आजकल प्रचार तंत्रों में सरकार द्वारा इस बात को जोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है कि नरेगा योजना के द्वारा आम आदमी के जीवन में भी खास आदमियों जैसी समृद्दि लायी जा रही है!! अगर वास्तव में यह ऐसी चमत्कारी योजना है तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर यह “नरेगा” है क्या? राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (National Rural Employment Guarantee Act) अर्थात् नरेगा. मनमोहन सरकार का एक मनमोहनी कार्यक्रम, जिसका मकसद है, ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना. इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को, सरकार द्वारा, कम से कम 100 दिनों का निश्चित रोजगार दिए जाने की गारंटी दावा है। यह रोजगार शारीरिक श्रम के संदर्भ में है और उस वयस्क व्यक्ति को प्रदान किया जाना है जो इसके लिए राज़ी हो। नरेगा का दूसरा लक्ष्य टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन कर ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को सुदृढ़ बनाना भी बताया जाता है। योजना को एक अप्रैल 2008 से देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तार दे दिया गया है।
उपरोक्त परिपेक्ष्य में जब हमने कुछ सरकारी आँकड़ों को खंगाला, तो जो तस्वीर उभर कर आई, वो कुछ इस तरह है:
आइए अब बच्चों वाले गणित के ऐकिक नियम (युनिटरी मेथड) के अनुसार प्रति निर्धन व्यक्ति को मिलने वाली आय का आकलन करें:
एक बार फिर उपरोक्त तालिका के आकड़े पर नज़र डालें तो विश्वास नहीं होता कि कुल 29694.00 करोड़ रुपए, 42 करोड़ जनता की मज़दूरी पर ख़र्च करने हों, तो प्रत्येक मज़दूर को जो राशि प्राप्त होगी वह है
` 29694 करोड़ / 42 करोड़ = ` 707.00
अब बताइये जरा कि नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या? 707 रुपये प्रति वर्ष यानि 1 रुपये 93 पैसे प्रति दिन. दिल्ली के किसी भी सिगनल पर भीख माँगने वाला भिखारी इससे अधिक की कमाई कर लेता है और किसी मंदिर या मस्जिद के बाहर बैठने वाला भिखारी इससे कहीं अधिक कमाता है. शायद आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि मुम्बई की लोकल ट्रेनों में भीख माँगने वालों की कमाई कितनी है.
लेकिन इज़्ज़त से मज़दूरी करने वाले को मिलने वाले `1.93 क्या भीख नहीं है?
21 comments:
नरेगा नहीं मनरेगा कहिये वरना युवराज नाराज हो जायेंगे | एक समय की रोटी के लिए जी तोड़ मेहनत करने वाला महात्मा का नाम तो कब का भूल चूका है पर उसे मनरेगा में जुड़ा गाँधी याद रहना चाहिए | कल बाप ने कहा था कि केंद्र से एक रूपये चलता है और जरुरत मंद को पन्द्रह पैसा मिलता ही आज बेटे ने कहा की अब तो दस पैसा ही मिलता है | बाप से बेटे तक में पांच पैसा और गायब हो गया और आप एक रूपये की बात कर रहे है, वो भी जरुरत मंद तक नहीं पहुचता है | खबर देखी की सेना में और बैंक में काम करने वाले गांव आये तो पता चला की उनके नाम भी मनरेगा में फर्जी जॉब कार्ड बने है और साल भर से वो पैसा भी ले रहे है |
नरेगा ... यूपीए का बस नारा है... इस से अधिक कुछ नहीं...
पिछले २ महीने पहले गाँव गया था..... और चांस की बात है, उस रोज पंचायत भी थी...... सभी अधिकारी आये थे..
मैंने एक प्रश्न रखा कि खेती की मजदूरी के लिए २५० रुपे प्रतिदिन पर इस गाँव में मजदूर नहीं मिलता........ तो १०० रुपे पर कैसे मिलता होगा ?......
और ये हकीकत है,
पञ्च, सरपंच और बी डी ओ सभी खामोश रह गे
सच ही है, यह तथ्य।
kuchh nahi ho sakta
itne tathya ki kya kahun........sabdhin hoon!!
kash kabhi hamare bharat ka bhala ho!!
chahe jo hi scheme ho..
नरेगा : न लेगा, न कोई लेगा बज़ट बडों की ही जेब भरेगा। वाह रे नरेगा!! गरीब तो बेरोजगार ही रेगा।
80 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं या 42 करोड़? अभी तो एस बात पर भी इन “आर्थिक विशेषज्ञों” में एक राय नहीं है। लूट की पोल खुलने पर ये तथाकथित ईमानदार लोग कहते है मेरा भ्रष्टाचार तेरे भ्रष्टाचार से तो कम है! भ्रष्टाचार की तू तू मैं मैं उलझी इस व्यव्स्था से क्या कोई पूछेगा कि इस देश की हवा, पानी, हवाई तरंगे, ज़मीन और ज़मीन के अन्दर स्थित सम्पदा प्रत्येक भारतवासी की है, जिसे ये बेशर्मी से औने-पौने दाम में बेच रहें है! कहां है सबके लिये नौकरियों के अवसर? कहां हैं सबके लिये शिक्षा और स्वास्थ?
अरे कम्बख्तों तुम्हे कौन सी गाली दूं!!! सारी गालियाँ जो मुझे आती है सब छोटी हो गयी लगती है, तुम्हारे कमीनेपन के सामने!
सच ही है, यह तथ्य।
रुला देने वाले तथ्य ...
हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.....।
कागज के शेर, कागज के किले जाने दीजिये।
आखिर हम किसे मूर्ख बना रहे हैं...और कब तक बनाते रहेंगे...मनमोहन जी आप तो समझें इस बात को...चौंकाने वाले तथ्य उजागर किये हैं आपने...
नीरज
निक्कमा कर रही है नरेगा .
अत्यंत सरलीकरण कर दिया आपने.
UPA से अपेक्षाएं नहीं हैं अब।
नरेगा हो या मनरेगा पर किसान तो फिर भी मरेगा
बड़ी ही तथ्यपरक प्रविष्टि है पर एक तथ्य ये भी कि सरकार कोई भी चलाये आंकड़े ऐसे ही अनुपात में रहेंगे !
आपके शीर्षक ने ही चेहरे पर मुस्कान ला दी। सुबह के वक्त ये देखना कि किस तरह से सरकार पैसे की बंदरबाट करना चाहती है उसे तरीका भी नहीं आता। सरकारी तंत्र पैसा लूटना तो जानता है पर लूटाया कैसे जाता है ये उन्हें नहीं आता। भिखारी तो खैर गर्मियों में हिल स्टेशन पर जाना पसंद करते हैं औऱ शाम को विदेशी दारु के बिना उनका काम नही चलता। रात में मिला हुआ कंबल सुबह किसी दुकान पर बिका हुआ मिलता है...तो कोट आंखो के ही सामने पुराने कपड़े बेचने वालों के पास पहुंच जाता है।।।
बदला टेम्प्लेट अच्छा लगा।
आलेख भी।
देरी के लिए क्षमा।
ये आंकड़े नरेगा की सही पोल खोल रहे......... गरीबों का ये भी एक मजाक है.
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