सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Saturday, December 4, 2010

सनसनीखेज भांडिया टेप - एक्स्क्लूसिवली इसी ब्लोग पर

भारत में जन्मी और इण्डियन से नॉन रेज़िडेण्ट इण्डियन बनीं जीरा भांडिया और एलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जोन ऑफ आर्क कही जाने वाली चरखा भक्त की ताज़ातरीन टेलिफोन वार्त्ता के टेप ग़लती से हमारे हाथ लगे. पेश है उसकी हिंदी ट्रांसस्क्रिप्ट, एक्स्क्लूसिवली इसी ब्लोग परः


जीरा भांडिया: हाय! मैने जगा दिया तुझे?
चरखा भक्त : नहीं, नहीं, आज कल तो रातों की नीदं उडी हुई है....
जीरा भांडिया: अरे तू उन टेप्स को लेकर अभी तक परेशान है...ये सब तो कैरियर का पार्ट है.
चरखा भक्त : ह्म्म...थैट्स राईट...तीन दिन पहले आई कंडक्टेड ए प्रोग्राम टू डू सम डैमज कंट्रोल... बट...दैट हैज़ बैकफायर्ड...आई कुड नॉट कंट्रोल माइसेल्फ... यार मेरे को होस्टाइल होना पड़ा…
जीरा भांडिया: लीव इट..चरखा....कुछ नहीं होगा... यू आर ए सीज़ंड जर्नलिस्ट.. तूने तो बहुत देखा है ये सब.
चरखा भक्त : ह्म्म...पॉलिटिशियंस को स्टुडियो में बुलाकर, उनको ग्रिल करना और उनके होस्टाइल होने का मज़ाक बनाना आसान लगता है, लेकिन खुद… यू नो! इट्स सो एम्बैरेसिंग!!
जीरा भांडिया: आई नो! मुझे लगता है इट्स हाइ टाइम टु लर्न सम मोर बेशर्मी फॉर यू जर्नलिस्ट्स! डोंट माइण्ड यार! …साउण्ड्स क्रूड ना!
चरखा भक्त : नो यार! तेरी बात का क्या बुरा मानना!! लेकिन तेरी क्या टिप है इसके लिये!
जीरा भांडिया: तेरा डिस्कशन देखा मैंने... तू और बेशर्म नहीं हो सकती.. लगी चिल्लानेऔर मुँह बनाने… और वो तेरा दोस्त नीर गाण्डीव... लगा नीर बहाने आँखों से... वह #@&*% तो औरतों की तरह रो रहा था... जिसको ना भी पता हो वो भी समझ जाए!
चरखा भक्त : मैंने तो फ्रैटर्निटी के सारे लोगों को पहले से ही स्क्रिप्ट दे दी थी… एवरी बॉडी प्लेड वेल, लेकिन साले कुछ ईमानदार जर्नलिस्ट इरिटेट कर देते हैं सवाल पूछकर!
जीरा भांडिया: तू कितने दिन से जर्नलिज़्म कर रही है.. अरे! सवाल पूछने वालों की आँखों में आँखें डाल.. बेशर्मी ला और उनको बोल..
चरखा भक्त : वॉट टु से… इट्स माई वॉयस, हाऊ टु डिनाई दैट!!
जीरा भांडिया: सो वॉट!! बोल कि ये सब फैब्रिकेटेड है.. वो भृगु बावला को नहीं देखा.. कैसे ज़ोर ज़ोर से बोलकर बता गया कि टेप अलग अलग टाइम के हैं...
चरखा भक्त : हम्म्म!!
जीरा भांडिया: मिर्ची लगाने वालों को चिकेन खिलाकर सुला दे प्रोग्राम में.. बाकी को फेस कर. बोल कि ये सब गलत है, फैब्रिकेटेड है..
चरखा भक्त : अगर कोई दावा करे तो?
जीरा भांडिया: तो बोल पूरे टेप लेकर आओ, जो भृगु बावला ने कहा. ये सारे टेप अलग अलग से जोड़े हुए हैं...
चरखा भक्त : आई सी..!
जीरा भांडिया: देखते ही नहीं तुम लोग… मैं तो लंदन में हूँ.. विदेशी ताकत का हाथ बताओ.. यार! अपने नेताओं से कुछ तो सीखो, सब मुझे ही सिखाना पड़ेगा... बोलो कि बीबीसी वालों ने हमारे टैलेंट से जलकर ये साज़िश की है हमारे ख़िलाफ़!!
चरखा भक्त : बट इट्स नॉट ट्रू!!
जीरा भांडिया: मनी के अलावा कुछ भी ट्रू नहीं है, डार्लिंग!! आस्क देम, कि एविडेंस कहाँ हैं, एविडेंस लेकर आओ...
चरखा भक्त : पर एविडेंस तो है ही कि ये मेरी आवाज़ है..
जीरा भांडिया: मैंने कब कहा कि नहीं है. बोल्डली कह दे कि तुझे ज्यूडिशियरी पर भरोसा है... लेट कोर्ट डिसाइड... और फिर सो जा लम्बी तानकर! एनी वे... कुछ पता है? सुना है सीबीआई की वेब साइट पाकिस्तानी हैकर्स नें हैक कर ली....उस पर पाकिस्तान ज़िन्दाबाद आदि नारे लिख दिये..
चरखा भक्त : ह्म्म... जब होम मिनिस्टरी में जासूस पकड़े जा रहे हों....इज़ इट ए बिग न्यूज़? जीरा....आई एम इन रीयल प्राबलम यार!....चैनल के मालिक भी कब तक साथ देंगे? कोई आकर कह गया कि अपनी प्रोपर्टी डेक्लेयर करो!
जीरा भांडिया: तो कर दे ना! क्या फर्क पड़ता है.. कंट्री में कितने नेता करोड़ों की प्रोपर्टी डिक्लेयर करते हैं, तो जनता क्या उनको वोट नहीं देती!!.. यार! इतने दिनों से नेताओं का इण्टर्व्यू किया है तुमने कुछ तो सीखा होता उनसे, तो आज काम देता.
चरखा भक्त : सोचती हूँ..अभी तो बहुत टेंशन है... कंट्री में कोई हंगामा भी नहीं हो रहा कि लोगोंका ध्यान हटे.. उसपर ये स्साले ब्लॉगर्स भी कलम हाथ में लिये न जाने क्या क्या लिखे जा रहे हैं... आई एम टोटल्ली कंफ्यूज़्ड!
जीरा भांडिया: चिल्ल यार! तू थोड़े दिन लन्दन चली आ! अभी थोड़ी देर में तुझे एक कुरियर मिलेगा, खोलकर देख… उसमें तेरी लंदन की टिकट है. एंजॉय यूअर हॉलिडेज़ डार्लिंग!!
चरखा भक्त : जीरा! आई नीड अ फेवर फ्रॉम यू... अपार्ट फ्रॉम वॉट यू हव डन टिल नाऊ... प्लीज़ गेट मी सम प्लेसमेंट लाइक यूअर्स इन सम अदर कॉर्पोरेट हाउस!!
जीरा भांडिया: चल किसी की कॉल आ रही है... मैं बाद में बात करती हूँ!! ओके, टाटा!
चरखा भक्त : टाटा मतलब ?
जीरा भांडिया: अरे वो वाला टाटा नहीं, हम तो गरीब आदमी हैं, टाटा मतलब अलविदा !

(यह आलेख एनडीटीवी के कार्यक्रम “गुस्ताख़ी माफ़” से प्रेरित है, अतः इसमें वैसा ही हास्य/व्यंग्य निहित है जैसा उस कार्यक्रम में वे देश के महान राजनेताओं और अभिनेताओं के प्रति दर्शाते हैं. कृपया इस आलेख को भी उसी परिप्रेक्ष्य में पढ़ा जाए.)

34 comments:

imemyself said...

हा..हा..ये वाला टेप तो और मज़ेदार है।

imemyself said...

एक ही टेप है या और भी हैं अभी?

सम्वेदना के स्वर said...

:)अभी कुछ और टेप किसी व्हिसिल ब्लोअर नें भेजें हैं..इंतज़ार कीजिये और भी हैं...

Arvind Mishra said...

विकिलीक्स युग का प्रभाव प्रत्यक्ष है

दीपक बाबा said...

@ मिर्ची लगाने वालों को चिकेन खिलाकर सुला दे प्रोग्राम में.

@विदेशी ताकत का हाथ बताओ.. यार! अपने नेताओं से कुछ तो सीखो,

@कंट्री में कोई हंगामा भी नहीं हो रहा कि लोगोंका ध्यान हटे.. उसपर ये स्साले ब्लॉगर्स भी कलम हाथ में लिये न जाने क्या क्या लिखे जा रहे हैं... आई एम टोटल्ली कंफ्यूज़्ड!



और अंत में
मनी के अलावा कुछ भी ट्रू नहीं है

ये भारत के बुद्धिजीवीयों, कलम घिसते रहो..... जमीनी लेवल पर तो कुछ कर नहीं सकते...
यूँ ही आंसू टपकाते रहो.


भांडिया का भांड चलता रहेगा..... ये नहीं तो वो - वो नहीं तो ये....
लोगो की कमी नहीं..... आफ्टरआल मनी के अलावा कुछ भी ट्रू नहीं है

सुशील गर्ग said...

ये तो आपने हिन्दुस्तानी विकीलीक्स शुरु कर दिया।

सम्वेदना के स्वर said...

@ अरविन्द मिश्र जी
@ सुशील गर्ग जी

विकिलीक्स युग तो वाकई अद्भुत उथलपुथल वाला युग साबित होने वाला है।

क्या पता? "सूचना की अराजकता" ही अब "व्यवस्था की अराजकता" का जबाब बनें?

सम्वेदना के स्वर said...

@ दीपक बाबा
सही कहा भाई आपने!
अब जब सब मजाक ही बन कर रह गया है तो ये मजाक भी सही!

संजय भास्‍कर said...

...लोगो की कमी है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब , मुझे तो दोष जीरा भाडिया की जगह चरका भक्त में ज्यादा नजर आता है , क्योंकि इस मंडीटीवी ने बहुत हद तक इन्डियन मीडिया की यह गत की है !

Akanksha Yadav said...

रोचक और मजेदार है !!

मनोज कुमार said...

एक स्क्रिप्ट राइटर के क़लम का जादू सर चढकर बोल रहा है इस संवाद में। विषय पर गहरा कटाक्ष तो है ही, साथ ही चुटीले संवाद और स्क्रिप्ट का गठन दृश्य को साकार कर देता है। अभी तो पहली बार पडःआ है। बार-बार पढना है।

kshama said...

Behad sashakt kataksh! Kya kuchh hona bacha hai! Besharmi kee hadon tak sab kuchh jayaz taur se chal raha hai!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

ये टेप टेप यहां भी शुरू हो गया।

---------
ईश्‍वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्‍होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।

ZEAL said...

.

जबरदस्त व्यंग !
रोचक वार्तालाप !
सटीक नामकरण !

.

Anonymous said...

महाशय क्या खूब लिखा आपने

मनोज भारती said...

आपका यह टेप तो जीरा और चरखा की अच्छी पोल खोल रहा है ...

सत्य कथ्य है :"सूचना की अराजकता" ही अब "व्यवस्था की अराजकता" का जबाब बनें?

संजय @ मो सम कौन... said...

पॉलिटिकल व्यंग्य लिखना बहुत जटिल काम है। मैं जिन्हें पढ़ पाया हूँ, उनमें शिव कुमार मिश्र जी, ’सुदर्शन’ ब्लॉग वाले कृष्ण मोहन मिश्र जी, सतीश पंचम जी और अब आप हैं जो यह मुश्किल काम बखूबी कर पा रहे हैं। पहले ही कह देता हूँ कि कोई सर्टिफ़ाईंग अथारिटी नहीं हूँ, लेकिन मैंने जिन ब्लॉग्स को पढ़ा है उनमें यह विधा चंद ब्लॉग्स में ही दिखती है।
अगले टेप्स का इंतजर रहेगा।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मजेदार वार्ता .

Deepak Saini said...

हा हा हा इसे कहते है व्यंग और वो भी सलीके से

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

लिजिए ज़ाकिर साहब ने कह दिया कि यहाँ भी टेप टेप चल रहा है.. अरे भाई एक टेप मुँह पर भी लगाने का रिवाज़ है.. जब सारे मुँह परटेप लगाए बैठे रहेंगे तो टेप टेप खेलना ही पड़ेगा!!

प्रवीण पाण्डेय said...

पर यही लोग अब भाग्य विधाता हैं।

Unknown said...

rochak bhi...dhaardaar bhi...waah !

shikha varshney said...

हा हा हा जबर्दस्त्त
आजा चरखा भट्ट लन्दन आ जा ,यहाँ भी एक ब्लोगर है कलम हाथ में लिए:)

Girish Kumar Billore said...

काहे माफ़ी वाफ़ी लिखे हो
सच लिखा सच का नाटक तो नाय किये
बहुत खूब

Girish Kumar Billore said...

हमार फ़ेवरेट हो गये गुरु आप तो

स्वप्निल तिवारी said...

hehehehe.... too much ho gaya yahaan to ... aur humko to pahli hi line pe zordar hansi aa gayi... real tape me bhi aise hi angrezi me bola tha... kaan pakad ke kheenche hain aap log to... naam to gazabe rakha hai..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

हा हा हा
धांसु टेप निकाल कर लाए हो सलिल जी

राम राम

उम्मतें said...

उनके कमीनेपन की वज़ह से ये भी नहीं कह सकता कि आपका आलेख /आपकी शैली ,जानदार ,रोचक ,मजेदार है यहाँ तक कि स्माइली लगाने में भी झिझक रहा हूं !

रचना दीक्षित said...

इक दम झकास. मज़ा!!!!! आ गया करार व्यंग

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ....व्यंग के साथ सोचने पर भी मजबूर कर रही है यह पोस्ट ...

प्रेम सरोवर said...

पोस्ट रोचक लगा। मेरे ब्लांग पर आप सादर आमंत्रित हैं।

अरुण चन्द्र रॉय said...

सलिल जी इस टेप प्रकरण ने कारपोरेट दुनिया और अपनी ब्यूरोक्रेसी के बीच के घालमेल को सामने रख दिया है वरना लोग फिल्मों पर विश्वास नहीं करते थे.. अच्छा लगा आपका व्यंग्य..

केवल राम said...

मजा आया गया ...आखिर आपने भी कमाल दिखा ही दिया ...

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...