उसने बिना कुछ कहे दरवाजा बंद कर दिया। नाश्ता कोई बहुत ज्यादा नहीं था, सिर्फ किसी अनजाने सॉस में भिगोये हुए ब्रेड के दी टुकड़े और वह सॉस क्या था मैं पहचान नहीं पाया—स्वादहीन, गंधहीन। पिछले अंक से आगे
अब डा. अमृतो यह महसूस करता है कि मुझे जहर दिया गया था। शायद सभी छह कैद खानों में मुझे जहर दिया गया था। मुझे जमानत न देने के पीछे यही कारण था और छह घंटे की यात्रा के लिए बारह दिन लगा देने के पीछे यहीं उदेश्य था: एक धीरे-धीरे कमजोर कर देगा। और उसने मुझे कमजोर कर दिया है।
अमरीका कैद खानों में वे बारह दिन बिताने के बाद मेरी सारी निंद्रा खो गई है। मेरे शरीर में कई ऐसी चीजें होने लगी जो पहले नहीं होती थी। भूख बिलकुल गायब हो गई, भोजन एकदम बेस्वाद लगने लगा। पेट मरोड़ने लगा, जी मिलाने लगा, उलटी करने का भाव, प्यास भी खो गई। और एक जबरदस्त अहसास….जैसे मेरी जड़ें उखड रही है।
लगता था जैसे स्नायु तंत्र में भी कुछ प्रभावित हो गया था। कभी-कभी पूरे शरीर में झुनझुनी सी फैलने लगती, जो खास कर मेरे दोनों हाथों में बड़ी प्रगाढता से महसूस होती। और पलकें भी ऐंठ जाती।
जिस दिन मैंने कैद खाने में प्रवेश किया उस दिन मेरा वजन 150 पौंड था। और आज मेरा वजन केवल 130 पौंड है। मेरा भोजन वहीं है लेकिन मेरा वजन बिना किसी कारण के घट रहा है। और एक सूक्ष्म कमजोरी….ओर तीन महीने पहले मेरे दाहिने हाथ की हड्डी में भयंकर पीडा होने लगी।
ये सब एक खास किस्मा के जहर के लक्षण है। मेरे बाल गिर गए है। मेरी आंखें कमजोर हो गई है। और मेरी दाढ़ी के बाल इतने सफेद हो गए है जितने के मेरे पिता के पचहत्तर साल की आयु में थे। अमरीका में, उन्होंने मेरी जिंदगी के करीब-करीब बीस साल कम कर दिए।
डा. अमृतो ने तत्क्षण सभी संन्यामसी डॉक्टरों को सूचित किया कि विष-प्रयोग संबंधी विश्व के जो भी विशेषज्ञ है उनसे संपर्क बनाएँ और उनमें से एक डा. ध्यान योगी ने तत्क्षण मेरे खून और पेशाब के नमूना लिये, कुछ बाल लिए और वे लंदन तथा जर्मनी के सर्वश्रेष्ठश विशेषज्ञों के पास गए। यूरोप के विशेषज्ञों का सुझाव यह था कि ऐसा कोई जहर नहीं है जो दो सालों के बाद शरीर में पाया जाए। लेकिन सारे लक्षण बताते है एक खास किस्म का जहर दिया गया है।
बीमारी के कारण कोई प्रतिरोधक न होना। अकारण वज़न कम होना, समय से पहले बालों का सफेद हो जाना,अकारण बालों का गिरना,झनझनाहट जैसी संवेदना का अतिरेक,भूख न लगना, स्वादहीनता, मितली, मेरे दाहिने हाथ की हड्डी का दर्द……जर्मनी के एक कुशल डाक्टार दो बार मेरे हाथ की जांच करने आए थे और उनकी समझ में नहीं आया था कि यह किस तरह की बीमारी है। क्योंकि जो मुझसे कोई बीमारी ही नहीं है। यहां के विशेषज्ञ डा. हार्डी कर जो मुझे प्रेम करते है। वे यहां आते रहे है। और तीन महीनों तक सतत निरीक्षण करते रहे है। लेकिन वे भी कुछ समझ नहीं पाए कि यह दर्द क्यों होता है।
इंग्लैंड और जर्मनी के विशेषज्ञों के एक विशिष्ट् जहर के नाम का सुझाव दिया है, थैलीयम, भारी धातुओं के जो जहर होते है, उस वर्ग का यह जहर है। वह शरीर के भीतर से आठ सप्ताह में निकल जाता है। लेकिन अपने परिणाम छोड़ जाता है और शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति है उसे नष्ट कर देता है। और मैंने तुम्हें जो भी लक्षण बताये है ये सब थैलीयम जहर के परिणाम है।
अमेरिकन विशेषज्ञों ने एक अलग ही जहर की और संकेत किया है, जो उनके विचार में,शासन विद्रोही व्यऔक्तिहयों के लिए उपयोग करता रहा है। उस जहर का नाम है, ‘’सिंथटिक हेरोइन।‘’ यह साधारण हेरोइन से हजार गूण ज्यादा खतरनाक है। और दो साल के बाद इसके कोई निशान पाये जाने की संभावना नहीं होती।
जापानी विशेषज्ञ जो रेडियोधर्मी ता के संबंध मे हिरोशिमा और नागासाकी में अन्वेषण कर रहे थे। उनका कहना है कि ये लक्षण रेडियोधर्मी प्रभाव से बड़े परिष्कृत ढंग से पैदा किए जाते है।
डा. अमृतो का अपना अन्वेषण…..ओर वह चिकित्सा विज्ञान का अत्यंत प्रतिभाशाली डाक्टर है। उसके पास सारी उच्चरतम उपाधियां हैं। उसके एक चौथे जहर की खोज की है जिसका विरले ही उपयोग किया जाता है। उस जहर का नाम है ‘’फ्रुरोकार्बन।‘’ यह कुछ मिनटों के भीतर ही विलीन हो जाता है। खून में या पेशाब में उसके कोई निशान नहीं मिलते लेकिन ये सारे लक्षण उसी की और इंगित करते है।
यह सवाल नहीं है कि मुझे कौन सा जहर दिया गया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि रोनाल्ड रीगन के अमरीकी शासन ने मुझे जहर दिया है।
(अगले अंक में समाप्त)
ओशो
(सत्यम् शिवम् सुंदरम् पुस्तक से)
14 comments:
rochak....jaldi agala ank daaliye
बाप रे...1 आंदोलन कारियों को सतर्क रहने की जरूरत है।
दर्दनाक, पीड़ादायी।
is anak men vibhinna prakar ke jaharon ke baare me kaafi jankari mili....agli kadi ka intezar....
कुटिल मायवी, दर्दनाक!!
ओह .....
Uf!Insaan kya nahee kar sakta?
उफ़ निर्दयता की हद थी।
सुकरात की ह्त्या से भी अधिक निर्मम और पीड़ादाई ह्त्या हुयी थी रजनीश की. पश्चिमी देशों की सरकारें भयभीत थीं रजनीश के प्रभामंडल से.
मार्मिक ... क्या सच ही ऐसा हुआ होगा ?
@संगीता स्वरूप :अधिक जानकारी के लिए सू-एपलटन की पुस्तक "दिया अमृत पाया ज़हर" पढ़ सकते हैं।
इस जानकारी को ब्लॉग पर देने के लिए धन्यवाद, चैतन्य जी !!!
बहुत दर्दनाक. सत्ताधीश सत्ता के मद में चूर किसी भी हद तक जा सकते हैं वहां भी जहां मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो जाती हों.
ओशो के पुस्तक का यह अंश उस समय आया है जब युवा स्वामी निगमानंद को ज़हर देकर मार डाला गया है.. यदि ज़हर नहीं भी दिया गया है फिर भी समूचे तंत्र और जन की असंवेदनशीलता का प्रत्यक्ष उदहारण तो है ही...
जो देवता नहीं बन पाते वे दूसरों की राह में रोडे अटकाते हैं...ओशो इसी षड़यंत्र के शिकार हुए होंगे...अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि-
one must be holy himself to understand a holy person...
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