सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Tuesday, December 7, 2010

स्नूज़ केबिन में “इंडिया” और करवटें बदलता “भारत”

मात्र रुपये तीन सौ पचहत्तर प्रति घण्टा
मीन्स थ्री सेवेंटि फाइव बक्स अन आवर ओनली!!
हैरी बड़ा हैप्पी हुआ इण्डिया में फ़ाइनली
आई जी आई एयर्पोर्ट के टर्मिनल थ्री पर
इनौग्यूरेट हुआ स्नूज़ केबिन
ग्रेट यार!
ईट वाज़ सो बोरिंग इसके बिन.
ईज़ी बेड, डीवीडी प्लेयर
वाई फ़ाई और टेबुल चेयर
सारी फ़ैसिलिटि एन्जॉय करो पर्सनली
और रेण्ट
थ्री सेवेंटी फ़ाइव बक्स ओनली

उधर
भारत के सुलतानपुर में
पेट का मारा हरिया
नम आँखों से तकता है
खाली हंडिया
और नीम के पेड़ के नीचे
बदलता करवट
उँगलियों पर कैसे रहा है गिन
और हलकान है यह सोचकर
कि पूरे हुए रोज़गार के सौ दिन
साल के बाकी दो सौ पैसठ दिन
वो कैसे कमाएगा
ख़ुद तो हवा खाकर पानी पी लेगा
लेकिन दो नन्हे बच्चों को
बिना रोटी कैसे सुलाएगा


(राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) मनमोहन सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसे जोर शोर से प्रचारित करके बार बार यह बताने की कोशिश की जाती है कि आम आदमी के जीवन में भी खास आदमीयों जैसी समृद्दि लायी जा रही है। नरेगा का मकसद, ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना बताया जाता है और इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी देने का दावा है।)

23 comments:

दीपक बाबा said...

मार्मिक

imemyself said...

बकौल चचा ओबामा हम एक उदित हो चुके राष्ट्र हैं!

imemyself said...

हम सब गदगद हो चुके हैं चचा ओबामा की बात पर, फिर अब आप दोनों क्यों परेशान करते हैं इस कविता से हमें।

Deepak Saini said...

कितना विरोधाभास है

Naveen Rawat said...

देखन में छोटी लगे,पर घाव करे गम्भीर !

सुज्ञ said...

दुखद विरोधाभास!!!

मनोज कुमार said...

आज का संवेदना का स्वर द्रवित कर गया। समय के बदलते इस दौर में आज एक अलग तरह की भूख पैदा हो गई है। निम्‍नवर्ग के लोगों का शोषण कर अपनी क्षुधा तृप्त करते हैं। इसलिए इनकी स्थिति सुधरती नहीं। विकास के जयघोष के पीछे इन्‍हें आश्‍वासन के सिवा कुछ भी नहीं मिलता। इनकी किस्‍मत की फटी चादर का आज कोई रफुगर नहीं। किसानों के इस देश में किसानों की दुर्दशा किसी भी छिपी नहीं है।

सुशील गर्ग said...

स्नूज़ केबिन में सोने वाले हैरी को सुलतानपुर के हैरी की याद सपने में भी नहीं आती होगी!
किसका निवाला किसके मुहँ ?

कुमार पलाश said...

भारत की पीठ पर चढ़ कर इंडिया आगे बढ़ रहा है... बढ़िया पोस्ट...

kunwarji's said...

maarmikta se prakat kiya aapne jo ye virodhaabhaas hai,dukhad hai par hai jarur...

kunwar ji,

sonal said...

कभी गुडगाँव में आकर देखिये ..ये विरोधाभास एक साथ चलते है, ये ONLY का funda भी अजीब है 99 भी ओनली होता है तो 9999 भी ओनली, रिक्शे वाले से पांच रूपये के लिए झिक झिक करते हम होटल में ५० रूपये टिप में ऐसे ही छोड़ आते है ... .. अपना गिरेबान झाँकने पर मजबूर कर दिया आपने ..सुविधाओ के नाम पर कुछ भी अनाप शनाप खर्च करते है

संजय @ मो सम कौन... said...

"विक्की, तू जानता है शिवाज रीगल का एक पैग जितने में आता है, उतने में कितने गरीब पेट भर सकते हैं? जब तक नहीं देखा सोचा था,अलग बात थी. लेकिन अब पीता हूँ तो लगता है......"
ऋषिकेष मुकर्जी ने ही बनाई थी न नमकहराम? अच्छे से याद नहीं, लेकिन ऐसा ही डायलाग सोनू ने इस फ़िल्म में बोला था।

नजरिया बदलिये न बंधुवर, आईये आशा करें कि आने वाले समय में टेबुल, चेयर के साथ बैड तथा अन्य सहायक सुविधायें भी उपलब्ध हो सकेंगी। गरीबों का क्या है, उन्हें तो आदत है ही।

प्रवीण पाण्डेय said...

दो छोर मानवीय सभ्यता के, एक ही देश में।

Dev said...

sacchi .....jo hamesha andekha ki jaati hai

निर्मला कपिला said...

कम से कम सौ दिन तो कटे! नही से तो अच्छा है। जाते चोर की लंगोटी सही। शुभकामनायें।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

क्या लिखूं समझ नहीं आता.....सौ दिनों की खुशियों पर हंसूं या.....बाकी के दिनों पर रोऊँ....!!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत संवेदनशील ... हमारा भारत महान .... आने वाली सदी नहीं नहीं दशक में भारत दुनिया का सिरमौर बनेगा ...

Rahul Singh said...

खाई के दो पाट.

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत अच्‍छी तुलना। यही अन्‍तर है इण्डिया और भारत में। लेकिन पता नहीं क्‍यों मै जब भी किसी भारत के ऐसे व्‍यक्ति को देखती हूँ तो वह जो मिला उसी में संतुष्‍ट दिखायी देता है लेकिन जब इण्डिया के वेसे लोगों को देखती हूँ तब वे मुझे हमेशा दुखी ही दिखायी दिए।

सम्वेदना के स्वर said...

@ अजीत गुप्ता जी

सही कहा, आपने भारत के प्राणी कुछ हद तक संतुष्ट हैं, शायद यह सोचकर की यह उनकी नियति है।
परंतु जब शिक्षा/नौकरी के लिये तरसते बच्चों और बीमारी के रूप में आयी मुसीबतों की आपदा से झूझते हुए वो दिखता है, तो बस यही लगता है कि उससे कह दिया जाये कि तेरा हिस्सा तेरे बड़े और चालक भाई ने मार लिया है।

पूनम श्रीवास्तव said...

salil ji avam aalok ji
bahut hi ghan abhivykati .manav jivan ke dono hi sachhai ko bakhobi darsha gai aapki vyangatmak avam marmik prastuti.
shat-pratishat yatharth ko parilaxhit karti hai aapki post.
poonam

स्वप्निल तिवारी said...

bharat aur india ka antar fir se mukhar hua hai is post men ... pata nahi bharat ko ye log is angle se arthik mahashkti banta hua dekh rahe hain....

उम्मतें said...

संवेदना के स्वर बंधुओं ,
इंडिया और भारत में मात्र २९०० रुपये का फर्क है जी !


[ इंडिया में ३७५ रुपये प्रति घंटे की दर से ८ घंटे का हुआ कुल ३००० रुपये जबकि भारत में ८ घंटे की कुल मजदूरी १०० रुपये मात्र ]


पुनश्च :
इससे आगे का हिसाब अगर आप चाहें तो जोड़ लीजियेगा !

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