मोहाली में पँजाब क्रिकेट एसोसिएशन के स्टेडियम से कुछ दूरी पर घर है, पंजाबी कवि अमरजीत कौंके का। उनकी एक कविता “इस मौसम की बदसूरती के खिलाफ” न जाने क्यों अनायास ही स्मरण में आ गयी, सोचा पोस्ट के माध्यम से आज क्यों न इसी का सीधा प्रसारण कर दिया जाये !
इस मौसम की
बदसूरती के खिलाफ
मैं इतना करुंगा -
मैं उखाड़ कर फेंक दूंगा
गमलों में उगे तुम्हारे कैक्टस
और बोऊंगा इस मिट्टी में
गुलाब के बीज
और बोऊंगा इस मिट्टी में
गुलाब के बीज
तुम देखोगे
कि इस मिट्टी में
जहाँ उगे थे तुम्हारे
कटींले कैक्टस
वहीं खिलेंगे – सुर्ख गुलाब
जो महका देंगे
समूचा वातावरण
मै इतना करुंगा
कि मै घर में पालूंगा
एक बुलबुल
जिसके गीत टकराएंगे
इन काली खबरों से
और यकीन है मुझे
कि लौटेंगे विजयी हो कर
इस मौसम की
बदसूरती के खिलाफ
मैं अपने बच्चों के
होठों पर बांसुरी
और हाथों पर पुस्तकें रखूंगा
मैं इतना करूंगा !
15 comments:
Amen!
:)
pranam.
उम्मीद की कविता और कविता में उम्मीद।
उम्मीद बनी रहे ....अच्छी प्रस्तुति ..
कांके साहब की कविता है और यह कल्पना ...गुलाब के बीज .. अच्छी लगी ..
बहुत सी सधी समझ है, बच्चों को एक नयी दिशा ही देना होगा, आजकल जैसी नहीं।
hmm..quite impressive !
वाह...एक अच्छी सार्थक रचना पढ़ कर आनंद आ गया...
नीरज
अल्लाह आपकी तमन्ना पूरी करे.
हमारी ब्रांच के पास ही ’कांऊके’ गांव है, मेरा ख्याल था अमरजीत जी वहीं के रहने वाले हैं। उस गांव के एक दो लोगों से पूछा भी तो उन्हें मालूम नहीं था|
उनकी दूसरी कविताओं की तरह ही एक और अच्छी कविता और आपने प्रसारण भी सही मौके पर किया:)
सुंदर कल्पना और सुंदर विचार.
मैं अपने बच्चों के होठों पर बांसुरी
और हाथों पर पुस्तकें रखूंगा
मैं इतना करूंगा !
कमसकम बच्चे तो थोड़े अछुते रहें इस माहौल से.
ek acchee rachana padvane ke liye dhanyvad .
बेहद खूबसूरत !
आमीन !
बहुत अच्छी सोच है!
और जब मोहाली में जीत हुई तो यह सोच पूरी होती नज़र आई।
कल पूरा मैच गुलाब की अच्छी खुसबू के साथ संम्पन्न हुआ कही भी दोनों देशो के बीच मिडिया द्वारा फैलाये कैक्टस के कांटे नहीं थे बस राजनीती में भी ये कैक्टस निकाल गुलाब बोया जाये तो क्या बात है |
चलिए, कुछ तो करिए. यहां पो घ्वस्त और लंका दहन हो रहा है.
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