सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Thursday, May 10, 2012

क्या कल्कि अवतार ही आखिरी उम्मीद है??

“संवेदना के स्वर” बहुत दिनों से खामोश थे. वज़ह सिर्फ यही कि जब नक्कारखाने में अपनी आवाज़ तूती सी सुनाई देने लगे तो बेहतर है एक खामोशी अख्तियार करना और अपनी एनर्जी को उस वक्त के लिए बचाकर रखना जब वक्त आने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके. आज अचानक एक आलेख अंग्रेजी के एक अखबार में दिख गया, जिसकी आवाज़ भी तूती की आवाज़ ही रही होगी, मगर हमने इस आवाज़ में आवाज़ मिला दी और बस लगा कि इन खामोश “संवेदना के स्वर” बोल उठे हों. आलेख का अनुवाद किया और आपके लिए लेकर आ गए. बहुत दिनों से गूंगे का व्यवहार कर रहे इस आम आदमी की आवाज़, खास आपके लिए!!


यू.पी.ए. हुकूमत के हर गुजरते साल के साथ, घोटाले और उसमें शामिल रकम के आंकड़े बढते ही जा रहे हैं. एक आकलन के हिसाब से सन २००८ में सात घोटाले हुए, २००९ में नौ, २०१० में चौदह, २०११ में तेईस और चालू साल में अब तक बाईस. भारतीय राजनैतिक परिदृश्य में घोटाले पहले भी हुए हैं, मगर हाल के दिनों में घोटाले कम होते नहीं नज़र आ रहे हैं, उनकी रफ़्तार अविश्वसनीय और उससे जुड़ा पैसा इतना, जितना पहले कभी नहीं रहा. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इस दल के अगुआ, सोनिया गांधी, जो एक समय संत मानी जाती थीं और मनमोहन सिंह जो ईमानदार, आजतक के सबसे बड़े भ्रष्टाचारी साबित हुए हैं. इस संत-ईमानदार की जोडी शामिल रही है छोटे-बड़े कुल ८० घोटालों में जिनकी रकम करीब १९ लाख करोड रुपये है!! और अगर इसमें भारत से बाहर भेजी गयी काली कमाई भी जोड़ दी जाए तो यह रकम हमारे साल २०११-१२ के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) का लगभग आधा हो जाती है.

एक चौकस और मजबूत न्याययिक व्यवस्था ने कुछ घोटाले उजागर किये. इनसे अस्थायी तौर पर वे सियासी ताकतें कमज़ोर हुईं, जिन्हें पाला जा रहा था और जिनका सम्मान किया जा रहा था. इसी ने टेलिकॉम मंत्री के हटाये जाने और उसकी गिरफ्तारी के लिए मजबूर किया. एक कॉंग्रेस सांसद राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले में पकडे जाने पर, पूरी गर्मियों और सर्दियों का मौसम जेल में बिताने पर मजबूर हुआ. कांग्रेसी मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र के अशोक चव्हाण, को अपने पूर्व-मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के साथ इस्तीफा देना पड़ा और आदर्श हाउसिंग धोखाधडी के मामले में सी.बी.आई. की जांच झेलना पड़ रही है. दो पूर्व कॉंग्रेसी मुख्य मंत्री गोवा खनन मामले में पुलिस की नज़रों में हैं. कर्नाटक के पूर्व बी.जे.पी. मुख्यमंत्री बी. एस. येदयुरप्पा को अपना ऑफिस छोड़ना पड़ा और उनपर क्रिमिनल आरोप लगाए गए हैं. बंगारू लक्ष्मण, पूर्व बी.जे.पी. अध्यक्ष, को एक स्टिंग ऑपरेशन के अंतर्गत एक लाख रुपये लेने के जुर्म में सज़ा मिल चुकी है और पता नहीं कितने मारण कतार में हैं. इन सभी भ्रष्टाचारियों की सारी उम्मीद चालाक वकीलों और न्यायपालिका में रिटायर होने वाले जजों पर निर्भर करती है.

इस पतन की सबसे बड़ी वज़ह राजनैतिक और बुद्धिजीवी वर्ग के चरित्र में हुआ सबसे बड़ा बदलाव है, जिसके तहत वे शर्म करने से ज़्यादा बेशर्मी की ओर बढते चले गए हैं. सिर्फ एक दशक पहले तक राजनैतिक वर्ग में नैतिक मूल्यों का महत्व दिखता था. एक राजनैतिक नेता पर यदि अनैतिक आचरण या घूस लेने जैसे आरोप लगते थे, तो वह इस्तीफा देकर, मानहानि का दावा करके या जांच का सामना करके अपने सम्मान की रक्षा की लड़ाई लड़ता था, उस राजनैतिक वर्ग के लिए उसकी ईमानदारी पर लगा सवालिया निशान चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी बात लगती थी. आज का राजनैतिक वर्ग बेशर्म हो चुका है. आज जब उनकी इमानदारी पर कोई सवाल उठाता है तो वो चुप रहते हैं या फिर अदालत में साबित करने की चुनौती देते हैं. क्योंकि, जांच करने और साबित करने वाली सरकार खुद उनके हाथ में है. वे आरोप लगाने वाले पर मानहानि का दावा नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें गवाहों के कटघरे में खडा होना होगा और उनसे सवाल पूछे जायेंगे. एक उदाहरण देखें.

Schweizer Illustrierte, एक प्रसिद्द स्विस पत्रिका, जिसका भारत की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं, ने १९९१ में यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि राजीव गांधी के एक गुप्त स्विस बैंक अकाउंट में ढाई बिलियन अमेरिकी डॉलर जमा हैं. अगर अमेरिकी ट्रेज़री दरों से इस रकम को बढते हुए आंका जाए, तो आज यह रकम दस बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गयी होती. बाद में एक रूसी पत्रकार येवेजिना एल्बाट्स ने रूसी गुप्तचर संस्था के.जी.बी. पर किये अपने शोध के दौरान ऐसे दस्तावेजों का ज़िक्र किया है जिसमें गांधी परिवार को के.जी.बी. द्वारा “नज़राना” दिए जाने की बातें कही गयी हैं. ये रिपोर्ट अलग-अलग ख़बरों में, कॉलमों के ज़रिये लगातार १९८८, १९९२, २००२, २००६ २००९ (दो बार), २०१० और २०११ में द हिंदू, टाइम्स ऑफ इंडिया, स्टेट्समैन, इंडिया टुडे और बारम्बार द न्यू इन्डियन एक्सप्रेस में आती रही है. फिर भी सोनिया गांधी परिवार और सत्ताधारी दल इन संगीन खुलासों पर एक रहस्यमयी खामोशी अख्तियार किये है. इन्होने न तो उन रिपोर्टरों के और न उन अखबारों के खिलाफ ही कोई भी कानूनी कार्रवाई की. कुछ हफ़्तों पहले, अमेरिका में स्थित एक सम्मानित और ख्यातिप्राप्त ई-पत्रिका “बिजनेस इनसाइडर” ने दुनिया के २३ सबसे रईस राजनीतिज्ञों की एक लिस्ट प्रकाशित की. सोनिया गांधी, अपनी २-१९ बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति के साथ उस सम्मानित सूची में चौथे स्थान पर थीं. उनसे ऊपर केवल सऊदी सम्राट, ब्रुनेई के सुलतान और न्यू-यॉर्क के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग थे. गौरतलब है कि अगर ये खबर झूठ थी तो क्या गांधी परिवार को उस पत्रिका के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं करना चाहिए था? रहस्यमयी कहानी है ना यह?? सरकार लाचार है, समझा जा सकता है, लेकिन विपक्ष क्यों खामोश है? और भी रहस्यमयी कहानी, है ना??

राजस्थान में एक मंत्री एक जवान औरत जो उसके बहुत करीब थी, को मरवा देता है और उसकी लाश ठिकाने लगा देता है. एक कॉंग्रेस पार्टी-प्रवक्ता, एक वरिष्ठ वकील, वीडियो पर अपनी साथी वकील के साथ आपत्तिजनक हालत में देखा जाता है, ताकि वो अपने रसूख से उस औरत को जज बनवा सके. वो बन भी गई होती अगर उसका ड्राइवर, अन्य कारणों से उससे नाराज़ होकर, सबों को वो वीडियो न दिखा रहा होता. यह घटना हमें जजों के सामने लाकर खडा कर देती है. न्यायालय की अवमानना ने विधायिका के भ्रष्टाचार को सामने आने से एक बार फिर रोक दिया. लेकिन और नहीं, के. जी. बालकृष्णन, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, वर्त्तमान प्रमुख, मानवाधिकार आयोग, रिश्वत के आरोपी ठहराए जा चुके हैं. उनके तीन रिश्तेदार, दामाद सहित, प्रचुर काले धन के स्वामी पाए गए हैं. न्यायमूर्ति पी.डी. दिनकरन, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, रिश्वत लेने और ज़मीन हथियाने के आरोप में शर्मनाक स्थिति में इस्तीफा दे चुके हैं. मगर न्यायपालिका आज भी सिर्फ बाहर ही देखती है. मीडिया, जो खुद को गौरवशाली चैथा खम्बा बताता है, अपने समाचारों में “जगह बेचने” का इलज़ाम झेल रही है. नगद के बदले ख़बरें!! फिर भी यह हुकूमत करता है और लूट रहा है. जो अमीर खानदान हैं वे बेशर्मी की हद तक दिखावा करने वाले हैं. मुकेश अम्बानी ने सिर्फ कुछ बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करके एक रिहायशी मकान बनवाया है और मीडिया उनका गुणगान करते नहीं थकता. सारी फिजाँ ही बेशर्मी से सराबोर है. मगर एक आम आदमी, आज भी गलत करते हुए शर्मिन्दा होता है. ऐसे में उसे सियासत, संसद और क़ानून से परे अन्ना हजारे जैसे इंसान में ही कोई उम्मीद नज़र आती है. लेकिन अन्ना भी अगर असफल हो तो वे किससे उम्मीद लगाए?

श्रीमाद्भागवतम, एक महान ग्रन्थ, जिसके सूत्र १२०० वर्ष पुराने हैं, कलियुग की बात करते हुए कहता है कि यह अंधकार का युग है. इसके अनुसार,

“कलियुग में, धन, न कि सद्गुण और सदाचार, मनुष्य के मूल्य का द्योतक होंगे. पराक्रम ही निर्णय करेगा कि कौन अच्छा है, कौन बुरा. चोर राष्ट्र का नेतृत्व करेंगे. शासक, अपने लालच और निर्दयता के वश में डाकुओं और चोरों के स्तर तक गिर जायेंगे. व्यापार धोखाधडी का पर्याय हो जाएगा. धोखेबाज व्यवसाय करने लगेंगे और बेईमानी का ही चलन होगा. निर्धनता न्यायालय में दोषी सिद्ध करने का समुचित प्रमाण होगी. धूर्तता चरित्र का प्रमाण-पत्र होगा. (गालियों के) शब्दकोष का धनी, विद्वान समझा जाएगा. नैतिक मूल्यों का एकमात्र उद्देश्य लोकप्रियता की प्राप्ति होगा, न कि विश्वास.”

और ऎसी ही कई बातें कही गई हैं. क्या यह देश की वर्त्तमान परिस्थिति पर कोई रनिंग कमेंटरी नहीं लगती आपको? इस ग्रन्थ में इससे भी अधिक पतन की भविष्यवाणी है. कहा गया है कि जब यह पतन पूरा हो जाएगा, परमात्मा बुराई का विनाश करने के लिए कल्कि का अवतार लेकर पैदा होंगे और सद्गुणों को पुनःस्थापित करेंगे.

तो शायद इस मुल्क की निराश जनता के लिए बस कल्कि ही उम्मीद की आखिरी किरण हैं.

-    मूल आलेख: एस. गुरुमूर्ति
प्रसिद्द राजनैतिक एवं आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ

30 comments:

उम्मतें said...

संवदना के स्वर बंधुओ ,

हालात खराब हैं ! बद से बदतर हैं ! सही ! पोलिटिकल क्लास करप्ट है ! बेहद करप्ट ! उसने देश को बेच दिया और अपनी झोलियाँ भर ली हैं ! सही ! मुश्किल ये है कि जनता कौन सी दूध की धुली है ! जितना उसका लेबल है कम से कम उतना भ्रष्टाचार खुद भी करने को हमेशा तैयार ! जहां बेईमानी अपवाद होना चाहिये वहां ईमानदारी अपवाद है !

ऐसे में अवतारों में सहारा ढूंढना ! असहाय और अपना सम्पूर्ण आत्मविश्वास खो चुके चिन्तक का अंतिम विकल्प है !

असल में हालात क्या हैं यह कहना बहुत आसान है सो गुरुमूर्ति जी ने भी कह दिया ! पर इनका हल क्या है ये भी तो कहे कोई !

मनोज भारती said...

इस सामयिक पोस्ट के लिए धन्यवाद!!! आपकी निरंतरता बनी रहे!!! बाकी देश की भ्रष्ट राजनीतिक परिस्थितियों का अच्छा ब्य़ौरा मिला है इस पोस्ट के माध्यम से। धन्यवाद!!!

shikha varshney said...

लगता तो ऐसा ही है..कि अब कोई चमत्कार या अवतार ही बचाए.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इंसान पूरी कोशिश में है कि पतन की निम्मन्तम स्थिति आए और कल्कि अवतरित हों ....

Ashish Shrivastava said...

"चमत्कार या अवतार" !

कोई आश्चर्य नही कि इस देश मे ’बाबा’ इतनी आसानी से लोगो को मूर्ख बनाते है।

इसी चमत्कार या अवतार के भरोसे तो सोमनाथ लूटा था...

पता नही क्या होगा इस देश का जब बुद्धिजीवी चिंतक चमत्कार या अवतार के भरोसे बैठे हो!

संतोष त्रिवेदी said...

...इसीलिए पिछले साल जब अन्ना का प्रादुर्भाव हुआ तो उन्हें अपार समर्थन मिला,पर हमारे सिस्टम का कमीनापन इतना ज़्यादा बढ़ चुका है कि उनके उठाये मुद्दे कहीं पीछे धकेल दिए गए हैं.
सत्ता और तंत्र से लड़ने का मतलब है आप एक पूरी व्यवस्था से लड़ रहे हैं और अफ़सोस कि इस लड़ाई में हमारे ही अपने सामने हैं,महाभारत की तरह !

अनूप शुक्ल said...

बात तो सही ही कही है। तेवर बिंदास। :)

प्रवीण पाण्डेय said...

काश यह धुंध छटे।

kshama said...

Welcome back! Bhrasht rajneetee to chaltee hee rahegee!

शिवम् मिश्रा said...

कैसा हो जो हर आम आदमी खुद को कल्कि मान ले और कर दे इन का अंत !

आचार्य परशुराम राय said...

सलिल भाई, जब यह प्रश्न उठाया जाता है, तो इसे कह दिया जाता है कि यथा प्रजा तथा राजा। इसका सारा ठीकरा जनता के ऊपर फोड़ दिया जाता है। और इस बात से न चाहते हुए भी मैं सहमत हूँ। क्योंकि लोभ ही भ्रष्टाचार का केन्द्र है और हम जनता नेताओं के द्वारा दिए गए प्रलोभन में हम जनता कभी जाति के नाम पर, कभी धन लेकर, तो कभी अन्य प्रलोभन में आकर अपना वोट इन्हें देते हैं।
1998 या 1999 में तदानीन्तन मुख्य सतर्कता आयुक्त श्री विट्ठल साहब का एक लेख Indian Express में छपा था। इसमें उन्होंने लिखा था कि भ्रष्ट लोगों ने पहले संस्थानों को भ्रष्ट किया और फिर उसका संस्थानीकरण (Institutionalization) किया।
रही अवतार की बात तो इसमें सन्देह नहीं की प्रजा की विकल चेतना ही एक अवतार का रूप लेती है।
हाँ, एक बात कहूँगा कि श्रीमद्भागवत पुराण में सूत्र (Aphorisms) नहीं हैं, बल्कि श्लोक हैं।

संवेदना के स्वर आज पहली बार पढ़ा। आपका लेख काफी वैचारिक, ओजपूर्ण एवं सूचनाप्रद है। इसे पढ़कर आनन्द आ गया।

दीपक बाबा said...

कहते हैं जहाँ इंसानी दिमाग चलना बंद हो जाता है तो उसके बाद ईश्वरीय सत्ता ही अपने वजूद का अहसास करवा देती है - जिसे चमत्कार कहते हैं ...


फिजा में ही बेशर्मी घूल गई है, नहीं, पूरा समाज ही बेशर्म हो चूका है, आज रिश्वत देना भी एक प्रतिष्ठा बन गयी है.

अपने अवैध निर्मान को कितने पैसे दे कर नियमित करवाया - ये किसी भी छुटभैये बिल्डर से पूछ लो, छाती ठोक कर जवाब देगा.

गंगोत्री बह रही है साहेब, उपर से नीचे तक.... दुबकी सभी लगा रहे हैं, और जो नहीं लगा पा रहे वो कायर कहलाये जा रहे हैं.

बहुत दिनों बाद - एक विचारोतेज़क प्रस्तुति के लिए साधुवाद.

सवेदना कभी शुन्य नहीं होती, और गर शुन्य हो भी जाए तो उसमे से भी स्वर फूटते हैं..

ब्लॉग बुलेटिन said...

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - जस्ट वन लाइनर जी

राजेश उत्‍साही said...

अब सच तो यह है कि अपन अपनी जिंदगी के साल गिन रहे हैं, वे कितने बचे हैं। दस,पंद्रह या अधिक से अधिक पच्‍चीस साल। और इतने में तो कोई चमत्‍कार होता नजर नहीं आता।

Arvind Mishra said...

इन्ही हालातों के लिए ही कल्कि की अवधारणा सामने आई .मगर क्या वही तारणहार होगा ?
मनुष्य का पौरुष चुक गया ?

रचना दीक्षित said...

संवेदना का स्वर आज मुखर होकर देश के सामने आई कठिन परिस्थितियों का ब्यौरा देश के सामने रख सका है. इसके लिये आप दोनों का बहुत आभार.

लोकेन्द्र सिंह said...

झकझोर देने वाला आलेख...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अवतार भी सोच रहे होगें इस महौल मे अव्तरित कैसे हो

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

किसी दैवी चमत्कार की आशा करना निष्क्रियता व निराशा की पराकाष्ठा ही है । किन्तु जिस व्यापकता के साथ अनाचार फैला है उसके उन्मूलन के लिये चमत्कार नही तो दृढता ,एकता व संकल्प सहित एक लम्बी लडाई लडनी होगी । वह भी अवतार ही कहा जाएगा ।

आलोक said...

मैं तो चाहता हूँ कि मनुष्य का पतन और तेजी से हो , जिससे कि कल्कि भगवान शीघ्र अवतार लेकर अवतरित हों|

आलोक said...

मैं तो चाहता हूँ कि मनुष्य का पतन और तेजी से हो , जिससे कि कल्कि भगवान शीघ्र अवतार लेकर अवतरित हों|

आलोक said...

मैं तो चाहता हूँ कि मनुष्य का पतन और तेजी से हो , जिससे कि कल्कि भगवान शीघ्र अवतार लेकर अवतरित हों|

आलोक said...

मैं तो चाहता हूँ कि मनुष्य का पतन और तेजी से हो , जिससे कि कल्कि भगवान शीघ्र अवतार लेकर अवतरित हों|

आलोक said...

मैं तो चाहता हूँ कि मनुष्य का पतन और तेजी से हो , जिससे कि कल्कि भगवान शीघ्र अवतार लेकर अवतरित हों|

आलोक said...

मैं तो चाहता हूँ कि मनुष्य का पतन और तेजी से हो , जिससे कि कल्कि भगवान शीघ्र अवतार लेकर अवतरित हों|

दिगम्बर नासवा said...

Vartmaan ka Sahi anklan ... Par samasya ka hal Bhi isi ke beech se niklega ... Koi insaan hi khada hoga netratv dene ke liye .... Ye nahi pata kab ... par hoga jaroor ..

Anonymous said...

धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।

Anonymous said...

सत्य, न्याय और नीति को धारण करके समाज सेवा करना पुलिस का व्यक्तिगत धर्म है । अपराधियों को पकड़ना पुलिस का सामाजिक धर्म है, चाहे पुलिस को अपराधी को पकड़ने के लिए असत्य एवं अनीति का सहारा क्यों न लेना पड़े ।

Rohankant said...

अवतार तो हिमाचल प्रदेश मेँ हो चुका है पर जब तक मनुष्य के शरीर की खाक पूरी तरह नही उड़ जाती तब तक सँसार मेँ प्रेम नही फैलेगा । और प्रेम ही अधर्म का नाश करता है ।

Anonymous said...

वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।

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