सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

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सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Sunday, September 18, 2011

लोदी का उपवास - चचा अखबारी की गप्पशाला


किसी बड़े शहर के पार्क में टहलते हुए, कस्बे की चाय की दुकान पर ठल्ले बैठे, गाँव के चौपाल पर सजी महफिल में या फिर काशी के अस्सी में, एक शख्स अक्सर मिल जाते हैं, जो इन सबों के केंद्र में बैठे होते हैं.  उनका सामान्य ज्ञान बड़ा असामान्य सा लगता है. सुनने वालों में कोई उनकी बातों को ‘कांस्पिरेसी थ्योरी’ कहकर खारिज कर देता है, तो कोई राजनीति के पीछे की कूटनीति कहकर सम्मानित. उन्हें देखकर कोई कहता लीजिये आ गये ताजा समाचार, तो कोई कहता कि अब शुरु होता है हमारा असली न्यूज़ चैनल. अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ऑप्टिमम इस्तेमाल करते इन शख्स को हम चचा अखबारी कहते हैं.
चचा अखबारी हर शहर, हर गाँव और हर समाज में दिखाई दे जाते हैं. इनकी बातें अविश्वसनीय होकर भी न जाने कब सच्ची लगने लगतीं हैं, वह तो कोई चचा अखबारी की गप्पशाला में शामिल होकर ही जान सकता है. इनकी बातों में कभी राजनीतिक मंच के नेपथ्य की हलचल सुनाई देती है तो कभी राजनैतिक बयान के बिटवीन द लाइन्स अर्थ. अब आज उनकी गप्प्शाला से जो खबरें छनकर आयीं, उनका जायजा लेते हैं ‘हम लोग’.

प्रश्न : चचा सुना आपने, लोदी जी उपवास पर हैं?

मियाँ आप क्या समझते हैं कि जब सारे हिन्दुस्तान और सारी दुनिया में ये खबर फैल चुकी है, तो आपके चचा अखबारी को यह नहीं पता होगा. वैसे जो हमें पता है वो अब हमारे मार्फ़त सिर्फ और सिर्फ आपको पता चलने जा रहा है. अमां! लोदी को भी पता है कि उनके उपवास का मीडिया मजाक ही उड़ायेगा. सुप्रीम कोर्ट से इतनी बड़ी राहत मिली है लोदी को तो फिर उसे भुनाया तो जायेगा ही. अन्ना ने अनशन हिट कराकर, एक नया मॉडल पकड़ा दिया है देश के नेताओं को. अब ‘रोड शो’ और रथ-यात्रा की फ़िल्में फ्लॉप. कहाँ से लायेंगे लम्बी मश्क्कत करने का माद्दा. खोटी करने के लिए मियाँ, न तो जनता के पास टाईम है और न नेताओं के पास. अन्ना मॉडल हिट है, तो बस लगे रहो अन्ना-भाई, माफ करना चमड़े की जुबान फिसल गयी. लगे रहो लोदी भाई! अब आप ही सोच लो. हिफाज़ती इंतज़ाम के लिहाज से भी अनशन में ही भलाई है. और एक राज़ की बात बताउं!!... अगर ये अनशन टाइप की चीज़ वीक-एंड में हो तो टी.वी. पर रिएलिटी-शो वाली टीआरपी मिलने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता.

प्रश्न : चचा! मंडी टीवी, आई बीन 17 और बदमाश न्यूज़ के लोदी कवरेज़ के बारे में आपकी अंदर की बात क्या कहती है? 

लो कल्लो बात! इतना भी नहीं पता कि मंडी टीवी की चरखा भक्त हो या आई बीन 17 का रातदिन नोटछपाई, इन्हें तो लोदी भाई अपने पास भी फटकने नहीं देते हैं. रातदिन नोटछपाई के लिये तो अपने इंटरव्यू में फरमाते हैं कि मिस्टर नोटछपाई! 9 साल हो गये, आखिर कब तक सेलिब्रेट करोगे? और मियाँ, चरखा भक्त की मक़बूलियत का आलम ये है कि वह लीबिया, ईजिप्ट और कश्मीर की खबरें ही कवर करने जा सकती हैं. रामलीला मैदान और अहमदाबाद जैसी जगह पर तो उनके जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता. भय्ये! अब कौन जाए सरे आम अपने ही टीवी कैमरे के सामने, अपनी ही हूटिंग करवाने. कमबख्त पब्लिक भी बड़ी वो है; अभी तक जीरा भांडीया के टेप ज़हन में बिठाए घूम रही है. अब बचा वो आपका बदमाश न्यूज़ चैनल. तो जनाब, उस चैनल के  पीपली चोर रसिया की तो लोदी के सामने पैंट गीली होने लगती है. अंदर की खबर ये है कि इसी डर की वज़ह से वह एक और साथी के साथ मिलकर लोदी का इंटरव्यू लेने गया. मगर बेचारे की किसमत खराब... लोदी ने उन दोनों की पैंट को पीली और गीली दोनों करवा कर भेजा. अब वे दोनों कहते फिर रहे हैं कि “क्या दाग धुलेंगे?”   

प्रश्न : आखिर में आपके एक्सपर्ट कमेन्ट चचा!! एक चैनल वाले ने क्या खूब कहा था कि ए सी कमरे में बैठकर उपवास करने से क्या जनता का दर्द समझा जा सकता है?

हा! हा!! हा!!! भय्ये! मैंने तो देखा नहीं था यह सवाल... मगर ज़रा बताना कि उस चैनल का स्टूडियो क्या गन्ने के खेत में लगा था??

उनके इस एक्सपर्ट कमेन्ट पर मैं भी अपनी हंसी नहीं रोक पाया और मेरे साथ उस गप्प्शाला में ‘खबर अंदर तक’ और ‘खबर बिना किसी कीमत पर’ देख-सुन रहे लोग भी उस ठहाके में शामिल हो गए.

13 comments:

Arun sathi said...

करारा. सरजी,,.....उघाड दिया ....

प्रवीण पाण्डेय said...

मन को शान्ति दे यह उपवास।

रूप said...

'Afara' ho jay to 'upwas' majboori ho jati hai !

sonal said...

bahut khoob

मनोज कुमार said...

ज़रा बताना कि उस चैनल का स्टूडियो क्या गन्ने के खेत में लगा था??

वाह!!

यह है सिक्सर जो बाउण्ड्री के पार जाकर ही दम लिया।

कभी कभी मेरा भी मन करता है कि इनका ही इंटर्व्यू ले डालूं, जो जबर्दस्ती अपने शब्द लोगों के मुंह में ठूसना चाहते हैं, और जवाब इनके विपरीत देना कोई शुरु करे तो ब्रेक का समय हो जाता, या संक्षिप्त में कहिए, समय की कमी है। मानो, आठ से आठ बजकर पांच नहीं हुए कि इनका चैनल गिरवी लग जाएगा।

Apanatva said...

:)

राजेश उत्‍साही said...

चचा अखबारी यानी सबपे भारी।

रचना दीक्षित said...

तीन दिन से सारे मीडिया वाले तो जैसे मुफ्त में लोदी जी कवर कर रहे है.

anshumala said...

एक बार बरखा रानी ने नितीश कुमार के मन में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जबरजस्ती जागृत करने के लिए पूछ क्या आप प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहते तो नितीश जी ने जवाब दिया की जो मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री रहते प्रधान मंत्री बनने का सपना देखता है या चाहता है वो फिर मुख्य मंत्री भी नहीं रहा जाता है इसलिए वो चुपचाप मुख्यमंत्री का कुर्सी संभाले रहे उसके लिए वही अच्छा है |

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

धारदार पोस्ट है........आभार

आपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर

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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अभी तक समझ नहीं आया कि सद्भावना के लिए उपवास की क्या ज़रूरत थी ? अच्छा व्यंग है

अभिषेक मिश्र said...

सारगर्भित व्यंग्य.

एक उभरती युवा प्रतिभा

Smart Indian said...

वाह भई वाह! चचा तो अपने चाभीरमानी के ही बिरादर लग रहे हैं

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