ऐंटिलिया नाम जब गूगल पर खोजने की कोशिश की तो पता चला कि पुर्तगाल के पश्चिम, अतलांतिक महासागर में स्थित क्षेत्र है ऐंटिलिया. किसी कालखण्ड में यह सात द्वीपों का एक समूह था. भारतवर्ष की वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मुम्बई भी वास्तव में सात द्वीपों का एक समूह है. है न अनोखी समानता, किंतुआज अचानक इन दो स्थानों की चर्चा और उनमें समानता जताने का क्या प्रयोजन है भला! कारण सीधा सादा है, मुम्बई शहर के भीतर एक ऐंटिलिया है. यह क्या पहेली हुई भला!
चलिये पहेली के उत्तर में एक नई पहेली बुझाते हैं. किसी भी महानगर में आज बड़ी बड़ी होर्डिंग पर ख़ूबसूरत मकानों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं, साथ ही यह भी कि इन मकानों में कितनी सुविधाएँ मौजूद हैं. इन्हें देखकर क्या आपने कभी कल्पना की है कि किसी मकान में कितनी सुविधाएँ हो सकती हैं और वह मकान कितनी कीमत में तैयार हो सकता है!
आइए आपको ले चलें दुनिया के सबसे कीमती मकान में, जो एक बिलियन डॉलर की कीमत का आँकड़ा पार करने वाला पहला रिहाइशी मकान है. एक मिलियन यानि दस लाख और हज़ार मिलियन यानि एक बिलियन अब तकरीबन एक बिलियन डॉलर की लागत वाले इस मकान की लागत में कितने ज़ीरो लगे होंगे यह आप सोचिये. हम ले चलते हैं आपको इसके दर्शन करवाने.
यह अट्टालिका 570 फीट ऊँची है, इसके छः तलों की पार्किंग में 160 गाड़ियों को खड़ा करने की व्यवस्था है, घर के हर सदस्य के लिए ख़ास हेल्थ क्लब है, पूरी ईमारत काँच की बनी है और इसमें पैनिक रूम (ख़ुद को ज़रूरत के सम्य क़ैद करने का कमरा) के अलावा सिनेमा घर भी है और देखभाल के लिए करीब 600 नौकर चाकर. यह 27 मन्ज़िला बिल्डिंग है और इसकी छत पर तीन हेलिपैड भी हैं. क्यों,सुनने में यह किसी सम्राट के महल का वर्णन लगता है न, आधुनिक सम्राट! तो जान लीजिये कि इस मकान का क्षेत्रफल वर्साइल्स के महारज लुई चौदहवें के महल के क्षेत्रफल से कहीं अधिक है. शायद सस्पेंस बहुत ज़्यादा हो गया, इसलिये बताना ही होगा कि यह महल है पॉलियेस्टर राजकुमार स्व.धीरू भाई अम्बानी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री मुकेश अम्बानी का, जो बहुत जल्द हक़ीक़त बनने जा रहा है, गृहप्रवेश इसी वर्ष के किसी शुभ दिन बताया जाता है.
मुकेश अम्बानी एक ऐसा नाम है जिसे परिचय की आवश्यकता नहीं. रिलायंस इण्डस्ट्रीज़ के सर्वेसर्वा मुकेश, मध्य पूर्व में 29 बिलियन डॉलर की हैसियत रकहने वाले सबसे अमीर पुरुष हैं, ऐसा फोर्ब्स पत्रिका का कहना है. मुम्बई के ऑल्टामाउण्ट रोड पर पर उगने वाली यह अट्टालिका कुछ आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मात्र 350 करोड़ रुपयों की लागत से बनी है, जबकि अनौपचारिक आँकड़े बताते हैं कि यह रकम करीब 1 बिलियन डॉलर के लगभग है. हाँ, एक बात का अफसोस हो सकता है श्री अम्बानी को कि दुनिया की सबसे कीमती ईमारत होकर भी इसे फोर्ब्स पत्रिका में स्थान नहीं मिला क्योंकि यह मकान बिकाऊ नहीं है और फोर्ब्स पत्रिका बिकने वाले मकानों को उनकी कीमत के हिसाब से जगह देती है, मगर यह मकान तो लागत के आधार पर सबसे महँगा मकान है.
फोर्ब्स पत्रिका ने बताया कि आख़िरी बार सन 2009 नवम्बर में जब इस प्रकार की लिस्ट उन्होंने जारी की थी तब कैंडी स्पेलिंग के बेवर्ली हिल्स मैंशन ने सर्वोच्च स्थान पाया था, जिसकी कीमत थी 150 मिलियन डॉलर. तब से अब तक कई मकान और ईमारतें बनीं जो कीमत में कहीं ज़्यादा थी, किंतु ऐंटिलिया हर लिहाज़ से दुनिया का सबसे कीमती रिहायशी मकान है. इस कैटेगरी में वर्ष 2010 में दूसरे मकान की कीमत जो इसके कहीं भी आस पास नहीं फटकती वो मात्र 47 मिलियन से 72 मिलियन डॉलर के बीच आँकी गई है. और इस आधार पर तो ऐंटिलिया कुछ वर्षों तक तो कीमती मकानों में चोटी पर रहने वाला है, क्योंकि पहले नम्बर और दूसरे नम्बर के बीच का फ़ासला बहुत बड़ा है.
ख़ैर ऐंटिलिया में रहने जा रहे हैं अम्बानी दम्पत्ति नीता और मुकेश साथ में उनकी माँ और उनके तीन बच्चे, और हाँ 600 नौकर चाकर भी इन छः लोगों की सेवा के लिए.
27 comments:
वित्त जगत की जानकारी रखने वाले लोग जानते हैं, वारेन बफैट का नाम! जिनका नाम न जाने कितने वर्षों से अमेरिका के सर्वाधिक धनी व्यक्तियों में शुमार हैं और कहा तो यह भी जाता है कि अमेरिकी शेयर बाज़ार इनके इशारे पर नाचता है। उपरोक्त सन्दर्भ में यह जानना मज़ेदार होगा कि वारेन बफैट साहब अपने ओमाहा के घर में (जो उनके दफ्तर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर है) पिछले 4 दशकों से रह रहें है। यह घर उन्होनें सन् 1958 में मात्र 31,500 डालर में खरीदा था और इसका वर्तमान मूल्य करीब 7 लाख डालर बताया जाता है। आपको नहीं लगता कि हम अमेरिकन को बेवज़ह मेटेरियलिस्टिक़ कहते आये हैं ?
इस रेशमी मकान की चादर पर टाट के पैबंद की तरह फैली हैं आस पास कई झोपड़पट्टियाँ. अब कई लोगों ने झूठमूठ के सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं कि इतनी फ़िज़ूलख़र्ची क्या ज़रुरी है, भले ही वह दुनिया का सबसे अमीर इंसान कर रहा हो, उस देश में जहाँ लाखों करोड़ों लोग फुटपाथ पर जीवन बिताने को मजबूर हैं. कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना… लोगों ने तो उस समय भी सवाल उठाये थे जब राष्ट्रमण्डल खेलों पर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च हुए.
ये “भारतीय” मानसिकता है कि “इण्डियंस” की हर तरक्की पर ये सवाल उठाने लगते हैं. भाई ये उसका पैसा है और वो इसको जैसे चाहे ख़र्च कर सकता है. इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है! उलटा हमें तो फ़ख्र होना चाहिये कि हमारे देश का गौरव बढ़ा है और दुनिया में हमारी नाक ऊँची हुई है! तो आइए जश्न मनाएँ उस ताजमहल का जो सम्राट मुकेश अम्बानी ने संगमरमर के पत्थर से नहीं काँच से बनाया है, अपने जीते जागते परिवार के लिए.
बड़े लोगो की बड़ी बड़ी बातें !
आपका आभार जो हम लोगो को यह सब पता चला !
पिछले कुछ दिनों से बस एक ही बात से परेशान हूं कि अभी तक किराए के घर में रहता हूं। अपना दो कमरों का एक छोटा सा घर भी नहीं बना पाया हूं। ऐटालिया से परिचय कराके आपने मेरी परेशानी और बढ़ा दी है। सोचता हूं अंबानी की इस बिल्डिंग में ही नौकरी कर लूं।
बड़े लोग बड़ी बड़ी बात!
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ...
Sun rakha tha is makan ke baareme! Itne vistar se nahi lekin!Is makan me alag,alag cuisine pesh karnewale restaurants bhee maujood hain. Jise jab jo khana ho khaye!
इस महल के खँडहर हम अपनी भारत यात्रा में देख कर आये थे .चलिए कहीं तो, कोई तो तरक्की कर रहा है :) पैनिक रूम का ख्याल पसंद आया :)
चलिए यह गौरव गाथा भी पढ लिया। शुरु से सस्पेंस बना कर रखे थे। अंत में संतोष हुआ कि यह भारतीयों के लिए ख़याली पुलाव नहीं छप्पनभोग है।
अब पैसा है तो खर्चेंगे ही, और हम .. इसके चर्चा से आनंद तो लेंगे ही।
हम तो सरकारी कर्मचारी हैं, हमारी सरकार दो रूम का मकान दे देती है रहने के लिए, जब सेवा निव्रूत्त होंगे तो जहां से टिपिया रहा हूं अभी, गांव के इसी घर में ठौर-ठिकाना होगा।
सच बोलू तो मुझे भी लगत है की वो पैसा उन्होंने कमाया है वो जैसे चाहे खर्च करे | जब हम अपने कमाए पैसे जैसे चाहे अपने उपर खर्च करते है तो वो क्यों नहीं खर्च कर सकते है | कोई कल को हमसे भी सवाल कर सकता है की भाई आप अपने पैसे इस तरह खर्च मत कीजिये जीवन जीने के लिए जितना जरुरी है उतना खर्च कीजिये बाकि गरीबो को दे दीजिये ये तो हमसे नहीं होगा | कितना दान देना है और कितना खुद पर खर्च करना है ये तो हम ही तय करेंगे | और वो घर वास्तव में कितना खुबसूरत है पता नहीं पर सुन सुन कर कल्पना में तो बहुत सुन्दर दिखता है और मेरा होता है | :)
भारत निश्च्य ही सम्भावनाओं का देश है,एक तरफ 80 करोड़ भुखमरे लोग हैं और दूसरी ओर दुनिया के सबसे अमीर लोग भी हमारे यहाँ अब होने लगे हैं।
पिछले 20 वर्षों के आर्थिक सुधारों का परिणाम यह है कि देश के प्रथम 50 अमीरों के पास "बड़ी मेहनत से कमाई" देश की 25% फीसदी सम्पदा बतायी जाती है।
खैर! "अम्बानी की दौलत" की कहानी जानने के इच्छुक लोग हरवेश मैक्डोनाल्ड की पुस्तक अम्बानी एंड संस पढ सकते हैं, इंटरनैट पर हरवेश मैक्डोनाल्ड की पहली किताब polyster prince भी मिल जायेगी, जो भारत में
प्रतिबन्धित है!
प्रति व्यक्ति संसाधन पर खपत की सीमा जब तक तय नहीं की जायेगी ऐसे आडम्बर जारी रहेंगे.. इस पर बहस की जरुरत है... G-8, G-20 और अन्य मंचो पर.
क्या जी, जलने के लिए पहले ही मुद्दे कुछ कम थे जो ये एक और दे दिया
हम भी समझ नहीं पा रहे थे ऐंटिलिया का अर्थ। चलो आपने समझा दिया। इस देश की यही मानसिकता है कि हम ना जाने कितने तरीको से पैसा कमाते हैं और पत्थरों में लगा देते हैं। तभी तो हमारे यहाँ भव्य राजप्रासाद खड़े हैं और अनगिनत मन्दिर हैं। कारीगरों और मजदूरों का भला हो रहा है भाई।
हमारी लोकतांत्रिक परम्परा के हिसाब से अंशुमाला जी का कथन स्वीकार्य जान पडता है पर भुखमरी और बेरोज़गारी से जूझती आबादी का ख्याल ,पूंजी को चंद हाथों मे सिमटने के लिये साज़गार परिस्थितियों पर कलपता है !
मामला तो सुना सुनाया है पर आपकी कहन अनोखी है सो पोस्ट भी अनोखी हुई !
mai to aise shakhs ko pichle 30 salo se jaantee hoo jisko samay par agar car lene nahee pahuchee Airport to auto taxi lekar ghar pahuchane me koi jhijhak nahee. kahne ko unka naam bhee bharat ke richest person raha hai kuch samay.......samay ka sadupyogaur imaandaree sarvoparee hai unkee jindgee me.
vaise sabkee apnee life style hai.....kya kahe.......
उनका ऎटिलिया उन्हे ही मुबारक . अपन तो सपने भी नही सोचेंगे उसके बारे में . अपनी छ्त सलामत रहे और लोग की छते ऊची होती जाये हमे तो खुशी ही है .
६०० कर्मचारियो के परिवार और कई परिवार पलेंगे तो हमे क्या आपत्ति है
उनका ऎटिलिया उन्हे ही मुबारक . अपन तो सपने भी नही सोचेंगे उसके बारे में . अपनी छ्त सलामत रहे और लोग की छते ऊची होती जाये हमे तो खुशी ही है .
६०० कर्मचारियो के परिवार और कई परिवार पलेंगे तो हमे क्या आपत्ति है
शेख फ़रीद ने कहा था,
"देख पराई चुपड़ी, मत ललचाये जी,
रूखी सूखी खायके ठंडा पानी पी"
तो हम तो जी ठहरे सूखा पानी पीने वाले, गर्मियों में एक सिरहाना लेते हैं और जमीन पर सो जाते हैं खुले आसमान के तले। मुकेश भाई को मुबारक हो ऐटेलिया, हमारे वैभव का क्या मुकाबला करेंगे?
अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद....
अंबानी साहब का पैसा वो खर्च तो करेंगे ही। ये ही तो भारत की विचित्रता है कि करोड़ों के पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं वहीं 6 लोगो के पास दुनिया का सबसे ज्यादा लागत वाला घर। बैसे देखा जाए तो देश के राष्ट्रपति के पास भी 300 कमरे वाला राष्ट्रपति भवन है। इस बारे में क्या कहा जाए।
चैतन्य जी,
यह मानव का अहं पोषण है और कुछ नहिं।
आखिर इन्सान को सोने के लिये 6 फुट की खाट ही चाहिए, यहां तो रोने के लिये भी विशाल कमरा है।
अनेक दृष्टि से चिंतन करवाती पोस्ट!! आभार
ऐश्वर्य।
ऊंचे ऊंचे घर .... पर सब कुछ तो यहीं रह जाना है ... फिर जितना जरूरत है उसके हिसाब से बनाना उचित नहीं है क्या ...
अपनी अपनी सोच है ... कुछ लोग तो इसे जरूरत भी कह देते हैं ... और कहा भी होगा तभी तो बन रहा है ..... अम्बानी साहब ने भी तो अपने दिल को किसी न किसी तरह समझाया ही होगा ..
अमरीका तो हो सकता है कि मैटरिअलिस्तिक हो ..पर वारेन बफेट एक अलग ही उदाहरण पेश करते हैं ..सबसे अमीर आदमी होने के बावजूद उन्होंने अपने लिए एक तनखाह निर्धारित कि हुई है ..जिससे अधिक खर्च नहीं करते ....और यहाँ तो आप देख रहे हैं...खैर महल मुबारक .. कुछ नाम ही होगा दुनिया मे हिंदुस्तान का भी
.
उनका पैसा है वो जैसे चाहें इस्तेमाल करें ? क्या थोडा सोचना जरूरी नहीं ?
पहली बात तो ये की उन्हें पैसा कमाना को खूब आया लेकिन उसका सही इस्तेमाल करना नहीं आया। लानत है ऐसी बुद्धि पर।
दूसरी बात जिस पैसे को लोग उनका कह रहे हैं , वो उनका नहीं राष्ट्र का धन है , क्यूंकि उस धन के अर्जित होने में बहुत से गरीब जो नीव की ईंट बने, उनकी कोई गणना ही नहीं है। इस धन पर जो मुकेश जी अपना समझ रहे हैं , उस पर बहुत से लोगों का अधिकार है , इसलिए समाज में उपयोग में लाना चाहिए , न की स्वयं के।
जो दूसरों के लिए जिए, वही मनुष्य है । अपने लिए तो सिर्फ पशु ही जीते हैं।
लोगो का कहना है की इससे भारत का नाम होगा । इस तरह से नाम हासिल करने से तो गुमनाम ही बेहतर।
भारत का सीना गर्व से फूल उठता यदि यही धन मुकेश जी ने गरीबों की निशुल्क चिकित्सा के लिए एक अस्पताल बनवाने में लगाया होता। मुकेश जी इश्वर की कृपा से इतने धनवान हैं , की ताउम्र गरीब रोगियों की मदद कर सकते हैं, हज़ारों आनाथ बचों की उच्च शिक्षा में योगदान कर सकते हैं। लेकिन नहीं उन्होंने तो सिर्फ अपनी विलासिता का परिचय दिया है ।
काश उन्होंने अपने परिवार के बजाये देश-हित में इतनी बड़ी राशी इन्वेस्ट की होती तो समस्त भारतीयों को उन पर गर्व होता और विश्व में भारतीयता की मिसाल दी जाती।
लेकिन नहीं वो तो मुकेश जी हैं, कोई गाँधी नहीं, कोई बोस नहीं, कोई टेरेसा नहीं ।
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ऐंटिलिया एक अमीर इंडियन का वैभव है... जो भारत देश की गरीब और आम जनता की गाढ़ी कमाई से निकाला गया है । यह भारत की विद्रूपता को दिखाता है । भारत ही एक ऐसा देश है जो स्वयं को समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष देश कहता है, लेकिन यहीं अमीरी और गरीबी के बीच सबसे ज्यादा न पाटी जा सकने वाली चौड़ी गहरी खाई है तथा धर्मों के नाम पर दंगे और फसाद होते हैं । राजनीतिज्ञ अपनी तिजोरियाँ भरते हैं और अंबानी बंधु चतुराई और छद्म मार्केंटिंग से यह पैसा आम जनता की जेबों से बड़ी ही चतुराई से अदृश्य रूप से लूट लेते हैं ।
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