोनों सारे तथ्यों को कागज़ पर लिखकर बहस करते रहे. कोई बड़बोला न समझे… पहली बार हमने महसूस किया कि शर्लॉक होम्स और डॉ. वाटसन की आत्मा हमारे अन्दर प्रवेश कर चुकी थी. हर पहलू पर हमने ग़ौर किया, एक दूसरे की दलीलों को सुना, वाद प्रतिवाद किया. गुम हुए मोबाईल फोन, ग़ायब नौकर, काम वाली का बयान, पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट, मीडिया की खबरें. गोया हमने उस समय तक दिखे अनदिखे, प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सभी पहलुओं को खंगाला और कोई भी पत्थर पलटे बिना नहीं छोड़ा...नतीजा फिर भी शून्य. हमारी सारी पड़ताल एक प्रश्न चिह्न पर आकर सिमट गई. वो नौकर कहाँ भाग गया? घरेलू, नेपाली मूल का नौकर हेमराज.
सुबह आँख देर से खुली, जल्दी में हम ऑफिस रवाना हो गये. रास्ते भर दुबारा सारी कहानी फिर से हमने दोहराई. नतीजा यह निकला कि पुलिस को पहले नौकर का पता लगाने दो, फिर आगे की थ्योरी पर बहस करेंगे.
ऑफिस में अचानक चैतन्य जी की इण्टरकॉम पर कॉल आई,” कुछ सुना! हेमराज की बॉडी छत पर मिली है!!” बॉडी मिली है!! मतलब हेमराज का भी क़त्ल... शाम को हम दोनों उसी छत पर थे. उस दिन भी हमें किसी ने नहीं रोका…खून के जमाव और लाश घसीटने के निशान. हम दोनों विशुद्ध शाकाहारी हैं और शायद जीवन में इतना ख़ून हमने कभी नहीं देखा था... ख़ास कर इंसानी ख़ून.
हमने इतना क़रीब से शायद पहली बार ही कोई हत्याकण्ड देखा था. लेकिन इसके बाद जो हत्याओं का सिलसिला चला, वो आज तक जारी है. हमारे देश की लगभग सारी विश्वस्नीय संस्थाओं के मानदण्डों की हत्या हुई.
पुलिस जाँच दल की कार्रवाई में कोताही ने मौक़ा-ए-वारदात पर छूटे हुए सबूतों का ख़ून किया. अगर ऐसा न होता तो वो लाश जो छत पर पड़ी थी पहले दिन ही बरामद हो जाती. इस बुरी तरह लोगों का आना जाना चलता रहा वहाँ पर कि कोई भी सबूत आसानीसे ख़तम किया जा सकता था. इसके बाद हुई डॉक्टरी के पेशे की मौत. पोस्ट मॉर्टेम की रिपोर्ट पूरे केस की बुनियाद होती है, लेकिन इस रिपोर्ट का ख़ून इस बेदर्दी से किया गया कि क्या कहा जाए. और फिर हाल ही में पता चला कि बहुत से रिकॉर्ड ग़ायब हैं, सैंपल बदल गए, जिसने परीक्षण किया वो डॉक्टर छुट्टी पर थी वग़ैरह. यानि किसी हत्या के केस की छानबीन की बुनियाद की ही हत्या कर दी गई.
फिर इस रंगमंच पर आई सी.बी.आई., देश की सर्वोच्च जाँच संस्था. एक लम्बा खेल चला हत्या के हथियार को खोजने का, कुछ अफसरों के तबादले का, कुछ घरेलू नौकरों को पकड़ने का, कहानी में नित नए पेंच डालने और पुराने को ढीला छोड़ देने का, नार्को टेस्ट का, और इस टेस्ट के दौरान जुर्म क़बूल कर लेने का, कुछ गिरफ्तारियों का, कुछ रिहाइयों का, कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंस का और इनमें किए गए दावों का.
नतीजा फिर भी एक बड़ा सा सिफर. अभी 20 मार्च 2010 को न्यूज़ 24 नामक चैनेल ने एक सीडी दिखाई जो सीबीआई द्वारा नामजद मुख्य आरोपी कृष्णा के नार्को टेस्ट की थी. इसमें पूरे टीवी पर्दे को दो हिस्से में बाँटकर नारको की सीडी में कृष्णा के बयान और सीबीआई के उच्चाधिकारी का उसपर पब्लिक बयान दिखाया गया, जो एक दूसरे के बिल्कुल उलट था. दूसरे दिन भी यही सीडी चैनेल पर चलाई गई. लेकिन परिणाम शून्य.
आज दो साल बाद भी उन दोहरी हत्याओं का भेद नहीं सुलझ पाया है और अपराधी कहीं पास खड़ा सारी दुनिया और जाँच एजेंसियों को मुँह चिढा रहा है. सच पूछा जाए तो यह केस हत्याकाण्ड की एक ऋंखला है – पुलिस, डॉक्टर, जाँच एजेंसियाँ, अमीर ग़रीब के रिश्तों, और सामाजिक संस्थाओं की सामुहिक हत्या की.

आइए मिलकर मृतात्माओं की शांति के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करें, इस विनती के साथ कि ईश्वर उन तमाम लोगों को कभी माफ मत करना जो इस हत्याकांड में शामिल रहे हैं, क्योंकि वे जानते थे/ हैं कि वे क्या कर रहे थे/ हैं.
आमीन!!!

11 comments:

CLUTCH said...

मन बेचैन हो उठा...उठकर बालकनी में आ गया. ऐसा लगा जैसे अपने मन की सच्ची तस्वीर वो देख नहीं पा रहा. आज खुद को इतना छोटा..इतना स्वार्थी देखना..सहन नहीं कर पा रहा था.

Dev said...

बेहद संवेदनशील मुद्दा .....इस हत्याकांड का निष्कर्ष नहीं निकला अभी तक ...........ये बड़े ही अफ़सोस की बात है .

Anurag Geete said...

यही होता रहा है और होता रहेगा ... जब किसी का करीबी मरता है तो भी लोग उसे चार दिन बाद भूल जाते है, आरुषि कांड ही क्यों यहाँ ऐसे ढेरो किस्से मिल जायेंगे जिसमे आज तक पुलिस और CBI कुछ पता नहीं लगा पाई, इतने सालो के अनुभव और संसाधनों के बावजूद क्या इतना मुश्किल है इन केस को सुलझाना? जनाब सीबीआई तो छोड़िये यदि हमारी लोकल पुलिसे भी ठान ले तो महीने भर में इसे सुलझा ले पर सब कुछ इतना आसान नहीं है. आज भारत में पैसे के बल पर कुछ भी किया जा सकता है, भ्रष्टाचार अब सड़ांध मरने लगा है, ये भ्रष्टाचार सिर्फ सरकारी विभागों में नहीं हर जगह फ़ैल चूका है, चाहे वह मिडिया हो या प्राइवेट संस्थान....

कब तक, आखिर कब तक ये चलेगा... क्या आज भारत की माताओ ने मजबूत चरित्र वाले इन्सान पैदा करने बंद कर दिए है, कमोबेश हर व्यक्ति बिकाऊ है, बस कीमते अलग अलग है, आज यदि भारत में सबसे ज्यादा जरुरत किसी चीज़ की है तो वह नैतिकता और कर्म प्रधान जीवनशैली विकसित करने की है, वर्ना इसका अंजाम इस देश को ले डूबेगा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील लेख....ना जाने ऐसी कितनी हत्या होती हैं और अपराधी का पता ही नहीं चल पाता...

soni garg goyal said...

"fir is rangmanch par aayi CBI" waah kya naam diya hai......
waise bhi ye duniya ek rangmanch hi hai aur hum sab iske kalakaar aur ye bhi sach hai ki shayad hi aaj koi apni marji se is duniya main aana chahe sab pit pit kar hi aate honge ........bilkul sahi kaha aapne

योगेन्द्र मौदगिल said...

Mit Gai samvedna Man shoonya hai....

दिगम्बर नासवा said...

आरूशी जैसे कई क़िस्सों से भरा पड़ा है ये पुलिस तंत्र .... पैसे की आड़ में क़ानून से कोई भी खेल सकता है अपने देश में ... बहुत ही अफ़सोस जनक ....

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

स्वप्निल तिवारी said...

arushi...haan ...jaisa sab log ab kah rahe hain ...samvedansheel mudda hai .. ia case me kya nahi hua...yahaan tak ho gaya ki pita ne hi beti ki hatya ki...aapne ek baar fir isko logon ki nigah me lane ka pryas apne star se kiya hai ... aur han sach kaha aapne.;.sachmuch bachhon ko bhagwaan ab maar peet kar hi bhejna chahte honge....

Smart Indian said...

दुखद!

दिनेशराय द्विवेदी said...

फिर भी खून नहीं खौलता ...

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...