और देखते ही देखते ब्लॉग जगत में “सम्वेदना के स्वर” को एक बरस हो गया!!
पलट कर देखने पर याद आती है, 2009 की नीरा राडिया टेप खुलासों से पहले की दुनिया, जब “व्यव्स्था की अव्यवस्था” से आक्रांत, हम दोनों मित्र अपने हिस्से के 2जी स्पेक्ट्रम का उपयोग, घर-दफ्तर से लेकर दुनिया जहान की बातों पर घंटों बतियाने में किया करते थे। फिल्म, साहित्य, राजनीति और आध्यात्म... हमारी बातें अलिफ़ लैला के किस्सों सी चलती रहतीं और इनमें अखबारों की सुर्ख़ियाँ और एलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सनसनीखेज राजनीति और अर्थनीति से प्रेरित पत्रकारिता (जिसे अब हम राडिया-एक्टिव पत्रकारिता कहते हैं) आग में घी का काम करती तथा हमें समय-असमय बेहद उद्वेलित कर देती थी।
इसी दौरान राम गोपाल वर्मा की, अमिताभ बच्चन अभिनीत एक फिल्म आयी “रण” जिसने हमारे कौतूहल को बेहद बढा दिया। फिल्म में मीडिया के सत्ता से हाथ मिला लेने की वास्तविकता को बेहद बेबाकी से कहा गया। अभिव्यक्ति की सता-नियंत्रित यह व्यवस्था हमारी भी दुखती रग थी, जिस कारण चंडीगढ़ और नोएडा के सिनेमाघरों में हमने एक साथ यह फिल्म देखी और एक तरह के कैथार्टिक अनुभव से गुजरे।
कला, साहित्य, राजनीति, अर्थशास्त्र और आध्यात्म...जीवन के विविध रंगों पर किसी बावरे भौरे की तरह हमें मंडराते देख मित्र मनोज भारती (जो पहले से गूंज अनुगूंज ब्लॉग लिखते थे) ने सलाह दे डाली कि ब्लॉग लिखो... बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी! बस फिर क्या था 12 फरवरी सलिल भाई के जन्म दिन से इस ब्लॉग को शुरु करने का मन बना और नाम दिया “सम्वेदना के स्वर.”
“सम्वेदना के स्वर” की इस एक बरस की यात्रा में बहुत से अनूठे अनुभव हुये, सबका विवरण एक पोस्ट में देना सम्भव नहीं है. हाँ, कुछ तो फिलहाल जरूर ही कह डालेंगे, क्योंकि रस्मे दुनिया भी है, मौका भी है, दस्तूर भी है...
शुरुआती दिनों में जब आस-पास देखा तो बहुतों की तरह बेहतर, स्थापित, सम्मानित और अनुभवी ब्लॉगर्स हमने भी उनको माना, जिनके ब्लॉग पर टिप्पणी करने वालों की संख्या बहुत हुआ करती थी. इसके बाद बहुत से प्रोफाईल देखे तो एक शख्स जो बहुत पसन्द आये और संजोग से नोएडा में रहते थे, वो थे बड़े भाई सतीश सक्सेना. उन्होंने अपनी पोस्ट पर किसी को अपना मोबाईल नम्बर दिया था, बस फिर क्या था आपस में मशविरा करके उन्हें फोन कर लिया. जिस शख्स की सिर्फ तस्वीर देखी थी उसकी आवाज़ सुनकर लगा कि कैसे लोग कौन बनेगा करोड़पति में अमित जी की आवाज़ सुनकर घबरा जाते होंगे. चले गये उनसे मिलने और उनसे मिलने के बाद मान लिया कि ब्लॉगजगत में अपना रजिस्ट्रेशन अब हुआ है. बाद में सतीश जी ने हमारे ऊपर पोस्ट लिख दी और हम बस आत्म मुग्ध सी स्थिति में चले गये। इसके बाद एक साल में हमारे रिश्तों में कई उतार चढ़ाव आए. लेकिन हम आज भी उनके मुरीद हैं. क्योंकि हमारा ब्लोग दुनिया से परिचय सतीश जी ने ही करवाया.
हमारी एक पोस्ट दो बीघा ज़मीन पर सोनी गर्ग नाम की एक ब्लॉगर ने लीक से हटकर टिप्पणी की थी. टिप्पणी क्या थी एक सवाल ही खड़ा कर दिया था, एक चुनौती दे डाली थी हमारे आँकड़ों को. बहुत अच्छा लगा यह देखकर कि उन्होंने हमारी पोस्ट को न सिर्फ पढ़ा था, बल्कि उसपर खूब विचार भी किया और कुछ बातों को चैलेंज किया. हमने उस टिप्पणी का जवाब अपनी पिछली पोस्ट के विस्तार में दिया एक नई पोस्ट लिखकर. अपनी बात बिना थोपे, हमने पूछा कि आपको अपने सवाल का उचित उत्तर मिला या नहीं. उन्हें अपने सवाल का उत्तर मिला और हमें मिला एक रिश्ता, सलिल जी की बेटी बन गई सोनी गर्ग और चैतन्य जी को भाई बनाया. इसके पीछे भी एक अजीब घटना हुई. वो सलिल जी को बाबूजी कहती थी और चैतन्य को भाई, उन्हें भी कई लोगों की तरह चला बिहारी के लेखक सलिल और सम्वेदना के स्वर के लेखक सलिल-चैतन्य के सलिल अलग लगते थे. बहुत मुश्किल से उसको समझाया हमने कि दोनों सलिल एक ही हैं.
पण्डित अरविंद मिश्र से हमारा रिश्ता भी अजीब तरह से बना. हमने चाँद पर अपोलो अभियान के विरुद्ध लिखा. देखा उसपर पंडित जी की टिप्पणी नहीं आई. आम तौर पर हम किसी को ज़बर्दस्ती टिप्पणी के लिए आमंत्रित नहीं करते. लेकिन सलिल उनको न्यौता दे आए, यह सोचकर कि वो साईंस ब्लॉग लिखते हैं और वैज्ञानिक विचारधारा वाले व्यक्ति हैं. उनके विचार महत्वपूर्ण होने चाहिये. अगला दिन रविवार का था और जब सलिल भाई ने पंडित जी की टिप्पणी देखी तो सन्नाटे में आ गए. उन्होंने तो न सिर्फ हमारे लेख को नकार दिया था, बल्कि हमारे बारे में कई अजीब सी बातें लिख दीं, जिस कारण शायद पहली बार हम दोनों ने उनका जवाब अलग अलग दिया. नतीजा बहसा बहसी हो गयी. बहरहाल, बहस का नतीजा जो भी रहा हो, आज भी वो पोस्ट हमारी ऑल टाईम हिट पोस्ट है यानि सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली पोस्ट है. तब से और उसके बाद से एक रिश्ता बन गया पण्डित जी से. उन्होंने इस सम्बोधन से मना भी किया, मगर हम भी ढीठ - नहीं माने.
समीर लाल समीर, ब्लॉग जगत के अमिताभ बच्चन.. प्रशंसकों की एक लम्बी कतार इनके पीछे. सालों का अनुभव और चोटी पर विराजमान. हर बड़े छोटे ब्लॉग पर टिप्पणी देते और एनकरेज करते नए ब्लॉगर्स को. इतना व्यवहार काफी था किसी दो महीने पुराने ब्लॉगर का मन मोह लेने के लिये. लेकिन तब हमें ब्लॉग जगत के कई व्यवहार मालूम नहीं थे. यह भी नहीं पता था कि यहाँ बिटविन द लाइंस ही बातें लिखी पढ़ी जाती हैं. ऐसी ही किसी बात को सलिल भाई ने अपने लिये समझ लिया और बरस पड़े समीर जी पर. लेकिन इससे कई बातें भी खुलकर सामने आईं. समीर जी विशाल हृदय का भी पता चला और कई अन्य लोगों के असली चेहरे भी दिख गये. इसी बहाने चला बिहारी ब्लॉगर बनने (यह नाम चैतन्य जी ने सुझाया था) वजूद में आया. सलिल भाई आज भी उस ब्लॉग का जनक समीर जी को ही मानते हैं.
सरिता अग्रवाल जी, इन्होंने तो अपने ब्लॉग का नाम हमारे लिये सार्थक कर दिया, ऐसा अपनत्व मिला इनसे. बहुत देर से ये जुड़ीं हमसे, लेकिन ऐसे कि बस अपना बनकर रह गईं. सलिल और चैतन्य को कभी अलग करके नहीं देखा, शुभकामनाएँ दीं तो हमारे बच्चों के नाम भी हमारे साथ जोड़कर. इनके साथ हमारे सम्बंध ब्लॉग, टिप्पणियों और पोस्ट से भी परे थे. सलिल को रात में कमेंट लिखते देख उनका टोकना कि इतनी देर तक जागना ठीक नहीं और मेल करके कहना कि बिटिया बीमार है अमेरिका जाना पड़ रहा है अचानक. क्या आवश्यकता थी यह बात हमें बताने की, सिवा इसके कि एक अपनत्व का सम्बंध है हमसे. अभी बीमार हैं, तबियत में सुधार भी है.
मनोज कुमार, हमसे शुरुआती दौर में जुड़ने वालों में मनोज जी का नाम सबसे पहले आता है. नियमित रूप से ये हमारे ब्लॉग पर आते रहे, जबकि हमने इनके ब्लॉग पर जाना ही दो तीन महीने बाद शुरू किया. उस समय हमें पता ही नहीं था कि एक व्यक्ति कई कई ब्लॉग पर, कई लोगों के साथ मिलकर कैसे लिख लेता है. तब समझ में आया कि मनोज जी के साथ अलग अलग विषय पर सर्वश्री परशुराम राय, हरीश गुप्त एवम् करण समस्तीपुरी जी उनके साथ हैं. एक सम्रर्पित व्यक्ति हैं ये. शायद ब्लॉग जगत के ये दूसरे व्यक्ति हैं जिनके साथ मिलना हुआ. और इन्हीं के साथ मिलना हुआ सर्वश्री कुमार राधारमण, अरुण चंद्र राय, राजीव सिंह आदि से भी. इनका उत्साह वर्धन हमें प्रेरित करता रहा, हमारे अवसाद के दिनों में भी. अब तो बहुत ही मधुर सम्बंध बन गये हैं हमारे बीच. शायद ही उनकी कोई दिल्ली यात्रा हो जब वे सलिल जी से न मिलते हों.
पायाति चरक जी एक विलक्षण व्यक्तित्व, एक पूर्व ब्यूरोक्रैट, एक चिंतक और एक व्यवस्था की अव्यवस्था से लेकर कुव्यवस्था के संक्रमण के गवाह. चैतन्य जी की अचानक उनके साथ हुई मुलाक़ात, शायद हमारी ब्लॉगयात्रा की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी. उनका देश की समस्याओं को देखने का नज़रिया, उनके अनोखे और स्वयम् प्रतिपादित सिद्धांत, हमारे लिये जितनी बड़ी उपलब्धि है, शायद व्यवस्था के लिये उतनी ही बड़ी क्षति, जो उनका उपयोग न कर सकी. हम दोनों के लिये पूज्य. चैतन्य जी जब भी कभी गहरे विषाद में घिरे होते हैं, तो उनकी शरण में जाकर ही उनको शांति मिलती है और मिलती है एक शक्ति उस विषाद से लड़ने की!
स्वप्निल कुमार आतिश का ब्लोग हमारी चाँदमारी का सबसे अच्छा अड्डा है, उनकी कविताओं से परिचय होने के बाद से ही वो हमारी परिचर्चा का केंद्र रहे हैं। 25 वर्षीय, बायोटेक के शिक्षार्थी और इतनी गहरी शायरी! सलिल कहते कि इसे गुलज़ार साहब के साये से बाहर निकलना चाहिये (जबकि वे स्वयम् बहुत बड़े गुलज़ार भक्त हैं) और चैतन्य कहते कि यह मीरा बाई की तरह गुलज़ार के प्रेम में आकण्ठ डूबा है. जब सलिल से वो पहली बार मिला तो पैर छुए और सलिल भाई इतने भावुक हो गए कि जब फोन पर इस घटना के बारे में चैतन्य को बताया तो गला भर आया उनका. अपनी सही मंज़िल की तलाश है इस युवक को. हमारा आशीष है कि कामयाबी उसके क़दम चूमे.
अभी और भी ब्लॉग जगत के कितने प्यारे प्यारे लोग और कितनी मज़ेदार घटनायें एक के बाद एक याद आ रहीं है हम दोनों को..सब पर एक-एक पोस्ट लिखने का मन है...सफर तो खैर अब चलता ही रहेगा...
हमारा धन्यवाद और आभार उन सबका जो जुडे है इस यात्रा में....
बोले तो बिन्दास, उपेन्द्र, अविनाश चन्द्रा, प्रवीण शाह, अली सा, राजेश उत्साही, ज़ील (दिव्या), अनूप शुक्ल, रचना दीक्षित, डॉ. अजीत गुप्त,सुरेश चिपलूनकर,देवेंद्र पांडेय, वन्दना, शिखा वार्ष्णेय, क्षमा, गिरजेश राव, डा. अमर कुमार, अंशुमाला जी, कविता रावत, धीरु सिहं, शिवम मिश्रा, केवल राम, प्रवीण पांडेय, विचार शून्य, दिगम्बर नासवा, सोमेश सक्सेना, दीपक सैनी, दीपक बाबा, संजय अनेजा - मो सम कौन, जाकिर अली रजनीश, हंस राज सुज्ञ, संजय भास्कर, नीरज गोस्वामी नमस्कार मेडिटेशन, प्रेम सरोवर, सांझ, खुशदीप सहगल, अजय कुमार झा, पी सी गोदियाल, गिरीश बिल्लोरे, ललित शर्मा, संगीता स्वरूप एवम् पूनम श्रीवास्तव (झरोखा).
[ब्लोगर के साथ चल रही तकनीकि परेशानीयों के कारण हम लिंक उपलब्ध नहीं करा पा रहे है, स्थिति सामन्य होते ही लिंक उपलब्ध कर पायेंगें। यह पोस्ट ब्लोग रोल में दिखायी नहीं दे रही थी, इसलिये दुबारा पोस्ट करनी पड़ी]