देख लो नोचकर नाख़ून से मेरा चेहरा
दूसरा चेहरा लगाया है, न चिपकाया है.
कहते हैं आईना दिल का हुआ करता है ये चेहरा, सब का.
जैसे हों दिल में उमड़ते हुए जज़्बात,
दिखा करते हैं इस चेहरे पर.
गर किसी ने जो ओढ़ रखा हो चेहरा एक और
दिल में हों ज़हर, पर चेहरे पे तबस्सुम होगा.
ना लगाया भी हो चेहरा तो छुपा लेते हैं जज़्बात ये लोग
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते हैं लोग.
माफ करना मैं दुनियादार नहीं हूँ इतना
दुनियादारी के तरीकों से है मुझे परहेज
मैंने कोशिश भी नहीं की, न हुनर सीखा है
इन बनावट के उसूलों से बस किया है गुरेज
उस जगह जाना ही क्योंकर जहाँ सुकूँ न मिले?
दिल अगर मिल नहीं सकते मिलाना हाथ भी क्यों?
जिसकी इज़्ज़त नहीं उसको सलाम क्यों करना?
अपने चारों तरफ काँटे ही बुने हैं मैंने
फिर भी हैं प्यारे मुझे अपने ये कँटीले उसूल
इनमें उलझूँ तो कभी ख़ून निकल आता है
कभी चुभते हैं, तो एक टीस निकल जाती है.
शाम को पूछता है आईना मेरा मुझसे
यार चेहरा तो तेरा ख़ून से सना सा है!
एक हँसी होठों पे लहराती है मेरे उस वक़्त
आईना मेरा मुझे अब भी तो पहचानता है.
आप भी चाहें तो बस आजमा के देख लें आज
चाहे नाख़ून चुभो लें या काटें ख़ंजर से
मेरा चेहरा तो फ़क़त मेरा ही मेरा है दोस्त
दूसरा चेहरा लगाया है, न चिपकाया है.
( जनाब निदा फाजली से उनके शेर
"दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
"दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये."
के अन्य सन्दर्भ में प्रयोग करने पर क्षमा याचना सहित)
चित्र साभार : गूगल
17 comments:
very nice
अच्छी चीज़ पढाई आपने ....सच से रु-ब-रु हुए
bahut achche.
शाम को पूछता है आईना मेरा ...
खून से सना चेहरा जाना पहचाना लगता है आईने को ...
चेहरे पर चेहरे ओढ़े इस दुनिया में अपना चेहरा ही होना बड़ी बात है ...!
मै कौन हू कि पुकार बहुत गहरी है.
मुशकिल बात ये है कि हमें खुद ही नहीं पता कि हमारा असली चेहरा क्या है ? नौचंकर देखें तो चेहरे के अन्दर चेहरा नज़र आता जायेगा, प्याज के छिलके उतारने जैसी कवायद होगी. शायद "चेहरा" हमारा सामाजिक आस्त्तिव है.
laga lar lakh nakab chehre par
badal sakta nahi koi shirt ke surat ko
मुखौटों की बात कर रहे हो साहब !!! और खुद पर्दे के पीछे बेनाम बने हुए हैं जी ...कभी सलिल, कभी शिव प्रिय वर्मा और कभी बस आम इंसान ...बकौल नवीन रावत नाम की गंदी राजनीति में क्यों पड़ना जी ... फिर भी यह रचना ईमानदारपूर्ण नहीं लगी जी ...
बेशक् व्यवहार मुखौटों से ही हो रहा है ... होता रहा है और होता रहेगा ...लेकिन इंसान अपना चेहरा अपने आप से कैसे छिपा सकता है ।
ये जवाब चिन्मयी से:
मेरे drawing को पसंद करने के लिए thank you , आते रहियेगा, मैं और drawing बनाऊंगी !
आपकी रचना अच्छी लगी । दरअसल आजकल हर कोई अपना चेहरा छुपाता है और जो दिखता है वो एक मुखौटा ही होता है । इसलिए अपना असली चेहरा सबके सामने रखना एक बहुत बड़ी बात है ।
nida sahab ke sher ki garima apni jagah hai ..kyunki us sher ko lehza sarcastic hai ..aapne bas..usi bat ki tees ko tees ko tees ki tarah likha hai ..aakhir tak aate aate nazm kafi mazboot hui....sahir faiz ki nazmon se flow mila mujhe,.... khubsurat .. :)
लाजबाब ।
एक नए अंदाज़ में आपने बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
sacchai ko byan karti ye .....rachna behtreen prastuti ....nidafazli saab ne kaha hai '' har aadmi mein hote hai das bees aadmi .......jise bhi dekhna ho kai baar dekhna ''
umda kaam
adbhut...
कविता को देर से पढ़ पा रही हूँ हालाँकि सही सही प्रतिक्रिया दे ना अभी भी मुश्किल लग रहा है क्योंकि जैसा कि आपने आपने कहा अभिव्यक्ति भिन्न होने पर भी मेरी कविता का भाव इससे इतना मिल रहा है कि जो भी कहूँगी लगभग आपके ही शब्द होंगे. फिर भी अपने शब्दों में कहूँगी कि अन्दर जब भी कुछ टूटता है , दर्द होता है और वह धीरे धीरे एक सच बन जाता है तब कहीं ऐसी कविता निकलती है .
आज के युग में आईना गर पहचान ले चेहरा तो जाहिर है कि कंटीले तारों से उलझ कर खुद को बचाया होगा । खरा सोना ।
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