सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Thursday, April 22, 2010

एक सम्वेदना


चढते हुए पारे ने चालीस का स्तर पार कर लिया है
परिंदे प्यास के मारे दम तोड़ रहे हैं...
आइए...
 अपनी सम्वेदनशीलता को जीवित करें
अपने घर, आँगन, छत, मुंडेर, बाग, बगीचे, कहीं भी
एक बरतन में पानी रखें
उन परिंदों के लिए,
उनके जीवन के लिए
धरोहर हैं ये हमारी... इन्हें जीवन दान दें!!

आज पृथ्वी दिवस है - २२ अप्रैल २०१०:  हरियाली ही खुशहाली है!!

12 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जागरूकता फ़ैलाने का सुन्दर प्रयास.....संवेदनशील मन का पता चलता है..

स्वप्निल तिवारी said...

:-)

Rohit Singh said...

याद दिलाने के लिए धन्यवाद. आज सुबह से आपकी बात मान ली है सुबह के पांच बजे ही रख दिए है पानी के प्याले छत पर

Naveen Rawat said...

हमने इन परिदों के घर उजाड़े हैं, जंगल काट कर!

इनकी भूख और इनके जीवन की कोई सुरक्षा तो हम इंसान कर नही सकते, क्योंकि हम इंसानो की भूख तो शायद सारी धरती को लील जाने के बाद भी शांत नही होगी.

पापों का कुछ पशचाताप होगा आज
जब छ्त पर पानी और दाना रखूंगा मै इन परिन्दों के लिये.

"सम्वेदनां के स्वर" क्षमा मांगेगे इन परिन्दों से.

नवीन रावत

imemyself said...

i me myself....चार्वाक वादी यही फलसफा समझ आया था मुझें बाज़ारवाद के आज के युग में. ज़मीन के अन्दर का पानी पम्प लगाकर. चोरी की बिजली से खीचं लेते है हम, माल बनाते हमारे कारखाने हवा मे ज़हर घोलने मे गुरेज़ नहीं करते.

ऐसे में चिड़िया को दाना-पानी ?
अमां छोड़ो यार, ये किताबी बातें.

अंजना said...

बहुत अच्छा प्रयास..

Erina Das said...

pehle mujhe samajh nahi aaya tht how i gave u a topic... ab pata chal gaya.. :)

मनोज भारती said...

आज की विकट स्थितियों में जब हम पर्यावरण को बिगाड़ने पर तुले हैं, आपकी यह पोस्ट सराहनीय है, वस्तुत: आज पक्षियों को चिलचिलाती धूप में जल दूर-दूर ढ़ूँढ़ने पर भी नहीं मिल पाता । बढ़ता शहरीकरण और उस पर घटते जंगल, खेत आदि ने जहाँ इन पक्षियों को उजाड़ा वहीं मोबाइल सर्विस के लिए जगह-जगह बने ध्वनि-सिग्नल टॉवरों की असहनीय ध्वनि तरंगों ने गौरया जैसी चिड़ियों का जीवन छीन लिया है । आप की इस पोस्ट से पक्षियों को दाना डालने और पानी पीलाने की प्रेरणा मिली । धन्यवाद !

soni garg goyal said...

achchi soch hai ........waise mare yahaan in parindo ke liye dana aur paani roz rakha jata hai ........aur abhi ko rakhna bhi chahiye aakhir ye bhi to humari dhrohar hi hai....

Satish Saxena said...

बेहद खूबसूरत पोस्ट के लिए और याद दिलाने के लिए आभारी हूँ आपका ( नाम बताना ही नहीं चाहते ?) !
सादर

दिगम्बर नासवा said...

आपका प्रयास स्वागतयोग्य है ...

nilesh mathur said...

क्या ये आपने लिखा है? ये तो मेरे पास इंग्लिश में sms आया था ! plz reply at nilumathur@gmail.com

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