सम्वेदना के स्वर

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Monday, February 6, 2012

राहुल बाबा की दाढी और पर्सुएशन इंडस्ट्री - एक री-पोस्ट!

चुनाव  की फिजां में पिछली बार जब हमने ये पोस्ट लिखी थी तो उस समय की तस्वीरें लगाई थीं. आज भी  उन्हीं तस्वीरों को इस्तेमाल किया है . फर्क कहाँ है. कहीं नहीं.  अब इसे को-इन्सिडेंस कहें या यूपी के मंच पर उसी नाटक का पुनर्मंचन!!
आप दुबारा देखिये, नज़ारा इस पेर्सुएशन इंडस्ट्री का इस री-पोस्ट में!

@@@@@@

उम्र, शरीर और ख़ास तौर पर चेहरे से पुराने हो चुके, ए. के हंगल और ओम प्रकाश जैसे अपने देश के राजनेताओं के बीच,बॉलीवुड के आमिर खान या शाहिद कपूर जैसा कोई चाकलेटी चेहरा यदि दिख जाये, तो उम्मीद के झरने फिर फूटने लगते हैं। ऐसे में राहुल गांधी को टेलीविज़न स्क्रीन पर देखना अपने आप में एक अनूठा अनुभव ही तो है।

पिछले दिनों, जब महंगाई और कामनवैल्थ घोटालों का शोर ज़रा थमा, तो राहुल गांधी फिर अवतरित हुये। एंट्री बहुत ही धमाकेदार थी, बढ़ी हुई काली दाढी में, सफेद किंतु कुचले हुए कुर्ते पायजामे में, गौरवर्णी, यह चालीस वर्षीय युवा, जब लाल रंग के हैलीकाप्टर से नियमागिरी, उड़ीसा की पहाडियों में उतरा तो वहां के आदिवासी समूह ने खूब उत्साह से उनका स्वागत किया। राहुल गांधी ने भी अपनी पोटली से निकालकर एक तोहफा उन्हें दिया,मानो इस बार कृष्ण सुदामा के लिए कुछ लाए हों. उपहार था यह बताना कि “वेदांत समूह”का छः मिलियन टन का अल्यूमिनियम संयंत्र अब इस इलाके में नहीं लगेगा। राहुल गांधी ने इसी सभा में स्वयं को आदिवासियों का दिल्ली में नियुक्त सिपाही भी बता दिया।

इस पूरे वाकये के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक पहलू तो बहुमुखीं है तथा उन पर देश भर में चर्चाएँ भी चल ही रहीं हैं, लेकिन Headlines Today नाम के अंग्रेजी खबरिया चैनल में एक बेहद मज़ेदार चर्चा देखने के बाद हमारा ध्यान भी राहुल गांधी की “बढ़ी हुई दाढी” पर गया.
(26 अगस्त को उड़ीसा में)
टेलीविज़न चैनलों की समाचार मनोरंजन प्रवृत्ति से तो हम सब वाक़िफ़ हैं ही. देर तक इस बात पर चर्चा होती रही कि राहुल गांधी की “बढ़ी हुई दाढी” दरअसल उनकी “जुझारु राजनेता” कि छवि को “एन्हैंस” करती है। यह भी समझ आया कि उनके गुलाबी गालों वाले चाकलेटी व्यक्तित्व को अगर उनकी पूर्णता में देखा जाये तो काली चमड़ी वाले आदिवासी उनसे ख़ुद को “को रिलेट” नहीं कर सकेंगें, इस कारण बढ़ी हुई दाढी अपरिहार्य्य हो जाती है। झक्क सफेद कुर्ता जहाँ उन्हें राजनेता की छवि प्रदान करता है, वहीं जींस की पैंट उन्हे दिल्ली का सिपाही बताती सी लगती है।

इस कार्यक्रम के बाद हमारी नज़रों ने भी “पर्सुएशन इंडस्ट्री थ्यौरी”के छात्र की तरह उनका पीछा करना शुरु कर दिया और हमने बारीकी से उनके गेट अप पर नज़र रखनी शुरु कर दी। कुछ दिनों बाद ही राहुल हमें फिर टेलीविज़न पर नज़र आये. इस बार वह बिहार में एक सभा को सम्बोधित कर रहे थे, उनकी बढ़ी हुई दाढी इस बार बहुत कुछ कट-छँट चुकी थी. हमने टेलीविज़न चैनल से मिले ज्ञान का फायदा उठाते हुए अनुमान लगाया कि दाढी का यह प्रकार शहरी और ग्रामीण दोनों तरह की जनता में छवि बनाता है।
(4 सितम्बर को बिहार में)
अभी हम राजनीति की हाइब्रिड नीतियों की तरह, युवराज की बढ़ती घटती हाइब्रिड दाढी का संतुलन कुछ कुछ समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि तीसरी बार वो दिखायी दिये कोलकाता में, वो भी एकदम सफाचट, क्लीन शेव में. कम्यूनिस्टों को उन्हीं की माँद में ललकारते हुऐ, भद्रलोक के गेट अप में!
 
(6 सितम्बर को कोलकाता में)
इस सारे घटनाक्रम ने हमें पायाति चरक जी यानि अपने पी.सी. बाबू से पिछली मुलाकात की शिद्दत से याद दिला दी जिसमे उन्होंने किसी रिसर्च का हवाला देकर “पर्सुएशन इंड़्स्ट्री” के बारे में बताया था.. “किताब, मंजन, फिल्म ही नहीं.. कौन सी नौकरी करनी है कौन सी नहीं, किस नेता को वोट देना है, किसे नहीं...कौन सी पार्टी अच्छी है, कौन सी बुरी,..हमारे विज्ञापन, फिल्में, टेलीविज़न ...सब का इस्तेमाल होता है हमें परसुएड करने में!"

इन सबके बीच, एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि “राजनेताओं की छवियों को भी क्या जनमानस में इसी तरह बैठाया जा सकता है?”

हाँ, एक बात तो रह ही गयी, राहुल गांधी ने इन तीनों जगह पर जो भाषण दिये उनमें एक बात सभी भाषणों में कही कि देश में दो देश हैं, एक “अमीरों का हिन्दुस्तान” है और दूसरा “गरीबों का हिदुस्तान” तथा राहुल गांधी गरीबों के हिदुस्तान के स्वयम्भू प्रतिनिधि हैं. राहुल की इस बात से फिर याद आये, पी.सी.बाबू जिन्होंने हमें “भांडिया का भांड़” कहकर अन्दर तक झंझोड़ दिया था. पी.सी.बाबू के वह शब्द कानों मे गूंज रहे थे “ऐसे लोगो को जो एक तरफ तो इंडिया का सुविधाभोगी जीवन भोग रहे हैं और दूसरी ओर भारत की भी बात कर रहें हैं उन्हें मै “भांडिया” कहता हूं...हम और आप जैसे “भांडिया के भांड”, अपनी सुविधाभोगी वैचारिक जुगाली से इतर कुछ ठोस करें तो कुछ उम्मीद जगेगी...”

17 comments:

kshama said...

Maza aa gaya padhke! Bahut dino baad aap blog pe nazar aa rahe hain!

नीरज गोस्वामी said...

ठीक ऐसा ही शानदार व्यक्तित्व के मालिक राहुल के पिता राजीव जी का भी था...पुराने खूसट चेहरों को देखने के अभ्यस्त भारतियों के लिए राजीव जी की छवि बिलकुल हट कर और दिलकश थी...वो ही बात अब राहुल में नज़र आ रही है...

नीरज

रचना दीक्षित said...

दाढ़ी का पर्सुएसन से भी कोई रिश्ता है यह तो आज ही जाना. वैसे लोजिक में दम है.

अरुण चन्द्र रॉय said...

असंवेदनशील राजनीती की संवेदनशील प्रस्तुति से अधिक नहीं यह ....

संतोष त्रिवेदी said...

राजनीति का अपना 'ड्रेस-सेन्स' है !

उम्मतें said...

@ संवेदना के स्वर बंधुओ ,
कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके व्यक्तित्व प्रबंधनकर्ताओं ने इस मामले में नरेंद्र मोदी से प्रेरणा ली हो :)

आगे कल्पना ये कि दाढ़ी के मसले में नरेंद्र मोदी की प्रेरणा स्रोत युवा तुर्क चंद्रशेखर थे पर चंद्रशेखर के आदर्श कौन ? ये पता नहीं :)

मुझे लगता है कि बाबा रामदेव की तर्ज़ वाली दाढ़ियों की तुलना में इस तरह की दाढ़ियों को डिजाइनर दाढ़ियां कहा जा सकता है ! एक वाइल्ड किस्म की देशी खरपतवार सरीखी दूसरी साहब के बंगले की बाड़ वाली ट्रिम्ड हेज की मानिंद वेल प्लांड :)

क्लीन शेव्ड (बे-दाढ़ी) राजनेता भी इसी तर्ज पर वैचारिक / राजनैतिक भेदभाव के बिना एक दूसरे से प्रेरणा लेते रहे हैं , नेहरु जी से अटल जी फिर उनसे लालू जी और राजीव गांधी :)

उदाहरणों की लिस्ट लंबी हो सकती थी पर टीप को भी ट्रिम्ड और डिजाइनर लुक में रखना है ना :)

( फिलहाल राजनेताओं से कोई उम्मीद मत पालिये खामख्वाह दुखी बने रहने से क्या फ़ायदा )

प्रवीण पाण्डेय said...

सोच रहे हैं कि दाढ़ी बढ़ा लें कि क्लीन शेव ही ठीक है..

दिगम्बर नासवा said...

हम भारतीय अक्सर नायक की तलाश में रहते हैं और मीडिया इस बात को जानता... ये नेता भी जानते हैं ...

लोकेन्द्र सिंह said...

एक नया कॉन्सेप्ट चला है। इमेज बिल्डिंग का। इसका उपयोग फिल्म इंडस्ट्री, साहित्यक क्षेत्र और राजनीति में जमकर किया जा रहा है। सूत्र अपुष्ट हैं फिर भी जिक्र तो किया ही जा सकता है। अपुष्ट सूत्र कहते हैं कि राहुल की जनता के बीच इमेज सेट करने के लिए भारी मात्रा में पैसा खर्च किया जा रहा है। राहुल के अधिकांश क्रियाकलाप, वेशभूषा और आचार-विहार प्रायोजित और नियोजित हैं।

मनोज भारती said...

यूं जनता को कब तक पर्सुएड किया जाता रहेगा...क्या जनता इतना भी नहीं समझती की यह बड़े मच्छवारे द्वारा डाला गया कांटा है जो उसे कहीं का नहीं छोड़ेगा...

उपेन्द्र नाथ said...

राहुल जी की दाढ़ी किस्सा बड़ा रोचक लगा.
.
राहुल की ये दाढ़ी का साईज उसी तरह कम होता लग रहा है जैसे उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी के ८० के दशक के बाद जनाधार कम होने लगा.
.
ये बॉडी मनेजमेंट का उत्तर प्रदेश की जातिवादी राजनीती में कोई फरक नहीं पड़ने वाला . उन्हें अभी बहुत मस्सकत करनी पड़ेगी क्योंकि उनके मुस्लमान वोट अब मुलायम के पास और निचले तबके के वोट मायावती के पास पहुँच गए है.
.

कविता रावत said...

sundar samyik rajnitik halchal..
sateek prastuti

Padm Singh said...

भंडिया के भाण्ड .... :)

ghughutibasuti said...

सुंदर चेहरे वाले पर्दे पर दिखते ही ठीक हैं, हमारे भाग्यविधाता बने नहीं.नेता सद्बुद्धि वाला हो तो बेहतर.
रंग,चेहरा,बाल या गंजापन हमें क्या करना है? नेता चाहिए, बॉयफ्रेंड नहीं.
घुघूतीबासूती

अजित गुप्ता का कोना said...

जेसा देश वैसा भेष वाली कहावत है। अब राजनीति भी स्‍वांगों की भेंट चढ रही है। देरी के लिए क्षमा।

आचार्य परशुराम राय said...

आपकी यह पोस्ट काफी विचारोत्तेजक और ताजगी से भरी है। ऐसे संतुलित और निष्पक्ष लेखों का अभाव है। कम से कम आप जैसे लोग यह काम करके लोक जागृति का उत्तरदायित्व उठा रहे हैं, यह अच्छी बात है।आभार।

ZEAL said...

उत्तर प्रदेश वासियों ने निराश नहीं किया। कम से कम 'कांग्रेस' रुपी भेड़िया का बहिष्कार तो किया। राहुल का फ्रस्ट्रेशन ले डूबा कांग्रेस को। बेचारा बच्चा , इतना जिद्दी और गुस्सैल है की राम ही जाने , अब पचास सीटों मिलने पर क्या करेगा। खुर्शीद और सिद्धिकी की चुनावी नौटंकियाँ उलटी पड़ गयीं। मीडिया खरीदने का भी कोई लाभ नहीं मिला कांग्रेस को।

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