सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Monday, September 5, 2011

शिक्षक-दिवस - रीपोस्ट

राधाकृष्णन एक शिक्षक थे, फिर वो राष्ट्रपति हो गये, तो सारे हिदुस्तान में शिक्षकों ने समारोह मनाना शुरु कर दिया “शिक्षक दिवस”.भूल से मैं भी दिल्ली में था और मुझे भी कुछ शिक्षकों ने बुला लिया. मै उनके बीच गया और मैने उनसे कहा कि मै हैरान हूं, एक शिक्षक राजनीतिज्ञ हो जाये तो इसमें “ शिक्षक दिवस” मनाने की कौन सी बात है? इसमे शिक्षक का कौन सा सम्मान है? यह शिक्षक का अपमान है कि एक शिक्षक ने शिक्षक होने में आनन्द नही समझा और राजनीतिज्ञ होने की तरफ गया.जिस दिन कोई राष्ट्रपति शिक्षक हो जाये किसी स्कूल मे आकर, और कहे कि मुझे राष्ट्रपति नहीं होना, मै शिक्षक होना चाहता हूं! उस दिन “शिक्षक दिवस” मनाना. अभी “शिक्षक दिवस” मनाने की जरुरत नहीं है...

स्कूल का शिक्षक कहे कि हमें राष्ट्रपति होना है? मिनिस्टर होना है? तो इसमे शिक्षक का कौन सा सम्मान है ? यह तो राष्ट्रपति का सम्मान है! ..

(ओशो की पुस्तक “नये समाज की खोज” के “विश्व शांति के तीन उपाय” प्रवचन से उद्धृत)

15 comments:

Deepak Saini said...

शिक्षक दिवस की शुभकामनाये

Rahul Singh said...

बात पूरी तौर पर तो नहीं लेकिन कुछ हद तक कलाम साहब ने पूरी की है.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

शिक्षकों की इसी महत्वाकांक्षा की ऊंचाई और उनके गिरते चरित्र की गहराई को 'राग दरबारी' में बखूबी दिखाया गया है!!
एक शिक्षक ही देश का चरित्र निर्माण कर सकता है... ऐसे में ओशो की यह उक्ति एक चुनौती है, मानदंड है!!

प्रवीण पाण्डेय said...

राष्ट्रपति बनने में नहीं, राष्ट्रपति बनाने में शिक्षक की प्राथमिकता हो।

Apanatva said...

Aarkshan me ek aadarsh shikshak ka bhee kirdaar hai
jisne vyvstha ke aage ghutne nahee teke.....

sabhee shikshako ko ek category me aur sabhee politicians ko bhee ek hee category me rakhne kee galtee na ho to accha hai....

अजित गुप्ता का कोना said...

अच्‍छा संदेश।

उमेश... said...

शिक्षक दिवस की शुभकामनाये

kripya mere blog par bhi aayen..
aabhar.

http://umeashgera.blogspot.com/

अरुण चन्द्र रॉय said...

शिक्षक को हमेशा ही बेगार और दूसरे दर्जे का नागरिक समझा है. क्रन्तिकारी पोस्ट..

चंदन कुमार मिश्र said...

ये लीजिए अब। हम तो सोचते थे कि यह हम शिक्षक दिवस के दिन लगाएंगे। लेकिन हम तो उस दिन खाली हाथ थे और जनाब लगा गये। लेकिन ठीक किए। जरूरी था यह।

चंदन कुमार मिश्र said...

आदरणीय राहुल जी,

कलाम साहब राष्ट्रपति का चुनाव लड़े नहीं इसके पीछे भी कारण थे। जीत जाते तब, तो नहीं करते यह सब? इसलिए उनको भी इस सम्मान से नहीं नवाजा सकता।

Rohit Singh said...

बात एकदम सही है। शुरु के कुछ समय तक तक तो राष्ट्रपति पद पर योग्य व्यक्ति को बैठाया गया....फिर वेंकटरमण के पहले तक सिलसिला बस चलता ही रहा....फिलहाल यही स्थिती फिर से हो गयी है। अब सवाल ये है कि शिक्षक का होना बड़ा है या राष्ट्पति का। तो निंसदेह आदर्श और हकीकत में शिक्षक ही बड़ा होता है....राष्ट्रपति देश का सबसे बड़ा संवैधानिक पद होता है औऱ पद कभी भी किसी बड़ा नहीं होता उसे उसपर बैठा व्यक्ति बड़ा या छोटा बनाता है। इसलिए राष्ट्रपति पद की गरीमा कई लोगो ने बढ़ाई तो कुछ लोगो के बारे में कहना कुछ भी बेकार होगा।

रचना दीक्षित said...

सार्थक पोस्ट

अवनीश सिंह said...

http://premchand-sahitya.blogspot.com/

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देवेन्द्र पाण्डेय said...

कितनी बढ़िया बात कही ओशो ने...! इसी को दर्शन कहते हैं जो गलत को सीधा कर दे।

Unknown said...

काफी हद तक।

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