सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Friday, November 26, 2010

26/11 - An Impression

26/11/2008… मुम्बई पर हमला और उसमें बिहार रेजिमेण्ट के जवानों का बलिदान... बिहार रेजिमेण्ट के जवानों का ज़िक्र इसलिए कि उस समय मुम्बई में बिहार विरोधी (उत्तर भारतीय विरोधी) हवा चल रही थी. इस कविता के केंद्र में है मुंबई...
हमारी श्रद्धांजलि उन सभी दिवंगत आत्माओं को, जिनका दोष सिर्फ यह था कि उनका कोई दोष नहीं.... उन शहीदों को जिन्होंने देशवासियों की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति दी

हो गए हैं लोग पागल
ख़ामख़्वाह आँसू बहाते
एक बेजाँ लाश पर
जबकि पता है
चंद दिन में लाश ये फिर से उठेगी
चलने फिरने बोलने हँसने लगेगी
भागती और दौड़ती ज़िंदा सड़क पर.

जब तलक पर ये नहीं होती है ज़िंदा
लाश ही कहना पड़ेगा
मौत का मातम मनाना ही पड़ेगा.

पर भला वो लोग आख़िर कौन हैं
लाशों के दस्तरख़्वान पर पर बैठे
चिता पर सेंककर ये रोटियाँ
इन बोटियों का नाश्ता करने चले हैं
आँसुओंका जाम भरकर चूमते हैं
मौत के त्यौहार पर ये झूमते हैं.

गिद्ध ही होंगे नहीं इंसान कोई
गिद्ध से भी ये गए गुज़रे हुए हैं
गिद्ध तो मरने तलक आकाश में ही घूमता है
अधमरी लाशोंको खाना इनकी फ़ितरत में नहीं है.

लाश ये सागर किनारे से उठेगी
कुछ दिनों में ही
ये चलकर जाएगी आशिक़ से अपने पूछने
तू कौन सा ओढ़े क़फ़न चेहरा छिपाए,
था छिपा यूँ मुँह चुराकर
मौत का मातम मनाना दूर
मेरी मौत पर तू
फ़ातिहा पढ़ने को भी आया नहीं क्यूँ.

तुझसे बेहतर तो वो नामालूम बंदे थे
तेरे कहने पे नफ़रत दी जिन्हें
तेज़ाब उगला, गालियाँ दी
संग की बारिश भी की उनपर.

मेरा क्या!
मैं तो कितनी बार मरकर भी
नहीं मरती कभी
लेकिन ज़रा उनकी तो सोचो
जिनको नफ़रत से नवाज़ा उम्र भर
उसने हिफ़ाज़त के लिए मेरी
लगा दी जान की बाज़ी
हैं बिखरी लाश उनकी
जो नहीं मेरी तरह दो चार दिन में
चलने फिरने बोलने हँसने लगेगी
भागती और दौड़ती ज़िंदा सड़क पर.

22 comments:

शिवम् मिश्रा said...

अगर उस रात की याद करो तो आज भी रूह काँप जाती है ... उन लोगो की क्या कह जिन्होंने सब अपनी आँखों से देखा और झेला था !

२६/११ के सभी अमर शहीदों को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन !

सुज्ञ said...

एक मुंबई नागरिक,२६/११ के सभी अमर शहीदों को कोटिश प्रणाम करता है।

ऐसे बलिदानी जांबाज़ो के अर्पण से सुरक्षित है हम।
अश्रुपूरित श्रद्दांजली!!

उम्मतें said...

संवेदना के स्वर बंधुओ ,
बेहद भावुक कर देने वाली आदरांजलि ! ज़ज्बात गोया बह निकले हों ,सो साथ में हम भी !
रचना के ख्याल और सवाल के हिसाब से सिर्फ इतना ही कह पाउँगा कि अभिभूत कर दिया आपने !

Rahul Singh said...

मुरदे में जान फूंक देने वाली पंक्तियां.

कडुवासच said...

... prasanshaneey rachanaa !!!

Deepak Saini said...

कविता को पढ कर दिल मे हूक सी उठी
सिर अपने आप झुक गया उन शहीदो को नमन के लिए
शहीदो की चिताओ पर लेगेंगें हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का यही बाकि निसां होगा
एक भावभिनी श्रद्धांजलि

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आपकी कविता ने अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पर भला वो लोग
आख़िर कौन हैं
लाशों के दस्तरख़्वान पर पर बैठे
चिता पर सेंक
कर ये रोटियाँ
इन बोटियों का नाश्ता
करने चले हैं
आँसुओंका जाम भरकर चूमते हैं
मौत के त्यौहार पर ये झूमते हैं.

बहुत संवेदनशील रचना ....सार्थक प्रश्न उठती रचना ...शहीदों को नमन

पूनम श्रीवास्तव said...

aapne un dino ki yaaad dila di jo dil ko jakhmo se bhar deti hain.aapki rachna ki har pankti axhrsha sacchai ko prastut karti hai.
un veero ko shradhanjali jo desh ke liye kurbaan ho gaye.
aapki post bahut gharai se man ko chhoo gai.
dhanyvaad-----------
poonam

vandana gupta said...

बेहद भावुक कर दिया लेकिन प्रश्न शाश्वत है।

दिगम्बर नासवा said...

वो डरावनी रात ... काली रात .... नमन है शहीदों को .... श्रद्दांजली ...

shikha varshney said...

भावुक कर देने वाली रचना .उन शहीदों को शत शत नमन

कविता रावत said...

पर भला वो लोग आख़िर कौन हैं
लाशों के दस्तरख़्वान पर पर बैठे
चिता पर सेंककर ये रोटियाँ
इन बोटियों का नाश्ता करने चले हैं
आँसुओं का जाम भरकर चूमते हैं
मौत के त्यौहार पर ये झूमते हैं.
गिद्ध ही होंगे नहीं इंसान कोई
गिद्ध से भी ये गए गुज़रे हुए हैं
गिद्ध तो मरने तलक आकाश में ही घूमता है
अधमरी लाशों को खाना इनकी फ़ितरत में नहीं है.
....bahut hi samvedanta se bhari yatharth ko chitrit karti rachna...
...aaj insaan ko insaaniyat se door hote dekh man mein gahree hook see uthti hai..
Bahut marmsparshi rachna..

संजय @ मो सम कौन... said...

उनका दोष सिर्फ़ यही......
- इस काल में यह दोष छोटा है क्या?
शहीदों को शत शत नमन।

rajani kant said...

एक प्रश्न २६/११ के बाद से ही बार-बार कोंचता है-- आमची मुंबई के ठेकेदार ठाकरे कुल के लोग किन बिलों में छिपे हुए थे उस दिन.

लोकेन्द्र सिंह said...

२६/११ के शहीदों को नमन..... रचना के सम्बन्ध में कुछ नहीं कह सकूँगा.. माफ़ी चाहता हूँ...

स्वप्निल तिवारी said...

sirf mumbai hamla hi nahi...balki uski wajah se jo bhi satya ujaagar hue the un sab par raushni daalti hui nazm hai ....kahaan chale gaye the shiv sainik..kahan chale gaye the MNS ke veer ... un veeron ko un sabhi shaeedon ko ..jinhonen mumbai hamle men apni ahuti di ..unhe shat shat naman...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kavita ko padh kar 26/11 ke din wala dil dahla dene wala TV ka live news ek dum se chalchitra ke bhanti samne se gujar gaya...!!

kivta ke liye kya kahun, be-juban ho gaya main!!

kshama said...

Mai us samay Mumbai me hee thee...jab aankhon ke aage sab kuchh ghat raha tha,tab bhee wishwaas nahi hota tha....kuchh apnon ko aankhon ke saamne dam todte dekha!Un jaanbaazon ko vinamr shraddhanjali!

प्रवीण पाण्डेय said...

काश बड़े बड़े लोग यह छोटी सी बात समझ लें।

रचना दीक्षित said...

पर भला वो लोग
आख़िर कौन हैं
लाशों के दस्तरख़्वान पर पर बैठे
चिता पर सेंक
कर ये रोटियाँ
इन बोटियों का नाश्ता
करने चले हैं
आँसुओंका जाम भरकर चूमते हैं
मौत के त्यौहार पर ये झूमते हैं.

बेहद भावुक कर दिया, शहीदों को शत शत नमन

Erina Das said...

:-)

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