पिछ्ले दिनों जब पंजाब के फरीदकोट ज़िले में जाना हुआ, तो ज़हन में बस एक ही बात कौंध रही थी “पंजाब में किसान की आत्महत्या”. कोई और वक्त होता तो शायद मैं अख़बार मे पढी इस खबर को राजनैतिक प्रपंच या मीडिया की प्लांटेड ख़बर मान कर, अख़बार का पन्ना पलट लेता, या फिर इस ख़बर मे पंजाब की जगह, विदर्भ का यवतमाल ज़िला होता तो भी, मेरी बुद्धिजीविता व्यवस्था को एक भद्दी गाली देकर, अपनी तरह का पश्चाताप कर लेती. पर न जाने क्यों इस खबर में ऐसा कुछ था, जो मेरे हलक़ मे अटक सी गयी, ये खबर!
बीते वक्त से अलग, अब, बात कुछ और है. अपना मूल पेशा, अर्थ-व्यवस्था के एक तंत्र से जुडा होने के कारण “इंडिया की समृद्धि” और “भारत की विपन्नता” के नित नये रहस्योदघाटन हमारे बीच होते रह्ते हैं.
कैसे कोई मामूली दलाल “दोगली-सरकारी-नीतियों ” की सीढी चढ़कर, कुछ ही बरसों में एक “प्रतिष्ठित उद्योगपति” हो जाता है...यह तमाशा रोज़ अपनी आंखों के सामने हम देखते हैं और मन मसोस कर रह जाते हैं. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में विकास के नाम पर दी गयी टैक्स माफ़ी की सरकारी योजनाओं ने, जिस तरह काले धन को सफेद करने का एक पूरा तंत्र विकसित किया है, वो किसी भी मायने में मॉरीशस या साइप्रस जैसे देशों से आने वाले काले धन के सफेदीकरण से कम नहीं है. देश भर मे 1000 से अधिक विशेष सुविधाप्राप्त “सेज़” (SEZ) हों या हाल ही में सम्पन्न हुआ IPL का हो-हल्ला: सब काले को सफेद करने के इस दलाल तंत्र का हिस्सा भर नज़र आता है.
ख़ैर ! “इंडिया” की दलाल-स्ट्रीट से फलते-फूलते इस दलाल-तंत्र से इतर, भीतर का “भारत” सरीखा कोई हिस्सा ही था जो “पंजाब मे किसान की आत्महत्या” की खबर की तह मे जाना चाहता था. हमने निश्चय कर लिया था खेती-बाड़ी के उस अर्थतंत्र को समझने का जिस पर हमारे भारत की 65% आबादी निर्भर है, जिसका देश के सकल घरेलु उत्पाद मे योगदान मात्र 18% है, जिसकी विकास दर -0.25% है.
फ़रीदकोट के कोटकपुरा क़स्बे में, इत्तेफ़ाक़न वहाँ के किसान बछत्तर सिंह से मुलाकात हुई, तो देर तक खेती-बाड़ी की बात होती रही. और फिर उसके बाद, जो बैलेंस शीट बनकर सामने आयी, वो इन ग्रामीणों की उलझी हुई जिन्दगियों से एकदम उलट, सीधी सपाट थी.
दो बीघा ज़मीन – एक वायबिलिटी रिपोर्ट
मूल आँकड़े
ज़मीन का क्षेत्रफल = दो बीघा
फसल = गेहूँ
फसल का समय-काल = लगभग 6 माह (नवम्बर से अप्रैल माह)
आय सम्बन्धी तथ्य :
1. औसत उत्पादन = 8 कुंतल
2. गेहूँ का सरकारी खरीद मूल्य = रू0 1100 प्रति कुंतल
कुल आय = रू.1100 x 8 = रू. 8,800
व्यय-सम्बन्धी तथ्य :
बीजखरीद = रू0 700
(40 किलोग्राम के बीज की कीमत लगभग
रू. 1400 प्रति कि.ग्रा. के हिसाब से)
खरपतवार नाशक = रू0 500
कीटनाशक दवाई = रू0 250
खाद
1 बोरी यूरिया (प्रारम्भ में) = रू0 300
1 बोरी यूरिया (मध्यकालमें) = रू0 300
½ बोरी डीएपी खाद = रू0 250
जुताई
खेत की औसतन 4 बार जुताई (ट्रैक्टर का
किराया तैल-पानी-मज़दूरी सहित) = रू0 750
मज़दूरी खर्च विवरणः
खरपतवार नाशक दवा के छिड़काव का खर्च = रू0 100
कीटनाशक दवा के छिड़काव का खर्च = रू0 100
बुआई का खर्च = रू0 300
कटाई का खर्च = रू0 1200
बिजली तथा पानी का खर्च
पूरे खेत को फसल के दरम्यान 6 बार
लगाये गये पानी का खर्च = रू0 1500
(बिजली और पानी का सम्मिलित खर्च
रू0 250 की दर से)
थ्रेशर का खर्च = रू0 450
मंडी तक ले जाने का खर्च = रू0 500
कुल खर्च = रू0 7200
कुल आमदनी (रू0 8,800 - रू0 7200) = रू0 1500
यानी 6 महीने हाड़-माँस गलाने के बाद दो बीघा खेत के मालिक किसान को कुल आमदनी होती है रू0 1500 मात्र.
यह नरेगा स्कीम में मिलने वाली 100 रुपये प्रति दिन की आय के हिसाब से 15 दिन की मज़दूरी के बराबर है.
इसमे यदि खाद और बीज के लिये गये कर्ज़ के ब्याज को जोड लिया जाये तो किसान का सब कुछ स्वाह हो जायेगा.
इन्द्र देव की कृपा भी इस फसल को चाहिये होगी वरना फिर और कर्ज़ का बोझ होगा.
हाँ, यही ज़मीन अगर शहर में होती या किसी बिल्डर के पास, तो कम से कम रू0 10,000 का प्रतिमाह का किराया ही दिला रही होती.
“किसान की आत्महत्या” के इस रह्स्य का पर्दाफाश हो चुका था.
फिर ख्याल आया कि जब यह सब इतना सब कुछ स्पष्ट है तो देश का अर्थशास्त्री नेतृत्व क्यों अनभिज्ञ बना बैठा है ? पिछले उन्नीस वर्षों में, आर्थिक सुधार हुआ तो किसका? क्या सारा भारत धीरे- धीरे आत्महत्या कर लेगा? जीत जायेगा इंडिया और हार जायेगा भारत? और सबसे बड़ा सवाल क्या बचेगा भी भारत?
24 comments:
dimag ghuma dene wala report...sahi me abhi yahi sonch raha hun ki inte clear picture ko bhi kaise koi nazarandaz kar sakta hay..kisan aatmhatya kayon na karen..agar yahi haal raha to kisan ke baad agle nisane par ham aur aap ko aatmhatya karne ki bari kitne dinon ke baad aayegi..aur aise hin kai gahre sawal man me umad ghumad rahe hayn.
aapka aakekh sonchne par mazboor kar gaya.
aapke aankde ytharth hain
m aapse puran roop se sahmat hu
bilkul thik andaja lagayaaapne
दरअसल, ये देश आज़ाद ही नही हुआ है सिर्फ अंगेजो ने सत्ता अपने एजेंटॉ क़ॉ सौपी है.
जिस देश ने अपने पैरो की बेडियों को आभूषण मान रखा हो उसका क्या होगा ?
आपकी इस रिपोर्ट को पढ़ सकते में हूँ....सोच रही हूँ की ये आंकड़े सही हैं तो क्या भविष्य होगा? जागरूक करने वाली प्रिविष्टि
आंखें खोलने वाला रिपोर्ट।
it's totally shocking ??? we need to think about that seriously ..........
बहुत ही आश्चर्य लगा और सिर्फ़ यही सोच रही हूँ कि आखिर ऐसा भी हो सकता है? हम सभी को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए! उम्दा प्रस्तुती!
अक्सर किसान द्वारा आत्महत्या के बारें में सुनकर ....बहुत दुःख होता है .....और आज आपकी ये रिपोर्ट पढकर ....कारण भी पता चल गया की आत्महत्या क्यूँ करते है ......आखिर इन किसानो की समस्या पर सरकार क्यूँ नज़र नही डालती .......डाले भी क्यूँ सरकार को तो सिर्फ वोट बटोरने से मतलब है . .....
भारत की आजादी से पहले प्रेमचंद का किसान होरी और अआज के स्वतंत्र भारत के किसान में कोई अंतर नहीं आया है । सही मायने में हम अआज़ाद ही कहां हुए हैं । पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे अआज अपने ही देश के कुछ चुने हुए तथाकथित प्रतिष्ठित कहलाने वाले छद्म अगुआओं के गुलाम हैं, जो देश की नीतियाँ अमेरिका जैसे देशों के इशारे पर बनाती हैं और हम आज बुरी तरह से गुलाम हो चुके हैं बहुदेशीय कम्पनियों के । हमारी श्रम शक्ति और खनिज शक्ति यहाँ तक कि पानी का दाम भी ये कंपनियाँ ही निश्चित कर रही हैं । किसान दिन प्रतिदिन गरीब होता जा रहा है, जबकि बहुदेशिय या हमारे देश की बड़ी कम्पनियाँ गरीब किसानों और श्रमिकों की मेहनत मजदूरी की गाढ़ी कमाई को कोड़ियों के भाव खरीद रहें हैं ।
आज भी किसान व श्रमिक की हालत होरी और गोबर से बहुत भिन्न नहीं है ।
श्रमिक दिवस पर यह पोस्ट प्रासंगिक रही । आप इस शोध या गहन छानबीन वाली रिपोर्ट के लिए साधुवाद के पात्र हैं । मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिए ।
very thoughtful
thanks for sharing knowledge
what an analysis!! reminded me of DO BIGHA ZAMEEN (1953)by Late Bimal Roy. Nothing has changed since then... Government talks in percentage, ignoring the ground realities...
jindgi ka ek sachcha pahlu
isiliye main herble plantation ki baat karti huun
bahutokiaakhen shayad khul jayengi aapki is jagarukatapurn jankari ko padhkar .aapki ye mehanat safal ho inhi shubhkamnaon ke saath.
poonam
aankhe khol di aap ke arthshaastr ne. gaanvo me rahi hu aur gaavo ki zindgi dekhi hai aur aisi zindgiya bhi dekhi hain jinki sirf itni hi jameen hoti thi..aur itni hi kam aamdan..yaad aata hai ki unki zindgi bas ek se udhar le..dusre ko chukane...aur fir teesri udhar sir par chadha aur uske bojh utaarne me hi beet.ti jati thi...tab me chhoti thi aur unke dard ko shayed nahi samajh sakti thi..lekin aaj soch rahi hu....hamari sarkaro ko kuchh karna chaahiye. ham sunte to bahut kuchh hai bhi ki sarkar kisano ke karz maaf kar rahi hai lekin is me sahi maayno me madad kaha.n tak pahuch pati hai..nahi jaanti.
bahut acchhi rachna...sacchayi se avgat karati.
बड़े प्रश्न उठाती है यह रपट और आंकड़े.
Kisaan aur bunkaron ko raundta hua yah desh 21 ve shatak me chal raha hai...afsos!
मेरे अब तक पढ़े बेहतरीन लेखों में से एक ! काश हम लोग किसान की इस दयनीय हालत पर अधिक ध्यान दे पायें ! ब्लाग जगत में भी ऐसे तथ्य परक ऑंखें खोलने वाले लेखों पर ध्यान अधिक नहीं जाता ! यहीं पर आप ब्लागर सम्बंधित कुछ नामों पर चर्चा करते तो निस्संदेह यहाँ विजिट करने वाले, कहीं अधिक होते !
आप दोनों को शुभकामनायें !
sir maaf kijiyega lekin aapke in ankdo main thodi si gadbad hai maine jab ye aakde ek vyakti ko bataye jo khud krishi jiwan jite hai to wo pehle to hans hi diye lekin baad main unhone bataya ki ye aankde sirf kagzi hai asal main aisa nahi hai haan kisano ki kamai zarur kam hia lekin sirf 1500/- agar wo six months main kamate to wo kab ki kheti chod chuke hote .........halanki aapke ye akde pad kar main puri tarah se shoked thi aur kud bhi yahi soch rahi thi ki agar kamai itni hi kum hai to log kheti karenge hi kyu.....sir plz mera gyanvardhan kare is waqt main in aankdo se confuse hu........
kya to aankde hain.... sir ghuma dene wale...han ek aam kisan ke liye ye bahut jyada dukh dayi hai ...aur kisaan yun hi atmhatya nahio karta....yahi wajhen hain ..han kuch jyada samarth kisaan bade paimane par kheti kar ke achha laabh kamate honge...apr 8-10 beehga tak khet rakhne wala kisaan to faake hi karta hoga...
यही हकीकत है मैं खुद एक किसान हु आपने जो आंकड़े दिए है यही सच है मेरे यंहा धान की खेती भी होती है बहुत मंहगा बीज खरीद कर disel जला कर तैयार धान की ११२१ किस्म की हालत इन राजनेताओं ने अपनी नीतियों से और व्यापारी दलालों ने किसानो को बर्बाद करदिया है जिस धान की कीमत पिछले साल २८०० रु थी उस धान को आज ये दलाल १४००रु में भी नहीं खरीद रहे है ये बात भी नहीं है की इस वजह से बासमती की भाव बाज़ार में सस्ते हो गए है बाज़ार मैं तो अभी भी ६५-७० रु किलो मिलता है|धान के बारे मैं भी लिखे
prasn to ye hai ki in samasyao ka samadhan kya hai? kya hum sirf charcha hi karte rahenge ya kuch karenge bhi?
1-15kg GOBER +15KG GOMUTRA+1KG GUD+1KG DAL KA AANTA+1KH KISI PURANE PED K NICHE KI MITTI.....SABKO MILAKAR KISI DRAM ME RAKH DE 15 DINO TAK, ISE BAR BAR CHALATE RAHE. 15 DINO TAK RAKHNE K BAD 200 LITTER PANI MILAKAR 1 EKAD KHET ME DALE 21 DINO BAD AAP KISI BHI FASAL K LIYE ISTEMAL KAR SAKTE HAI.
Kisano ko upaj ka muly bdhane ke liye ek bade jan Aandolan krni pdegi
Option 1:Farmer Should select the crop as the land and available resources.
If he has small holding then go for vegetable crops and sell direct to the customers.
Option 2: Farmer should take some more land on partnership/ lease to increase the produce income.
option 3: Farmer should adopt Hi tec. agricultural practices and use hybrid seeds for vegetables and grow off season vegetables use drip irrigation and enhance his income.
Regards
Vishal Sharma
Ohhh god....
If it is true then realy it hurts.
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