राजमाता अपनी अमारक द्वीप की यात्रा से लौट चुकी थीं और आग बबूला होती हुई, अन्धेर नगरी के युवराज आउल को व्यक्तिगत कक्ष में बुलाया. उनके मध्य हुए वार्तालाप का एक अंश:
राजमाता: यह हम क्या देख रहे हैं युवराज! आप ऐसे बाल-सुलभ कार्य कैसे कर सकते हैं.
आउल : माते! मैंने क्या किया! मैंने तो बस वही किया जो मुझे तीनों ताऊश्री ने करने को कहा! आप ही तो उन्हें मेरी निगरानी के लिए नियुक्त कर गयी थीं!
राजमाता: हे प्रभु! हमने आपको अपने आसन पर बिठाया था. यदि आप इतना भी दायित्व नहीं वहन कर सकते, तो कैसे महाराज के पद पर आसीन होंगे. हमने सोचा था कि आप उनको अपना अनुयायी बना लेंगे, किन्तु आप तो स्वयं उनका अनुकरण करने लगे!
आउल : किन्तु माते, आपने मुझे या उन्हें यह बात क्यों नहीं बताई? मुझे लगा कि आपने तीनों ताऊश्री (अहमक पटेल, यम एंटोनी और द्विछेदी) को मेरे मार्गदर्शन हेतु नियुक्त किया है. यदि आप मुझे नेतृत्व सौपना चाहती थीं तो आपको मुझे प्रभारी नियुक्त करना चाहिए था!
राजमाता: युवराज आउल! हमने उन्हें मात्र इसलिए आपके साथ रखा था कि यदि आप कोई अतिमूढतापूर्ण कार्य कर बैठो, जिसकी संभावना अधिक थी, तो वे उसके लिए उत्तरदायी ठहराए जा सकें! वास्तव में सारा सूत्र आपके हाथ में होना चाहिए था. जाने दीजिए, यह बताइये कि राजदरबार में शून्यकाल में आपके भाषण के पीछे किसका हाथ था?
आउल : तीनो ताऊश्री का. उन्होंने कहा कि इस भाषण के बाद मेरी छवि राजनेता की हो जाएगी!
राजमाता: और आपने अपनी मूढता का प्रमाण भरी सभा में दे दिया! जब राजमहल में आग लगी हो तो अग्निशमन के नियम पर भाषण नहीं दिए जाते, स्वयं भागकर अग्निशमन किया जाता है! यदि हम होते तो सुनिश्चित करते कि वह “गन्ना फसां-रे” कारावास से मुक्त कर दिया जाता और इसका श्रेय भी हम ही लेते. किसी भी अनियमितता के लिये ईमानदार सिहं, लुंगीभरम या कुटिल चप्पल पर दोषारोपण कर देते. आप किस चिंतन में हैं युवराज?
आउल : माते! आपके स्वास्थ्य की चिंता में मैं कुछ सोच भी नहीं पा रहा था.
राजमाता: अनर्गल प्रलाप न करें युवराज! बताएं कि वापसी के समय आपने कितनी बार कहवा पान किया? कितनी बार आप को कहा है कि इससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है. एक बार आपने मेरे प्याले से कहवा की एक घूँट चखी थी और आप दो दिन तक ‘चन्दा मामा दूर के’ गाते फिर रहे थे. जाने दीजिए... यह बताइये कि उस दिन उपद्रवियों के विस्फोट के उपरांत आपको चिकित्सालय जाने की सलाह किसने दी थी??
आउल : डुगडुगी मामा ने! उन्होंने कहा कि उन्हें सूचना प्राप्त हुई है कि हरे राम बागवानी भी वहाँ जाने वाला है.
राजमाता: आने दें उसे! हमें पता है तुम्हारे डुगडुगी मामा में जो सदगुण हैं और उनका वह हमारे लिये उपयोग भी करता है. किन्तु उसकी बातों को आप कभी देववाणी की तरह न ग्रहण करें! क्या आपने डुगडुगी की सलाह के विषय में आपने तीनों ताऊश्री से कोइ सलाह ली थी?
आउल : माते! जब उन्हें यह पता चला कि डुगडुगी मामा की यह सलाह है तो वे पीछे हट गए,किन्तु उनके मुख पर एक कुटिल मुस्कान थी.
राजमाता: आप कब अपना मस्तिष्क प्रयोग करना सीखेंगे युवराज! आपको जानना चाहिए कि हम ऐसे व्यक्तियों से घिरे हैं जिनके मन में मात्र उनके निहित स्वार्थ भरे हैं. जो कुटिल मुसकान बिखेर रहे थे उन्हें पता था कि डुगडुगी अपनी सलाह के कारण फंसने वाला है और आपके चिकित्सालय जाने के दुष्परिणाम आपके ही विरुद्ध होंगे. अतः वे मौन रहे. उनकी स्पष्ट इच्छा थी कि डुगडुगी अपने जाल में स्वयं फंसे. सब कुटिल हैं. आप जब चिकित्सालय गए ही थे तो अपने चचेरे बंधू करुण की तरह रक्तदान क्यों नहीं किया?
आउल : माताश्री! मैं और रक्तदान!!! मुझे सुई से भय होता है. एक बार मैं सुई देखकर ही मूर्छित हो गया था. किन्तु अब मेरी भूल का सुधार कैसे हो पायेगा?
राजमाता: सर्वप्रथम हमें यह प्रयास करना होगा कि ईमानदार सिहं, और लुंगीभरम को “गन्ना फसां-रे” के कारावास के लिए दोषी बताया जाए. राजदरबार में आपके भाषण के लिए हमारे हरकारों के माध्यम से यह बात फैलायी जा रही है कि आपने जो भी कहा वो सही प्रस्ताव था और हरे राम बागवानी और उसके साथी शत्रुता के कारण इस सुझाव को दोषयुक्त बता रहे हैं. और रही बात विस्फोट के बाद आपके चिकित्सालय जाने की, तो उस सम्बन्ध में हमनें यह प्रचार किया ही है कि आप हताहतों के दुःख से द्रवित हो अपना नियंत्रण खो बैठे और आप बिना अपने सुरक्षा प्रहरियों के भी चिकित्सालय पहुँच गए थे!
आउल : माते! आप चमत्कारी हैं!!
राजमाता: आज के बाद हम यह चाहते हैं कि आप अपना निर्णय स्वयं लें. आज से आपका रात्रि-उत्सव समाप्त और पदयात्रा प्रारम्भ!
आउल : माते! हमें हरे राम बागवानी की रथयात्रा का उत्तर कैसे देना है? मैं स्वयं एक यात्रा करने की सोच रहा हूँ ताकि हरे राम बागवानी को चुनौती दे सकूं.
राजमाता: (एक कुटिल मुस्कान के साथ) उसकी रथयात्रा में उससे कुछ दूरी पर डुगडुगी चलता रहेगा, ऐसे में आपको कुछ और बताने की आवश्यकता है क्या!!
आउल : समझ गया माते! वैसे मैंने अब अधिक समय उत्तरवर्ती प्रदेश में व्यतीत करने का निर्णय लिया है.
राजमाता: किन्तु इसके पूर्व कि आप कोइ भी कदम उठायें, सुनिश्चित करें कि योगमाया मौसी को इसकी जानकारी हो. और उस पर कटाक्ष करने के पूर्व यह अवश्य सोचें कि वो अपने गहने, आभूषण, वस्त्र आदि को लेकर अत्यंत संवेदनशील है.
आउल : माते! इसके पूर्व कि मैं रातों-दिन की राजनीति में जुट जाऊं, क्या मुझे कुछ दिनों का अवकाश मिल सकता है?
राजमाता: आप होश में तो हैं!! जब भी आप कभी अवकाश पर जाते हैं, विरोधियों में यह चर्चा होने लगती है कि आप धन छिपाने गए हैं.
आउल : माते! आप भूल समझ रही हैं. मैं अपने ही प्रदेश में रहकर अवकाश मनाना चाहता हूँ. ताऊश्री शीतल बयार ने मुझे लावास् द्वीप का निमत्रण-पत्र भेजा है.
राजमाता: वो रंगा सियार! आप जाएँ उस द्वीप पर और अगले दिन जंगल की आग की तरह समाचार फ़ैल जाएगा कि वह द्वीप हमारी व्यक्तिगत संपत्ति है!
आउल : ठीक है माते! तब तो मैं घर पर ही रहूंगा. दिन भर मोर का नाच और चतुरंग का खेल खेलूंगा तथा रात्रि के समय सुरा के साथ सुंदरियों के नृत्य.
राजमाता: यह अवकाश है आपका!!! आप विगत कई वर्षों से यही तो करते आ रहे हैं, तो अलग से इन्हीं कार्यों के लिए अवकाश की बात व्यर्थ है!
आउल : (झेंपते हुए) माते! आपको क्या रोग लग गया है? मुझे चिंता है आपकी!
राजमाता: यह अब हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हो गया है पुत्र! मुझे मृत्यु की आशंका भयभीत करती है. आपके पिताश्री को यह सिंहासन दुर्घटनावश प्राप्त हुआ, आपको सुलभ रूप से प्राप्त हो, इसलिए हम चाहते हैं कि आप सिर्फ अपने खून को पहचाने. कोइ विश्वासपात्र नहीं. आसपास के व्यक्तियों का उपयोग करना सीखें और जब उपयोगिता समाप्त हो जाए तो उन्हें फेंक दें. यही मूल मंत्र है सिंहासन प्राप्त करने का और उसपर बने रहने का.
आउल : जीजाश्री के विषय में आपकी क्या राय है?
राजमाता: उसके लिए आप दीदी प्रियलता पर विश्वास करें और उनकी राय लें. अच्छा अब हम विश्राम करना चाहते हैं.
आउल : माते! आप कितनी अच्छी हैं. मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूँ.