सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Tuesday, May 25, 2010

कुछ विज्ञान कवितायें

जैसे मोहब्बत कब, किसे , कहाँ और किससे हो जाए कोई नहीं जानता, वैसे ही साहित्य का कीड़ा कब किसके दिमाग़ में घुस जाए, बड़ा मुश्किल है पता लगाना. मनोहर श्याम जोशी हों, या श्रीलाल शुक्ल… कहाँ विज्ञान के डिग्री धारक और कहाँ साहित्य. अब अपने ब्लॉग जगत पर ही देखें, तो कितने ही इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउन्टैंट, डॉक्टर मिलेंगे, जो न सिर्फ लिख रहे हैं, बल्कि धाँसू लिख रहे हैं.


हम दोनों भी उसी परम्परा की एक छोटी सी कड़ी हैं. एक इंजीनियर, दूसरा केमिस्ट्री का स्नातकोत्तर…उस पर तुर्रा ये कि हमारी कर्मस्थली है: एक वित्तीय-संस्थान....

इन विरोधाभासों के बीच जन्मी हैं कुछ कविताएँ, जो सम्वेदनाओं के विज्ञान को स्वर देती सी लगती हैं:

पोल ऑपोज़िट

हमारे ख़यालात मिलते नहीं थे
मिले फिर भी हम
पोल ऑपोज़िट थे शायद
गए खिंचते एक दूसरे की तरफ हम
ये सोचा था मिल जाएंगे, और मिले भी
ख़यालात एक दूसरे से हमारे
मुझे उससे नफरत, उसे मुझसे नफरत.

ग्रैविटी का नियम

लगा देखते ही यूँ एक दूसरे को
कि जैसे बने एक दूजे की ख़ातिर
करीं पार सारी हदें आशिक़ी की
मोहब्बत की छू ली थी सारी ऊँचाई.
सही था वो न्यूटन का ग्रैविटी का नियम
जो जाता है ऊपर वो आता है नीचे
पड़ा हूँ मैं नफरत की गहराइयों में.

आर्किमीदिस का प्यार

प्यार के सागर में मैं गोते लगाता
खोजता था प्यार के मोती, मोहब्बत के ख़ज़ाने.
दिल का सारा बोझ हल्का हो गया मालूम होता,
था मोहब्बत के समंदर में उतरकर
और दिल ये चाहता था
गलियों में जाकर मैं चिल्लाऊँ युरेका !!
आर्किमीदिस प्यार में बन जाऊँ तेरे.

 पानी की चाल

मोहब्बत क्या है ये जाना नहीं था
हो ही जाती है, सुना था सबको कहते.
एक रवाँ पानी के जैसा घूमता आवारा.
ना कोई मिला मुझको, न हो पाई मोहब्बत.
फिर अचानक, अपने ख़ालीपन के संग
तुम मिल गए मुझको, मुकम्मल हो गया मैं.
पानी आखिर खोज ही लेता है अपनी सतह ख़ुद ही!

टोटल इन्टर्नल रेफ्लेक्शन

दिल मेरा है काँच का
मुझको कहाँ मालूम था
मुझको पता ये तब चला
जब प्यार की रोशन किरन
दिल पर मेरे ऐसे पड़ी
बस दिल की होकर ही वो मेरे रह गई.
टोटल इन्टर्नल रेफ्लेक्शन का नमूना थी
किरन ये प्यार की
जो रूह तक मुझको थी रोशन कर गई.


16 comments:

kunwarji's said...

वाह ! क्या दर्शन-शास्त्र है......

कुंवर जी,

soni garg goyal said...

ये फोर्मुले तो कभी नहीं पड़े लगता है फिर से किताबो की धूल साफ़ करनी पड़ेगी ...........
Great formulas........

दिलीप said...

waah kya socha hai...lajawaab...jitni baar waah kahun kam hai...

शारदा अरोरा said...

interesting...do khalipan mil kar mukkmal ho gaye ..vaah

nilesh mathur said...

बेहतरीन !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह...क्या वैज्ञानिक कविताएँ हैं...

स्वप्निल तिवारी said...

pole opposite me.....nafrat ka khayaal solid mila hai .... aur is newton ka apple to kuch jyada hi unchai se gira hai .. :)... ye pyaar ka utplavan bal bdi shiddat se mehsoos hua.... :)...shuqra hai muhabbat paani ki tarah hoti hai ..pare ki tarah nahi ..satah chhod ke khud me hi simatna chahti hai .. :)...aakhir wali khub achhi hai ... :) maza aa gaya...

Urmi said...

बहुत ही सुन्दर, लाजवाब और दिलचस्प कविता प्रस्तुत किया है आपने! बधाई!

Arvind Mishra said...

अच्छा ब्लेंड है

Ra said...

सभी अच्छी है ...अंतिम दो लाजवाब है ......बहुत ज्ञानी लगते हो भाई :) ऐसे ही लिखते रहो

संजय @ मो सम कौन... said...

न रवि के ब्लॉग पर मैं लिंक देता, न आप ताव में आते:))

सर्फ़ एक्सेल की एड याद आ गई, ’ .... अच्छे हैं’

Avinash Chandra said...

'टोटल इन्टरनल रिफ्लेक्शन' बहुत ही बढ़िया है। रविशंकर जी के यहाँ से इधर आना सुखकर रहा।

Anonymous said...

arey baap re.....ek din mein itna gyaan....zyaada ho gaya....sab ke sab scientific ho rahe hain.....mujhe classroom yaad aa raha hai ;)

Ravi Shankar said...

बाप रे…… क्या खतरनाक तसव्वुर है ! एकदम धाँसू!

छा गए सर जी ! एक दम जबर्दस्त । किस किस पे कुर्बान होऊँ…… या खुदा !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

आइडिया ये भी ठां ठां है :-))

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

अद्भुत हैं ये टुकड़े कांच के से, असल में हैं हीरा.

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